मड़ुआ में प्रचुर मात्रा में कैल्शियम, आयरन और फाइबर पाया जाता है इसलिये यह अन्य अनाजों की तुलना में अधिक ऊर्जा प्रदान करने में सक्षम है
तोरा में बड़-बड़ गुन हौ गे मड़ुआ
जब मड़ुआ में दू पत्ता भेल
बुढ़िया-बुढ़वा कलकत्ता गेल
तोरा में बड़-बड़ गुन हौ गे मड़ुआ
तोरा कोठी में रखबो गे मड़ुआ
तोरा में बड़-बड़ गुन हौ गे मड़ुआ
दीनानाथ साहनी की पुस्तक ‘माँ की लोरियाँ और संस्कार गीत’ में संकलित यह लोकगीत मड़ुआ के गुणों का बखान करता है। इस लोकगीत में बताया गया है कि मड़ुआ को काफी दिनों तक कोठी में रखा जा सकता है और यह खराब नहीं होता। अंगिका भाषा का यह लोक गीत एक समय मड़ुआ की कटाई के समय गाया जाता था। हालाँकि अब मड़ुआ की खेती को छोड़कर लोग गेहूँ और धान की खेती करने लगे हैं। इसका कारण मड़ुआ को लेकर सरकार का उपेक्षापूर्ण रवैया भी रहा है। मड़ुआ की खरीदी सरकार नहीं करती इसलिये किसानों को इसे बेचने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है।
मड़ुआ को अंग्रेजी में फिंगर मिलेट कहा जाता है और इसका वानस्पतिक नाम इलुसिन कोराकाना है। मड़ुआ की विशेषता यह है कि यह समुद्र तल से 2000 मीटर की ऊँचाई पर भी उगाया जा सकता है और इसमें आयरन एवं अन्य पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में निहित हैं। इसमें सूखे को झेलने की अपार क्षमता है और इसे लम्बे समय (करीब 10 साल) तक भंडारित किया जा सकता है। आश्चर्यजनक बात यह है कि मड़ुआ में कीड़े नहीं लगते। इसलिये सूखा प्रवण क्षेत्रों के लिये मड़ुआ जीवन-रक्षक की भूमिका निभा सकता है।
मड़ुआ की उत्पत्ति पूर्वी अफ्रीका (इथियोपिया और युगांडा के पर्वतीय क्षेत्र) में हुई थी जो ईसा पूर्व 2000 के दौरान भारत लाया गया। कनाडा स्थित नेशनल रिसर्च काउन्सिल की 1996 की रिपोर्ट के अनुसार, अफ्रीका के प्रारम्भिक कृषि से सम्बन्धित पुरातात्विक रिकॉर्ड्स में मड़ुआ को 5000 वर्ष पहले इथियोपिया में मौजूद होने का प्रमाण मिलता है। यह अफ्रीका के कई हिस्सों में प्रमुख खाद्य अनाज है पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका में लौह युग के प्रारम्भ (करीब 1300 ईसा पूर्व) से उगाया जा रहा है। इथियोपिया में मड़ुआ से शराब भी बनाई जाती है जिसे अराका कहा जाता है।
नेशनल रिसर्च काउन्सिल की 1996 की रिपोर्ट के अनुसार, मड़ुआ की घास मवेशियों के चारे के लिये भी उपयुक्त होता है क्योंकि इसमें करीब 61 प्रतिशत सुपाच्य पोषक तत्व पाए जाते हैं। वर्ष 2000 में प्रकाशित पुस्तक पीपुल्स प्लांट्स : ए गाइड टू यूजफुल प्लांट्स ऑफ सदर्न अफ्रीका के लेखक बेन-इरिक वान विक और नाइजल जेरिक के अनुसार, मड़ुआ का इस्तेमाल कुष्ठ और यकृत सम्बन्धी रोगों के उपचार के लिये पारम्परिक औषधि के तौर पर किया जाता है।
