स्वच्छ जल से सुरक्षा अभियान

 स्वच्छ पेयजल,बेहतर स्वास्थ्य
स्वच्छ पेयजल,बेहतर स्वास्थ्य

अच्छा जन-स्वास्थ्य और सामाजिक आर्थिक विकास, स्वच्छ पेयजल और बेहतर स्वच्छता सेवाओं के पहुंच पर निर्भर करता है। स्वच्छ पेयजल और स्वच्छता के महत्व को संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी 6) में भी शामिल किया गया है, जिसमें सुरक्षित पेयजल के लिए विशिष्ट लक्ष्य और मानक हैं। कई वर्षों से, नियमित जलापूर्ति करते समय पेयजल गुणवत्ता के मुद्दे. खासकर भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में, एक महत्वपूर्ण चुनौती के रूप में उभरे हैं।

ग्रामीण जल आपूर्ति का लगभग 85 प्रतिशत भूजल पर निर्भर है। जनसंख्या वृद्धि के कारण भोजन और पानी की बढ़ती मांग ने मौजूदा जल संसाधनों पर पर्याप्त मात्रा और निर्धारित गुणवत्ता की नियमित जल आपूर्ति प्रदान करने के लिए दबाव डाला है। इसके परिणामस्वरूप, आर्सेनिक, फ्लोराइड, आयरन, भारी धातु आदि जैसे भूगर्भीय प्रदूषक गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा करते हैं। आजकल भूगर्भीय और मानवजनित गतिविधियों के कारण भूजल की गुणवत्ता में गिरावट के बारे में चिंता बढ़ रही है। दूषित पानी और भारी धातुओं के लंबे समय तक सेवन से आर्सेनिक विषाक्तता, त्वचा, किडनी आदि का कैंसर हो सकता है और पीने के पानी के बैक्टीरियोलॉजिकल संदूषण से हैजा, पेचिश, दस्त, टाइफाइड, आदि जैसे रोग हो सकते हैं, जो मानव शरीर पर तत्काल प्रभाव डालते हैं। पानी की कमी के मुद्दों से निपटने और वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों के लिए भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में जल सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु भारत सरकार ने एक 'जल जीवन मिशन' कार्यक्रम शुरू किया, जिसका उद्देश्य न केवल ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त मात्रा और निर्धारित गुणवत्ता के पारिवारिक नल जल कनेक्शन प्रदान करना है बल्कि लोगों की भागीदारी के माध्यम से ग्राम पंचायतों द्वारा स्थानीय जल संसाधनों के समग्र प्रबंधन को बढ़ावा देने का भी प्रयास करना है। तब से, पेयजल एवं स्वच्छता विभाग (डीडीडब्ल्यूएस), राज्य सरकारों के साथ साझेदारी में, यह सुनिश्चित करने के लिए काम कर रहा है कि प्रत्येक परिवार को नियमित और दीर्घकालिक आधार पर पर्याप्त मात्रा और निर्धारित गुणवत्ता में नल का पानी मिले।

जेजेएम भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) द्वारा निर्धारित पर्याप्त मात्रा और अच्छी गुणवत्ता के पीने योग्य पानी की व्यवस्था पर जोर देता है। आईएस 10500:2012 को जल संसाधनों की गुणवत्ता का आकलन करने और संबंधित अधिकारियों द्वारा जल उपचार और आपूर्ति की प्रभावशीलता की जांच करने के उद्देश्य से तैयार किया गया है।

क - एक गुणवत्ता से प्रभावित सभी बसावटों, विशेष रूप से आर्सेनिक और फ्लोराइड संदूषण वाले क्षेत्रों में पानी की गुणवत्ता परीक्षण पर विशेष ध्यान देने के साथ 100% गांवों में प्रयोगशालाओं के माध्यम से रासायनिक और साथ ही जैविक संदूषण के लिए सभी पेयजल स्रोतों का परीक्षण;
ख -100% स्कूलों और आंगनवाड़ी केंद्रों में एफटीके और एच2एस शीशियों का उपयोग करके पानी की गुणवत्ता का परीक्षण और पारिवारिक स्तर पर प्रत्येक गांव में अवशिष्ट क्लोरीन, बैक्टीरियोलॉजिकल प्रदूषण के लिए कम से कम तीन नमूने और एफटीके परीक्षण के लिए प्रशिक्षित महिलाओं के माध्यम से अन्य मापदंडों के लिए:
ग - ऐसे सभी मामलों में त्वरित उपचारात्मक उपाय करने के लिए जहां एक जल स्रोत जिससे पाइप से जलापूर्ति दी जा रही है, या जहां पारिवारिक स्तर पर पानी की आपूर्ति दूषित पाई जाती है;
घ - जहां कहीं स्थानीय स्तर पर कीटाणुशोधन के माध्यम से उपचारात्मक कार्रवाई नहीं की जा सकती है, वहां अभियान अवधि के अंत तक सामुदायिक जल शोधन संयंत्रों की स्थापना, आदि जैसे उपयुक्त अस्थायी उपाय किए जाने चाहिए;
च - सुरक्षित स्रोत, जिसके माध्यम से पानी की आपूर्ति की जा रही है, के अलावा अन्य सभी दूषित स्रोतों को पीने के उद्देश्य के लिए उपयुक्त नहीं' के रूप में चिह्नित करना, और ऐसे स्रोतों की जेजेएम-आईएमआईएस पर भी जियोटैगिंग करना;
छ - एफटीके-एच2एस शीशियों का उपयोग करके पानी की गुणवत्ता के परीक्षण के लिए प्रत्येक गांव में कम से कम 5 महिलाओं की पहचान और प्रशिक्षण, जिसमें कम से कम एक आशा कार्यकर्ता और एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता शामिल;
ज - 100% गांवों में प्रमुख स्थानों अर्थात स्कूलों, ग्राम पंचायत भवनों, आंगनवाड़ी केंद्रों, स्वास्थ्य केंद्रों आदि में एफटीके, एच2एस शीशियों और बोर्ड पर प्रयोगशाला परीक्षण का उपयोग करके जल गुणवत्ता परीक्षण परिणामों का प्रदर्शन; तथा
झ - प्रयोगशाला के बुनियादी ढांचे में सुधार यानी जनशक्ति की उपलब्धता, प्रयोगशाला उपकरण, परीक्षण सामग्री और प्रयोगशालाओं की मान्यता।

