सूखती नदियों के बीच हलक तर करने की चिन्ता


विशाला नदी के तट पर खड़ा हूँ। इसी नदी के तट पर वैशाली नगर बसा। वैशाली का वैभव जैसे-जैसे मिटता गया, विशाला सिकुड़ती गई और इसका नाम भी बाया हो गया। गंगा आज भी उत्तरवाहिनी होकर इसे अपने आगोश में समेटती है, पर बाया अर्थात विशाला में इस वर्ष कहीं-कहीं और छोटी-छोटी कुंडियों में ही पानी बचा है।

बिहार के तकरीबन हर जिले की छोटी-छोटी नदियाँ सूख गई हैं। इसका असर अपेक्षाकृत बड़ी नदियों पर भी पड़ा है। महानन्दा के बाद बागमती और कमला की धाराएँ जगह-जगह सूख गई हैं। प्राचीन साहित्य में सदानीरा कहलाने वाली गंडक में भी कई स्थलों पर इतना कम पानी बचा था कि लोग पैदल टहलते हुए पार कर जाते थे। बिहार की नदियों की इस दुर्दशा का असर गंगा पर भी दिख रहा है।

सदाबहार नदी महानन्दा की धाराओं के सूखने से बिहार का पूर्वी सीमांचल भीषण जलसंकट झेल रहा है। स्थानीय लोगों के अनुसार बारसोई के निकट महानन्दा पूरी तरह सूख गई है। ऐसा पहली बार हुआ है।

बारसोई के बाद मेची और कंकई नदियों का पानी मिलने से महानन्दा की धारा जीवित तो हो जाती है, पर मेची और कंकई की धाराओं में भी जोर नहीं है। इसलिये दार्जिलिंग के ऊपर से निकल कर बिहार के कटिहार, किशनगंज, पूर्णिया जिलों से होकर बंगाल में मालदा के निकट गंगा में समाहित होने वाली महानन्दा पर सिंचाई के लिये निर्भर खेती चौपट हो गई है।

इस क्षेत्र की नदी प्रणालियों के जानकार प्रोफेसर अशोक झा ने वर्तमान हालत को बेहद खतरनाक बताया है। उनके अनुसार सीमांचल की 12 नदियाँ पूरी तरह सूख गई हैं। लगातार तीन वर्षों से वर्षा नहीं होने से अकाल की स्थिति है।

महानन्दा के बाद बागमती की धारा भी अपने गन्तव्य के पहले ही सूख गई है। फरकिया के बाँध चातर में बागमती में नाममात्र का पानी भी नहीं रह गया है। साल भर पहले तक जहाँ भयंकर-से-भयंकर गर्मी में भी पानी का अविरल प्रवाह रहता था, इस बार धूल उड़ रही है। खगड़िया के पत्रकार निर्भय झा बताते हैं कि बागमती की गोद में बच्चे क्रिकेट खेल रहे हैं। बाँध चातर पंचायत के मुखिया सनोज कुमार कहते हैं कि ऐसा पहली बार हुआ है।

पिछले वर्ष भी चैत-बैशाख में सन्तोष स्लुइस के पास बागमती कलकल-छलछल बह रही थी, इस साल तो अनर्थ हो गया।
दिलचस्प है कि बाढ़ नियंत्रण विभाग बाँध चातर के सन्तोष स्लुइस के पास ही गेज बाँध कर 15 जून से 31 अक्टूबर के बीच बाढ़ के जलस्तर को नापता है। इस सन्तोष स्लुइस के पास नदी के सूख जाने से स्थिति की गम्भीरता का अन्दाजा लगाया जा सकता है।

.यहाँ तक आते-आते बागमती की धारा में कमला और दरभंगा जिले में प्रवाहित अधवारा समूह की अनेक धाराओं का पानी समाहित हो गया होता है। जाहिर है कि बागमती के सूखने का अर्थ ही है कि कमला नदी में भी पानी काफी कम हो गया है।

बिहार के उत्तरी छोर पर हिमालय से आने वाली नेपाल की सबसे बड़ी नदी नारायणी अर्थात गंडक में पूजहाँ-पटजिरवा के पास इतना कम पानी हो गया है कि लोग पैदल नदी पार कर रहे हैं। तटवासी गिरधारी राम बताते हैं कि गंडक में इतना कम पानी होने के बारे में हम सोच भी नहीं सकते थे।

पूजहाँ-पटजिरवा ही वह स्थल हैं जहाँ गंडक ने पौराणिक नदी विशाला के धारा मार्ग को अपना लिया था। उधर प्राचीन साहित्य में जिस विपुला नदी का उल्लेख मिलता है, वह कमला नदी इस वर्ष झंझारपुर रेलपुल और नेशनल हाईवे के पास पूरी तरह सूख चुकी थी। मई के दूसरे सप्ताह में नेपाल स्थित जलग्रहण क्षेत्र में वर्षा होने से इसमें प्रवाह बहाल हुआ है। लेकिन पानी इतना नहीं कि तटवर्ती इलाके की प्यास बूझ सके।

