तालाबों ने बदली निपनियाँ गाँव की जिन्दगी


बदलाव की इस सफल गाथा को देखने के लिये पड़ोसी जिलों तथा राज्यों से किसान आते हैं और बहुत कुछ सीखकर जाते हैं। देश में खेत-तालाब बनाने की लहर तेज, बहुत तेज होती जा रही है।

मध्य प्रदेश के देवास जिले से 30 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में एक छोटा-सा गाँव है निपनिया। यहाँ आजीविका का मुख्य जरिया खेती है। लगभग 80 घरों के इस गाँव में आज हरियाली है, खुशहाली है। लेकिन यही कोई एक दशक पहले तक देश के अन्य तमाम गाँवों की तरह यहाँ भी किसान सिंचाई के पानी के लिये कठिन संघर्ष कर रहे थे। सन 2006 में देवास के जिला कलेक्टर ने इस गाँव को वर्षाजल संग्रह द्वारा सिंचाई के मामले में आत्मनिर्भर बनाने की सोची, ठानी और प्रयास भी किए। कृषि विभाग के अधिकारियों और सम्बन्धित एनजीओ के कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर किसानों को उनके अपने खेत में छोटा तालाब बनाने के लिये प्रेरित और प्रोत्साहित किया गया। इस तरह लगभग 40 किसान अपने खेत में तालाब बनाने के लिये तैयार हो गए।

ये वो किसान थे, जो तालाब के निर्माण की लागत खुद वहन कर सकते थे। खेत में उपयुक्त जगह छाँटकर, खेतों के आकार के अनुसार आधे एकड़ से लेकर चार एकड़ क्षेत्र तक में तालाब बनाए गए। आमतौर पर इनकी गहराई कम-से-कम 10-12 फुट रखी गई। बरसात में तालाबों में पानी इकट्ठा हुआ और किसानों ने पहले ही साल से इसका फायदा उठाना शुरू कर दिया। पहले ये किसान साल में केवल एक फसल ले पाते थे, क्योंकि दूसरी फसल की सिंचाई के लिये पानी नहीं था। लेकिन तालाब में लबालब पानी देखकर इन्होंने सर्दियों में दूसरी फसल भी ले ली, जिससे आमदनी में खासा इजाफा हुआ। यह देखकर खेतों में तालाब बनाने वाले किसानों की संख्या तेजी से बढ़ने लगी।

अब यहाँ किसान मानसून में सोयाबीन उगाने लगे और सर्दियों में गेहूँ, चना या प्याज। देखा गया कि यदि मानसूनी वर्षा औसत या बेहतर होती है तो तालाबों में पानी अगली बरसात तक चला जाता है। पहले साल की कामयाबी से उत्साहित होकर कृषि विभाग ने किसानों को तालाब बनाने का प्रशिक्षण देना भी शुरू कर दिया। तकनीकी सहायता भी दी, लेकिन तालाब बनाने का खर्च स्वयं किसान वहन कर रहे थे। इस मुहिम को ‘भगीरथ कृषि अभियान’ का नाम दिया गया और तालाब बनाने वाले किसान को ‘भागीरथ कृषक’ कहा गया। साथ ही तालाब को ‘रेवा सागर’ के नाम से पुकारा गया। दो साल बाद मध्य प्रदेश सरकार ने तालाब बनाने के लिये सब्सिडी (वित्तीय सहायता) देने की शुरुआत की, जिससे इस काम में पहले से ज्यादा तेजी आ गई। सब्सिडी की सहायता से बने तालाबों को ‘बलराम तालाब’ का सुन्दर नाम दिया गया। परिणामस्वरूप 2006-07 से लेकर 2015-16 तक यहाँ लगभग 5070 तालाब बनाए गए।

इन खेत-तालाबों ने किसानों की आर्थिक दशा में सार्थक सुधार किया है और जिले के कुल सिंचित क्षेत्र में बढ़ोत्तरी हुई है। जिले की फसल गहनता सन 2006 के 118 प्रतिशत से बढ़कर 180 प्रतिशत हो गई है। बदलाव की इस सफल गाथा को देखने के लिये पड़ोसी जिलों तथा राज्यों से किसान आते हैं और बहुत कुछ सीखकर जाते हैं। देश में खेत-तालाब बनाने की लहर तेज, बहुत तेज होती जा रही है।

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