किसी दो पड़ोसी देशों के बीच हमेशा संवाद के कई पुल होने चाहिए। सिंधु जल संधि 1960 भारत और पाकिस्तान के बीच एक इसी तरह का पुल है, जहां पर भारत से निकलने वाली प्रमुख 7 नदियों के पानी का बंटवारा इस संधि के माध्यम से किया गया है। और इस बंटवारे में हमेशा से पाकिस्तान काफी फायदे की स्थिति में रहा है। क्योंकि इस संधि के तहत भारत से निकलने वाली सभी प्रमुख 7 नदियां जो सिंधु बेसिन का हिस्सा हैं उसका लगभग 80 फ़ीसदी पानी पाकिस्तान को मिलता है।
भारत में सिंधु जल संधि के अनुच्छेद 12 के तहत पाकिस्तान सरकार को एक नोटिस भेजा है। नोटिस भेजने का कारण यह है कि साल 2017 से लेकर और अभी तक स्थाई सिंधु आयोग के किसी भी बैठक में पाकिस्तानी प्रतिनिधि अपनी उपस्थिति नहीं दर्ज करा रहे हैं और भारत कई मुद्दों पर अब सिंधु जल संधि में संशोधन के लिए बात करना चाहता है। पाकिस्तान उसको बहुत अहमियत और तवज्जो नहीं दे रहा है। बजाय बात करने के तरह-तरह के दोषारोपण में लगा हुआ है। फिलहाल नोटिस के बाद से पाकिस्तान थोड़ा सा सावधान हुआ है और थोड़ा बैकफुट पर भी है। दोबारा सिंधु जल संधि आयोग में आने के लिए अपनी सहमति दी है।
भारत एवं पाकिस्तान के मध्य जल विवाद बंटवारे के समय से ही चला आ रहा है। वास्तव में जब बंटवारा हुआ तो भारत से निकलने वाली रावी एवं सतलुज नदियों के जल पर विवाद खड़ा हो गया था। ये नदियां भारत एवं पाकिस्तान दोनों देशों से होकर बहती है किस देश को कितनी मात्रा में पानी मिले इस बात को लेकर दोनों देशों में मतभेद थे। भारतीय उप महाद्वीप का उत्तर पश्चिमी क्षेत्र सिन्धु प्रदेश है। सिन्धु नदी विश्व की बड़ी नदियों में से एक है। इसका उद्गम तिब्बत में मानसरोवर के निकट है। यह भारत से होते हुए पाकिस्तान जाती है और अंत में कराची के निकट अरब सागर में मिल जाती है। भारतीय क्षेत्र में बहने वाली इसकी प्रमुख सहायक नदियां सतलुज, व्यास, रांची, चेनाब एवं झेलम है।
आजादी के तुरंत बाद भारत एवं पाकिस्तान के मध्य सिन्धु नदी के पानी के बंटवारे को लेकर विवाद प्रारम्भ हो गया। बंटवारे के बाद पहले वर्ष में भारत एवं पाकिस्तान के बीच इन्टर डोमिनियन अकोर्ड (Inter Dominion Accord of May 4, 1948) के अनुसार पानी का बँटवारा हुआ। पाकिस्तान इस मुद्दे को अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice) ले जाना चाहता था परन्तु भारत ने इसके लिए मना कर दिया जो इसे द्विपक्षीय समझौते द्वारा सुलझाना चाहता था।
सिन्धु जल संधि
भारत एवं पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता में सिन्धु नदी के जल के बंटवारे हेतु सन्धि पर 19 सितम्बर, 1960 को हस्ताक्षर किये गये। भारत की ओर से पूर्व प्रधानमंत्री स्व. पं. जवाहर लाल नेहरू एवं पाकिस्तान की ओर से पाकिस्तान के राष्ट्रपति मो. अय्यूब खान ने सन्धि पर हस्ताक्षर किये।
सन्धि के प्रावधान
सिन्धु नदी तंत्र में तीन पश्चिमी नदी सिन्धु, झेलम एवं चेनाब तथा तीन पूर्वी नदी सतलुज, व्यास एवं रावी शामिल हैं। सन्धि के अनुसार भारत का पूर्वी नदियों पर पाकिस्तान में प्रवेश करने तक पूर्ण अधिकार है। पश्चिमी नदियों पर पाकिस्तान का अधिकार है। इन नदियों पर भारत का अधिकार सीमित कर दिया गया है। भारत इन नदियों के पानी का प्रयोग केवल घरेलू उपयोग विशिष्ट कृषि उपयोग एवं जलविद्युत उत्पादन हेतु ही कर सकता है। सिन्धु जल सन्धि के तहत भारत की यह जिम्मेदारी है कि यह सिन्धु, झेलम एवं चेनाथ पर बनाई जाने वाली किसी भी बिजली परियोजना की पूरी जानकारी पाकिस्तान को दे। इसके अलावा सिन्धु झेलम एवं चेनाब से हर महीने पाकिस्तान की तरफ कितना पानी जाता है उसके बारे में पाकिस्तान को जानकारी थे। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए दोनों देशों ने एक सिन्धु जल आयोग बनाया हुआ है, जिसकी हर वर्ष बैठक होती है जिसमें सिन्धु जल सन्धि के बारे में सूचनाओं का आदान-प्रदान होता है एवं आपसी शिकायतें दूर करने का प्रयास किया जाता है।
आज भी मैं यही कहता हूँ जो पहले कहता था सबको हिन्दी सीखनी चाहिए
--------------चक्रवर्ती राजगोपालाचारी !
सोर्स- राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान रुड़की
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