स्वामी आत्माबोधानंद निर्मल गंगा के लिए 3 मई से त्यागेंगे जल

 

स्वामी आत्मबोधानंद को हरिद्वार के मातृ सदन में अनशन पर बैठे 180 दिनों से ज्यादा समय हो गया है। गंगा के लिये, गंगा का एक और पुत्र अपनी कुर्बानी देने के लिये तैयार है। सरकार की तरफ से कोई जवाब न मिलने पर आत्माबोधानंद ने जल त्यागने की घोषणा कर दी है। पहले आत्माबोधानंद ने घोषणा की थी कि वो 27 अप्रैल से जल त्यागेंगे। लेकिन जब नेशनल मिशन फाॅर क्लीन गंगा के निदेशक राजीव रंजन ने उनसे मुलाकात की तो ये मियाद 3 मई कर दी गई है।

देश भर के पर्यावरणविद गंगा को लेकर परेशान हैं। गंगा को बचान के लिये साधु-संत अपने प्राण दे रहे हैं और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पास उनसे बात करने लिये समय ही नहीं है। जब प्रोफेसर जीडी अग्रवाल अनशन पर थे तब उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को तीन बार गंगा के लिये पत्र भी लिखा था। जीडी अग्रवाल ने उनको गंगा के प्रति उनका वायदा याद दिलाया था। लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पास न तब समय था और न अब समय है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तब जीडी अग्रवाल के एक भी पत्र का जवाब नहीं दिया था और 111 दिन अनशन पर रहने के बाद उनका निधन हो गया था।

गंगा को लेकर सरकार का रवैया 

अब स्वामी आत्माबोधानंद भी अपने गुरु की राह पर गंगा के लिये 180 दिन से अनशन पर हैं। स्वामी आत्माबोधानंद की अभी तक किसी भी नेता ने सुध नहीं ली है। 19 अप्रैल 2019 को स्वामी आत्माबोधानंद ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को 9 पन्ने का एक लंबा पत्र लिखा। इसमें उन्होंने गंगा को निर्मल करले के लिये अपनी मांगें लिखीं और 25 अप्रैल 2019 तक पूरा न किये जाने पर 27 अप्रैल से जल त्यागने का ऐलान किया था। उसके बाद स्वच्छ गंगा मिशन के अधिकारी स्वामी आत्माबोधानंद से मिले और आश्वसान दिया कि उनकी मांगो को पूरा किया जायेगा। जिसके बाद स्वामी आत्माबोधानंद ने जल त्यागने की तारीख अब 3 मई 2019 कर दी है। नरेन्द्र मोदी सरकार को अब स्वामी आत्माबोधानंद ने 2 मई से पहले का समय दिया है।

नमामि गंगे आदेश 23 अप्रैल से पुनः प्रभाव में 

एनएमसीजी के महानिदेशक राजीव रंजन ने बताया कि उन्होंने स्वामी शिवानंद और आत्मबोधानंद से बात की। जिसमे उन्हे बताया गया कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से रायवाला से भोगपुर तक गंगा के पांच किमी दायरे में चल रहे स्टोन क्रशर को बंद करने और गंगा में किसी भी तरह का खनन रोकने संबंधी नमामि गंगे का आदेश फिर से प्रभावी हो गया है। सीपीसीबी ने ये आदेश 24 अगस्त 2017 को नैनीताल हाईकोर्ट के निर्देश पर दिया था। तब रायवाला से भोगपुर तक गंगा के पांच किमी दायरे में आने वाले सभी 42 स्टोन क्रशर को प्रशासन ने बंद करा दिया था। जिसे बाद में राज्य सरकार और सीपीसीबी के अन्य आदेशों के चलते नमामि गंगे के मूल आदेश को दरकिनार कर धीरे-धीरे सभी स्टोन क्रशर चालू कर दिये। जिस पर मातृ सदन लगातार आपत्ति जता रहा था। 23 अप्रैल से नमामि गंगे आदेश फिर से प्रभावी हो गया है। अब इसे लेकर मातृ सदन की आपत्ति दूर हो गई है। डीजी ने स्वामी आत्मबोधानंद से अनशन समाप्त करने का अनुरोध किया। आत्मबोधानंद ने उनके अनुरोध को स्वीकार करते हुए अपने निर्जल सत्याग्रह को एक सप्ताह के लिए टाल दिया है।
 


क्या है मांगें?

19 अप्रैल 2019 को स्वामी आत्माबोधानंद ने 9 पन्नों का जो पत्र प्रधानमंत्री कार्यालय भेजा है। जिसमे उन्होंने अपनी इन मांगों का जिक्र किया है : 

  • गंगा और उसकी सहायक नदियों पर चल रहे बांधों के काम को निरस्त कर दिया जाये।
  • आने वाले भविष्य में ऐसे किसी भी परियोजना को मंजूरी न दी जाये।
  • गंगा के किनारे हो रहे अवैध खनन और जंगल काटने पर पूर्णतः प्रतिबंध लगा दिया जाए।
  • गंगा को बचाने के लिए गंगा एक्ट को जल्द से जल्द लागू किया जाए।

इस सरकार ने गंगा को साफ करने के नाम पर बस ठगी की है। गंगा सफाई बस  कुछ पोस्टर, साफ घाट और फोटो खिंचवाने वाला कार्यक्रम बन गया है और इसके सबसे बड़े एंबेस्डर है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी। गंगा सफाई के लिये सरकार ने पिछले पांच सालों में कोई गंभीर प्रयास नहीं किया है और जो करने की कोशिश कर रहे हैं उनको सुना ही नहीं जा रहा है। सत्ता, मातृ सदन से अपने अहंकार के कारण बात नहीं कर रही है, जिसका नतीजा प्रोफेसर जीडी अग्रवाल की कुर्बानी बनी और अब वैसा ही कुछ स्वामी आत्माबोधानंद के साथ हो रहा है।

स्वामी आत्माबोधानंद के स्वास्थ्य की सबको चिंता है और लोग सरकार से अपील भी कर रहे हैं कि वे कम से कम बात करने की पहल तो करें। इस सरकार ने उन मुद्दों पर ज्यादा ध्यान दिया है जिसके लिये लोग सड़क पर उतरें हैं। आत्माबोधानंद महात्मा गांधी के सत्याग्रह की राह पर चल रहे हैं। इस समय चुनाव हैं और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी गंगा के बारे में जिक्र तक नहीं कर रहे हैं। नेशनल स्वच्छ गंगा मिशन के अधिकारी स्वामी आत्माबोधानंद से मिले और मौखिक वायदे को लिखित में पूरा करने का एक सप्ताह का समय मांगा है। सरकार ने जो वायदे पांच साल में पूरे नहीं किये उसे वो सात दिन में पूरा करेंगे, इस पर थोड़ा संशय है। अगर स्वामी आत्माबोधानंद की मांगों को सरकार मान लेती है तो उनकी पुरानी भूल-चूक को भुलाया जा सकता है।

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