मेरठ में प्रत्येक वर्ष तीन दिवसीय साहित्य ‘मेरठ लिटरेचर फेस्टिवल’ विजय पंडित का आयोजन किया जाता है। यह कार्यक्रम क्रान्तिधरा साहित्य अकादमी के द्वारा आयोजित किया जाता है। इस साल ‘मेरठ लिटरेचर फेस्टिवल’ का पंचम फेस्टिवल कोरोना संक्रमण के कारण ऑनलाइन कार्यक्रम का अयोजन किया। इस कार्यक्रम का अध्यक्ष रहे डॉ सुधाकर आशावादी एवं संचालक डॉ राम गोपाल भारतीय। दोनों ही मेरठ के रहेने वाले कार्यक्रम के दूसरे दिन, अजय पंडित और सेंटर फॉर वाटर पीस के अध्यक्ष संजय कश्यप में संचालन किया जिसमें पर्यवरण पर काम करने वाले कई पर्यावरणविद मौजूद थे। जिममें प्रमुख वक्ता केरूप में अधिवक्ता मीनाक्षी अरोरा , सजल श्रीवास्तव और पिनाकी दासगुप्ता आदि शामिल थे.
कार्यक्रम का सांचालन करते हए परिवारविद अजय पंडित ने सभी पर्यावरणविदो से सबको अवगत कराया। और उसके बाद सेंटर फॉर वाटर पीस के अध्यक्ष संजय कश्यप ने अपनी रखते कहा कि यूनाइटेड नेश के जो एस डीपी गोल तय किया है उसको लेकर भारत सरकार ने साल 2014 से ही फोकस बना लिया था कि हम इस और काम करे रहे है संजय कहते है एसडीपी गोल की बात करें तो हम दूसरे देशों से काफी आगे है । यूनाइटेड नेशन ने इस 2021 से 2030 साल को इकोलॉजिकल रेस्टाइटेशन के लिए घोषित किया है। आज विश्व भारत को लीडरशिप के रूप में देख रहा है और हमारे पास भी मौका है कि हम विश्व को ये बता सके कि हमारी संस्कृति के लिए पर्यावरण कितना महत्वपूर्ण है।
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इस दौरान अपनी बात रखते हुए सजल श्रीवास्तव कहते है कि परिस्थितिक जीवित प्राणियों के आपसी और पर्यावरण के साथ उनके संबंधों का वैज्ञानिक अध्ययन है पेड़-पौधे, जीव जंतु सूक्ष्म जीवाणु अपने चारों और पर्यावरण के साथ अंतर क्रिया कर पर्यावरण के साथ मिलकर एक स्वतंत्र इकाई का निर्माण करते हैं। जिसे हम परिस्थितिक तंत्र के रूप में जानते हैं या इको सिस्टम कहते हैं हमारा समुद्र ,नदियां,पर्वत वन,मरुस्थल हमारे इकोसिस्टम का ही हिस्सा है . पारिस्थितिक तंत्र और पर्यावरण की अनदेखी करना और विकास की दौड़ में आगे चलने की चाहत मानवता के लिए खतरा बन गई है विश्व भर में पर्यावरण के मानकों का घोर उलंघन हो रहा है।
जिसका दुष्प्रभाव दिखना शुरू हो गया है अधिकतर देशों में औद्योगिक रसायनों के कारण नदियां प्रदूषित हो गई है अथवा हो रही है बेहताशा वनों का विनाश किया जा रहा है वायु प्रदूषण में वृद्धि हो रही है काफी संख्या में भूस्खलन हो रहे हैं बाढ़ आ रही है, तमिलनाडु में इस सर्दी के मौसम में भी बरसात हो रही है भारी संख्या में कीटनाशकों का उपयोग किया जा रहा है जिसके कारण प्रकृति संतुलन बिगड़ गया है।
मधुमक्खी समेत अनेक प्रकार के कीट इसके कारण समाप्त हो रहे है। यह पौधे किस स्थिति में आ गए है इन कीटो पौधों से प्राकृतिक रूप से प्रागण करने में योगदान होता था । आज स्थियाँ खराब हो चुकी है चीन में तो प्रागण करने के लिए मानवीय श्रम का उपयोग किया जा रहा है एक मजदूर एक दिन में एक या दो पेड़ों पर हाथ से प्रागण करता है। जो काम हम कभी फ्री में उपयोग में लाते थे। उस काम के लिए आज वैज्ञानिक पद्धतियों का इस्तेमाल करना पड़ रहा है। जिसमें अधिक खर्चा भी होता है।ऐसे में हमें सोचना होगा। कि कभी प्रकृति से जो हमे मिला था उसके लिए आज काफी पैसा खर्च करना पड़ रहा है।
