नरेन्द्र मोदी इस माह के मध्य तक ‘स्वच्छ गंगा’ कार्य योजना पर काम की शुरुआत कर सकते हैं।
जल संसाधन मंत्रालय ने गंगा के 2525 किलोमीटर के क्षेत्र को पाँच पट्टियों में बाँटा है, जो कई राज्यों- उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड और पश्चिम बंगाल के तहत आती हैं। शुरुआती चरण की गतिविधियों के लिये सार्वजनिक क्षेत्र के केन्द्रीय उपक्रमों को हिस्से आवंटित किये गए हैं। शुरुआती स्तर की इन गतिविधियों में घाटों पर सार्वजनिक शौचालयों की मरम्मत, आधुनिकीकरण एवं व्यवस्था के साथ-साथ नदी के किनारे बसे गाँवों में सीधे प्रवाहित किये जाने वाले दूषित जल के शोधन, शमशान घाट की मरम्मत, नवीकरण एवं निर्माण का काम शामिल है। सत्ताधारी भाजपा के चुनाव पूर्व के वादे के अनुरूप प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस माह के मध्य तक ‘स्वच्छ गंगा’ कार्य योजना पर काम की शुरुआत कर सकते हैं। यह जानकारी आधिकारिक सूत्रों ने दी है।
महत्त्वाकांक्षी ‘नमामि गंगे’ कार्यक्रम से जुड़े शुरुआती काम तो पहले ही चल रहे हैं, वहीं नदी को कचरे से मुक्त करवाने और इसके मुक्त प्रवाह को सुनिश्चित करवाने पर आधारित समग्र कार्य योजना का क्रियान्वयन 15 मई से शुरू होने की सम्भावना है।
इस महत्त्वाकांक्षी कार्यक्रम का क्रियान्वयन करने वाला जल संसाधन मंत्रालय गंगा की सफाई के अभियान के पहले चरण के पूरा होने के अवसर पर इस साल अक्टूबर में आयोजित किये जाने वाले समारोह में भी प्रधानमंत्री मोदी को आमंत्रित कर सकता है।
सूत्र ने कहा, “कई स्थानों पर नदी के साथ-साथ शुरुआती चरण की गतिविधियाँ चल रही हैं लेकिन समग्र कार्य योजना का क्रियान्वयन 15 मई के आसपास शुरू होगा। सरकार जुलाई 2018 तक नदी को साफ करने का इरादा रखती है।” सूत्रों ने कहा कि गंगा के घाटों समेत मौजूदा अवसंरचना और उनके क्षमता उपयोग की स्थिति के आकलन के लिये लाये गए केन्द्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों ने अपने अध्ययन पूरे कर लिये हैं।
केन्द्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों- इंजीनियर्स इण्डिया लिमिटेड, नेशनल बिल्डिंग्स कंस्ट्रक्शन कारपोरेशन, डब्ल्यूएपीसीओएस लिमिटेड, नेशनल प्रोजेक्ट्स कंस्ट्रक्शन कॉरपोरेशन लिमिटेड और इंजीनियरिंग प्रोजेक्ट्स इण्डिया लिमिटेड को सरकार ने इस काम में शामिल किया है। उन्होंने कहा कि ये केन्द्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम गंगा की मुख्य धारा की सतह की सफाई मानसून के बाद शुरू करेंगे और परियोजना के पहले चरण के तहत किये गए कामों का प्रभाव इस साल अक्टूबर में नजर आएगा।
उन्होंने कहा, यदि गंगा की सतह को हम अभी साफ कर देते हैं तो वह मानसून के दौरान दोबारा गन्दी हो जाएगी। इसलिये उचित यही है कि काम मानसून के बाद ही शुरू किया जाये ताकि सतह की सफाई का काम दोहराना न पड़े।
सूत्रों ने कहा कि दूषित जल शोधन संयंत्र स्थापित करने की निविदा सम्बन्धी प्रक्रिया के पूरा होने में कुछ समय लगेगा। गंगा के तट पर बसे 118 शहरों में ऐसे संयंत्र लगाने का यह काम इस परियोजना के तहत आने वाली मध्यम स्तर की गतिविधि है। निविदा सम्बन्धी प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद संयंत्रों के निर्माण में लगभग एक साल का वक्त लगेगा।
सूत्रों ने कहा, ‘यह एक बड़ा काम है। इसलिये हम चाहते हैं कि बोली लगाने के लिये ऐसे लोग आगे आएँ, जो गुणवत्तापूर्ण काम करके दें और जिन्हें अपनी छवि की चिन्ता हो।’ उन्होंने कहा कि सरकार अन्तरराष्ट्रीय सहयोग लेने की भी कोशिश कर रही है और उसने नदी किनारे बसे ग्रामीणों से भी कहा है कि वे इस दिशा में योगदान करें।
उन्होंने कहा, हाल ही में हमने जर्मन सरकार की एजेंसी के साथ एक समझौता किया है ताकि राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर सहयोग उपलब्ध करवाकर विभिन्न रुखों को इस कार्यक्रम के क्रियान्वयन में शामिल किया जा सके विशेषकर उत्तराखण्ड के लिये। इस समझौते के तहत दोनों पक्ष तकनीकी जानकारी, सूचना प्रबन्धन, जन सम्पर्क एवं संचार को साझा करेंगे। जल संसाधन मंत्रालय ने गंगा के 2525 किलोमीटर के क्षेत्र को पाँच पट्टियों में बाँटा है, जो कई राज्यों- उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड और पश्चिम बंगाल के तहत आती हैं। शुरुआती चरण की गतिविधियों के लिये सार्वजनिक क्षेत्र के केन्द्रीय उपक्रमों को हिस्से आवंटित किये गए हैं।
शुरुआती स्तर की इन गतिविधियों में घाटों पर सार्वजनिक शौचालयों की मरम्मत, आधुनिकीकरण एवं व्यवस्था के साथ-साथ नदी के किनारे बसे गाँवों में सीधे प्रवाहित किये जाने वाले दूषित जल के शोधन, शमशान घाट की मरम्मत, नवीकरण एवं निर्माण का काम शामिल है। इसके अलावा ग्रामीण इलाकों में जैव शौचालयों की स्थापना और जैविक तरीकों से दूषित जल शोधन का काम भी इन गतिविधियों में शामिल है।
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Post By: RuralWater