तैरता बिजलीघर

उत्तराखंड में पानी से बिजली उत्पादन की नई तकनीक का सफल प्रयोग किया गया है, जिसमें टरबाइन नदी की वेगवती धारा के बीच ही डाल दी जाती है।

प्रवासी भारतीय विक्रम बिट्‌ठल राजाध्यक्ष द्वारा अमेरिका में प्रोत्साहित की जा रही कंपनी डीएलजेड पावर प्राइवेट लिमिटेड उत्तराखंड की तेज बहाव वाली नदियों की ताकत (तेज धार) से ऊर्जा पैदा करने की अपनी कोशिशों में सफल होती नजर आ रही है। पिछले दिनों कंपनी की कोशिशों ने ऋषिकेश में जब अपनी सफलता का प्रकाश फैलाया तो प्रयास से जुड़े लोगों के साथ-साथ पर्यावरणविदों एवं प्रकृति प्रेमियों की खुशी का भी ठिकाना नहीं रहा। कंपनी के इस प्रयास ने बिजली उत्पादन के तरीकों को एक नया विकल्प दे दिया है।

एक तो यह तरीका पूरी तरह सुरक्षित है और फिर इसके लिए किसी बड़ी काट-छांट की जरूरत भी नहीं पड़ती। पहाड़ी नदियों की वेगवती धाराओं से बिजली उत्पादन का यह तरीका उत्तराखंड के लिए आने वाले दिनों में वरदान साबित हो सकता है।

न्यूदून कॉर्पोरेशन के एदिक लीमासरन्यूदून कॉर्पोरेशन के एदिक लीमासरबिजली उत्पादन का यह प्रयोग ऋषिकेश के पास चीला पावर हाउस की शक्ति नहर में हाइड्रो पावर इंजीनियर्स ने पहली बार सार्वजनिक तौर पर किया। इस क्रम में इंजीनियरों ने नहर में तैरती दो टरबाइनों से 25 किलोवाट बिजली पैदा की। इस तैरते हुए बिजलीघर की मदद से महज 15 मिनट में 25 किलोवाट बिजली उत्पादन के इस प्रयोग के प्रति लोगों में अतिउत्साह का भाव है। कंपनी ने इस अभिनव प्रयोग को अगले छह माह तक जारी रखने का निर्णय लिया है। कंपनी चाहती है कि पूरे क्षेत्र में ऐसे कई बिजली घर लगाए जाएं।

इस तकनीकी की खास बात यह है कि इसमें पानी को तेज गति से टरबाइन तक पहुंचाने के लिए उसे ऊंचाई से गिराने की व्यवस्था नहीं करनी पड़ती बल्कि वेगवती जलधारा जहां होती है वहीं टरबाइन को पहुंचा दिया जाता है। हालांकि दोनों ही मामलों में पानी की गतिज ऊर्जा का इस्तेमाल ही टरबाइन घुमाने के लिए किया जाता है लेकिन इस मामलें में इंजीनियर सर्वेक्षण कर ऐसे चिह्नित स्थान पर ही टरबाइन लगा देते हैं जहां पानी की गतिज ऊर्जा सर्वाधिक होती है। इस तैरते बिजलीघर का डिजाइन अमेरिकी व कनेडियाई इंजीनियरों ने किया है। प्रोजेक्ट इंजीनियर नितिन सिंघल बताते हैं कि इस परियोजना का काम आईसेट नेटवर्क इंजीनियरिंग प्राइवेट लिमिटेड को सौंपा गया है। नितिन मानते हैं, 'भारत जैसे देश में जहां हजारों नहरें हैं वहां बिजली उत्पादन के इस प्रयोग ने ऊर्जा उत्पादन का एक बेहद जगमग रास्ता बना दिया है। भारत की सदानीरा नदियां इस तरह से बिजली उत्पादन में सहायक बनकर हमारे लिए पहले के मुकाबले कहीं बड़ा वरदान साबित हो सकती हैं।'

इस प्रयोग में साढ़े चार टन की मशीन नदी की वेगवती जलधारा में स्थिर की गई। अपने प्रयोग में सफलता के बाद इस काम में लगे इंजीनियरों को भारी संतोष हुआ है। चीला की शक्ति नहर में पानी का वेग दो मीटर प्रति सेकेंड है। जल के इस वेग से पर्याप्त बिजली उत्पादित की जा सकती है। इंजीनियर मानते हैं कि इस शक्ति नहर में दो-दो सौ मीटर की दूरी पर ऐसे कई पावर हाउस लगाए जा सकते हैं। सब कुछ सही रहा तो अकेले शक्ति नहर से पांच मेगावाट बिजली का उत्पादन संभव है। यूं इस प्रयोग मे प्रयुक्त सभी मशीनें फिलहाल आयात की गई हैं। इन मशीनों को कनाडा की न्यू एनर्जी कॉर्पोरेशन ने डीएलजेड पावर कॉर्पोरेशन प्रा. लि. के सहयोग से डिजाइन कर बनाया है। न्यूदून कार्पोरेशन के एदिक लीमासर के अनुसार, 'नदी के भीतर टरबाइन स्थापित कर बिजली उत्पादन करने का यह अत्याधुनिक तरीका भारत को ही नहीं बल्कि पूरे विश्व को नई राह दिखाने में सहायक हो सकता है।'

पानी पर तैरते टरबाइनपानी पर तैरते टरबाइनआईसेट नेटवर्क इंजीनियरिंग कंपनी, जिसे इस परियोजना का काम दिया गया है, आईसेट नेटवर्क इंजीनियरिंग कंपनी के डीजीएम अंकुश कुमार के अनुसार इन टरबाइनों से उत्पादित बिजली को चीला पशुलोक फीडिंग से जोड़ा गया है। इससे जो बिजली मिल रही है वह बिजली के बैराज पावर हाउस सप्लाई में जोड़ दी जाएगी। टरबाइनों की कार्यप्रणाली के बारे में उनका कहना है कि इस तरीके से विद्युत उत्पादन पानी की गति पर निर्भर तो करेगा लेकिन नहर के जलस्तर में परिर्वतन के साथ ही दोनों टरबाइनों को जरूरत के हिसाब से स्थान परिवर्तन किया जा सकता है। फिलहाल यह टरबाइनें पानदून बेस पर टिकी हैं। हालांकि इतना तो है ही कि जलस्तर व जल धारा में कमी होने से बिजली का उत्पादन कम हो जाएगा। इंजीनियर बताते हैं कि ट्रायल पूरा हो जाने पर दून टरबाइनों को पैनल रूप में कंप्यूटरों से सिंक्रोनाइज करते हुए संचालित किया जाएगा। इस प्रयोग की सफलता से नदियों पर बनाए जाने वाले बड़े बांधों का बेहतर विकल्प मिलने की आस जगी है। उत्तराखंड जैसे राज्य में जहां कभी बिजली परियोजनाओं को लेकर तो कभी बड़े बांधों के निर्माण मामले पर साधु-संन्यासी आंदोलन पर बैठते हैं तो कभी पर्यावरणविद, वहां इस विकल्प ने लोगों में राहत की भावना भरी है।

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