तीस्ता के जल बँटवारे का नहीं हुआ समाधान

तीस्ता नदी
तीस्ता नदी


भारत एवं बांग्लादेश के बीच 22 समझौतों के जरिए सहयोग का एक नया अध्याय शुरू हुआ है। दोनों देशों के बीच रक्षा, असैन्य परमाणु सहयोग, रेल एवं बस यात्रा शुरू करने समेत साइबर सुरक्षा से जुड़े अहम समझौते हुए हैं। भारत बांग्लादेश को 29 हजार करोड़ रुपए रियायती ब्याज दर पर कर्ज भी देगा। इसके अलावा बांग्लादेश को सैन्य आपूर्ति के लिये 50 करोड़ डॉलर का अतिरिक्त कर्ज देने की भी घोषणा की है।

भारत द्वारा इतनी उदारता बरती जाने के बावजूद पिछले सात वर्ष से अनसुलझा पड़ा तीस्ता जल बँटवारे का मुद्दा लम्बित ही रह गया। हालांकि बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने भरोसा जताया है कि इस मुद्दे का हल जल्दी ही निकलेगा। तात्कालिक परिस्थितियों में भारत की इस उदारता को इसलिये औचित्यपूर्ण ठहराया जा सकता है, क्योंकि पड़ोसी देश पाकिस्तान भारत में जहाँ निरन्तर आतंक का निर्यात करने में लगा है, वहीं चीन तिब्बती धर्म-गुरू दलाई लामा की अरुणाचल यात्रा पर भारत से आँखें तरेरे हुए है। इन विषम हालातों में नरेंद्र मोदी की इस रहमदिली को बांग्लादेश को अपने पक्ष में बनाए रखने की कूटनीतिक पहल कही जा सकती है। किन्तु यही वह सुनहरा अवसर था, जब तीस्ता जल बँटवारे की अधिकतम सम्भावना थी।

नदियों के जल-बँटवारे का विवाद अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं राष्ट्रीय स्तर पर भी विवाद का विषय बना रहा है। ब्रह्मपुत्र को लेकर चीन से, तीस्ता का बांग्लादेश से, झेलम, सतलुज तथा सिंधु का पाकिस्तान से और कोसी को लेकर नेपाल से विरोधाभास कायम है। भारत और बांग्लादेश के बीच रिश्तों में खटास सीमाई क्षेत्र में कुछ भूखण्डों, मानव-बस्तियों और तीस्ता नदी के जल बँटवारे को लेकर पैदा होती रही है।

पिछले साल दोनों देशों के बीच सम्पन्न हुए भू-सीमा समझौते के जरिए इस विवाद पर तो कमोबेश विराम लग गया, लेकिन तीस्ता की उलझन बरकरार है। बीते वर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बांग्लादेश यात्रा पर भी गए थे, ढाका में द्विपक्षीय वार्ता भी हुई, लेकिन तीस्ता की उलझन, सुलझ नहीं पाई। अब शेख हसीना की भारत यात्रा और 22 समझौतों पर हस्ताक्षर होने के बावजूद तीस्ता का विवाद यथावत बना रह जाना हमारी कूटनीतिक कमजोरी को दर्शाता है।

विदेश नीति में अपना लोहा मनवाने में लगे नरेंद्र मोदी से यह उम्मीद इसलिये ज्यादा थी, क्योंकि शेख हसीना दोनों देशों में परस्पर दोस्ती की मजबूत गाँठ बाँधने के लिये भारत आई थीं। यह उम्मीद इसलिये भी थी, क्योंकि पिछले साल मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार ने बांग्लादेश के साथ कुछ बस्तियों और भूक्षेत्रों की अदला-बदली में सफलता प्राप्त की है।

यह समझौता संसद में आम राय से पारित भी हो चुका है। इसलिये उम्मीद की जा रही थी कि तीस्ता नदी से जुड़े जल बँटवारे का मसला भी हल हो जाएगा। किन्तु परम्परा से हटकर शेख हसीना का गर्मजोशी से स्वागत किये जाने के बावजूद तीस्ता समझौता किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँचा। यह स्वागत परम्परा से हटकर इसलिये था, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रोटोकॉल के सुरक्षा सम्बन्धी मिथक को तोड़कर यातायात को सामान्य बनाए रखते हुए हसीना की अगवानी के लिये अचानक अन्तरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पहुँचे थे।

ऐसा माना जाता है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और केन्द्र सरकार के बीच राजनैतिक दूरियों के चलते इस मुद्दे का हल नहीं निकल पा रहा है। हालांकि इस बार ममता बनर्जी खुद इस द्विपक्षीय वार्ता के अवसर पर मोदी और शेख हसीना के साथ हैदराबाद हाउस में मौजूद थीं। मोदी ने कहा भी था कि ममता बनर्जी आज मेरी सम्मानित अतिथि हैं।

यह विवाद 2011 में ही हल हो गया होता, यदि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अड़ंगा नहीं लगाया होता? लेकिन मोदी की ढाका यात्रा और अब शेख हसीना की भारत यात्रा पर भी यह विवाद लटका ही रह गया। यदि इस समस्या का समाधान निकल आता तो यह मसला मोदी-ममता की दोस्ती प्रगाढ़ करने की नई दिशा भी तय कर देता। जिसके दूरगामी परिणाम तीसरे मोर्चे को खड़ा करने की सम्भावनाओं के विकल्प पर पड़ता नजर आता। लेकिन अब तय हो गया है कि गैर भाजपा दल भविष्य में इकट्ठे होते हैं तो उसमें ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस एक अहम कड़ी होगी।

