स्वास्थ्य के दिशा-निर्देशक : हमारे संस्कार

माघ, बैसाख एवं कार्तिक के महीने में स्नान कर सूर्य की पूजा करना प्राचीन संस्कार का हिस्सा है। इन महीनों में कैल्शियम की अच्छी मात्रा खाने के लिए उड़द की दाल और तिल खाते हैं। एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन कहता है कि कैल्शियम की गोली बिना विटामिन डी की गोली के नहीं दी जानी चाहिए। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अब यह भी कहा है कि हफ्ते में एक बार 60 मिलीग्राम की आयरन की गोली जरूर खानी चाहिए। एक सप्ताह में एक दिन व्रत करने के विधान का मतलब है एक दिन अनाज नहीं खाना।

हम अपने संस्कारों, पूजा विधियों और विश्व स्वास्थ्य संगठन की गाइडलाइंस पर गौर करें तो वे बहुत मिलते-जुलते लगेंगे। हम उन संस्कारों को भूल गए हैं लेकिन सही बात यह है कि वे स्वास्थ्य के अच्छे बाइबिल हैं, इन साइक्लोपीडिया हैं। हमारे संस्कार हमें प्रकृति के करीब लाने वाले हैं। हम प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं और उसी का परिणाम है कि हम लगातार जानलेवा रोगों के जाल में फंसते जा रहे हैं। अगर हम स्वास्थ्य चाहते हैं तो हमें फिर से पुरानी परंपराओं में छिपे स्वास्थ्य के मंत्रों को अपने जीवन में उतारना होगा। बानगी देखें!

पूजा पाठ के अवसर पर अब घरों में हवन होने लगभग बंद हो गए। यही वजह है कि आज मलेरिया और डेंगू का प्रकोप लगातार बढ़ रहा है। हर घर में फिर से हवन की प्रथा शुरू हो जाए तो इस रोग का प्रकोप निश्चित रूप से बहुत हद तक कम हो जाएगा। अगर घर में हवन होते रहें तो वहां मच्छर नहीं आएंगे। हवन में काम आने वाली सामग्रियों की खासियत यह होती है कि उनके निकले धुएं से न तो अस्थमा बढ़ता है, न ही होता है।

हवन वातावरण शुद्ध होता है न कि प्रदूषित। हवन को अगर हम अपने संस्कारों का केंद्र मानें तो कह सकते हैं कि हवन में सारे को भस्म करने या उन्हें भगाने की ताकत है। यह हमारे संस्कार में शामिल था कि शाम का खाना सोने से 3 घंटे पहले खा लेना चाहिए लेकिन अब हम उसे भूलकर देर रात को खाना खाने लगे हैं। आज यह एसिडिटी (अम्लता) की सबसे बड़ी देन बन रही है। खाने-पीने को लेकर हमारे जो संस्कार बने थे, वे स्वास्थ्य के हिसाब से बनाए गए थे। वे संस्कार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं।

बल्कि आधुनिक स्वास्थ्य विज्ञान भी उन्हीं संस्कारों की तरफ संकेत कर रहे हैं। परंपरा को देखें तो घर में किसी अतिथि के आने पर हम उनका स्वागत गुड़-चने से करते थे। अगर हम आयरन की कमी से बचना चाहते हैं तो हफ्ते में एक दिन हमें गुड़ चने का सेवन करना चाहिए। संतोषी मां की पूजा में गुड़ चना चढ़ाते हैं। यह पूजा सिर्फ महिलाएं करती हैं। हम सभी जानते हैं कि महिलाएं एनिमिया (खून की कमी) की शिकार रहती हैं। आज एनीमिया का इलाज है आयरन की गोली खाना है।

माघ, बैसाख एवं कार्तिक के महीने में स्नान कर सूर्य की पूजा करना प्राचीन संस्कार का हिस्सा है। इन महीनों में कैल्शियम की अच्छी मात्रा खाने के लिए उड़द की दाल और तिल खाते हैं। एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन कहता है कि कैल्शियम की गोली बिना विटामिन डी की गोली के नहीं दी जानी चाहिए।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अब यह भी कहा है कि हफ्ते में एक बार 60 मिलीग्राम की आयरन की गोली जरूर खानी चाहिए। एक सप्ताह में एक दिन व्रत करने के विधान का मतलब है एक दिन अनाज नहीं खाना। हर दिन अनाज खाते रहना स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं होता है। आधुनिक स्वास्थ्य विज्ञान भी कहता है रोज कार्बोहाइड्रेट, चीनी, चावल, मैदा खाने से डायबिटीज, मधुमेह, उच्च रक्तचाप और हृदय रोग बढ़ रहे हैं।

हमारी परंपरा में खान-पान संबंधी उपवास के साथ ही मन के उपवास पर भी जोर दिया गया है। मन के उपवास का मतलब है अच्छा सोचो, अच्छा करो, अच्छा लिखो। राजसी और तामसी भोजन से दूर रहो। आधुनिक स्वास्थ्य विज्ञान ने भी मान लिया है कि अवसाद (डिप्रेशन) से बचने के लिए अच्छी जीवनशैली अपनानी चाहिए। हमारे संस्कार हमें तमाम तरह की बीमारियों से बचाते हैं।

हर दो महीने में ऋतु बदलती है और हर महीने मास बदलता है। हमारे संस्कार कहते है कि हमें इस परिवर्तन के हिसाब से अपने खान-पान को तय करना चाहिए। जैसे अभी फाल्गुन शुरू हो गया है इसलिए नमक और खट्टा कम खाना चाहिए पूर्णिमा के दिन रक्तचाप ऊपर नीचे होता है, गुस्सा बढ़ता है। इसका ध्यान रखें तो हम इस स्थिति के दुष्प्रभाव से बच सकते हैं।

मौसम के अनुसार पूजा में जो प्रसाद खाया जाता है वह भी स्वास्थ्य को ध्यान में रख कर बना था। जिस अन्न या फल का दान दिया जाता है उसमें यह पाठ छिपा है कि उन्हें खाओ लेकिन कम खाओ। माघ में तिल की पूजा होती है, तिल का दान दिया जाता है। इसलिए हम तिल खाते जरूर हैं लेकिन उसे कम मात्रा में खाना चाहिए। जो फल हमें पेड़ों में मिलते हैं उसमें कोलेस्ट्रॉल नहीं होता। इसलिए फल भगवान को चढ़ाते हैं और प्रसाद के रूप में खाते हैं।

कहने की जरूरत नहीं कि फलों को स्वास्थ्य के लिए सबसे अधिक जरूरी माना गया है। जो चीजें भगवान को भोग में नहीं लगाया जाता उन्हें भी मत खाओ तो अच्छा। भगवान को मूली नही चढ़ाते, इसलिए मूली कम खानी चाहिए। जो चीजें जमीन के नीचे से आती है उन्हें हम भगवान को नहीं चढ़ाते। उन्हें भी कम ही खाएं तो अच्छा है। यही संस्कार या जीवन-पद्धति स्वस्थ रहने की होती है।

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