'तालाब' का असर, राहुल गांधी पर


कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी ने अपने हाल के तमिलनाडु दौरे में एक बड़ा महत्वपूर्ण बयान दिया था. राहुल गांधी ने कहा था कि वे नदियों को जोड़ने के खिलाफ हैं क्योंकि ऐसा करना प्रकृति के साथ बहुत बड़ा खिलवाड़ होगा जिसकी भरपाई मुश्किल होगी.

उनके इस बयान के बाद से ही हम इस पड़ताल पर लग गये थे कि आखिर राहुल गांधी ने ऐसा बयान दिया क्यों? राहुल गांधी की शिक्षा-दीक्षा और राजनीतिक सोच समझ में यह बात कहीं फिट नहीं बैठती है कि नदियों को जोड़ने काम बहुत विनाशकारी है. पिछली दफा इसी यूपीए सरकार ने सिर्फ वामपंथियों के दबाव में आकर नदी जोड़ो परियोजना को किनारे रखा था अन्यथा नदी जोड़ने की परियोजना को शुरू करने के लिए व्यावसायिक घरानों का बहुत दबाव है. इसका कारण भी है क्योंकि एक बार नदी जोड़ो परियोजना शुरू हुई तो यह इस देश की अब तक की सबसे बड़ी एकल परियोजना होगी जिसमें छह से सात लाख करोड़ का बिजनेस जनरेट होगा.

राहुल गांधी की राजनीतिक ट्रेनिंग आजकल जिन लोगों की देखरेख में हो रही है उसमें दिग्विजय सिंह प्रमुख हैं. दिग्विजय सिंह पानी और पर्यावरण के मुद्दे पर संवेदनशील व्यक्ति हैं इसलिए पर्यावरण पर काम करनेवाली संस्थाओं के संपर्क में रहते हैं. पानी के काम की अहमियत वे समझते हैं इसलिए राजेन्द्र सिंह की जल बिरादरी को भी उनका समर्थन मिला हुआ था. ऐसे में दिग्विजय सिंह ने ही राहुल गांधी की भारत के पानी और पर्यावरण के चिंतन के लिए जो पुस्तकें मुहैया करवायीं उसमें अनुपम मिश्र की एक किताब 'आज भी खरे हैं तालाब' और 'तैरनेवाला समाज डूब रहा है' नामक पुस्तिका भी थी. आज भी खरे हैं तालाब जहां भारत के परपंरागत पानी संरक्षण के लिए तालाब के महत्व और दर्शन को समझाती है वहीं "तैरनेवाला समाज डूब रहा है" बिहार में बाढ़ को समस्या मानने की बजाय उसे व्यवस्था का दोष साबित करती हैलेकिन नदी जोड़ने के भीषण और भयावह प्राकृतिक परिणाम होंगे जिनसे आनेवाली नस्लें ऐसी दो चार होंगी कि उससे उबरना मुश्किल होगा. जब एनडीए सरकार ने इस योजना को हरी झंडी दिखाते हुए एक कमेटी का गठन किया था और सुरेश प्रभु को इसका मुखिया बनाया था तभी दिल्ली में विरोध करनेवाले लोगों की एक बड़ी लॉबी सक्रिय हो गयी थी जिसमें नानाजी देशमुख से लेकर कई जाने माने पर्यावरणविद शामिल थे. उस विरोध को पर्यावरणविद अनुपम मिश्र का भी समर्थन था और बाद में लोकसभा चैनल पर एक टीवी कार्यक्रम में उनके तर्कों के आगे सुरेश प्रभु भी दोबारा विचार करने की बात करने लगे.

इसी कड़ी में राहुल गांधी भी आते हैं. राहुल गांधी की राजनीतिक ट्रेनिंग आजकल जिन लोगों की देखरेख में हो रही है उसमें दिग्विजय सिंह प्रमुख हैं. दिग्विजय सिंह पानी और पर्यावरण के मुद्दे पर संवेदनशील व्यक्ति हैं इसलिए पर्यावरण पर काम करनेवाली संस्थाओं के संपर्क में रहते हैं. पानी के काम की अहमियत वे समझते हैं इसलिए राजेन्द्र सिंह की जल बिरादरी को भी उनका समर्थन मिला हुआ था. ऐसे में दिग्विजय सिंह ने ही राहुल गांधी की भारत के पानी और पर्यावरण के चिंतन के लिए जो पुस्तकें मुहैया करवायीं उसमें अनुपम मिश्र की एक किताब 'आज भी खरे हैं तालाब' और 'तैरनेवाला समाज डूब रहा है' नामक पुस्तिका भी थी. आज भी खरे हैं तालाब जहां भारत के परपंरागत पानी संरक्षण के लिए तालाब के महत्व और दर्शन को समझाती है वहीं 'तैरनेवाला समाज डूब रहा है' बिहार में बाढ़ को समस्या मानने की बजाय उसे व्यवस्था का दोष साबित करती है.

इन किताबों का राहुल गांधी के मन पर गहरा असर हुआ है. कहते हैं जब वे लुधियाना की शताब्दी यात्रा कर रहे थे तब भी और जब तमिलनाडु के दौरे पर गये थे तब भी वे इन्हीं किताबों का अध्ययन कर रहे थे. अब यह समझना मुश्किल है कि राहुल गांधी की कमजोर हिन्दी के बावजूद क्या वे इस किताब को पढ़ पा रहे हैं जो बहुत देशज शैली और भाषा में लिखी गयी है? एक लाख प्रतियों की बिक्री का रिकार्ड दर्ज कर चुकी आज भी खरे हैं तालाब तो हिन्दी के ऐतिहासिक साहित्य में पहुंच चुकी है. किताब के लेखक अनुपम मिश्र खुद आश्चर्य प्रकट करते हुए कहते हैं कि 'उन्हें इस बात का बिल्कुल इल्म नहीं है कि राहुल गांधी इन पुस्तकों को क्यों पढ़ रहे हैं उन्हें किन लोगों ने इस किताब के बारे में बताया. लेकिन जहां तक नदियों को जोड़ने के बारे में उनके बयान का सवाल है तो उनके इस बयान का जरूर स्वागत किया जाना चाहिए.' अनुपम मिश्र कुछ उन गिने चुने लोगों में हैं जिन्होंने पानी और पर्यावरण पर बहुत भारतीय शैली में काम किया है. इसका नतीजा यह है कि उनके लेखन के प्रभाव में दर्जनों पानी के काम चल रहे हैं.

अनुपम मिश्र कहते हैं 'किताब पढ़ने और बयान देने का स्वागत करना चाहिए लेकिन असल स्वागत तो उस दिन होगा जब राहुल गांधी के प्रभाव में ही सही सरकार पानी के परंपरागत काम को आगे बढ़ाएगी.' उम्मीद करते हैं कि सरकार पानी के निजीकरण और नदियों तक को बेच देने की अपनी दबी इच्छाओं के बीच इस दिशा में अभी से काम शुरू कर दे तो किताब पढ़ना और राहुल गांधी का बयान दोनो ही सार्थक दिशा में आगे बढ़ जाएंगे।

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