पानी-पर्यावरण के जानकार अनुपम मिश्र और देवास के दस-हजार तालाबों के रचयिता श्री उमाकांत उमराव हमारे मार्गदर्शक हैं। श्री उमाकांत उमराव जी कहते हैं कि तालाब ‘सिविल इंजीनियरिंग’ के सबसी पहली रचना हैं और ऐसी रचना हैं, जो आम से खास सबको समझ में आते हैं। महोबा के तत्कालीन जिलाधिकारी श्री अनुज कुमार झा का स्नेह हमें खूब मिला, उनकी अगुवाई से ही महोबा में तालाबों की रचना काम गति पकड़ सका। मुख्य विकास अधिकारी महोबा श्री शिव नारायण तालाबों के काम को खूब प्राथमिकता देते हैं। उपनिदेशक कृषि श्री आर.पी. चौधरी और परियोजना निदेशक श्री हुबलाल जी के योगदान से ही तालाब निर्माण के वातावरण बनाने में मदद मिली है।(पिछले कुछ वर्षों से हम यानी पुष्पेंद्र भाई, केसर और पंकज बागवान बुंदेलखंड के सूखे पर बतियाते और जमीन पर कुछ करने की कोशिश करते रहे हैं। आज बुदेलखंड में जनसहयोग से तालाब बनाने का अभियान चल रहा है। इस अभियान में ऐसे लोग लगातार जुड़ रहे हैं जो बुदेलखंड को बदलने का सपना देखते हैं, उन सबका आभार व्यक्त कर रहे हैं।)
पानी की समस्या सिर्फ खेती तक सीमित नहीं रही। यहां सूखे का ऐसा प्रभाव हुआ कि पीने और घर की अन्य जरूरतों के लिए भी पानी मिलना बंद हो गया। बुंदेलखंड के लोग पानी की समस्या के विकल्प तलाश रहे थे। तभी 2008 में यहां के स्थानीय अखबार में एक खबर छपी। इस खबर के अनुसार महोबा जिले के एक गांव की महिला को पानी के लिए अपनी आबरू का सौदा करना पड़ रहा था। एक गौरवशाली अतीत वाला बुंदेलखंड आज भयानक जल संकट से जूझ रहा है। पिछले कई दशकों से सरकारी उदासीनता झेल रहे इस क्षेत्र के आज लगभग 6000 तालाब लुप्त होने की कगार पर हैं। बुंदेलखंड इलाके में तालाब बनवाने की पुरानी परंपरा रही है।
2008 का साल और छतरपुर
11वीं और 12वीं सदी में चंदेल और बुंदेला राजाओं ने इस पूरे क्षेत्र में लगभग 5000 तालाबों का निर्माण करवाया था। यदि इन तालाबों की बनावट की बात करें तो वे अन्य इलाकों की तुलना में बेहद कारगर थे। लेकिन आज तालाबों के लगातार सिकुड़ते चले जाने के कारण इस क्षेत्र में सूखे के हालात बन गए हैं। स्थानीय निवासियों को पलायन करने पर मजबूर होना पड़ रहा है। लगातार गंभीर होती इस समस्या से निपटने के क्रम में अनेक संगठन और सरकारी एजेंसियां अपनी ओर से प्रयास कर रही हैं।
इसी क्रम में 2008 के आस-पास भोपाल की एक संस्था ‘विकास संवाद’ के निमंत्रण पर और ‘बुंदेलखंड में पलायन’ पर बात करने को कुछ सामाजिक कार्यकर्ता और तकरीबन 50-60 पत्रकार छतरपुर के गांवों में सूखे की हालात का जायजा लेने आए। इनमें इंडिया वाटर पोर्टल की तरफ मैं केसर भी था। मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले के एक गांव में पहुंच कर हम लोगों ने पाया कि पानी के अभाव में 70 प्रतिशत लोग उस गांव से पलायन कर चुके थे और जो लोग वहां थे, उनकी हालात बहुत बुरी थी। पानी के अभाव में वहां खेती करना असंभव हो गया था।
2008 का साल और चरखारी
पानी की समस्या सिर्फ खेती तक सीमित नहीं रही। यहां सूखे का ऐसा प्रभाव हुआ कि पीने और घर की अन्य जरूरतों के लिए भी पानी मिलना बंद हो गया। बुंदेलखंड के लोग पानी की समस्या के विकल्प तलाश रहे थे। तभी 2008 में यहां के स्थानीय अखबार में एक खबर छपी। इस खबर के अनुसार महोबा जिले के एक गांव की महिला को पानी के लिए अपनी आबरू का सौदा करना पड़ रहा था। ‘आबरू के मोल पानी’ नाम से छपी इस खबर ने सभी को झकझोर दिया। पुष्पेंद्र भाई ने इस खबर के बाद अपने साथियों को जोड़ा और पानी की इस विकराल होती समस्या से निपटने की ठानी। 21 युवाओं ने मिलकर महोबा के सदियों पुराने तालाब को पुनर्जीवित करने का फैसला किया।
लोगों से इस अभियान में शामिल होने की अपील की गई। ‘इत सूखत जल स्रोत सब, बूंद चली पाताल। पानी मोले आबरू, उठो बुंदेली लाल’ का नारा दिया गया और लगभग चार हजार लोग फावड़ों और कुदालों के साथ खुद ही तालाब की सफाई के लिए कूद पड़े। इतने लोगों ने मिलकर सिर्फ दो घंटे में ही तालाब की अच्छी-खासी खुदाई कर डाली। यह देख कर सभी के हौसले और मजबूत हुए। पूरे 46 दिन तक काम चला जिसमें सैकड़ों लोग रोज शामिल हुए, लगभग बाइस हजार लोग शामिल हुए और आखिरकार लगभग सैकड़ों एकड़ का जयसागर तालाब फिर से जीवित हो उठा। इस पूरे अभियान में सिर्फ 30-35 हजार रुपये नकद खर्च हुए। यह खर्च स्थानीय नगर पालिका अध्यक्ष ने उठाया। इस पूरे काम का जब सरकारी आकलन किया गया तो पता चला कि लगभग 80 लाख रुपये का काम लोगों ने खुद ही कर दिया था।
लेकिन एक सवाल था कि हर खेत को पानी कैसे मिले?
