सावन
रहीम जी ने कहा कि ‘रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून’ भारत में पानी सावन में आता है। अतः यह कहें कि ‘ऋतुवर सावन राखिए, विन सावन सब सून।’ सावन सूखा होने की बात सुनकर भारत के वित्त मंत्री को बुरे सपने आने लगते हैं। बसंत को ऋतुओं का राजा कहते समय लोग यह भूल जाते हैं कि वर्षा बिना बसन्त बहार नहीं आ सकती। जब पानी ही नहीं होगा तो कैसे पौधे पनपेंगे और कैसे उन पर फूल आएंगे। जल ही जीवन है और जल का स्रोत है वर्षा, करने वाले तर्क कर सकते हैं कि पृथ्वी पर जल की क्या कमी, 70 प्रतिशत धरती जल से ढकी है। पहाड़ बर्फ से ढके हैं। चारों और जल ही जल है, ये बचकानी बातें हैं। समुद्र का खारा जल हमारी प्यास बुझाने के बजाय और जगा देता है। पृथ्वी पर उपलब्ध जल का मात्र एक प्रतिशत जल ही जीवों के उपयोग का है। उस एक प्रतिशत को भी हम पूरा रोक नहीं पाते, बहकर पुनः समुद्र से जा मिलता है। जो बचता है उसे भी हम गंदा कर बाहर बहा देते हैं। उस गंदे जल को शुद्ध कर हमें लौटाती है वर्षा।
परोपकारी सूर्य
दो कप चाय बनाने के लिए गर्म पानी करते समय भी चिन्ता करते हैं कि कहीं गैस अधिक नहीं जल जावे। कल्पना करिए कि आपको अपनी आवश्यकता का जल वाष्पन द्वारा शुद्ध करना होता तो कितना बिल आता? मगर सूर्य पूरी पृथ्वी वासियों के लिए जल को शत प्रतिशत शुद्ध कर देता है। पानी की एक बोतल का भाव आपको मालूम है, मगर सूर्य है कि बिल की बात ही नहीं करता। जो जल बह कर हिंद महासागर या अरब सागर में जा गिरता है उसे पुनः हिमालय तक पहुंचाने का कार्य भी सूर्य ही करता है। सूर्य के आदेश पर पानी भरकर बादल दौड़े चले आते हैं। डीजल के भाव बढ़ते ही माल भाड़ा बढ़ जाता है। सूर्य जल के परिवहन का बिल कभी प्रस्तुत नहीं करता।
सूर्य हमारे लिए पानी शुद्ध करने के लिए तपता है। बादलों के रूप में एकत्रित जल को सुदूर दक्षिण से ठीक उत्तर तक खींच लाने के लिए सूर्य तपता है मगर हम उसकी प्रशंसा में एक शब्द भी नहीं कहते । तपने के लिए उसकी निंदा और करने लगते हैं। सूर्य प्रशंसा या निन्दा की परवाह नहीं करता। सूर्य तटस्थ भाव से अपना कार्य करता रहता है। सूर्य की परोपकारिता से प्रभावित हो, कुछ लोग उस देवता कहते हैं तो कुछ अन्य लोगों को यह भी पसंद नहीं आता। अन्धविश्वासी कह कर उनकी ही आलोचना करने लगते हैं।
असंख्य बार पीया एक ही पानी
हमारे एक मित्र प्यासे थे। तभी उन्हें गिलास में रखा कुछ पानी दिख गया। मित्र ने पूछा यह जूठा तो नहीं है, हमने कहा तुम जूठे की बात करते हो? इस जल को पहले असंख्य बार पीया जा चुका है। पृथ्वी का एक प्रतिशत जल का ही उपयोग हम बार-बार करते हैं। कांच के गिलास को काम में लेकर धो कर रख देते हैं। उस गिलास से पहले कितनों ने पानी पीया उसका कोई हिसाब नहीं होता। ठीक वैसे ही जल की किसी मात्रा को पहले कितने जंतु, पौधे या लोग पी चुके हैं, इसका कोई हिसाब नहीं है।
वाष्पन