मड़ुआ में प्रचुर मात्रा में कैल्शियम, आयरन और फाइबर पाया जाता है इसलिये यह अन्य अनाजों की तुलना में अधिक ऊर्जा प्रदान करने में सक्षम है। मड़ुआ के यही गुण इसे नवजात शिशुओं और बुजुर्गों के लिये उपयुक्त खाद्य पदार्थ बनाते हैं।
तमिलनाडु में मड़ुआ को देवी अम्मन (माँ काली का एक स्वरूप) का एक पवित्र भोजन माना जाता है। देवी अम्मन से जुड़े हर पर्व-त्यौहार में महिलाएँ मन्दिरों में मड़ुआ का दलिया, जिसे कूझ कहा जाता है, बनाती हैं और गरीबों और जरूरतमन्दों में बाँटती हैं। कूझ कृषक समुदाय का मुख्य भोजन है जिसे कच्चे प्याज और हरी मिर्च के साथ खाया जाता है।
उत्तर भारत में महिलाएँ अपनी सन्तानों की लम्बी उम्र की कामना को लेकर जितिया नामक व्रत रखती हैं। तीन दिवसीय इस व्रत के आखिरी दिन, जिसे पारण कहा जाता है, मड़ुआ के आटे की रोटी खाकर व्रत तोड़ने का विधान है। ऐसा माना जाता है कि दो दिनों के व्रत के बाद मड़ुआ की रोटी शरीर में ऊर्जा को जल्दी से लौटा देती है।
नेपाल में मड़ुआ के आटे की मोटी रोटी बनाई जाती है। मड़ुआ का इस्तेमाल बीयर, जिसे नेपाली भाषा में जांड कहते हैं और शराब जिसे रक्शी के नाम से जाना जाता है, बनाई जाती है। इसका इस्तेमाल उच्च जाति के लोग हिन्दुओं के त्यौहारों के दौरान करते हैं।
श्रीलंका में मड़ुआ को कुरक्कन के नाम से जाना जाता है। वहाँ नारियल के साथ इसकी मोटी रोटी बनाई जाती है और इसे काफी मसालेदार मांस के साथ खाया जाता है। वहाँ मड़ुआ का सूप भी बनाया जाता है, जिसे करक्कन केंदा के नाम से जाना जाता है। मड़ुआ से बने मीठे खाद्य पदार्थ को हलापे कहा जाता है।
वियतनाम में मड़ुआ का इस्तेमाल औषधि के तौर पर महिलाओं के प्रसव के दौरान किया जाता है। कई जगहों पर मड़ुआ का इस्तेमाल शराब बनाने के लिये भी किया जाता है। ये खासकर हमोंग अल्पसंख्यक समुदाय का प्रमुख पेय है।
औषधीय गुण
मड़ुआ प्रोटीन, विटामिन और कार्बोहाइड्रेट का मुख्य स्रोत है और यह न सिर्फ मानव शरीर के लिये आवश्यक पौष्टिक तत्वों की पूर्ति कर सकता है बल्कि कई प्रकार के रोगों से बचाव में भी सहायक है। वर्ष 2005 में अमेरिकन डायबिटीज एसोसिएशन की एक रिपोर्ट के अनुसार मड़ुआ को अपने दैनिक आहार में शामिल करने वाली आबादी में मधुमेह रोग होने की आशंका बहुत कम होती है। मड़ुआ में चावल और गेहूँ के मुकाबले अधिक फाइबर पाया जाता है और यह ग्लूटन मुक्त भी होता है, जिसके कारण यह आँतों से सम्बन्धित रोगों से बचाता है।
न्यूट्रिशन रिसर्च नामक जर्नल में वर्ष 2010 में प्रकाशित एक शोध के अनुसार, मड़ुआ का सेवन हृदय सम्बन्धी रोगों से बचाव में कारगर है क्योंकि यह खून में प्लाज्मा ट्रायग्लायसराइड्स को कम करता है। वर्ष 1981 में वान रेसबर्ग द्वारा किए गए शोध के अनुसार, मड़ुआ खाने वाली आबादी में खाने की नली के कैंसर होने की सम्भावना कम हो जाती है।
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