नई दिल्ली, 26 अप्रैल 2015। दिल्ली मेट्रो रेल कहने को तो अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस है और विश्वस्तरीय मानकों का पालन भी करती है लेकिन इसके सुरक्षा मानकों व स्टेशनों का आकलन करने के बाद पता चलता है कि यह तगड़े भूकम्प या बाढ़ जैसी किसी आपदा की सूरत में सुरक्षित नहीं है। रोजाना 23 लाख से अधिक यात्रियों को ढोने वाली मेट्रो साढ़े सात रिक्टर स्केल से अधिक के भूकम्प के झटकों को बर्दाश्त नहीं कर सकती। यानी नेपाल में जितना तेज भूकम्प आया वह अगर दिल्ली में आता, तो वह मेट्रो को भी जमींदोज कर सकता था। सुरंग व उपरिगामी होने की वजह से भी यह भयावह त्रासदी ला सकती है। इसके कई स्टेशन व लाइनें भूकम्प व बाढ़ के लिहाज से अति संवेदनशील इलाके में आते हैं। तीसरे चरण के निर्माण में भी कई लाइनें व स्टेशन भूकम्प के लिहाज से संवेदनशील हैं।
इसके पहले व दूसरे चरण के निर्माण के तहत ही बने करीब 50 स्टेशन बेहद खतरनाक साबित हो सकते हैं। तीसरे चरण का निर्माण चल रहा है। मेट्रो रेल निगम का दावा है कि यह विश्व में उपलब्ध बेहतरीन तकनीक का उत्कृष्ट नमूना है। लेकिन भूकम्प झेलने की एक सीमित क्षमता ही इसके स्टेशनों व लाइनों की है। हालाँकि मेट्रो रेल निगम का दावा है कि दिल्ली जिस जोन में आता है उस हिसाब से मेट्रो सुरक्षित है।
संयुक्त राष्ट्र की आपदा के खतरे कम करने सम्बन्धी ग्लोबल एसेसमेंट रिपोर्ट के मुताबिक भी दिल्ली मेट्रो भूकम्प व बाढ़ के हिसाब से सुरक्षित नहीं है। 2012 में ही आई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर दिल्ली में तेज भूकम्प आता है तो मेट्रो रेल को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। तब के आकलन के हिसाब से ही तबाही की सूरत में मेट्रो को चार हजार करोड़ रुपए से अधिक पूँजी का नुकसान हो सकता है।
संयुक्त राष्ट्र संघ की इकाई ने बंगलुरु स्थित इण्डियन इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन सेटलमेंट की रिपोर्ट पर आधारित यह आकलन किया था। इसके आकलन के मुताबिक आपदा की सूरत में देश विदेश के हजारों यात्रियों की जान जा सकती है क्योंकि दिल्ली मेट्रो रेल की एअरपोर्ट लाइन सहित तमाम अन्य लाइनों पर भी देशी व विदेशी यात्री बड़ी संख्या में सफर करते हैं।
दिल्ली मेट्रो रेल का दावा है कि दिल्ली सिस्मिक जोन चार में आता है इसके मुताबिक यहाँ रिक्टर स्केल सात की तीव्रता के भूकम्प आ सकते हैं। इसके हिसाब से दिल्ली मेट्रो के निर्माण में रिक्टर स्केल साढ़े सात तक की तीव्रता के भूकम्प झेलने के हिसाब से तकनीक व मानक अपनाए गए हैं।
डीएमआरसी का यह भी दावा है कि इसकी सभी उपरिगामी लाइनें भारतीय रेलवे के सुरक्षा मानकों व इण्डियन रोड कांग्रेस के मानकों पर आधारित हैं। इन्हें प्रमाणित किया जा चुका है। इसकी भूमिगत लाइन के निर्माण को भूकम्प रोधी बनाने के लिए कोई भारतीय मानक उपलब्ध नहीं था। लिहाजा इसमें ब्रिटेन के मानकों को अमल में लाया गया है। यानी सुरंग बनाने में जो मानक लिए गए हैं वे ब्रिटेन के हैं। डीएमआरसी के उपमुख्य प्रवक्ता मोहिंदर यादव ने यह भी बताया कि जापान के मानक भी हम अमल में लाते हैं।