फिर देवास ने रास्ता दिखाया
फिर एक दिन हमें मध्य प्रदेश के देवास जिले में हुए एक सफल प्रयोग की जानकारी मिली। एक रिपोर्ट आई कि देवास में 1700 तालाब बन गये हैं। फिर कुछ महीने बाद यह रिपोर्ट आई कि तीन हजार तालाब बन गये हैं। फिर मुझे यानी केसर लगा की देखना चाहिए कि हकीकत क्या है? देवास जाने के बाद में भौंचक्का हो गया। क्योंकि मैं पानी से बदलाव की एक अद्भुत कहानी देख रहा था।
दरअसल मालवा क्षेत्र का देवास जिला भी एक समय में पानी की समस्या से त्रस्त था। 60 -70 के दशक से ही यहां नलकूपों और पानी खींचने की मोटरों के लिए लोन की व्यवस्था कर दी गई थी। इसके चलते देवास और आस-पास के सभी इलाकों में किसानों ने कई नलकूप खोद दिए। शुरुआती दौर में तो नलकूपों से मिले पानी के कारण खेती में बढ़ोतरी भी हुई लेकिन ज्यादा नलकूप लग जाने से कुछ ही सालों में पानी का स्तर बहुत नीचे चला गया। जहां पहले 60-70 फुट पर ही पानी मिल जाया करता था, वहीं अब पानी 400-500 फुट पर जा पहुंचा। इतने गहरे नलकूप खोदने पर पानी में खनिज आने लगे और खेती बर्बाद होने लगी। साथ ही इन नलकूपों का खर्च भी बहुत बढ़ गया और किसान लगातार कर्ज में डूबते चले गए। जलस्तर भी धीरे-धीरे इतना कम हो गया कि सात इंच के नलकूप में मुश्किल से एक इंच की धार का पानी निकलता था। इतने कम पानी से खेती संभव नहीं थी। लिहाजा कई किसान अपनी खेती छोड़ कर जमीन बेचने को मजबूर हो गए। 90 के दशक तक आते-आते स्थिति इतनी विकट हो गई कि देवास में पानी की पूर्ति के लिए ट्रेन लगानी पड़ी। पानी का स्थायी उपाय खोजने के बजाय यहां 25 अप्रैल, 1990 को पहली बार 50 टैंकर पानी लेकर इंदौर से ट्रेन आई। कई सालों तक देवास में इसी तरह से पानी पहुंचाया गया।
हमेशा की तरह बुंदेलखंड के अकाल की खबरें इस बार भी सुर्खियों में था। कुछ मित्रों के साथ अपन अनुपम मिश्र जी से मिलने उनके दफ्तर पहुंचे। औपचारिक कुशल-क्षेम के बाद उन्होंने पूछा- कैसे आए। जो चिंता थी बताया। ऐसा लगा जैसे उनके लिए यह बहुत बड़ी समस्या नहीं है। फिर उनने कहा कि इसमें चिंता की कोई बात नहीं। सब ठीक हो जाएगा। पानी का इतना बड़ा अकाल नहीं, बुद्धि का अकाल है। फिर 2006 में भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी उमाकांत उमराव देवास के कलेक्टर नियुक्त हुए। उन्होंने यहां आते ही पानी की समस्या का हल तलाशने की कोशिशें शुरू कीं। पानी और बरसात के पिछले दस साल के रिकॉर्ड जांचकर उन्होंने पाया कि यहां इतना पानी तो हर साल बरसता है कि उसे संरक्षित करने पर पानी की समस्या खत्म की जा सकती है। उन्होंने एक बैठक बुलवाई और देवास के सहायक संचालक (कृषि) मोहम्मद अब्बास को जिले के बड़े किसानों की सूची बनाने को कहा। वे बताते हैं, ‘शुरुआत में बड़े किसानों को ही जोड़ने के दो कारण थे। छोटे किसान अक्सर बड़े किसानों की ही राह पर चलते हैं। अगर बड़े किसान तालाब बना लेते तो छोटे किसान भी देखा-देखी वही करते। बड़े किसान इतने संपन्न भी थे कि एक ऐसी योजना पर पैसा लगाने का जोखिम उठा सकें जिसके परिणाम अभी किसी ने नहीं देखे थे। दूसरा कारण यह था कि भूमिगत पानी का सबसे ज्यादा दोहन बड़े किसानों ने ही किया था जिस कारण जलस्तर इतना नीचे जा पहुंचा था इसलिए इसकी भरपाई भी उन्हीं को करनी थी।’
फिर इसके बाद जो देवास में हुआ, वह वर्तमान के इतिहास की अद्भुत घटना है।
आज दस हजार तालाब बन चुके हैं। नवंबर 2012 में दूसरी बार देवास का जल-दर्शन करके मैं आया।
2013 की फरवरी
दिल्ली लौट कर आने के बाद अनुपम जी से बात हुई। साथ ही पुष्पेंद्र भाई से मिलने के लिए चित्रकूट गया। मैं जानता था कि बिना पुष्पेंद्र भाई के बुंदेलखंड की कोई जल-कथा लिखना मुमकिन नहीं है। एक हफ्ते रहा उनके साथ, इसके बाद हम तंय कर चुके थे कि देवास जल-दर्शन को बुंदेलखंड में उतारने की कोशिश करेंगे।
