टिहरी

खोज रहे हैं आज हम
अनंत में गुम हुई
मानवता के अवशेष
हड़प्पा या मोहनजोदड़ो में
नहीं पहुंचे कहीं
भटकते ही रह गए
अनुमानों के बियाबान
मरुथल में
आधुनिक सभ्यता आकांक्षा
फिर लील गई
एक गौरवपूर्ण इतिहास को
जादुई भविष्य के लिए
ध्वंस हो गया है
स्वर्णिम अतीत टिहरी का
साथ ही विह्वल 'आज'
वो मार्ग और भवन भी
जो जीवन की अमिट यादों
की महक लपेटे थे अपने में
ग्राम डूबे हैं डूबी है
पर्वत शिखरों से टकराकर
बार बार गूंजती
देवालयों की मधुर शंख ध्वनि
खेतों के साथ अधपकी सरसों
और धान बह गए
लहर भर पानी के बहाव में
अब बसंत कभी नहीं लौटेगा यहाँ
कोयल ढूंढ रही अमराई
कूक गूंजने से पहले ही
जो सिमट गई थी
बाँध के पानी में
पहाड़ी ढलानों की बहुसंख्यक
मनोहारी समोच्च रेखाएं
परिवर्तित हो चुकी हैं
विशाल जलागार की
एकमात्र सतही रेखा में
भीलांगना-भागीरथी के
संगम में प्लावित हो गई
स्वप्न लोक सी प्रेम कथाएं
नई टिहरी में आने वाली
संतति को कौन सुनाएगा
आगत फिर ढूंढेगा
टिहरी के अवशेष
एक दिन खोजेगा उनमें
सभ्यता के चिन्ह
हाथ से फिसलती समय की रेत
सा कुछ हाथ नहीं आयेगा
किन्तु टिहरी !
आधुनिकता की शिराओं में
जब तक दौड़ेंगी विद्युत् तरंगें
तुम्हारा नाम अमर रहेगा
'नई टिहरी' सर्वदा
'नई' ही बन कर रहेगी !!

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