सूखे को लेकर राजनीति का आलम यह है कि केन्द्र सरकार और उसके अधीन राज्य सरकारें आमने-सामने हैं। हर कोई अपनी ढपली-अपना राग झेड़ रहा है। होड़ पब्लिसिटी पाने की है, चाहे वह गैर-जिम्मेदाराना बयान देकर ही क्यों न आए।
उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, ओडिसा, झारखंड, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, बिहार, गुजरात, पंजाब तथा हरियाणा पिछले 100 सालों से सबसे भीषण सूखे से जूझ रहे हैं। पंजाब तथा हरियाणा को केन्द्र सरकार सूखाग्रस्त घोषित करने में हालाँकि संकोच कर रही है। वास्तविकता यह है कि ये दोनों राज्य सिंचाई सुविधाओं से संपन्न होने के कारण सूखे की मार से थोड़ा-बहुत लड़ सकते हैं।
सूखे को लेकर शीर्षस्थ अदालत में भी मामला चल रहा है और शीर्षस्थ न्यायालय अपनी न्यायिक सक्रियताओं के चलते सूखे की स्थितियों की एक तरह से निगरानी कर रहा है। सूखे की विभीषिका का सबसे काला पक्ष यह रहा कि पिछले दिनों इस मामले पर शीर्षस्थ न्यायालय में न्यायमूर्ति मदन सीलोकुद और एनवी रमना की द्विपक्षीय खंडपीठ जब सुनवाई कर रही थी तो वहाँ सूखे पर केन्द्र सरकार का पक्ष रखने के लिये केन्द्र सरकार का कोई अधिकृत अधिवक्ता तक मौजूद नहीं था। गौरतलब है कि विभिन्न न्यायालयों में सरकारों का पक्ष रखने के लिये महाधिवकक्ताओं, अधिवक्ताओं की फौज होती है। परन्तु देश के शीर्षस्थ न्यायालय में जब सूखे जैसी भीषण त्रासदी और संवेदनशील मामले पर सुनवाई जारी थी तो वहाँ केन्द्र सरकार का पक्ष रखने के लिये सिर्फ एक कनिष्ठ अधिवक्ता मौजूद था।
हद तो यह है कि सूखे जैसी त्रासदी पर भी राजनेताओं को श्रेय-प्रेय का खेल सूझ रहा है। महाराष्ट्र की जल संरक्षण मंत्री पंकजा मुंडे जब लातूर क्षेत्र में सूखे का जायजा लेने गई तो उन्होंने वहाँ पर अपने मोबाइल से सूखे के साथ सेल्फी लेकर यह जता दिया कि हमारे राजनेता देश की आम जनता के प्रति कितने संवेदनहीन हो चुके हैं। इसी तरह महाराष्ट्र के ही एक और विधायक के लिये हजारों लीटर पानी बर्बाद कर अस्थाई हेलीपैड का निर्माण किया गया और वह भी सूखाग्रस्त क्षेत्र में। तर्क यह दिया गया कि विधायक के हेलीकॉप्टर के उतरते और उड़ते समय धूल न उड़े इसलिए हेलीपैड को तर किया गया। इसी प्रकार की संवेदहीनता का परिचय केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधा मोहन सिंह की भिवंडी यात्रा के दौरान भी देखने को मिला। वहाँ पर न केवल अस्थाई हेलीपैड को हजारों लीटर पानी से छिड़काव कर ठंडक दी गई बल्कि हेलीपैड से मुख्य सड़क तक के मार्ग को भी पानी से तर किया गया ताकि मंत्री जी का काफिला धूल से निजात पा सके।
महाराष्ट्र में आईपीएल के मैच कराये जाए या न कराये जाए, इसे लेकर भी काफी कशमकश रही। दरअसल क्रिकेट के मैदानों को मैच खेलने लायक बनाने से पहले मैदान पर पानी का छिड़काव किया जाता है। यह प्रक्रिया मैच खेलने से लगभग एक हफ्ता पहले शुरू हो जाती है। जाहिर है कि इसमें काफी पानी बर्बाद होता है। आईपीएल कमिश्नर राजीव शुक्ला ने तर्क दिया कि क्रिकेट के मैदानों से कहीं ज्यादा पानी गोल्फ के मैदानों को खेलने लायक बनाने में बर्बाद होता है। यानी तर्क-वितर्क केवल इस बात को लेकर हुए कि हमसे ज्यादा पानी तो फलां बर्बाद करता है। इस पर कोई गौर करने को राजी नहीं है कि पानी का प्राथमिकता के अनुसार उपयोग किया जाए। सूखे को लेकर अजीबोगरीब बयानबाजियां की जा रही हैं। अपने बयानों से सुर्खियाँ बटोरने के लिये मशहूर हो चुके शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का कहना था कि सांई की पूजा करने से और महिलाओं द्वारा शनि की पूजा करने से महाराष्ट्र में सूखा पड़ रहा है। अलबत्ता यह बात दीगर है कि किसी मठाधीश या आश्रम ने सूखे से राहत के लिये अपनी अकूत सम्पदा से एक धेला भी अभी तक नहीं दिया है।
सूखे को लेकर राजनीति का आलम यह है कि केन्द्र सरकार और उनके अधीन राज्य सरकारें आमने-सामने हैं। दिल्ली जो कि खुद के लिये पेयजल हेतु पड़ोसी राज्यों पर निर्भर है उसके मुखिया अरविंद केजरीवाल ने बयान जारी कर दिया कि वह प्रतिदिन 100 लाख लीटर पानी लातूर भिजवाना चाहते हैं, लेकिन केन्द्र सरकार ट्रेन मुहैया नहीं करा रही है। इसी प्रकार जब बुन्देलखण्ड में ट्रेन से पानी पहुँचाकर पेयजल समस्या का केन्द्र सरकार द्वारा हल करने के प्रयास किये गए तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उस ट्रेन को झांसी में ही रुकवा दिया और कहा कि बुन्देलखण्ड में खाली ट्रेन पहुँची, उसमें जुड़े वैगनों में पानी की एक बूँद भी नहीं थी। अब यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि केन्द्र सरकार भले ही पानी को लेकर राजनीति कर रही हो, कम से कम वह खाली वैगनों वाली ट्रेन तो बुन्देलखण्ड नहीं भेजेगी। यानी प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों को भी सूखे की समस्या से निपटने में कम और इस समस्या से अपनी राजनीति कैस चमकायी जाए इसमें ज्यादा दिलचस्पी है।
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