सूरज तले अंधेरा

सरकारी सुविधाएं, अनुदान सब ले लिए गए पर बिजली तो बनी नहीं। फिर इन सातों संयंत्रों ने काम प्रारंभ करने का प्रमाणपत्र कैसे हासिल कर लिया? इस पर राजस्थान अक्षय ऊर्जा निगम के परियोजना प्रबंधक अनिल पाटनी का जवाब था कि प्रारंभ होने के बारे में मत पूछिए। यह एक जटिल सवाल है। प्रमाणपत्र देने का काम ‘द राजस्थान डिस्काम पॉवर प्रॉक्यूरमेंट केंद्र’ का है।

उन्हें कोयला, पानी या अणुशक्ति से नहीं सूरज से बिजली बनाना था। पर ये कंपनियां सूरज से बिजली नहीं बना पाईं। अब केंद्र सरकार इन चौदह कंपनियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने जा रही है। एनटीपीसी विद्युत व्यापार निगम लिमिटेड राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम की व्यापारिक इकाई है। यह निगम इन कंपनियों को दंड दे रहा है। चूक करने वाली ये कंपनियां उन 28 कंपनियों में से हैं, जिन्हें जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय सोलर मिशन के पहले चरण में फोटो वाल्टेक परियोजनाएं आबंटित की गई थीं और इसी के साथ इन्हें तरह-तरह की सुविधाएं दी गई थीं। सुविधाएं पूरी ले ली पर इन कंपनियों ने बिजली बनाकर नहीं दी। इन सयंत्रों को 9 जनवरी, 2012 तक बिजली देना शुरू कर देना था।

अमृत एनर्जी और ग्रीनटेक पॉवर उन कंपनियों में से हैं, जिन पर 16 फरवरी को कुल 30 करोड़ रुपए की वसूली का दंड लगा है। कुछ कंपनियां ऐसी हैं, जिन्होंने ऐसी किसी सख्त कार्रवाई की आशंका से आनन-फानन में काम चालू करने की कोशिश की है और परियोजना प्रारंभ किए जाने का प्रमाणपत्र अपने राज्यों से लेकर दंड से बचने में सफल हो गई है। डीडीई रिन्यूएबल एनर्जी इलेक्ट्रोमेक मेरिटेक और फाइनहोप अलाइड एनर्जी नामक तीन कंपनियों का ठेका ‘लेंकों इंफ्राटेक’ के पास था। उनका काम शुरू ही नहीं हो पाया। इसलिए इन्हें भी दंड दिया गया है। दिल्ली की एक गैर सरकारी संस्था पर्यावरण एवं विज्ञान केंद्र द्वारा हाल में की गई जांच से यह बात उजागर हुई कि ‘लेंकों इंफ्राटेक’ के पास उपरोक्त तीन परियोजनाओं सहित कुछ सात परियोजनाओं का काम है। ये सभी परियोजनाएं राजस्थान के जैसलमेर जिले की नाचना तहसील के असकांद्रा गांव में लगने वाली थी।

जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय सोलर मिशन ने इस काम को आगे बढ़ाने के लिए इन कंपनियों को कई तरह क सुविधा दी थी। साथ ही कुछ दिशा-निर्देश भी। इन दिशा निर्देशों के अनुसार इन कंपनियों को 9 जनवरी, 2011 को विद्युत क्रय समझौते पर हस्ताक्षर के दौरान 9 से 12 करोड़ रुपए की बैंक गारंटी प्रस्तुत करनी थी। लेकिन यदि परियोजना लेने वाली कंपनी अपनी तय समय सीमा चूक जाती है तो फिर तीन महीनों में हिस्सों में बैंक गारंटी को नकदी दंड में बदलने की शर्त भी रखी गई थी। इसके पश्चात अगले तीन महीनों तक परियोजना पर 5 लाख रुपए प्रतिदिन के हिसाब से दंड देना होगा। इसके बाद इन्हें रद्द मान लिया जाएगा।

अब ऐसी चौदह कंपनियों को यह दंड भुगतना होगा। क्योंकि ये दी गई समय सीमा में परियोजना प्रारंभ नहीं कर पाई थी। कई अन्य बच गई है। असकांद्रा गांव की प्रत्येक परियोजना पांच मेगावाट की थी। इन सभी का ठेका लेंकों नामक कंपनी के पास है। उनमें से तीन परियोजनाएं दी गई समय सीमा 9 जनवरी 2012 के एक दिन बाद प्रारंभ हो पाई थी। राजस्थान अक्षय ऊर्जा निगम के अनुसार बाकी की चार ने 7 और 9 जनवरी के बीच काम करना प्रारंभ किया था। राज्य में वितरण हेतु नोडल संस्था ‘द राजस्थान डिसकाम्स पॉवर प्रोक्यूरमेंट सेंटर’ ने पांच मेगावाट की विद्युत परियोजना प्रारंभ हो जाने का प्रमाणपत्र दे दिया है। इसके मुख्य अभियंता का कहना है कि प्रमाणपत्र तभी दिया गया है जब ग्रिड को पूरी 5 मेगावाट की आपूर्ति होने लगी है। उपरोक्त दोनों सरकारी कंपनियों के दावों के अनुसार तो असकांद्रा गांव में सभी सातों सोलर परियोजनाएं कुल 35 मेगावाट बिजली उत्पादन हेतु तैयार हो गई है।

