सूखे पर अदालतों की कड़ी फटकार से सीख लेने की जरूरत


सूखा यूँ तो गर्मियों में अमूमन देश भर में जल संकट उत्पन्न हो जाता है, लेकिन इस बार का मामला हटकर है। अभी अप्रैल का महीना शुरू ही हुआ है कि देश भर में पानी को लेकर हाहाकार मचना शुरू हो गया है। महाराष्ट्र, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, राजस्थान, आन्ध्र प्रदेश और तेलंगाना समेत नौ राज्य सूखे की चपेट में हैं। कई राज्यों में सूखे के चलते हालात इतने बदतर हो गए हैं कि लोग पीने के पानी तक को तरस गए हैं और अब पलायन करने को मजबूर हैं। यह समस्या न सिर्फ गम्भीर चिन्ता का विषय बन गई है, बल्कि सरकार के जनहितैषी होने के खोखले दावों की पोल भी खोलती है। हालांकि सरकार की तरफ से इस समस्या से निपटने के लिये सार्थक प्रयास किये जाने के दावे किये गए हैं, लेकिन हकीकत में सूखाग्रस्त राज्यों के हालात में अब तक कोई खास बदलाव नहीं आया है और यदि सच कहा जाय तो इन इलाकों में हालात सुधरने की बजाय और बदतर होते जा रहे हैं।

सूखा प्रभावित राज्यों में किस तरह के हालात हैं, इसका अन्दाजा सुप्रीम कोर्ट के इस निर्देश से भी लगाया जा सकता है, जिसमें शीर्ष अदालत ने बड़े ही तल्ख लहजे में कहा है कि देश के नौ राज्य सूखाग्रस्त हैं और केन्द्र सरकार इस पर आँखें बन्द नहीं कर सकती। यह बुनियादी जरूरतों में से एक है और सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह प्रभावित लोगों को इस समस्या से निजात दिलाए।

सुप्रीम कोर्ट ने आश्चर्य व्यक्त किया है कि महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) इन सूखा-प्रभावित राज्यों में आखिर किस तरह लागू की जा रही है कि खेती-बारी तक के काम भी प्रभावित हो गए हैं। कोर्ट ने सरकार से यह भी जानना चाहा है कि इन राज्यों में वह किस तरह फंड मुहैया करा रही है कि लोगों को उसका लाभ तक नहीं मिल रहा है। अदालत की तरफ से माँगी गई इन जानकारियों का यह मतलब निकलता है कि इस दिशा में सरकार द्वारा किये गए प्रयास से वह सन्तुष्ट नहीं है। सरकार के काम करने के तौर-तरीकों पर सीधे-सीधे टिप्पणी करने से बचते हुए अदालत ने सरकार को घेरने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है।

यही नहीं इस मुद्दे पर मुम्बई हाईकोर्ट ने भी राज्य सरकार को लताड़ा है और कहा है कि जब राज्य सूखे से जूझ रहा है, तब क्रिकेट मैच (आईपीएल) जैसे कार्यक्रम क्यों कराए जा रहे हैं? क्योंकि यह सबको पता है कि पिचों के रखरखाव में लाखों लीटर पानी का उपयोग होता है। अदालत ने बड़े ही तल्ख लहजे में आईपीएल को महाराष्ट्र से बाहर कराने को कहा है। सुझाव कम निर्देश दिये गए हैं कि मैच वहाँ कराइए, जहाँ पानी ज्यादा है। सूखे के बावजूद पानी की इस तरह बर्बादी पर मुम्बई हाईकोर्ट ने सरकार को फटकार लगाते हुए पूछा है कि आईपीएल ज्यादा अहम है या पानी? आप इस तरह से पानी कैसे बर्बाद कर सकते हो? आपके लिये लोग ज्यादा अहम हैं या आईपीएल मैच। आप इतने लापरवाह कैसे हो सकते हो? यह आपराधिक बर्बादी है। अदालत ने कहा कि यह सब जानते हुए कि महाराष्ट्र के क्या हालात हैं, आप आईपीएल का आयोजन करने को सोच रहे हो, आश्चर्य होता है। अदालत ने मुम्बई क्रिकेट संघ (एमसीए) को भी आड़े हाथों लेते हुए पूछा कि वानखेड़े स्टेडियम के रखरखाव पर कितना पानी इस्तेमाल होगा? इस पर एमसीए के वकील ने कहा कि वे आईपीएल के सात मैचों के लिये 40 लाख लीटर पानी की प्रयोग करेंगे। इस पर अदालत ने आश्चर्य व्यक्त किया और सवाल किया कि सूखाग्रस्त राज्य में ऐसा करना क्या उचित है?

सच तो यह है कि महाराष्ट्र के अलावा अन्य आठ सूखाग्रस्त राज्यों की भी स्थिति काफी खराब है। खबर तो यहाँ तक आ रही है कि इन राज्यों से लोगों ने पलायन भी करना शुरू कर दिया है। यह चिन्ता का विषय है और सरकार को इस दिशा में सार्थक पहल करने की जरूरत है। अप्रैल महीने की शुरुआत में जब इस तरह के हालात हैं, तब मई-जून में क्या हालात होंगे, इसकी कल्पना मात्र से ही सिहरन होने लगती है। अब देखना यह है कि अदालत की इन सख्त टिप्पणियों के बाद सरकार इस मसले को कितनी प्राथमिकता से लेती है और सूखाग्रस्त इलाकों के लिये कितना प्रभावी कदम उठाती है।

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