पंकज अपनी जमीन पर एक तालाब खुदवा रहे हैं उनको यकीन है कि यह तालाब न केवल उनकी तकदीर बदलेगा बल्कि गाँव के लोगों को नई राह भी दिखाएगा। तालाब खुदाई के वक्त आयोजित समारोह में जब उमाकान्त उमराव ने पंकज को इस क्षेत्र का भगीरथ बनने की प्रेरणा दी तो दरअसल इसमें एक गहरा निहितार्थ छिपा था। भगीरथ जहाँ गंगा को स्वर्ग से धरती पर लाये थे वहीं पंकज के सामने चुनौती है दशकों से सूखे की मार झेल रहे इस क्षेत्र को हरियाली से आच्छादित करने की। बुन्देलखण्ड का एक इलाका ऐसा भी है जिसे बुन्देलखण्ड के बुन्देलखण्ड का नाम दिया जा सकता है। यहाँ पानी का संकट कल्पना से परे है। यहाँ के लोगों की सारी उम्मीदें एक तालाब की सफलता पर टिकी हैं। पिछले दिनों बांदा के जिलाधिकारी सुरेश कुमार और मध्य प्रदेश के वाटरमैन के नाम से जाने जाने वाले आईएएस उमाकान्त उमराव ने जब यहाँ तालाब की खुदाई के लिये कुदाल चलाई तो दरअसल एक साथ कई उम्मीदों के बीजों ने अंकुरित होने के लिये अंगड़ाई भरी।
यह गाँव है बुन्देलखण्ड के बांदा जिले के बड़ोखर खुर्द विकासखण्ड का खहरा गाँव। खहरा के रहने वाले पंकज सिंह भारतीय रेल में सहायक प्रबन्धक की नौकरी छोड़कर वापस गाँव लौट आये हैं।
देश भर में ऐसे लोगों के नाम अंगुलियों पर गिने जा सकते हैं जो जमी-जमाई तय आय वाली नौकरी छोड़कर दोबारा गाँव लौटते हैं। जो अपने खेत, अपने गाँव और अपने पूरे इलाके के लिये कुछ करने की मंशा रखते हैं।
पंकज अपनी जमीन पर एक तालाब खुदवा रहे हैं उनको यकीन है कि यह तालाब न केवल उनकी तकदीर बदलेगा बल्कि गाँव के लोगों को नई राह भी दिखाएगा। तालाब खुदाई के वक्त आयोजित समारोह में जब उमाकान्त उमराव ने पंकज को इस क्षेत्र का भगीरथ बनने की प्रेरणा दी तो दरअसल इसमें एक गहरा निहितार्थ छिपा था। भगीरथ जहाँ गंगा को स्वर्ग से धरती पर लाये थे वहीं पंकज के सामने चुनौती है दशकों से सूखे की मार झेल रहे इस क्षेत्र को हरियाली से आच्छादित करने की।
पंकज के पिता कामराज सिंह भी इलाके के प्रगतिशील किसानों में अव्वल स्थान रखते थे। उन्होंने पहली बार इस पूरे बंजर इलाके को हरियाली का स्वाद चखाया था। पंकज कहते हैं, 'मेरे पुरखों ने काफी बाग बगीचे लगाए हैं जिनमें फलदार वृक्ष लगे हैं। मैं तालाब खुदवा रहा हूँ। अगर तालाब की योजना सफल हो गई तो मैं सब्जियों तथा नकदी फसलों पर ध्यान केन्द्रित करुँगा। मैं यह कर रहा हूँ क्योंकि मैं जोखिम लेने की स्थिति में हूँ। अगर यह प्रयोग सफल रहा तो इस पूरे क्षेत्र को अतुलनीय लाभ होगा।'
यह गाँव और इसके आसपास का इलाका 1600 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है। इसके बहुत कम हिस्से में ही हरियाली है। हरियाली से तात्पर्य बाग-बगीचों से है। पानी की कमी के चलते अधिकांश इलाका परती पड़ रहता है। यह गाँव मतौन क्षेत्र में आता है। मतौन केन नदी के पार एक ऐसा इलाका जो पानी की शाश्वत कमी का शिकार है। पानी का एकमात्र माध्यम केन नदी ही है। गर्मियों में कई बार यहाँ हालात ऐसे हो जाते हैं कि पीने तक को पानी नहीं मिलता। जानवरों और नहाने धोने के पानी की तो बात ही छोड़ दीजिए।
चकबंदी ने बिगाड़ी हालत
अपना तालाब अभियान के संयोजक पुष्पेंद्र भाई पानी के इस संकट पर प्रकाश डालते हैं। वह कहते हैं, '500-700 की आबादी वाले इस गाँव की हालत हमेशा इतनी बुरी नहीं थी। एक वक्त था जब यह गाँव खेती-किसानी के लिहाज से लाभप्रद माना जाता था। लोगों ने फलदार वृक्ष लगाए थे। वर्षाजल संरक्षण के उपाय अपनाए जाते थे। पशुओं के लिये चारागाह थे। जो बदले में जैविक खाद मुहैया कराया करते थे। यानी सब कुछ व्यवस्थित था। लेकिन तकरीबन तीन दशक पहले चकबंदी के आगमन के बाद से यहाँ की परम्परागत प्रणालियाँ और व्यवस्थाएँ ध्वस्त हो गईं। चकबंदी के आगमन के साथ ही सबसे पहले मेढ़ें टूट गईं। उसके बाद पेड़ कटे और वर्षाजल संरक्षण की प्रणालियाँ पूरी तरह समाप्त हो गईं। शासन की कार्यप्रणाली अगर स्थानीय लोगों को जोड़कर काम नहीं करे तो उसका क्या परिणाम हो सकता है यह बात चकबंदी से हुए नुकसान ने जाहिर कर दी।'