लेकिन ‘डाउन टू अर्थ पत्रिका’ ने जब निर्धारित काम की समय सीमा समाप्त होने के एक महीने बाद 12 फरवरी को असकांद्रा का दौरा किया तो पाया कि वहां तो आधे से भी कम काम हो पाया है। ये सातों परियोजनाएं 49.5 हेक्टेयर के क्षेत्र में एक के बाद एक जुड़ी हैं और इन्हें एक दूसरे से अलग बताने वाले साइनबोर्ड भी वहां पर मौजूद नहीं थे। केवल दो जगहों पर सोलर पेनल पूरी तरह से लग पाए थे और जुड़े भी हुए थे। बाकी बचे पांच स्थानों पर वे या तो इन्वर्टरों से जुड़े थे या इन्वर्टर ट्रांसफार्मरों से जुड़े हुए थे। दो स्थानों पर तो केवल जमीन पर लोहे के खंभे गड़े नजर आ रहे थे। वहां पर एक इंजीनियर ने बताया कि यहां तो बहुत काम बाकी है। फिलहाल हम दी गई 35 मेगावाट क्षमता का महज 10-20 प्रतिशत ही दे पा रहे हैं। इतना ही नहीं ग्रिड उपकेंद्र जिससे कि सातों परियोजनों को जुड़ना था वह भी अभी पूरी तरह से बन नहीं पाया है।

हम मामले की जांच कर रहे हैं और यदि कोई दोषी पाया जाता है तो उसकी बैंक गारंटी का नकदी में बदलकर उन्हें दंड दिया जाएगा। उनका यह भी कहना है कि हम शीघ्र ही ‘प्रारंभ’ शब्द को परिभाषित करते हुए नए स्पष्टीकरण जारी करेंगे। तब तक शायद सूरज तले अंधेरा ही रहेगा।

सरकारी सुविधाएं, अनुदान सब ले लिए गए पर बिजली तो बनी नहीं। फिर इन सातों संयंत्रों ने काम प्रारंभ करने का प्रमाणपत्र कैसे हासिल कर लिया? इस पर राजस्थान अक्षय ऊर्जा निगम के परियोजना प्रबंधक अनिल पाटनी का जवाब था कि प्रारंभ होने के बारे में मत पूछिए। यह एक जटिल सवाल है। प्रमाणपत्र देने का काम ‘द राजस्थान डिस्काम पॉवर प्रॉक्यूरमेंट केंद्र’ का है। संयंत्र के एक बार चल निकलने के बाद हम यह जांचने बार-बार तो नहीं जा सकते कि वे नियमित रूप से ग्रिड बिजली दे पा रहे हैं या नहीं? यदि उनसे बिजली नहीं खरीदी जाती है तो ऐसी स्थिति में कंपनी को ही तो घाटा उठाना होगा। वर्ष 2020 तक 20,000 मेगावाट विद्युत उत्पादन का उद्देश्य रखा गया है। इस तरीके से काम चला तो आधा उत्पादन भी नहीं हो पाएगा।

राजस्थान में मिशन के पहले समूह में करीब 20 परियोजनाएं हैं और उनमें से 17 परियोजनाएं बीते माह फरवरी से प्रारंभ हो चुकी हैं। राजस्थान के ही जोधपुर जिले की फलौदी तहसील में 5 मेगावाट के 4 सौर ऊर्जा संयंत्रों ने काम करना प्रारंभ कर दिया है तथा बाप नामक गांव स्थित ग्रिड उप केंद्र को प्रतिदिन कोई 53 हजार किलोवाट बिजली मिलने लगी है।

असकांद्रा स्थित सात परियोजनाओं में से तीन को समय पर सूरज से बिजली बनाकर न देने के लिए दंड भरना पड़ रहा है। लेकिन बाकी की चार जुर्माने से बचने में सफल हो गई है। आंकड़े के लिए दंड देने वाले ढांचे राज्य सरकारों पर निर्भर हैं। हमें उत्पादन केंद्रों या सौर बिजली घरों तक जाने की अनुमति नहीं है, ऐसा उसका कहना है।

अक्षय ऊर्जा मंत्रालय के सहसचिव तरुण कपूर के अनुसार ऐसी घटनाएं हो जाती हैं क्योंकि बिजली घर के संदर्भ में ‘प्रारंभ’ शब्द की व्याख्या केंद्र व राज्य सरकार अपने-अपने हिसाब से करती हैं। एक परियोजना को तभी प्रारंभ हुआ माना जाएगा जबकि पूरी 5 मेगावाट क्षमता स्थापित हो चुकी हो और ग्रिड को आपूर्ति कर रही हो। मंत्रालय का कहना है कि राजस्थान सरकार ने हमें अब सूचित किया है कि अनेक संयंत्र आंशिक रूप से ही कार्यरत है। मंत्रालय के अनुसार ये परियोजनाएं प्रारंभ नहीं हुई हैं। हम मामले की जांच कर रहे हैं और यदि कोई दोषी पाया जाता है तो उसकी बैंक गारंटी का नकदी में बदलकर उन्हें दंड दिया जाएगा। उनका यह भी कहना है कि हम शीघ्र ही ‘प्रारंभ’ शब्द को परिभाषित करते हुए नए स्पष्टीकरण जारी करेंगे। तब तक शायद सूरज तले अंधेरा ही रहेगा।

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