पर्यावरणविद पिनाकी दासगुप्ता कहते है कि प्रधानमंत्री ने पर्यावरण के संरक्षण के लिए पंचतत्व का प्रस्ताव रखा है । जिसमें यह कहा गया था भारत आने वाले साल में यानी 2030 तक 50 प्रतिशत ऊर्जा का प्रयोग प्राकृतिक साधन ,जैसे सौर ऊर्जा , बॉयोगैस आदि से करेगा । साथ ही लगभग 1 लाख इमिशन कार्बन टन को कम करने के साथ कार्बन इंटेसिटी को 45 प्रतिशत तक कम करने की कोशिश करेंगा । 2070 तक इसे 0% अंक तक लेकर आयेंगा। ये महत्वाकांक्षी पहल से हम सबको योगदान देना होगा । प्राकृति का जो आदान प्रदान होता है वो बाउंड्री लेस हो उसको लेकर भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा हो रही है । और ये भी कहा जा रहा है भविष्य में पानी की वजह से कई देशों के बीच युद्ध हो सकता है । आज हमें प्राकृतिक वैल्यूएशन को करना होगा। ताकि हम इन प्राकृतिक संसाधनों को बचा सके। जो हमारे परंपरागत स्त्रोत है उन्हें हम पहले बहुत महत्व देते थे । लेकिन हमने इनके अतिदोहन से महत्वहीन कर दिया है जिसके कारण आज पर्यावरणीय समस्या उत्पन्न हो रही है ।
वही एडवोकेट मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि आज ग्लोबल वार्मिंग मुद्दा तो है लोकल वार्मिंग भी एक बड़ा मुद्दा भी हो सकता है। उन्होंने अपना अनुभव साझा करते हुए कहा की उनका घर घाटी में है वहां काफी पेड़ पौधे और घास के मैदान है यहाँ ग्रामीणों के पशु घास चरने आते है। मीनाक्षी आगे कहती है कि जब वह यहाँ आया थी तो उनके घर के पास जो पेड़ है वहां रंग बिरंगी काफी चिड़ियों बैठा करती थी लेकिन कुछ समय से उन्होंने वहाँ एक भी चिड़ियो को नही देखा है।
अगर इस घटना को बड़े स्तर पर देखें जैसे ऑल वेदर रोड जिससे वाकई मे हम सबके लिए बद्रीनाथ और केदारनाथ धाम जाना आसान हो जाएगा लेकिन कल्पना कीजिए अगर हम जब इस तरह के विकास के कार्यों की बात करते है चाहे मैदानी इलाकों में हो या पहाड़ी इलाकों में तो इसके लिए कितने सारे पेड़ बलि चढ़ जाते है । जो वास्तविकता है। दिल्ली एक्सप्रेसवे का उदाहरण ही ले लिया जाये। जिसे बनाने के लिए लगभग 2200 पेड़ काटे गए। तो कल्पना कीजिये क्या इससे पेड़ो को ही नुकसान पहुँचा है नही इससे उन पशु पक्षियों को भी नुकसान पहुँचा है क्योंकि इससे उनके घर टूट गए है।
इसके अलावा पेड़ो से वहाँ जो पानी का संरक्षण होता था वह भी बंद ही हो जाता है जिसका नतीजा इसके आस पास के बड़े शहरों में पानी का स्तर गिरने लगता है साथ ही इसका असर नदियों पर भी पड़ता है । और वहाँ सूखने लगती है और भू माफिया इन पर कब्ज़ा कर निर्माण करने लगते है । और एक दिन ग्लोबवार्मिंग की वजह से बादल फटने की घटनाएं होती है और नदी एक बार फिर अपने स्वरूप में आ जाती है सब बहा ले जाती है और लोगों से फिर बाढ़ का संज्ञान देने लगते हैं। लेकिन सच्चाई यही है कि नदी अपने घर वापस आती है अगर नदी के घर में ही हम निर्माण कर ले तो इसमें गलती हमारी है।
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