अनुपम जी से मिला तो मैं डरा हुआ था, मन में बहुत सवाल थे। लोग क्यों तालाब के काम में लगेंगे? तालाब कैसे बनाया जाता है? कौन हमको सिखाएगा? उन्होंने बड़े प्यार से कहा था कि गांव के लोग सिखा देंगे।
मार्च 2013 और पर्यावरण पत्रकार संदीप रिछारिया
पानी और पर्यावरण की हिफाजत के लिये समय, धन, अधिकार, धन्धा, व्यवसाय और सरकारी सेवा बाधक नहीं है। इनके संरक्षण और संवर्धन के लिए सिर्फ जज्बे की जरूरत है। जो हर किसी के लिए सहज और सम्भव है। पत्रकारिता जैसे व्यस्त पेशे में लगे संदीप रिछारिया उन्हीं में से एक हैं। वो जहां जाते है। वहीं पर पानी और पर्यावरण की हिफाजत का काम अवश्य खोज लेते हैं। बुन्देलखण्ड में जन्में संदीप रिछारिया को पानी का संकट बाखूबी पता है। महोबा में दैनिक जागरण समाचार पत्र के जिला सम्वाददाता पद पर नियुक्ति हुई तो नवागान्तुक जिलाधिकारी अनुज कुमार झा से एक भेंट वार्ता में इस जिले के बढ़ते जलसंकट के समाधान की प्राथमिकताओं पर सवाल किया। सवाल के जवाब में जिलाधिकारी स्वयं उनकी रूचि देखकर पूछ बैठे आपकी नजर में क्या-क्या समाधान हो सकते हैं। बस इसी सिलसिले में पुष्पेन्द्र भाई द्वारा चरखारी के जयसागर तालाब पर वर्ष 2008 में किये गये श्रमदान कार्य का जिक्र आया। जिलाधिकारी ने पुष्पेन्द्र भाई से मिलने की इच्छा जाहिर की। संदीप जी ने पुष्पेन्द्र भाई को बुलाकार जिलाधिकारी आवास में एक बैठक कराई, चर्चा के दौरान अनुभवों का आदान- प्रदान होने से एक रास्ता नजर आया। जिसमें असिंचित इलाके में किसानों को उनके खेत पर तालाब निर्माण कराना था। जिले में ऐसे उदाहरण और तालाबों के फायदों का प्रमाण पहले से मौजूद थे। सवाल एक बड़ी शुरुआत की थी। श्री अनुज कुमार झा ने खुले मन से इस विषय के अनुभवों पर बेवाकी से समझना और अपनी जानकारियों को साझा करने में विज्ञ थे। होली पर्व के अवसर पर लखनऊ में एक विशेषज्ञों की टीम को बुलाकार उनके साथ पुष्पेन्द्र भाई को जिले में बड़े-बड़े सरोवरों को संवारने की योजना बनाने के लिए भेजा। साथ ही जिले में एक-एक तालाब की वर्तमान स्थितियों को जानने के लिए सूचनाएं और तालाबों की फोटो भी अर्जित कराईं। यह सब जिले में पानी के हिफाजत की पहल का हिस्सा था। जिसके माध्यम बनकर पत्रकार संदीप रिछारिया ने अवसर और वातावरण सृजित करने की आदत ने पहल की।
वाटरकीपर एलायंस और अपना तालाब अभियान
वाटरकीपर एलायंस दुनिया भर में नदियों के पुनर्जीवन के लिये काम करने वाले लोगों का एक संगठन है। वाटरकीपर एलायंस की इंडिया कॉर्डिनेटर एडवोकेट मीनाक्षी अरोड़ा अपना तालाब अभियान के साथ प्रारम्भ से ही जुड़ गईं। मीनाक्षी जी के इस अभियान के साथ जुड़ने का लाभ इस रूप में था कि उंहें पर्यावरणीय मुद्दों पर न केवल लेखन का अनुभव है साथ ही एलायंस के सभी साथियों के जमीनी अनुभव भी उनके साथ थे। उनने न केवल अंग्रेजी में लिखी गई विभिन्न रिपोर्टों और दस्तावेजों को हिंदी में समझना संभव बनाया बल्कि अपना तालाब अभियान के संगठनात्मक ढांचे के लिये भी हमारा मार्गदर्शन किया।जानकारी के तौर पर यह उल्लिखित है कि पुष्पेंद्र भाई, मीनाक्षी अरोड़ा और मैं यानी केसर, सभी वाटरकीपर एलायंस के सदस्य हैं।
अनुपम जी ने दिल्ली में बुलाई बैठक
