तो सूख जाएगी नैनीताल की नैनी झील ?

तो सूख जाएगी नैनीताल की नैनी झील ?
तो सूख जाएगी नैनीताल की नैनी झील ?

शराब व्यवसायी पीटर बैरन उर्फ पिलग्रिम लंबे समय से हिमालय क्षेत्र की यात्रा पर थे। वर्ष 1941 में जब वे अपनी यात्रा पर निकले तो सफर वर्तमान की अपेक्षा उतना सुगम नहीं था। उन्होंने बर्फीले इलाकों की करीब 1500 मील की यात्रा की और नवंबर 1841 को अल्मोड़ा पहुंचे। इस दौरान वे अपने दो साथियों जेएच बैटन और कैप्टन वेलर के साथ पहुंचे थे। तीनों मित्रों ने झील खोजने की योजना बनाई, लेकिन झील तक पहुंचने का सही मार्ग किसी को नहीं पता था। पहले तो उन्हें मार्ग बताने के लिए कोई गाइड (मार्ग निर्देशक) नहीं मिला। एक गाइड मिला भी, तो वो मार्ग बताने के नाम पर उन्हें गुमराह करना चाहता था। हांलाकि पीटर काफी अनुभवी थे और उन्होंने घाट-घाट का पानी पिया था, जिस कारण उन्हें बेवकूफ बनाना मुश्किल था। कड़ी मशक्कत और कठिनाईयों को पार करने के बाद पीटर अंततः अपने साथियों के साथ खैरना से कफुल्टा, जाख, चैरसा से होते हुए सेंट-लू के रास्ते 18 नवंबर 1841 को झील तक पहुंचने में सफल हुए। यहां की मनोरम और मंत्रमुग्ध करने वाली प्राकृतिक सुंदरता को देख वे काफी उल्लासित हुए। स्वर्गरूपी इस सुंदरता को देख उन्होंने यहां नगर बसाने का निर्णय लिया। पीटर ने अपनी किताब ‘‘नोट्स आॅफ वाॅन्डरिंग्स इन द हिमाला’’ में शिमला, मसूरी, अल्मोड़ा, लोहाघाट आदि जगहों में से नैनीताल को सबसे खूबसूरत बताया है। उन्होंने लिखा है कि 1500 मील की यात्रा में नैनीताल सबसे सूबसूरत जगह थी’’। उन्होंने अपनी इस किताब में नैनीताल की सुंदरता को विस्तार से बताया है। साथ ही झील में जान फूंकन वाले जल स्रोतों का भी ज़िक्र किया है। 

पीटर बैरन द्वारा नैनीताल की खोज करने के बाद इस इलाके में झील होने की खबर पहली बार 31 दिसंबर 1841 को प्रकाशित हुई। खबर को तवज्जों देते हुए प्रकाशित करने वाला अखबार था, ‘इंग्लिश मैन’, जो कोलकाता (तब कलकत्ता) से प्रकाशित होता था, लेकिन भारत के मानचित्र में सात पहाड़ियों के बीच ऐसी भी कोई झील है, यूरोपीय समुदाय को इसका प्रमाण देने के लिए पीटर को अथक श्रम करना पड़ा। इसके बाद 26 फरवरी 1942 से नैनीताल में बसावट का दौर शुरू हो गया और शांत वादियों में इंसानों की चहलकदमी होने लगी। 1942 में पीटर दूसरी बार नैनीताल आए। तब तक सरकारी दस्तावेजों में नैनीताल को अधिसूचित कर दिया गया था। आधा दर्जन से अधिक लोगों ने मकान बनाने के लिए आवेदन किया था। कई लोगों को अनुमति भी मिल चुकी थी। तत्कालीन कमिश्नर जीटी लुशिंगटन ने मल्लीताल बाजार के लिए एक स्थान चयनित कर दिया था। दुकानों को लीज पर लेने के लिए भारी संख्या में लोग आने लगे थे। हांलाकि ये देखकर पहाड़ के लोग काफी खुश थे। क्योंकि रोजगार के साधन उपलब्ध हो रहे थे। वहां के लोगों को लग रहा था कि भविष्य में नैनीताल एक फलता फूलता शहर होगा। बेशक नैनीताल एक खुशहाल शहर बना, लेकिन वक्त के साथ नैनीताल की सूरत और सीरत दोनों ही बदलने लगी।  