तीस्ता के उद्गम स्रोत पूर्वी हिमालय के झरने हैं। ये झरने एकत्रित होकर नदी के रूप में बदल जाते हैं। नदी सिक्किम और पश्चिम बंगाल से बहती हुई बांग्लादेश में पहुँचकर ब्रह्मपुत्र में मिल जाती है। इसलिये सिक्किम और पश्चिम बंगाल के पानी से जुड़े हित इस नदी से गहरा सम्बन्ध रखते हैं। मोदी ने मसले के हल के लिये ममता बनर्जी के साथ सिक्किम की राज्य सरकार से भी बातचीत की थी, जो समस्या के हल की दिशा में सकारात्मक पहल थी। क्योंकि पानी जैसी बुनियादी समस्या का निदान किसी राज्य के हित दरकिनार करके सम्भव नहीं है।

वर्ष 2011 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के बांग्लादेश दौरे से पहले इस नदी जल के बँटवारे पर प्रस्तावित अनुबन्ध की सभी शर्तें सुनिश्चित हो गई थीं, लेकिन पानी की मात्रा के प्रश्न पर ममता ने आपत्ति जताकर ऐन वक्त पर डॉ. सिंह के साथ ढाका जाने से इनकार कर दिया था। हालांकि तब की शर्तें सार्वजनिक नहीं हुई हैं, लेकिन ऐसा माना जाता है कि वर्षा ऋतु के दौरान तीस्ता का पश्चिम बंगाल को 50 प्रतिशत पानी मिलेगा और अन्य ऋतुओं में 60 फीसदी पानी दिया जाएगा।

ममता की जिद थी कि भारत सरकार 80 प्रतिशत पानी बंगाल को दे, तब इस समझौते को अन्तिम रूप दिया जाये। लेकिन तत्कालीन केन्द्र सरकार इस प्रारुप में कोई फेरबदल करने को तैयार नहीं हुई, क्योंकि उस समय केन्द्रीय सत्ता के कई केन्द्र थे।

नतीजतन लाचार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह शर्तों में कोई परिवर्तन नहीं कर सके। लिहाजा ममता ने मनमोहन सिंह के साथ ढाका जाने की प्रस्तावित यात्रा को रद्द कर दिया था। लेकिन अब राजग सरकार ने तबके मसौदे को बदलने के संकेत दिये हैं। लिहाजा उम्मीद की जा रही थी कि पश्चिम बंगाल को पानी देने की मात्रा बढ़ाई जा सकती है। हालांकि 80 प्रतिशत पानी तो अभी भी मिलना मुश्किल है, लेकिन पानी की मात्रा बढ़ाकर 65-70 फीसदी तक पहुँचाई जा सकती है? लेकिन नतीजा ठन-ठन गोपाल ही रहा।

ममता बनर्जी राजनीति की चतुर खिलाड़ी हैं, इसलिये वे एक तीर से कई निशाने साधने की फिराक में भी रहती हैं। तीस्ता का समझौता पश्चिम बंगाल के अधिकतम हितों को ध्यान में रखते हुए होता है तो ममता बंगाल की जनता में यह सन्देश देने में सफल होंगी कि बंगाल के हित उनकी पहली प्राथमिकता हैं।

जल बँटवारे के अलावा ममता की दिलचस्पी भारत और बांग्लादेश के बीच नई रेल और बस सेवाएँ शुरू करने की थी। इसके लिये मोदी और हसीना भी सहमत थे। नतीजतन दोनों दक्षिण एशियाई पड़ोसी देशों के बीच एक बन्द पड़ा पुराना रेल मार्ग बहाल कर दिया गया। इस अवसर पर ममता बनर्जी भी मोदी और हसीना के साथ उपस्थित थी।

अब कोलकाता से बांग्लादेश के खुलना शहर के बीच रेल सेवा चलेगी। साथ ही उत्तरी बंगाल के राधिकापुर और बांग्लादेश के बिरल शहर के बीच बन्द हो चुके रेल मार्ग को भी खोला गया है। यह रेल सेवा 1965 में भारत पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध के बाद बन्द कर दी गई थी। खुलना से होते हुए कोलकाता और ढाका के बीच नई बस सेवा शुरू की गई है।

कालान्तर में दक्षिण पूर्व एशियाई देशों से व्यापार व पर्यटन को बढ़ावा देने के मकसद से बांग्लादेश से भी भारत को मदद मिलेगी। वैसे भी नरेंद्र मोदी सरकार का मुख्य मकसद व्यापार के जरिए देश का चहूँमुखी विकास ही है। लेकिन इन जरूरी समस्याओं के निदान के साथ साहित्य और संस्कृति के आदान-प्रदान की भी जरूरत है। क्योंकि एक समय बांग्लादेश भारत का ही भूभाग रहा है। इसलिये दोनों देशों के बीच तमाम सांस्कृतिक समानताएँ हैं।

बांग्लादेश और पश्चिम बंगाल की मातृभाषा भी बांग्ला है। ध्यान रहे सांस्कृतिक समानताएँ साम्प्रदायिक सद्भाव की पृष्ठभूमि रचने का काम करती हैं और इसमें साहित्य का प्रमुख योगदान रहता है। बहरहाल, तीस्ता जल बँटवारे का समझौता हो गया होता तो दोनों देशों के बीच शान्ति और समन्वय के नए आयाम खुलते।
 

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