बागमती और कमला जैसी नदियों के सूखने से फरकिया क्षेत्र में अजीब सा संकट उत्पन्न हो गया है। फरकिया कोसी और बागमती से घिरे उस क्षेत्र को कहते हैं जिसका सर्वेक्षण नहीं हुआ। बताते हैं कि अकबर के जमाने में देश में पहली बार हुई भू-पैमाइश में राजा टोडरमल ने इस इलाके के सदा जलमग्न रहने के कारण शामिल नहीं किया था।

इस फर्क के कारण ही यह क्षेत्र फरकिया कहलाता है। इस इलाके में पानी और घास की उपलब्धता के कारण जलाभाव वाले क्षेत्रों के पशुपालक अपने मवेशियों के साथ पहुँच जाते थे और बरसात आरम्भ होने पर वापस लौटते थे। इस वर्ष पानी नहीं है तो घास भी नहीं है। स्थानीय पशुपालकों के पलायन करने जैसी हालत है।

बिहार की नदियों के बनने-बिगड़ने का विषद वर्णन हवलदार त्रिपाठी सहृदय ने किया है। लेकिन इस वर्ष की स्थिति को समझने में उनका विवरण काम नहीं आता। उनके विवरण के आधार पर उन छोटी नदियों की सूची भर तैयार की जा सकती है जो सूख गई हैं। मगर ऐसी सूची से अधिक महत्त्वपूर्ण महानन्दा, बागमती और कमला जैसी सदानीरा नदियों के सूखने जैसी परिघटना है जिस पर सोचने और आसन्न संकट के निराकरण का उपाय निकालने की जरूरत है।

सूखी नदियों की गिनती बिहार के उत्तर पश्चिम छोर से आरम्भ करें तो चम्पारण जिले में बेतिया में चन्द्रावत और मोतिहारी में धनौती तो वर्षों से सूखी नदियों में शामिल हैं। इन दोनों नदियों को हवलदार त्रिपाठी विशाला नदी के जमाने में गंडक की धारा मार्ग बताते हैं।

.मुजफ्फरपुर में लखनदेई, डंडा, मानुषमारा, नून, बाया और कदाने नदी सूख चुकी हैं। कदाने और नून नदी सकरा प्रखण्ड के बगल से बहती हैं। उनके सूखने से उस प्रखण्ड में भूजल की स्थिति बहुत खराब हो गई है। मधुबनी में जीवछ नदी सूख गई है। कोशी और कमला नहरों में पानी नहीं रहने से जिले में जलसंकट गहरा गया है।

समस्तीपुर में बूढ़ी गंडक में पानी काफी घट गया है। यहाँ बलान, बागमती व जमुआरी के अलावा नून और बाया नदियों भी हैं। पर समस्तीपुर की सीमा में सभी सूख गई हैं। सीवान की प्रमुख नदी दाहा के सूख जाने की आशंका गहरा गई है। सोना नदी दो महीने पहले सूख गई। मैरवा के पास झरही और बसन्तपुर में धमही नदी सूखने के कगार पर है। नबीगंज में घोघारी नदी सूख गई है।

भोजपुर जिले में सोन नदी का जलस्तर दस फीट कम हो गया है। इस वजह से सोन नहरों में पानी नहीं हैं। दूसरी सारी नदियाँ पूरी तरह सूख गई हैं। भागलपुर में गंगा की सारी सहायक नदियाँ -कौआ, भैना, गेरुआ, घोघा, लैलख, जमुनिया आदि पूरी तरह सूख गई हैं। खगड़िया में उत्तर बिहार की तकरीबन सभी नदियों का पानी-गंगाा, कोसी, बागमती, बूढ़ी गंडक, कमला का पानी आता है। पर इन सभी का जलस्तर एक से डेढ़ मीटर कम हो गया है जिससे पूरे जिले में जलसंकट है।

बांका में चांदन नदी सूख गई है। जिले से बहने वाली सुखनिया, चीर, ओढ़नी, बडुआ, गहेरा, गेरुआ आदि नदियाँ भी सूख गई है। लखीसराय की लाइफलाइन किउल नदी पूरी तरह सूख गई है। भूजल स्तर पिछले वर्ष की अपेक्षा 10 से 12 फीट नीचे चला गया है। शहरी क्षेत्र में किउल नदी के किनारे के इलाके में भी नलकूप लगातार सूखते जा रहे हैं। चानन नदी में नवी नगर के पास थोड़ा बहुत पानी बचा है। लोग बालू खोदकर पानी निकाल रहे हैं।

राष्ट्रीय स्तर पर जल आधिक्य वाला प्रदेश माना जाने वाले बिहार में अभूतपूर्व जल संकट की हालत है। तकरीबन सभी जिलों में संकट है। भूजल तेजी से नीचे जा रहा है। चापाकल और नलकूप फेल हो रहे हैं। अगर वर्षा में और विलम्ब हुआ तो अकाल जैसी हालत हो जाएगी। मौसम की पहली वर्षा मई के तीसरे सप्ताह हुई जरूर, पर इतनी कम वर्षा हुई कि धरती की सतह भी तर नहीं हुई, भूगर्भ के सम्पोषित होने का प्रश्न ही नहीं उठता।
 

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Post By: RuralWater
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