तिथि का ठीक- ठीक अंदाज नहीं। साल 2013, महीना मार्च। हमेशा की तरह बुंदेलखंड के अकाल की खबरें इस बार भी सुर्खियों में था। कुछ मित्रों के साथ अपन अनुपम मिश्र जी से मिलने उनके दफ्तर पहुंचे। औपचारिक कुशल-क्षेम के बाद उन्होंने पूछा- कैसे आए। जो चिंता थी बताया। ऐसा लगा जैसे उनके लिए यह बहुत बड़ी समस्या नहीं है। फिर उनने कहा कि इसमें चिंता की कोई बात नहीं। सब ठीक हो जाएगा। पानी का इतना बड़ा अकाल नहीं, बुद्धि का अकाल है। अपन को बुद्धी ठीक करने के लिए कुछ करना चाहिए। कुछ धूल हम सब के दिमाग पड़ गई है जिसे झाड़ने की जरूरत है। कुछ साल पहले जो देवास की स्थिति थी वैसी अभी बुंदेलखंड की नहीं हुई है। आज देवास तीन फसलें ले रहा है। सबसे पहले जहां-जहां अच्छे काम हुए है वहां के मित्रों की एक छोटी बैठक बुलाओ। इसमें बुंदेलखंड के मित्र भी आएंगे। जाओ तैयारी करो। तारिख तय कर के बताना। अपन अब बैठक में मिलेंगे।
देवास भ्रमण के दौरान गांव में तालाबों के श्रृंखलावद्ध निर्माण और गांव-गांव में चल रहे तालाब निर्माण की स्वसंचालित पहल देखकर उम्मीद जगी। इस दौरान उन ग्राम पंचायतों को भी देखा जहां पर प्रत्येक किसान परिवार के पास अपना तालाब था। उनमें से तीन ग्राम पंचायतों को जल संरक्षण और भूगर्भ जल पुनर्भरण कार्य के लिए भारत के राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित भी किया गया है। क्षेत्रीय किसानों की समृद्धि, संसाधन और फसलों को देखकर आश्चर्य हुआ।कमरे से बाहर आते-आते बहुत हद तक हम लोगों कि चिंताएं उत्साह में बदल गई थी। सभी बैठक की तैयारी में जुट गए। ठीक आठ दिन बाद की तारीख पक्की हुई। सब कुछ अनौपचारिक तरीके से हो रहा था। मैं केसर (इंडिया वाटर पोर्टल) ने साथियों को खबर करने की जिम्मेवारी ली। मित्रों के आने-जाने और खाने-पीने का इंतजाम अजय भाई (पैरवी संस्था के निदेशक) ने की। बैठक की जगह अनुपम जी का कमरा तय हुआ।
देवास से दिलीप सिंह पंवार और रघुनाथ सिंह तोमर जी, बुंदेलखंड के बांदा से सुरेश रैकवार जी, छतरपुर से संजय भाई, लापोड़िया राजस्थान से लक्ष्मण सिंह के अलावा दिल्ली से अजय झा, केसर, प्रभात भाई और अनुपम जी बैठक में शामिल हुए। सभी लोगों ने अपने-अपने इलाके के काम की जानकारी दी। बैठक के अंत में तय हुआ कि अगले मानसून के पहले यही टीम बुंदेलखंड के दोनों हिस्सों में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में किसानों के साथ बात-चीत करेगी।
इस बार की बैठक थोड़ी बड़ी थी लिहाजा तैयारी में कुछ ज्यादा वक्त लगा। सात अप्रैल 2013 को अतर्रा, बांदा और 8 अप्रैल को छतरपुर में बैठक निर्धारित की गई। करीब दिन भर की बैठक के बाद हम लोगों ने चरखारी, महोबा में रात बिताना तंय किया।
अतर्रा की मीटिंग
8 अप्रैल 2013 को बुन्देलखण्ड के तालाबों के सम्बन्ध में एक बैठक का आयोजन बांदा जिले के अतर्रा ग्रामीण इलाके में किया गया। आयोजनकर्ता संस्था के प्रमुख सुरेश रैकवार द्वारा पूर्व वर्षों में अस्तित्व खोते जा रहे, कुछ एक तालाबों के पुनर्जीवन का कार्य जन सहयोग से कराये जाने का अनुभव था। इस कार्यक्रम में पैरवी दिल्ली प्रायोजक रही। कार्यक्रम में क्षेत्रीय किसानों, शिक्षकों, पत्रकारों, संस्थाओं के प्रतिनिधियों की उपस्थिति रही। चर्चा के दौरान पुराने तालाबों को संवारने की जरूरत महसूस की गयी। जनपद के पल्हरी गांव में तैनात शिक्षा मित्र ओमप्रकाश भारतीय द्वारा अपने सजातीय परिवारों के कब्जे से एक बड़े तालाब को मुक्त कराने का साहस भी सुना। पर इन सबसे किसानों की बदहाली का रास्ता मिल सकता हो, या उनकी खुशहाली बढ़ सकती हो, नजर नहीं आयी। एक और प्रयोग पर चर्चा आई। किसानों के खेत पर उनके अपने तालाबों का निर्माण, जिससे वह सिंचाई कर फसलों का उत्पादन बढ़ा सकें। इस बात को रखने वाले और समर्थन करने वालों की उस बैठक में संख्या भले ही कम रही हो पर बात पते की ही नहीं फायदे की भी थी। पुष्पेन्द्र भाई द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव पर उदाहरण सहित पुष्टि, केसर ने प्रत्यक्ष प्रमाण के रूप में रखा, मीटिंग में देवास क्षेत्र के जल संकट से निजात पा चुके, तालाबों से फायदा पाने वाले किसान भी मौजूद थे। उनकी मुंह जुवानी सुनकर एक बात सभी को समझ में आने लगी थी। बुन्देलखण्ड मे गहराती जल समस्या का एक मात्र विकल्प किसानों के अपने तालाब हो सकते हैं। पर यह काम कब और कहां से प्रारम्भ हो, संसाधन और वातावरण के अभाव में काम कठिन था। इसी संदर्भ में 9 अप्रैल को एक बैठक का आयोजन बुन्देलखण्ड के म.