गर्मी पाकर पानी के अणु हवा पर सवार हो जाते हैं। इसे हम वाष्पन कहते हैं। गर्मी की उपलब्धता बढ़ने के साथ वाष्पन की गति बढ़ती जाती है। पानी के अणु एकल होते हैं तो उन्हें उठाए रखने में हवा को कोई परेशानी नहीं होती है। जलयुक्त हवा ऊपर उठ कर ठण्डी हो जाती है तो पानी के अणु आपस में चिपक कर सूक्ष्म बूंदों में बदलने लगते हैं। यहीं बादलों की उत्पत्ति होती है। बादलों की आपसी रगड़ से उनमें धन या ऋण आवेश पैदा हो जाता है। विपरीत आवेश के बादल पास में आने पर ऋण आवेश छलांग लगा कर एक बादल से दूसरे में जाता है तो मार्ग चमकता है, गर्जन पैदा होती है।
एलनिनो करे परेशान
बूंदे आपस में जुड़ कर बड़ा आकार ग्रहण करती हैं तो हवा उन्हें उठा नहीं पाती और वे गुरुत्व बल के कारण पृथ्वी की सतह पर गिरने लगती हैं। इसे ही वर्षा कहते हैं। वातावरण का तापक्रम शून्य से कम होने पर बूंदे बर्फ में बदल जाती हैं तब उसे हिमपात कहते हैं। नमी युक्त हवा के आकाश में बहुत ऊपर उठने पर वहां के निम्न तापक्रम के कारण जल बर्फ की गेंदों में बदल जाता है। इनके गिरने को ओलावृष्टि कहा जाता है। जब बादल में उपस्थित सम्पूर्ण जल कुछ ही समय में किसी स्थान पर गिरता है तो उसे बादल फटना कहते हैं। अचानक बहुत अधिक मात्रा में पानी आने से बाढ़ आ जाती है।
मानसून
वर्षा लाने वाली हवाएं मौसम विशेष में ही बनती हैं, इस कारण इन्हें मानसून कहते हैं भारत में दक्षिणी-पश्चिमी मानसून सर्वत्र वर्षा करता है। प्रतिवर्ष किसी भी स्थान पर वर्षा एक समान नहीं होती। मानसून पर ही अधिकांश कृषि निर्भर करती है अतः मानसून का पूर्वानुमान लगाने का प्रयास अति प्राचीन काल से ही होता रहा हैं। वैज्ञानिक उपकरणों के प्रचुर प्रयोग के कारण सटीक भविष्यवाणी संभव हो गई है। पेरू के समुद्री तट के पास जल की गर्म पट्टियां बनने से उत्पन्न एलनिनो प्रभाव भारतीय मानसून पर विपरीत प्रभाव डालता है।
बहे मंद-मंद- वर्षा की गंध
वर्षा की अपनी गंध होती है। लम्बी गर्मी के बाद जब वर्षा की बूंदें धरती पर गिरती हैं तो पूरा वातावरण एक विशेष प्रकार की महक से भर जाता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि वर्षा की गंध कई क्रियाओं का मिला-जुला प्रभाव होता है। भूमि में पाए जाने वाले जीवाणु एक्टिनोमाइसीट एक सुगधिंत पदार्थ जिओस्मिन बनाते हैं। जब वर्षा का पानी गर्म रेत में जाता है तो वाष्प बन कर उड़ने लगता है। यह जलवाष्प जिओस्मिन के अणुओं को भी अपने साथ ले उड़ती है। जिओस्मिन के प्रति हमारी संवेदनशीलता बहुत अधिक होती है। जिओस्मिन की अत्यन्त कम मात्रा भी वातावरण को महका देती है। जब तेज गर्मी पड़ती है और भूमि में जल की कमी होने लगती है तो उस विपरीत स्थित से निपटने हेतु पादप अपनी जड़ों से कुछ तेल स्रावित करते हैं। वर्षा आने पर ये भी वातावरण में आ जाते हैं, वर्षा आने के पूर्व ही वातावरण कुछ अलग गंध बिखेरने लगता है। वर्षा पूर्व की गंध का कारण ओजोन गैस होती है। वही ओजोन जो वायुमण्डल के ऊपरी भाग में रह कर सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों से हमारी रक्षा करती है। वही ओजोन, जिसकी वातावरण में बढ़ती मात्रा दिल्ली वालों के लिए खतरा बनती जा रही है। वर्षा से पूर्व वातावरण में फैले कुछ आवेशित ओजोन कण अन्य प्रकार की गंध को नष्ट करने के साथ स्वयं की गंध बिखेरते हैं।