पिछले डेढ़ दशक से यह पूरा इलाका पानी के लिये केवल मानसूनी बारिश पर निर्भर रह गया है। इसका सीधा असर फसलों की निरन्तरता पर पड़ा है। एक वक्त दलहन और तिलहन यहाँ की अहम फसल हुआ करती थीं लेकिन अरहर की फसल अब यहाँ से समाप्त हो चुकी है।
सरकारी योजना ने बदला फसल चक्र
पंकज बताते हैं कि इस इलाके में पारम्परिक रूप से अरहर, अलसी, चना, मसूर, कठिया गेहूँ, लाही और मटर आदि की फसल होती है। वह जोर देकर कहते हैं कि पारम्परिक रूप से यहाँ रबी की फसल हुआ करती थी लेकिन सरकार की योजनाओं ने यहाँ का फसल चक्र ही बदल दिया। कुछ तो पानी के संकट और कुछ सरकार के असन्तुलित प्रोत्साहन ने यहाँ के लोगों को इतना अधिक प्रेरित किया कि वे अब खरीफ की फसल बोने लगे हैं।
जलवायु परिवर्तन का दिखने लगा है असर
पिछले कुछ सालों के दौरान जलवायु परिवर्तन के चलते अल नीनो प्रभाव में काफी उछाल देखने को मिला है। पिछले 10-15 सालों के इतिहास पर नजर डालें तो इस पूरे इलाके में अतिवर्षा, अल्पवर्षा और असमय वर्षा के मामलों में तेज उछाल देखने को मिला है। इसके अलावा ओला, पाला और लपका आदि की घटनाएँ भी बढ़ी हैं। ओला और पाला से तो हम सभी वाकिफ हैं लेकिन लपका खासतौर पर अलसी की खेती को बुरी तरह प्रभावित करता है।
तालाब के लिये खरहा गाँव का चयन ही क्यों?
इसमें दो राय नहीं कि इस इलाके के लगभग सभी गाँव भयंकर भूजल संकट से जूझ रहे हैं। लेकिन केन नदी के उस पार जिन 15-20 गाँवों की हालत सबसे अधिक बुरी है उनमें यह गाँव खास अहमियत रखता है। खास इसलिये क्योंकि इस गाँव को इस पूरे जल संकट बेल्ट का प्रवेश द्वार माना जा सकता है।
केन नदी पार करने के बाद इस क्षेत्र में घुसने के लिये सबसे पहले इस गाँव में ही प्रवेश करना होता है। पुष्पेंद्र भाई बताते हैं कि एक जमाने में इस गाँव के प्रतिष्ठित किसान कामराज सिंह ने एकदम बंजर और अनुपजाऊ जमीन पर फसल उगाकर एक अद्भुत कार्य किया था। उनके बाद दूसरा साहस उनके बेटे पंकज सिंह ने दिखाया है। वह अच्छी खासी नौकरी छोड़कर यहाँ खेती के काम में शामिल होने आये हैं। पंकज का यह तालाब करीब डेढ़ बीघे में बनेगा।
तालाब से क्या होगा?
सबसे बड़ी बात किसानों को मानसिक शान्ति मिलेगी। वे निश्चिन्त होंगे कि हमारे पास सिंचाई के लिये पानी है। इसके अलावा अगर वहाँ के सब किसानों ने अपने-अपने खेतों में तालाब बना लिया तो इससे भूजल स्तर में सुधार देखने को मिलेगा। आप कह सकती हैं कि तालाबों का निर्माण, पानी के स्तर, पानी की गुणवत्ता, फसलों के उत्पादन आदि सभी में सुधार लाने में मदद करेगा। किसानों का पलायन रुकेगा। सही मायनों में प्रकृति के साथ सहअस्तित्त्व की शुरुआत होगी।
कौन हैं पंकज सिंह?
खहरा निवासी पंकज सिंह ने जब सरकार की सुरक्षित जिन्दगी और अच्छे ओहदे वाली सरकारी नौकरी छोड़कर गाँव वापसी का तय किया होगा तो उनके मन में पता नहीं क्या चल रहा होगा लेकिन अब वह अपने निर्णय से काफी प्रसन्न हैं। पंकज कहते हैं कि उनके 26 बीघा खेतों में से एक बड़े हिस्से पर बाग लगा हुआ है। फलदार वृक्षों से उनको अच्छी आय हो रही है। अब अगर तालाब का प्रयोग सफल हो जाता है तो वे सब्जियों समेत तमाम नकदी फसलों का प्रयोग यहाँ दोहराना चाहते हैं।
देखा जाये तो बड़ोखर खुर्द विकास खण्ड का यह गाँव एक अहम प्रयोग के दौर से गुजर रहा है। अगर यह सफल रहा तो जल संकट का पर्याय बन चुके बुन्देलखण्ड के अन्दर इसे और गम्भीर समस्या वाले बुन्देलखण्ड के लिये तालाब एक नई राह लेकर आएँगे।
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Post By: RuralWater