सूखे हैं मनरेगा के कुएं तालाब में टहलती हैं बकरियां

मनरेगा में किस कदर धांधली की जा रही है, यह पाकुड़ जिले के हिरणपुर प्रखंड, केंदुआ पंचायत के वनपोखरिया में देखी जा सकती है। पैक्स-मनरेगा के पलैगशिप प्रोग्राम के तहत झारखंड के 10 जिलों में मनरेगा का सोशल ऑडिट कराया जा रहा है। राषट्रीय स्तर की गैर स्वयंसेवी संस्था एफिकोर एवं भारतीय ज्ञान-विज्ञान समिति द्वारा केंदुआ प्रखंड के अंतर्गत मनरेगा योजनाओं की सोशल ऑडिट पर जन-सुनवाई की गयी। यह जन-सुनवाई केंदुआ पंचायत के वनपोखरिया में 9 मार्च को संपत्ति मूल्यांकन द्वारा की गयी। ऑडिट में पैक्स के 20 से ज्यादा सोशल ऑडिट फैसिलिटेटर ने संपत्ति का मूल्यांकन किया।

आठ मार्च को आम सभा और नौ मार्च को सोशल ऑडिट में डंगरापारा, शहरग्राम और केंदुआ पंचायत में हो रहे मनरेगा कार्यों का संपत्ति मूल्यांकन किया गया। सोशल ऑडिट में तीनों पंचायत के सैकड़ों ग्रामीणों भाग लिया और प्रत्येक पंचायत के मुखिया व वार्ड सदस्य भी शामिल हुए।

लाभुकों के पास नहीं है जॉब कार्ड


पहाड़िया बहुल इन पंचायतों में मनरेगा में अनियमितता चरम पर नजर आयी। ऑडिट में पाया गया कि केंदुआ पंचायत के वनपोखरिया में मनरेगा के तहत तीन कूप खुदाई की योजनाएं ली गयी। कूप योजनाएं 1,40,000 से 2,60,000 के बीच के लागत की थी। इन दो कूपों में एक बूंद पानी तक नहीं था। ग्रामीणों का कहना था कि कूप में निर्धारित दर से मजदूरी भी नहीं मिली, 122 के बदले 100 रुपये मजदूरी दर दी गयी। भारतीय ज्ञान-विज्ञान समिति के कार्यक्रम समन्वयक व सीनियर सोशल फैसिलिटेटर रामजीवनप हाड़िया कहते हैं कि कार्ड बनने के बाद जॉब कार्ड ग्राम रोजगार सेवक और ठेकेदार ने उनसे ले लिया। वनपोखरिया में 54 परिवारों में 40-42 के पास जॉब कार्ड हैं। ये सभी जॉब कार्ड ठेकेदार व ग्राम रोजगार सेवक के पास है। केंदुआ पंचायत के ग्राम प्रधान नुड़की पहाड़िया के अनुसार जॉब कार्ड की मांग कई बार किये जाने के बावजूद स्थानीय ठेकेदार ने आज तक उन्हें दिया। ठेकेदार व रोजगार सेवक समय-समय पर कई दस्तावेजों पर हस्ताक्षर व ठप्पा भी लगवा लेते हैं। पहाड़िया कहते हैं कि मजदूरों को अब तक मात्र 30 दिनों का ही काम दिया गया, बाकी 70 दिनों का भुगतान लाभुक नहीं जानते। जबकि मनरेगा के तहत 100 दिनों का भुगतान सरकार द्वारा लाभुक को करना है। अगर हम मात्र 1 जॉब कार्ड की गणना करें, (100 में मात्र 30 दिनों का काम मिला) तो 70 दिनों के 120 रुपये के हिसाब से 8400 रुपये का सालाना भुगतान गैरवाजिब ढंग से रोजगार सेवक और ठेकेदार मिलकर हजम कर जाते हैं। अगर 40 जॉब कार्ड की बात करें, तो 3,36,000 रुपये की अवैध निकासी एक साल में कर ली गयी है। अगर मजदूरी की अवैध निकासी हुई है, तो पाकुड़ जिले में मनरेगा के तहत सबसे बड़ा घोटाला सामने आ सकता है।

