तलहट की समस्या की अनदेखी

नदी में होने वाली भौतिक, रासायनिक, जैव रासायनिक प्रक्रियाओं के फलस्वरूप बहुत से पदार्थों, विश्वास धातुओं का जल से अवसाद में तथा अवसाद से जल में आदान-प्रदान संभव है। इनमें घुलनशील, दोनों ही प्रकार के पदार्थ होते हैं। अघुलनशील पदार्थ होते हैं। अघुलनशील पदार्थ शनैःशनैः जल में नीचे की ओर जाते हैं और तलहट का अंग बन जाते हैं। नदी जल संरक्षण के कार्यक्रम में जल के भौतिक, रासायनिक व जैविक गुणधर्मों के अध्ययन को तो महत्ता प्रदान की जाती है, जबकि अवसाद के अध्ययन की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। सर्वविदित है कि अवसाद (तलहट) भी नदी जलीय तंत्र का अभिन्न व अविभाज्य अंग है। इसकी उपेक्षा करके नदी प्रबंधन की कोई कार्ययोजना सफल नहीं हो सकती। इस संबंध में कुछ तथ्य उल्लेखनीय हैं, बहता जल एक स्थान पर कुछ पलों से अधिक नहीं ठहरता; अतः एकत्रित जलीय नमूनों द्वारा अल्पतम अवधि की जानकारी प्राप्त होती है, जबकि अवसाद लंबे समय की अवधि को प्रदर्शित करता है। इसकी विभिन्न अवसादीय परतें विभिन्न निक्षेपण स्थितियों की जानकारी अपने में समाष्टि किए रहती हैं, मोटी परतें तेज धारा और पतली परतें मंद धारा को इंगित करती हैं।

इसके अतिरिक्त, कम अंतराल पर एकत्र नदी जल के नमूनों में भारी धातुओं की मात्राओं में वृहत अंतर पाए गए हैं, जबकि अवसाद के नमूनों में भारी धातुओं की मात्रा उनके कण आकार तथा प्रवाह की दिशा में दूरी से एक निश्चित संबंध दर्शाती है। यह एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि अवसाद जलीय माध्यम में प्रदूषक तथा अप्रदूषक दोनों ही रूपों में कार्य करता है। नदी में होने वाली भौतिक, रासायनिक, जैव-रासायनिक प्रक्रियाओं के फलस्वरूप बहुत से पदार्थों, विषाक्त धातुओं का जल से अवसाद में तथा अवसाद से जल में आदान-प्रदान संभव है। विभिन्न माध्यमों यथा; घरेलू कूड़े-कचरे, सीवेज व विभिन्न उद्योगों के अपशिष्ट जल में छोड़ दिए जाते हैं। इनमें घुलनशील-अघुलनशील, दोनों ही प्रकार के पदार्थ होते हैं। अघुलनशील पदार्थ शनैः शनैः जल में नीचे की ओर जाते हैं और तलहट का अंग बन जाते हैं।

2013 की भीषण बाढ़ ने तोड़ा मिथक


काशी नगरी के निकट भू-संरचना इस प्रकार है कि नदी का पश्चिमी (बायां) किनारा लगभग 15 मीटर (नदी के सामान्य जल स्तर से) ऊंचा है। इस ऊंचाई पर बसा हुआ बनारस शहर नदी में आने वाली बाढ़ की विभीषिका से बना रहता है। सामने का समतल मैदान (गंगा पार की रेती) भी काशी नगरी को बाढ़ से बचाने में सहायक है। बाढ़ का पानी सामने की ओर फैलने लगता है। इस फैलाव के कारण जलस्तर बहुत अधिक ऊंचा नहीं उठ पाता। इस प्रकार बाढ़ का प्रकोप कम हो जाता है, लेकिन पिछले वर्ष 2013 में भीषण बाढ़ ने इस मिथक और विश्वास को तोड़ दिया। इसका कारण नदी के प्रवाह मार्ग में अवसादन की समस्या है। अवसादन की समस्या, जो बाढ़ का प्रमुख कारण है, को नेपथ्य में रख दिया गया है।

अवसादन उभार और नदी आकारीकीय परिवर्तन का जनक हो जाता है। इसके फलस्वरूप नदी में नौकायन सहज नहीं रह पाता। नदी के जल में प्राकृतिक रूप से घुलित ऑक्सीजन की कमी हो जाती है, मछलियों और जलीय जीव-जंतु तीव्र गति से मरने लगते हैं। सिंचाई के लिए निकाली गई नहरों में बालू का जमाव हो जाता है। गंगा नदी में अवसादन की बात करें तो वैज्ञानिक भाषा में अवसाद भार 2000 पीपीएम (2 ग्राम प्रति लीटर जल) से निरूपित कर सकते हैं। इस संपूर्ण प्रक्रिया में नदी में प्रत्येक वर्ष 1450 मिलियन टन बालू जमा होता जा रहा है।

इन दिनों काशी के पक्के घाटों के कटान को अस्सी से राजघाट के मध्य कछुआ सेंचुरी के चलते बालू खनन पर लगी रोक से संबद्ध किया जा रहा है। अभी तक यह सुस्पष्ट नहीं हो सका है कि वे पक्के घाट कौन-कौन से हैं, जिनका कटान अथवा क्षरण हो रहा है। अगर यह मान लिया जाए कि बालू खनन पर लगी रोक से ही पक्के घाटों का कटान हो रहा है और तत्काल बालू खनन की अनुमति वन विभाग दे देवें तो क्या पुनः कुछेक वर्षों में गंगा के उस पार बालू का जमाव नहीं होगा और नदी के प्रवाह मार्ग में अवसादन की समस्या खत्म हो जाएगी?

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Post By: pankajbagwan
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