प्र. में छतरपुर में आयोजित थी। यात्रा के दौरान तय हुआ कि पानी पुनरूत्थान पहल के चरखारी में किये गये प्रयासों को देखते हुए चलें। सम्भव हो तो इस दिशा में सहयोगी बने जिलाधिकारी अनुज कुमार झा से भी मुलाकात करें।
जिलाधिकारी अनुज कुमार झा के आवास पर देर रात पहुंचकर चर्चा के दौरान केसर जी ने देवास में किये गये पानी के संकट से निजात पाने की घटना का जिक्र किया। और उसे देखने की जरूरत। तय यहीं हुआ कि जिले से अधिकारियों, किसानों, स्वैच्छिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों की एक टीम जाकर देखेगी। इसके लिए जाने वाले सदस्यों की सूची का दयित्व पुष्पेन्द्र भाई को दिया गया। इस बैठक में गांधी शांति प्रतिष्ठान के कार्यकर्ता श्री प्रभात, पैरवी दिल्ली से अजय कुमार भी शामिल रहे।
देवास जल-दर्शन को गयी टीम और रेवासागर अभियान के मुख्य शिल्पी श्री उमाकान्त उमराव से मुलाकात
देवास भ्रमण के लिए निर्धारित सूची के क्रम में जिलाधिकारी महोबा द्वारा 15 अप्रैल 2013 को एक पत्र जारी किया गया। जनपद के उपकृषि निदेशक श्री जी.सी.कटियार के नेतृत्व में उपसभ्भागीय कृषि प्रसार अधिकारी श्री वी.के.सचान, सहायक अभियन्ता लघु सिंचाई डा. अखिलेश कुमार, खण्ड विकास अधिकारी पनवाड़ी श्री दीनदयाल, उपनिदेशक भूमि संरक्षण एवं जल संसाधन महोबा श्री आर के.उत्तम, क्षेत्रीय वनाधिकारी पनवाड़ी श्री हरी सिंह, ए.डी.एम.यू. अधिकारी जायका वन प्रभाग महोबा श्री रामेश्वर तिवारी, किसान भारत सिंह यादव, किसान मिश्रा, स्वैच्छिक संगठनों में डा. अरविन्द खरे (निदेशक, ग्रामोन्नति संस्थान महोबा), श्री पंकज बागवान मातृभूमि विकास संस्थान लखनऊ, और पुष्पेन्द्र भाई शामिल हुए।
देवास भ्रमण के दौरान गांव में तालाबों के श्रृंखलावद्ध निर्माण और गांव-गांव में चल रहे तालाब निर्माण की स्वसंचालित पहल देखकर उम्मीद जगी। इस दौरान उन ग्राम पंचायतों को भी देखा जहां पर प्रत्येक किसान परिवार के पास अपना तालाब था। उनमें से तीन ग्राम पंचायतों को जल संरक्षण और भूगर्भ जल पुनर्भरण कार्य के लिए भारत के राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित भी किया गया है। क्षेत्रीय किसानों की समृद्धि, संसाधन और फसलों को देखकर आश्चर्य हुआ। उत्पादन में होने वाले बदलावों में गवाह बने परिवारों के पास बड़े-बड़े भवनों, लग्जरी गाड़ियों सहित समृद्धि का वैभव दिखा।
देवास के उप संचालक कृषि श्री अब्बास जी ने तालाबों के बारे में अच्छी जानकारी दी। भागीरथ कृषक अभियान, और रेवा सागर अभियान के मुख्य शिल्पी श्री उमाकान्त उमराव से देवास से वापसी के दौरान मुलाकात हुई।
श्री अनुज कुमार झा की अगुवाई में शुरू हुआ जलाभियान
9 मई 2013 को देवास मप्र के तालाबों का अवलोकन कर वापस आई टीम के सदस्यों के अनुभवों को जानने समझने और उन अनुभवों का प्रयोग महोबा जिले में दोहराने के उद्देश्य से एक बैठक का आयोजन विकास भवन सभागार में जिलाधिकारी महोबा की अध्यक्षता में किया गया।