जेजेएम-एकीकृत निगरानी सूचना प्रणाली (आईएमआईएस) के अनुसार, 55 लीटर प्रतिदिन (एलपीसीडी) के सेवा स्तर के साथ नल कनेक्शन वाले परिवारों के कवरेज में वर्धित परिवर्तन देखा गया जो 16.9 फीसदी से बढ़कर 53.8% हो गया है। इस संदर्भ में, गांवों में सुरक्षित पानी सुनिश्चित करने के लिए जल गुणवत्ता निगरानी और देखरेख (डब्ल्यूक्यूएमएस) महत्वपूर्ण हैं।

डब्ल्यूक्यूएमएस में प्रयोगशाला और जलस्रोतों और वितरण बिंदुओं से एकत्र किए गए पानी के नमूनों का क्षेत्र परीक्षण शामिल है, जबकि पानी की गुणवत्ता की निगरानी स्थानीय समुदाय द्वारा फील्ड परीक्षण किट (एफटीके) का उपयोग करके की जाती है। राज्यों को समुदाय के साथ जल गुणवत्ता निगरानी परिणामों को साझा करने के लिए भी प्रोत्साहित किया जाता है। प्रत्येक गांव से पांच महिलाओं की पहचान की जाती है, उन्हें प्रशिक्षित किया जाता है और उन्हें फील्ड टेस्टिंग किट (एफटीके) का उपयोग करने के लिए पानी की गुणवत्ता निगरानी के कार्य में लगाया जाता है। 2022-23 में, समुदाय द्वारा फील्ड टेस्टिंग किट का उपयोग करके 6.93 लाख से अधिक पानी की गुणवत्ता के नमूनों का परीक्षण किया गया है, जबकि 1.87 लाख नमूनों का परीक्षण ग्रामीण स्तर पर एक प्रयोगशाला में रासायनिक और बैक्टीरियोलॉजिकल दूषित दोनों के लिए किया गया है।

2 अक्टूबर 2022 को, डीडीडब्ल्यूएस, जल शक्ति मंत्री ने सूचना, शिक्षा और संचार (आईईसी), प्रशिक्षण गतिविधियों और जल स्रोतों और वितरण बिंदुओं पर दीर्घकालिक जल गुणवत्ता आश्वासन के लिए नागरिक विज्ञान दृष्टिकोण का उपयोग करते हुए ग्रामीणों की क्षमता निर्माण के माध्यम से लोगों के बीच पानी की गुणवत्ता की गंभीरता और महत्व के बारे में जागरूकता निर्माण पर ध्यान केंद्रित करते हुए 100 दिनों के जल गुणवत्ता अभियान "स्वच्छ जल से सुरक्षा" की घोषणा की। इस अभियान की अवधि 2 अक्टूबर, 2022 से 26 जनवरी, 2023 तक होगी। राज्यों को सभी हितधारकों अर्थात ग्राम पंचायत को सक्रिय रूप से शामिल करके अभियान की योजना बनाने और उसे लागू करने तथा निम्नलिखित उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए एक कार्यान्वयन रणनीति तैयार करने का निर्देश दिया गया है।

"स्वच्छ जल से सुरक्षा" अभियान के सफल क्रियान्वयन के लिए समयबद्ध तरीके से ठोस प्रयासों की आवश्यकता है। इससे पाइपगत जलापूर्ति योजना के माध्यम से आपूर्ति किए जा रहे पानी की गुणवत्ता के बारे में लोगों में आत्मविश्वास, मनोबल और जागरूकता बढ़ेगी। साथ ही, यह एक व्यापक विजन यानी 'जल प्रबुद्ध गांवों" को विकसित करने को साकार करने में मदद करेगा ताकि स्वच्छ पेयजल की कमी सामाजिक-आर्थिक विकास और उच्च आर्थिक विकास की हमारी खोज में एक सीमितकारी कारक न बन सके।

स्रोत : जल जीवन संवाद, अंक 25, अक्टूबर 2022

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