फोटो - Incredible India

वक्त के साथ साथ नैनीताल में आबादी बढ़ने लगी। एक वक्त में जहां नैनीताल के बारे में किसी को पता ही नहीं था, वहां सैंकड़ों लोग बसने लगे, लेकिन नगर को बसाने के चक्कर मे लोग ये भूल गए थे कि नैनीताल की पहाड़ियां काफी संवेदनशील हैं। घर, बाजार आदि बनाने के लिए जंगलों को काटने से इसकी संवेदनशीलता और भी अधिक बढ़ गई थी। शालीन और सुंदर दिखने वाली पहाड़ियों पर कंक्रीट के जंगलों का दबाव बढ़ता जा रहा था। जिस कारण 18 सितंबर 1880 को नैनीताल की पूर्वी पहाड़ी पर भयानक भूस्खलन आया। इसने नैनीताल का भूगोल ही बदल दिया था। हादसे में करीब 151 लोगों की मौत हुई थी। इसके बाद औपनिवेशिक शासकों को वादियों के बीच खतरे की वास्तविक स्थिति का पता चल गया था। दरअसल, उस दौरान शासकों का मानना था कि भूस्खलन का कारण बारिश के पानी का रिसकर जमीन के अंदर पहुंचना है, जिस कारण नैनी झील के चारों तरफ की पहाड़ियों पर नालों का निर्माण कराया गया, किंतु वास्तविक कारण पहाड़ों पर पड़ने वाला दबाव था। जिसे आसानी से स्वीकार करने को कोई राज़ी नहीं था। खैर, भवन निर्माण के नियमों में बदलाव किया गया और नियमों को काफी सख्त कर दिया गया। इन नियमों का काफी समय तक पालन हुआ, लेकिन फिर धीरे धीरे सभी नियम कानूनों को ताक पर रख दिया गया। पहाड़ की वादियों की सुरक्षा और सुकून को भ्रष्टाचार और प्रशासनिक लावरवाही की भेंट चढ़ा दिया गया। जिसके चलते नैनीताल में बेतहाशा निर्माण हुआ। 

वर्ष 1984 के बाद मानों नैनीताल में एक सैलाब ही उमड़ पड़ा। नैनीताल की खूबसूरती की खबरे जैसे जैसे लोगों तक पहुंच रही थी, यहां पर्यटकों की संख्या में लगातार इजाफा होने लगा। कश्मीर और शिमला की मनोरम वादियों को छोड़ पर्यटक नैनीताल और मसूरी का रुख करने लगे। तभी से ही नैनी झील पर मंडराता संकट भी दिखने लगा था। जिस कारण उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी ने ‘‘झील परिक्षेत्र प्राधिकरण’’ बनाने की घोषणा की, लेकिन धरातल पर काम निल बटे सन्नाट ही रहा और अवैध निर्माण की बाढ़ आ गई। आबादी बढ़ने और प्रकृति के अतिदोहन के कारण कई जागरुक नागरिकों ने इसका विरोध भी किया। 1985 में झील में से गाद निकालने के लिए स्वैच्छिक कार सेवा भी की गई। कई समितियों का गठन कर झील के संरक्षण के लिए सरकार को सुझाव दिए गए, लेकिन हर कार्य मानों सरकारी फाइलों में धूल खाने का आदि हो गया था। झील के संरक्षण के लिए बनने वाली योजनाओं की फाइलों में इतनी धूल पड़ गई कि अब लोगों को नैनी झील के भविष्य पर धूल के बादल छाते दिखाई देने लगे थे। 

दरअसल, बारिश का पानी, बर्फबारी के बाद मिलने वाला पानी और प्राकृति जल स्रोत ही नैनी झील के प्राण हैं। झील के नीचे भी कई स्रोत हैं। इन सभी माध्यमों से ही झील को पानी मिलता है। 19वीं शताब्दी में कई प्रमाण भी मिले थे, जिनसे पता चलता है कि नैनी झील को करीब 321 प्राकृति जल स्रोतों से पानी मिलता था। इसी झील के पानी की सप्लाई नैनीताल की जनता की प्यास बुझाने के लिए पेयजल के रूप में भी की जाती थी और वर्तमान में भी की जा रही है, लेकिन अनियमित विकास और अवैध निर्माण के कारण इन जल स्रोतों के मार्ग पर भवनों का निर्माण कर इन्हें बंद कर दिया गया है। डामरीकरण के चलते बारिश का पानी भी जमीन के अंदर पहुंचने के बजाए नालों में बह जाता है। तो वहीं नैनी झील को जल पहुंचाने का मुख्य स्त्रोत ‘‘सूखताल’’ को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया। विदित है कि सूखताल एक दलदलीय क्षेत्र है, जिसे अंग्रेजी में वैटलैंड कहते हैं। ये बरसात के दिनों में पानी से लबालब भरा रहता था, और साल के बाकी दिनों में दलदलीय क्षेत्र के रूप में इसकी पहचान थी। सूखताल से ही नैनी झील को 40 से 50 प्रतिशत पानी प्राप्त होता था, जो रिस-रिस कर नैनी झील तक पहुंचता था, लेकिन शासन और प्रशासन ने सूखताल के महत्व को हाशिये पर रखा। सूखाताल अतिक्रमण की भेंट चढ़ता गया। वर्तमान में सूखाताल पर भवन बने हुए हैं और शेष बचा क्षेत्र डंपयार्ड के रूप में नजर आता है। वहीं जलवायु परिवर्तन का असर भी नैनी झील पर पड़ रहा है।