पृथ्वी को लील रही है अम्लीय वर्षा
वर्षा पर पृथ्वी का ही एकाधिकार नहीं है। हमारे अपने सौर मण्डल में शुक्र ग्रह पर भी वर्षा होती है। मगर वहां जल के स्थान पर गंधक का अम्ल बरसता है। ऐसा शुक्र के वायुमंडल में गंधक के आक्साइडों की अधिकता के कारण होता है। पृथ्वी के कई भागों में भी अम्लीय वर्षा होती है। वर्षा जल में अम्ल की मात्रा वहां के वायुमंडल के प्रदूषित होने की मात्रा पर निर्भर करता है। कहीं-कहीं सान्द्र गंधक के अम्ल के बरसने से बाहर सूखते कपड़ों के जलने के साथ ही मानव व जंतुओं के घायल होने की घटनाएं हो चुकी हैं। अम्लीय वर्षा वर्तमान की एक बड़ी पर्यावरण परेशानी बन गई है। जल में बढ़ती अम्लता जलीय जीवों को लील रही हैं। भूमि की बढ़ती अम्लता खेती व वनों को नष्ट कर रही है। ऐसे में मानव व जन्तुओं का प्रभावित होना स्वाभाविक है। भवनों व अन्य संरचनाओं को नुकसान होने के साथ ताजमहल जैसे ऐतिहासिक स्मारक भी अम्लीय वर्षा के शिकार हो सकते हैं।
‘वर्षा की अपनी गंध होती है। लम्बी गर्मी के बाद जब वर्षा की बूंदें धरती पर गिरती हैं तो पूरा वातावरण एक विशेष प्रकार की महक से भर जाता है। | वैज्ञानिकों का कहना है कि वर्षा की गंध कई क्रियाओं का मिला-जुला प्रभाव होता है। भूमि में पाए जाने वाले जीवाणु एक्टीनोमाइसीट एक सुगधिंत पदार्थ जिओस्मिन बनाते हैं। जब वर्षा का पानी गर्म रेत में जाता है तो वाष्प बन कर उड़ने लगता है। यह जलवाष्प जिओस्मिन के अणुओं को भी अपने साथ ले उड़ती है। जिओस्मिन के प्रति हमारी संवेदनशीलता बहुत अधिक होती है। जिओस्मिन की अत्यन्त कम मात्रा भी वातावरण को महका देती है।’
कुछ अम्ल वातावरण में स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होता है। प्राकृतिक अम्ल अधिक हानि नहीं पहुंचाता। अम्लीय वर्षा का कारण मानव निर्मित परिस्थितियां हैं। कोयले व पेट्रोलियम पदार्थों के जलाने पर कार्बन, गंधक व नाइट्रोजन के ऑक्साइड बनते हैं। ये ऑक्साइड जल में घुल कर अम्ल बनाते है जो वर्षा के जल के साथ भूमि पर आता है। यह अम्लीय वर्षा है। अब तक यह औद्योगिकी में विकसित देशों या उनके पड़ोसियों की परेशानी थी। अब भारत जैसे विकासमान देश भी इसकी गिरफ्त में आने को हैं। यदि नियंत्रित नहीं किया गया तो अम्लीय वर्षा पृथ्वी के सम्पूर्ण वातावरण को चौपट करने की क्षमता रखती है। अम्लीय वर्षा की उत्पत्ति के लिए हम सब जिम्मेदार हैं। परिवहन के साधनों का जितना अधिक उपयोग होगा उतना ही जैविक ईंधन का उपयोग होगा। स्पष्ट है कि ऊर्जा का संरक्षण ही अम्लीय वर्षा को रोकने का एकमात्र उपाय है पैदल चलकर, व्यक्तिगत के स्थान पर सार्वजिक वाहनों का उपयोग करके, पदार्थों का पुनर्चक्रण कर हम अम्लीय वर्षा को रोकने में मददगार बन सकते हैं। वृक्षारोपण करें तो सोने में सुहागा होगा।
मेंढक, मछली व केंचुए भी बरसते हैं
आकाश से केवल पानी ही नहीं बरसता कई बार वर्षा के पानी के साथ मेंढक, मछली व केंचुए भी बरसते हैं। मेंढक तो अलवणीय जल में रहते हैं, मगर बरसने वाली मछलियां भी समुद्री नहीं होकर अलवणीय जल की पाई गई हैं। मछलियां व मेंढक किसी स्थान से कैसे ऊपर पहुंचते हैं, इस विषय में अभी तक संतोषजनक स्पष्टीकरण नहीं है। चक्रवात में मोटर वाहनों को उड़ा ले जाने की ताकत होती है। 2012 में अमेरिका में 2 वर्ष की लड़की तूफान में उड़ गई जो लगभग 10 मी दूर सुरक्षित पाई गई।