अभियान को महोबा में गति प्रदान करने के लिए 9 जून 2013 को जिले के अधिकारियों, कर्मचारियों, किसानों और स्वैच्छिक संस्थाओं की उपस्थिति में श्री उमाकान्त उमराव के अनुभवों से तालाबों के निर्माण से होने वाले फायदों की सहमति बनाने का प्रयास किया गया। श्री उमराव जी के अनुभवों, दलीलों और वैज्ञानिक कसौटियों में कसे उदाहरणों से सभी सहमत हुए। एक माह तक वर्षा के पूर्व चले इस अभियान को गति देने के लिए ‘डीजल भराओ, तालाब बनाओ’ का नारा भी दिया गया। 11 मई 2013 से किसानों के खेत पर उनके अपने निजी तालाबों के निर्माण का शुभारम्भ जनपद महोबा के जिलाधिकारी श्री अनुज कुमार झा की उपस्थिति में प्रारम्भ हुआ। जिले के बहुधा विभाग प्रमुखों, स्वैच्छिक संस्थाओं, पत्रकारों, किसानों की उपस्थिति में अपना तालाब बनाने वाले किसान के साथ जमीन पर बैठकर हवन पूजन करना तथा जिलाधिकारी द्वारा किसान का तिलक कर पहली कुदाल चलाना चर्चा का विषय बना। भीषण तापमान भरे ही दिनों में 3-4 घंटे रोज किसी न किसी गांव में तालाबों के निर्माण के लिए भूमि पूजन जिलाधिकारी की दिनचर्या का हिस्सा बन गया। इस चर्चा को फैलते देर नहीं लगी। जनपद के किसानों को अपनी समस्याओं के समाधान का मार्ग दिखा। धीरे-धीरे कर जनपद के किसानों की नजदीकता बढ़ने से जिलाधिकारी को समझने में देर नहीं लगी कि इस काम को किसान ही बखूबी कर सकता है। जिले के विकास में तालाबों के योगदान का महत्व जिले के संबंधित विभागों को भी समझ में आने लगा। 18 मई को जनपद के बरबई गांव में एक ही दिन में 18 तालाबों के भूमि पूजन का न्यौता जिलाधिकारी को भी उत्साहित करने में मददगार बना। इतना ही नहीं एक सप्ताह के अवकाश पर गये, तो अपने गांव के एक बड़े और पुराने तालाब का जीर्णोधार कराने का शुभारम्भ जिलाधिकारी अनुज कुमार झा ने किया।
अभियान को महोबा में गति प्रदान करने के लिए 9 जून 2013 को जिले के अधिकारियों, कर्मचारियों, किसानों और स्वैच्छिक संस्थाओं की उपस्थिति में श्री उमाकान्त उमराव (आयुक्त आदिवासी विकास, म.प्र.शासन भोपाल) के अनुभवों से तालाबों के निर्माण से होने वाले फायदों की सहमति बनाने का प्रयास किया गया। श्री उमराव जी के अनुभवों, दलीलों और वैज्ञानिक कसौटियों में कसे उदाहरणों से सभी सहमत हुए। एक माह तक वर्षा के पूर्व चले इस अभियान को गति देने के लिए ‘डीजल भराओ, तालाब बनाओ’ का नारा भी दिया गया। इसके लिए जिलाधिकारी ने अपने श्रोतों से कई जेसीबी., पोकलैण्ड मशीनें भी उपलब्ध करायीं। जिससे निर्मित तालाब आज भी देखने योग्य हैं। तालाब निर्माण की हर संभावना पर दृष्टि गयी, कोशिशें हुई, बैठकें और सभाएं की जिससे एक माह में पचास से अधिक तालाबों का निर्माण कार्य पूरा हुआ।
जलाभियान और पंकज बागवान
अपना तालाब अभियान की पृष्ठभूमि में एक-एक कर कई प्रतिभावान पुरुषार्थी साथियों का योगदान शामिल है। भले ही उनकी चर्चा सुर्खियों से दूर और मंचों में उपस्थिति नगण्य हो, पर उनके योगदान के बिना अभियान को जनाभियान में बदलना संभव नहीं था। उन्हीं में से एक साथी पंकज बागवान भी हैं, जो अभियान के हर एक पड़ाव में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते आ रहे है। किसानों से प्रेरित करने से लेकर अभियान के साथियों को आश्रय देने में धनी और लेखन, फोटोग्राफी, बैठकों के आयोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निर्वहन करने का नाम पंकज बागवान हैं।
इनके मधुर स्वभाव और प्रेरक प्रंसगों से प्रेरित अपना तालाब बनाने वाले किसानों की एक लम्बी फेहरिस्त है। अपने परिवार की जरूरत के लिए स्वैच्छिक संगठनों में सेवाएं देते हुए अभियान के हर काम को संचालित करने में महत्वपूर्ण योगदान है।
ग्रामोन्नति संस्थान के डॉ. अरविन्द खरे
स्वैच्छिक संगठनों की कड़ी में नजर डालें तो ग्रामोन्नति संस्थान के डा. अरविन्द खरे ने अपने एक साल के प्रयास से किसानों की जमीन पर 300 घनमी. से लेकर 1300 घनमी. तक जल-भंडारण वाले 63 तालाब बनाए हैं, जो देखने में सुन्दर और उपयोगी हैं। पानी-किसानी के लिए क्षेत्र में एक बेहतर मिशाल बनाने वाले डा. अरविन्द खरे अपना तालाब अभियान के प्रमुख सदस्यों में से एक हैं। अपना तालाब अभियान के साथ हर समय, हर सम्भव, हर मुकाम पर तत्पर रहते हैं।