जापान भूकम्प के लिहाज से अतिसंवेदनशील है। उसके मानक काफी संतुलित हैं। दिल्ली मेट्रो के नदी के अन्दर बने खंभें इस हिसाब से बनाए गए हैं कि वे भूकम्प की सूरत में धराशाही न हों बल्कि झटके के हिसाब से उनमें लचक बनी रहे। इसके अलावा भी कई उपाय किए गए हैं। लाइन दो के पटेल चौक मेट्रो स्टेशन पर भूकम्प सेंसर लगाया गया है ताकि सुरंग में भूकम्प का पता चल सके और उस हिसाब से जरूरी बचाव किए जा सकें। वह सेंसर रिक्टर स्केल पाँच या उससे अधिक तीव्रता के किसी भी कम्पन की सूरत में काम करने लगता है। इसको पकड़ने के साथ ही इसमें लगे स्वचालित अलार्म बजने लगते हैं।
इस अलार्म का सीधा सम्पर्क केन्द्रीय नियन्त्रण कक्ष, स्टेशन नियन्त्रण कक्ष व ट्रेन ऑपरेटर से है। अलार्म सुनते ही परिचालन रोक तमाम दूसरे सुरक्षा उपायों पर अमल किया जाता है। इसी के तहत शनिवार व रविवार को भी भूकम्प के झटके आते ही मेट्रो परिचालन को धीमा कर दिया गया। एक से दो स्टेशनों के बीच ट्रेनें रोक कर लाइन और स्टेशन के इमारतों का मुआयना करने के बाद ट्रेनें चलाई गईं। उन्होंने बताया कि इस जाँच प्रक्रिया में महज पाँच से सात मिनट का वक्त लगता है। सुरंग में भी जगह-जगह निकास के इमरजेंसी गेट बनाए गए हैं।
यमुना पर काम करने वाले पर्यावरणविद मनोज मिश्र का कहना है कि भूकम्प रोधी तो कुछ होता नहीं, पर दिल्ली मेट्रो अपेक्षाकृत सुरक्षित निर्माण कहा जा सकता है। उन्होंने कहा कि आठ या नौ की तीव्रता के झटके आम तौर से हिमालयी क्षेत्र में ही आते हैं पर ऐसा कोई निर्धारित नियम भी नहीं है कि और कहीं उस तीव्रता का भूकम्प नहीं आ सकता। मोहिंदर ने भी यह कहा कि साढ़े सात से अधिक तीव्रता के भूकम्प आने की सूरत में दिल्ली में मेट्रो रेल तो क्या कुछ भी नहीं बचेगा।
खतरे वाले इलाके
भूकम्प के लिहाज से तमाम जागरुकता और ऐहतियात के बावजूद इसके निर्माण में कई ऐसे इलाके शामिल हैं जो बेहद खतरनाक हैं। जून 2013 में जारी रपट के मुताबिक मेट्रो रिक्टर स्केल आठ या उससे अधिक तीव्रता के झटके को नहीं झेल सकती जिसकी यमुना के खादर व कुछ अन्य इलाकों में भारी आशंका है। इसका एक स्टेशन तो यमुना के खादर में भी है। बाकी यमुना से लगे इलाकों में तो कई हैं। संयुक्त राष्ट्र की आपदा के खतरे कम करने सम्बन्धी ग्लोबल एसेसमेंट रिपोर्ट के मुताबिक भी दिल्ली मेट्रो भूकम्प व बाढ़ के हिसाब से सुरक्षित नहीं है।
इसके पहले व दूसरे चरण के निर्माण के तहत ही बने करीब 50 स्टेशन बेहद खतरनाक साबित हो सकते हैं। तीसरे चरण का निर्माण चल रहा है। मेट्रो रेल निगम का दावा है कि यह विश्व में उपलब्ध बेहतरीन तकनीक का उत्कृष्ट नमूना है। लेकिन भूकम्प झेलने की एक सीमित क्षमता ही इसके स्टेशनों व लाइनों की है। हालाँकि मेट्रो रेल निगम का दावा है कि दिल्ली जिस जोन में आता है उस हिसाब से मेट्रो सुरक्षित है।
संयुक्त राष्ट्र की आपदा के खतरे कम करने सम्बन्धी ग्लोबल एसेसमेंट रिपोर्ट के मुताबिक भी दिल्ली मेट्रो भूकम्प व बाढ़ के हिसाब से सुरक्षित नहीं है। 2012 में ही आई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर दिल्ली में तेज भूकम्प आता है तो मेट्रो रेल को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। तब के आकलन के हिसाब से ही तबाही की सूरत में मेट्रो को चार हजार करोड़ रुपए से अधिक पूँजी का नुकसान हो सकता है।
संयुक्त राष्ट्र संघ की इकाई ने बंगलुरु स्थित इण्डियन इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन सेटलमेंट की रिपोर्ट पर आधारित यह आकलन किया था। इसके आकलन के मुताबिक आपदा की सूरत में देश विदेश के हजारों यात्रियों की जान जा सकती है क्योंकि दिल्ली मेट्रो रेल की एअरपोर्ट लाइन सहित तमाम अन्य लाइनों पर भी देशी व विदेशी यात्री बड़ी संख्या में सफर करते हैं।