फोटो - SANDRP

विश्वभर में ग्लोबल वार्मिंग के कारण जलवायु परिवर्तन हो रहा है। नैनीताल में कई वर्ष पहले साल के 12 महीने सर्दी रहती थी। जब मैदानों में गर्मी पड़ती तो लोग गर्मी की छुट्टियों में नैनीताल जाया करते थे। यहां वादियों में सुकून के दो पल बिताते थे। बरसात के मौसम में यहां स्वर्गलोक के समान मौसम रहता था, जो पर्यटकों को काफी आकर्षित करता था। सर्दियों में नैनीताल के पहाड़ जैसे ही बर्फ की चादर ओढ़ लेते थे, पर्यटकों का सैलाब उमड़ पड़ता था। इसी बर्फ और बारिश से यहां के स्रोतों और झील को पानी मिलता था, लेकिन जलवायु परिवर्तन की मार ऐसी पड़ी कि अब बर्फबारी भी कम होती है और बारिश भी। खैर इसका मुख्य कारण तो मानवीय आबादी है, जिसने यहां बेतहाशा जंगलों को काटा। आबादी बढ़ी तो प्रदूषण भी बढ़ा और मौसम बदलने लगा। जिस कारण नैनीताल में जहां पूरे साल लोग स्वेटर पहनते थे, आज वहां एयर कंडिशनर लगे हैं। मौसम गर्म होने लगा है। इन सभी गतिविधियों का असर नैनी झील पर पड़ रहा है।

ऐसा माना जाता है कि नैनी झील की गहराई 90 फीट से अधिक है। जिसमें मछलियों की विभिन्न प्रजातियां पाई जाती हैं। नैनीताल की खुशहाली भी नैनीझील के कारण ही है, लेकिन मानवीय गतिविधियों के कारण झील की गहराई लगातार कम होती जा रही है। स्पष्ट कहें तो स्रोतों पर भवन निर्माण होने से झील को पानी नहीं मिल रहा है, जिस कारण झील का जलस्तर काफी कम हो गया है। झील में गाद काफी तेजी से बढ़ती जा रही है। वर्ष 2017 में तो नैनी झील 18 फीट तक सूख गई थी। वर्तमान में भी झील की यही स्थिति है। झील के किनारों पर डेल्टा जैसी आकृति उभर आई है। हालांकि भू-वैज्ञानिक झील की उम्र करीब 25 वर्ष आंक रहे हैं। बढ़ते प्रदूषण के कारण झील का पानी पहले की अपेक्षा स्वच्छ नहीं रह गया है। बामुश्किल गंदे नालों का झील में गिरना रोका गया था, लेकिन अभी भी झील के किनारों पर गंदगी आपको दिख जाएगी। खैर, झील के अस्तित्व से ही नैनीताल का अस्तित्व है, पर्यटन और रोजगार है। स्पष्ट तौर पर कहें तो नैनी झील का अस्ति‌त्व खतरे में है। यदि झील सूखती है तो नैनीताल का गला भी सूख जाएगा। इसके लिए मानूसन के बाद पानी की राशनिंग करना बेहद जरूरी है तथा पर्यटन अर्थव्यवस्था का विकास समझदारी के साथ करने की आवश्यकता है। 

लेखक - हिमांशु भट्ट (8057170025)

 

TAGS

nainital, naini lake, lakes in uttarakhand, dying lakes, dying lakes in india, dying lake of uttarakhand, peter barron nainital, history of nainital, tourist places in nainital, nainital tourism, uttarakhand tourism, water crisis, water pollution, landslide nainital.

 

Path Alias

/articles/tao-sauukha-jaaegai-naainaitaala-kai-naainai-jhaila

Post By: Shivendra
×