बृजपाल सिंह का तालाब
तालाब अभियान में बरबई गांव के एक किसान बृजपाल सिंह की अहम भूमिका रही। पानी को लेकर वह निरंतर प्रयोग करते रहते थे। 2005 में ही तालाब खोदने के लिए उन्होंने यंत्र भी खुद ही बनाया था। धीरे-धीरे उन्हें तालाब निर्माण की इतनी अच्छी समझ हो गई कि आज सरकारी विभाग भी तालाब बनाने में उनकी राय को महत्व देते हैं। इसलिए इस अभियान का नेतृत्व भी बृजपाल सिंह जैसे दिलेर लोगों के हाथ में है।
लापोड़िया देखा
जयपुर से 60 किलोमीटर दूर स्थित लापोड़िया गांव के एक सफल प्रयोग से भी किसानों को रूबरू कराया गया। देखा जाए तो इस इलाके में बुंदेलखंड के मुकाबले काफी कम बारिश होती है। लेकिन इन परिस्थितियों में भी जल संरक्षण के अपने अनूठे प्रयोग के कारण गांव के हालात में लगातार सुधार देखने को मिला। गांव के लोगों ने अपनी ही एक जल-संरक्षण प्रणाली का निर्माण किया, जो राजस्थान की परिस्थितियों के अनुकूल थी और उसे ‘चौका-प्रणाली’ नाम दिया। इसके तहत चारा और पानी दोनों के संरक्षण का प्रावधान किया गया। इस प्रणाली के चलते आज लगभग हर साल यह गांव 30 लाख रूपये दूध कारोबार से अर्जित करने लगा है। लगातार नौ साल तक सूखा झेलने वाले इस गांव के उत्साह और विश्वास ने निश्चित तौर पर ही बुंदेलखंड के प्रयोगधर्मी किसानों को प्रेरित करने का काम किया।
‘डार्क जोन’ महोबा और तालाब
इस इलाके में पानी को लेकर हालात इतने खराब हो चुके हैं कि सरकार ने इस जिले के सभी ब्लाकों को ‘डार्क जोन’ घोषित कर दिया है। ‘डार्क जोन’ का मतलब ऐसा इलाका होता है जहां भू-जल ऐसी स्थिति में पहुंच गया हो कि पानी का जितना ज्यादा भू-भरण होता हो, उससे ज्यादा दोहन हो रहा हो या यूं कहें कि वहां जमीन में पानी जितना जा रहा हो उससे कई गुना निकाला जा रहा हो। इस मुसीबत से निपटने के लिए राज के साथ मिलकर निश्चित किया गया कि तालाब खुदवाने वाले स्थानीय निवासियों को सम्मानित किया जाएगा। इस अभियान में स्थानीय प्रशासन से लेकर स्थानीय संगठनों के अलावा गांव के कुछ अनुभवी लोगों को शामिल किया गया।
तालाब का निर्माण करने के लिए किसानों की जरूरतों को ध्यान में रखकर तालाब का आकार तय करने का फैसला भी किया गया। साल 2013 के दौरान महोबा में तकरीबन 47 तालाबों का निर्माण किया गया। इस प्रयोग से लगभग 17-18 साल बाद गांव के कुओं में एक बार फिर पानी लौटने के संकेत मिलने लगे हैं। हालांकि यह कोई बड़ी उपलब्धि नहीं थी, पर एक उम्मीद की किरण नजर आने लगी थी।
अपना तालाब वर्ष 2014 और राज-समाज का सुंदर सहकार
अपना तालाब अभियान अपनी तरह का एक अनूठा जलयज्ञ है। इस यज्ञ में सभी को यथा समय, यथा संभव आहुतियों की स्वतंत्रता है। अधिकतम चर्चा तालाबों के फायदों के इर्द-गिर्द रहती है। राज और समाज की पानी पुनरूत्थान की इस साझी पहल अपना तालाब अभियान में सभी ने बढ़चढ कर हिस्सेदारी करने का जब्जा दिखाया है। जिसे भी मौका मिला उसने अपने अधिकार क्षेत्र में भागीरथ-प्रयास कर दिखाया। उसी में से एक श्री अरविन्द मोहन मिश्रा भूमि संरक्षण अधिकारी चरखारी का भी नाम है।
विभागीय योजना डीपीएपी के तहत कीरतपुरा और काकुन गांव में तीन लाख रूपये बचे थे, जिससे दस किसानों को अपना तालाब बनाने के लिए तीस हजार प्रति किसान के हिस्से में अनुदान सुनिश्चित था। अभियान के साथियों के साथ किसानों की बैठक आयोजित की गयी तो दो दर्जन किसानों में तालाब बनाने का संकल्प लिया। किन्तु मुश्किल यह था कि अनुदान की राशि सिर्फ दस किसानों के लिए ही थी। वहां के किसानों ने सस्ती मशीन की खोज कर अपने तालाब बनाने के लिए एक पहल की तो भूमि संरक्षण अधिकारी ने खुले मन से उनकी मदद का रास्ता प्रशस्त कर अन्य दूसरे गांव में योजना की राशि को स्थानान्तरित कर कुल आठ लाख दस हजार का अनुदान देकर लगभग 27 तालाबों का निर्माण कार्य एक माह में पूरा कराया। जो अनुदान राशि से चार पांच गुना अधिक के काम का प्रमाण है।