दिल्ली मेट्रो रेल का दावा है कि दिल्ली सिस्मिक जोन चार में आता है इसके मुताबिक यहाँ रिक्टर स्केल सात की तीव्रता के भूकम्प आ सकते हैं। इसके हिसाब से दिल्ली मेट्रो के निर्माण में रिक्टर स्केल साढ़े सात तक की तीव्रता के भूकम्प झेलने के हिसाब से तकनीक व मानक अपनाए गए हैं।
डीएमआरसी का यह भी दावा है कि इसकी सभी उपरिगामी लाइनें भारतीय रेलवे के सुरक्षा मानकों व इण्डियन रोड कांग्रेस के मानकों पर आधारित हैं। इन्हें प्रमाणित किया जा चुका है। इसकी भूमिगत लाइन के निर्माण को भूकम्प रोधी बनाने के लिए कोई भारतीय मानक उपलब्ध नहीं था। लिहाजा इसमें ब्रिटेन के मानकों को अमल में लाया गया है। यानी सुरंग बनाने में जो मानक लिए गए हैं वे ब्रिटेन के हैं। डीएमआरसी के उपमुख्य प्रवक्ता मोहिंदर यादव ने यह भी बताया कि जापान के मानक भी हम अमल में लाते हैं।
जापान भूकम्प के लिहाज से अतिसंवेदनशील है। उसके मानक काफी संतुलित हैं। दिल्ली मेट्रो के नदी के अन्दर बने खंभें इस हिसाब से बनाए गए हैं कि वे भूकम्प की सूरत में धराशाही न हों बल्कि झटके के हिसाब से उनमें लचक बनी रहे। इसके अलावा भी कई उपाय किए गए हैं। लाइन दो के पटेल चौक मेट्रो स्टेशन पर भूकम्प सेंसर लगाया गया है ताकि सुरंग में भूकम्प का पता चल सके और उस हिसाब से जरूरी बचाव किए जा सकें। वह सेंसर रिक्टर स्केल पाँच या उससे अधिक तीव्रता के किसी भी कम्पन की सूरत में काम करने लगता है। इसको पकड़ने के साथ ही इसमें लगे स्वचालित अलार्म बजने लगते हैं।
इस अलार्म का सीधा सम्पर्क केन्द्रीय नियन्त्रण कक्ष, स्टेशन नियन्त्रण कक्ष व ट्रेन ऑपरेटर से है। अलार्म सुनते ही परिचालन रोक तमाम दूसरे सुरक्षा उपायों पर अमल किया जाता है। इसी के तहत शनिवार व रविवार को भी भूकम्प के झटके आते ही मेट्रो परिचालन को धीमा कर दिया गया। एक से दो स्टेशनों के बीच ट्रेनें रोक कर लाइन और स्टेशन के इमारतों का मुआयना करने के बाद ट्रेनें चलाई गईं। उन्होंने बताया कि इस जाँच प्रक्रिया में महज पाँच से सात मिनट का वक्त लगता है। सुरंग में भी जगह-जगह निकास के इमरजेंसी गेट बनाए गए हैं।
यमुना पर काम करने वाले पर्यावरणविद मनोज मिश्र का कहना है कि भूकम्प रोधी तो कुछ होता नहीं, पर दिल्ली मेट्रो अपेक्षाकृत सुरक्षित निर्माण कहा जा सकता है। उन्होंने कहा कि आठ या नौ की तीव्रता के झटके आम तौर से हिमालयी क्षेत्र में ही आते हैं पर ऐसा कोई निर्धारित नियम भी नहीं है कि और कहीं उस तीव्रता का भूकम्प नहीं आ सकता। मोहिंदर ने भी यह कहा कि साढ़े सात से अधिक तीव्रता के भूकम्प आने की सूरत में दिल्ली में मेट्रो रेल तो क्या कुछ भी नहीं बचेगा।
खतरे वाले इलाके
भूकम्प के लिहाज से तमाम जागरुकता और ऐहतियात के बावजूद इसके निर्माण में कई ऐसे इलाके शामिल हैं जो बेहद खतरनाक हैं। जून 2013 में जारी रपट के मुताबिक मेट्रो रिक्टर स्केल आठ या उससे अधिक तीव्रता के झटके को नहीं झेल सकती जिसकी यमुना के खादर व कुछ अन्य इलाकों में भारी आशंका है। इसका एक स्टेशन तो यमुना के खादर में भी है। बाकी यमुना से लगे इलाकों में तो कई हैं। संयुक्त राष्ट्र की आपदा के खतरे कम करने सम्बन्धी ग्लोबल एसेसमेंट रिपोर्ट के मुताबिक भी दिल्ली मेट्रो भूकम्प व बाढ़ के हिसाब से सुरक्षित नहीं है।
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