भारत में केरल व लंका में कई बार लाल वर्षा हो चुकी है। लंका में हुई लाल वर्षा का कारण एक सूक्ष्म एक कोशीय शैवाल ट्रेकेलोमोनॉस को बताया गया है। ट्रेकेलोमोनॉस के कवच में लोह युक्त लाल वर्णक पाया जाता है। केरल में कई बार हुई लाल वर्षा ने विश्व विज्ञान जगत में बहुत हलचल उत्पन्न की। पानी के साथ बरसी सूक्ष्म लाल रचनाओं को देखकर खूनी वर्षा की उपमा दी गई। कुछ वैज्ञानिकों का मानना था कि वे बरसने वाले लाल कण पृथ्वी पर नहीं पाए जाते। इनको पृथ्वी के बाहर आया जीवन घोषित कर दिया था। सूक्ष्म कोशिकाओं में केन्द्रक अनुपस्थित था। ये कोशिकाएं उच्च ताप व उच्च दाब पर जनन कर संख्या में वृद्धि कर सकती थीं।
लाल वर्षा की घटना को आधार बनाकर लिखी गई विज्ञान कथा पर राहुल सदाशिवन के निर्देशन में बनी मलयालम फिल्म को बहुत सराहना प्राप्त हुई थी। बाद में भारत सरकार के तीन विभागों ने उच्च स्तरीय अनुसंधान कर पता किया कि वर्षा के साथ आई लाल सूक्ष्म रचनाएं ट्रेन्टेपोहलिआ नामक शैवाल के बीजाणु थे। ट्रेन्टेपोहलिआ शैवाल कवक के साथ मिल कर सहजीवी संरचना लाईकन बनाती हैं ये लाईकन उस क्षेत्र के वृक्षों की छाल व नम भूमि पर बहुतायत से पाए जाते हैं।
जब हुई दूधिया वर्षा
अमेरिका के वाशिंगटन सहित लगभग 15 शहरों पर दूधिया रंग की वर्षा हुई। कारों व घरों की खिड़कियों पर चाक जैसी श्वेत चूर्ण की पर्त चढ़ गई। किसी देवी देवता को इसका श्रेय दिया या नहीं, मगर चारों ओर घबराहट व्याप्त हो गई। इसके कुछ माह बाद वाशिंगटन स्टेट विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने दूधिया वर्षा के रहस्य को सुलझाने का दावा किया था। रासायनिक विश्लेषण व अन्य जानकारियां जुटाकर वैज्ञानिकों ने बताया कि लगभग 750 मील दूर स्थित एक सूखी झील की मिट्टी उड़कर वर्षा जल के साथ मिलने से दूधिया वर्षा हुई थी। कुछ वर्ष पूर्व मेक्सिको में भी ऐसी घटना हुई थी।
और अंत में
विश्व में सर्वाधिक वर्षा वाला क्षेत्र भारत का मेघालय अर्थात बादलों का घर है मेघालय के मासिनराम व चेरापूंजी में सर्वाधिक वार्षिक वर्षा होती है। एक वर्ष में 460 इंच तक वर्षा हो जाती है। विडम्बना यह है कि यह वर्षा मानसून सत्र में ही होती है। वर्ष के शेष माह में यहां भी पानी की किल्लत बनी रहती है। आने वाले समय में वर्षा की मात्रा बढ़ने की संभावना है। वैश्विक ऊष्मायन के कारण पृथ्वी का औसत तापक्रम बढ़ रहा है। एक डिग्री तापक्रम बढ़ने से वायुमंडल की जल धारण क्षमता में 7 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो जाती है। हवा में अधिक पानी होगा तो
बरसेगा भी अधिक। अतः आने वाले समय में बाढ़ आने के खतरे में बढ़ोत्तरी की संभावना है।
संपर्क करें: विष्णुप्रसाद चतुर्वेदी, 2 तिलक नगर, पाली, राजस्थान - 306401
स्रोत - जल चेतना, खण्ड 9, अंक 1 जनवरी 2020
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