महोबा जनपद में अपना तालाब अभियान से प्रेरित होकर किसानों, विभागों, संस्थाओं ने तालाबों की एक शृंखला खड़ी कर सम्भावित वर्षा-जल से 5000 एकड़ असिंचित कृषि भूमि की प्यास बुझाने की तैयारी की है। इससे न केवल फसलों को पानी मिलेगा बल्कि महज 1 पानी की पीयत से मटर, गेहूं, चना, लाही की फसल का उत्पादन 4-5 गुना तक अधिक होगा। जो पहले के औसतन उत्पादन से 40000 हजार कुण्टल अधिक होगा। जिसकी कीमत को देखें तो 100 करोड़ से अधिक का फायदा होगा। इसी क्रम में विकासखण्ड चरखारी के सूपा गांव में ग्राम विकास अधिकारी श्री ओम तिवारी का जज्बा भी देखने लायक है। जिस योजना से अधिकारी और कर्मचारी दिली दूरियां रखते है। उसी योजना मनरेगा को माध्यम बनाकर किसानों को प्रेरित कर कई तालाब बना डाले। इन तालाबों और किसानों की अपनी कहानियां भी हैं। गांव से बहने वाली चंद्रावल नदी को पुर्नजीवित करने की मंशा से तटीय क्षेत्रों में शृंखलाबद्ध तालाबों के निर्माण और वृ़क्षारोपण की शुरूवात अपना तालाब अभियान के तहत वर्ष 2013 में ही जिलाधिकारी के नेतृत्व में की गयी।
अन्य जिलों में शायद ही वन विभाग अपने वन-क्षेत्रों में तालाबों जैसी संरचनाओं को करने में रूचि रखते हों किन्तु अभियान से प्रेरित होकर क्षेत्रीय वन अधिकारियों ने 50 से अधिक कम-गहराई के तालाब और जल संरचनाए निर्माण किया है। छितरवारा ग्राम में ग्रामीणों की मांग के चलते जायका परियोजना के तहत संयुक्त वन प्रबन्ध समिति ने पहाड़ के ऊपर पुरातन तालाब का पुनर्निर्माण कर गांव की जल समस्या का समाधान किया है।
एक साल में क्या हुआ
महोबा जनपद में अपना तालाब अभियान से प्रेरित होकर किसानों, विभागों, संस्थाओं ने तालाबों की एक शृंखला खड़ी कर सम्भावित वर्षा-जल से 5000 एकड़ असिंचित कृषि भूमि की प्यास बुझाने की तैयारी की है। इससे न केवल फसलों को पानी मिलेगा बल्कि महज 1 पानी की पीयत से मटर, गेहूं, चना, लाही की फसल का उत्पादन 4-5 गुना तक अधिक होगा। जो पहले के औसतन उत्पादन से 40000 हजार कुण्टल अधिक होगा। जिसकी कीमत को देखें तो 100 करोड़ से अधिक का फायदा होगा। इन तालाबों से भूमिगत जल में इजाफा सहित किसानों के अपने नये व्यवसायों की पहल भी प्रारम्भ होगी। अपना तालाब अभियान महोबा तक ही सीमित नहीं रहा। यह पड़ोसी जनपद बांदा, हमीरपुर और अन्य जिलों को भी तालाबों ने फायदों के लिए पहचाना गया और काम प्रारम्भ हुआ।
दो साल में हुआ क्या है
इन दो सालों यानी 2013-14 में महोबा में तकरीबन 400 तालाबों का निर्माण किया जा चुका है। इस अभियान से एक बड़ा बदलाव यह हुआ कि इस दौरान लोग निजी तालाब बनवाने को लेकर रूचि दिखाने लगे। गौर करने की बात है कि देवास के कुछ इलाकों में आज लगभग 80 प्रतिशत लोगों के पास अपने निजी तालाब हैं। किसानों की जरूरत के हिसाब से बने इन तालाबों का किसानों की आय के मामले में सकारात्मक असर देखने को मिला है।
'अपना तालाब' अभियान के तहत लगभग एक हजार निजी तालाब खुदवाने का संकल्प किया गया है। तालाबों के जरिए बुंदेलखंड ने अपनी समस्याओं का एक सहज और जांचा-परखा तरीका ढूंढ लिया है। यह प्रयोग देश के बाकी सूखाग्रस्त इलाकों के लिए एक प्रेरणा स्रोत है।
‘अपना तालाब अभियान’ के परिचय में श्री राहुल कौटियाल का तहलका में प्रकाशित आलेख ‘परम्परा का पुन: प्रयोग’, श्री मंगलेश कुमार भारतीय पक्ष में प्रकाशित आलेख ‘तालाब की ओर फिर से लौटता बुंदेलखंड’ के साथ ही प्रभात झा के नोट्स का उदारतापूर्वक उपयोग किया गया है। उनके हम बहुत-बहुत आभारी हैं।
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