सोशल ऑडिट के दौरान उपविकास आयुक्त गौरीशंकर मिंज से दस्तावेज की मांग की गयी, लेकिन उन्होंने देने से इनकार कर दिया। इसके बाद एफिकोर व भारत ज्ञान-विज्ञान समिति ने सामाजिक अंकेक्षण के तहत संपत्ति मूल्यांकन व ग्राम सभा की प्रक्रिया अपनाते हुए अंकेक्षण के कार्यों को अंजाम दिया। हिरणपुर प्रखंड के अधिकारी दबी जुबान में कहते हैं कि सोशल ऑडिट के लिए संस्थाओं को दस्तावेज नहीं दिये जायेंगे।

35 की जगह 28 फीट गहरा है सिंचाई कूप


वनपोखरिया में अगर योजनाओं की बात करें, तो कादरु पहाड़िया, दामु पहाड़िया और मुड़की पहाड़िया के नाम से सिंचाई कूप का निर्माण कराया गया है। योजना के अनुसार कूप निर्माण की खुदाई 35 फीट होनी चाहिए जबकि कूप की खुदाई मात्र 28 फीट ही की गयी। इन कूपों के निर्माण में सरकार के लाखों रुपये लगे हैं। एक कूप निर्माण में 1,40,000 रुपये की प्राक्कलित राशि है। एक बड़े कूप निर्माण में 2,60,000 की प्राक्कलित राशि है। सोनिया पहाड़िया के कूप में मात्र साढ़े तीन फीट पानी मापा गया, जबकि नारान पहाड़िया और शिबू पहाड़िया का कूप पूरी तरह सूखा था। दस्तावेजों के अनुसार ग्रामीण तथा कार्डधारी मजदूरों के 100 रुपये के दर से मजदूरी दी गयी।

बकरी वाला तालाब


वनपोखरिया में तालाब निर्माण में भी ऐसी हो अनियमितता नजर आती है। कादरू पहाड़िया, दामु पहाड़ीया और गुड़की पहाड़िया ने मनरेगा के तहत तालाब निर्माण की योजनाएं लीं। ये सभी योजनाएं तालाब निर्माण के तहत कराये गये थे। इन तालाबों में एक बूंद भी पानी नहीं है। मछली पालन के स्थान पर इन तालाबों में बकरियां चर रही हैं इस योजना में 122 रुपये के स्थान पर 100 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से मजदूरी का भुगतान किया गया। मनरेगा प्रावधान के अनुसार तालाब निर्माण के समय मनरेगा में किसी प्रकार की सुविधा पानी, छाया, पालना व मेडिकल किट की व्यवस्था नहीं की गयी थी। मेठ अर्जुन पहाड़िया ने बताया कि उन्हें मनरेगा एक्ट के प्रावधानों की जानकारी ही नही हैं।

जलकुंड योजना पूरी तरह फ्लॉप


वनपोखरिया में नौ पहाड़िया समुदायों को जलकुंड की योजना दी गयी। जिन्हें जलकुंड मिला, उनमें दामुदर पहाड़िया, दरिया, आदरो, दामु, दामु-2, सोनिया, शिबू, साबरू और रूपाई पहाड़िया शामिल हैं, सोशल ऑडिट के तहत संपत्ति मूल्यांकन में पाया गया कि इन जलकुंडों का कोई लाभ पहाड़िया समुदाय को नहीं मिल रहा है। जलकुंड में पानी की जगह पत्थर व पुआल का रख-रखाव किया जा रहा है। मनरेगा योजना के तहत प्रत्येक जलकुंड योजना की प्राक्कलित राशि 18,000 रुपये है। मनरेगा योजना के तहत जलकुंड से भी कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है।

समतलीकरण का भी लाभ नहीं


मनरेगा के तहत वनपोखरिया में भूमि समतलीकरण की सात योजनाएं ली गयी है। भूमि समतलीकरण के तहत प्रति एकड़ के लिए 45 हजार की प्राक्कलित राशि है। इस योजना में भूमि समतलीकरण तो कर दिया गया, लेकिन पहाड़िया समुदाय के लोगों का कहना है कि समतलीकरण में मापदंडों का ख्याल नहीं रखा गया है। अब भी समतलीकरण के बावजूद गड्ढ़े और भूमि का पठार है। ऐसे में खेती करना उनके बस की बात नहीं है। पठार पर खेती काफी कठिन हो जाती है, इसलिए वे सवाल करते हैं कि ऐसे समतलीकरण का क्या फायदा, जब वे खेती ही नहीं कर पायेंगे।

मामले की जानकारी नहीं: मनरेगा आयुक्त


मनरेगा आयुक्त डॉ. अरुण कुमार से जब इस संबंध में बात की गयी। तो उन्होंने अनभिज्ञता जाहिर की। डॉ. कुमार ने कहा कि शिकायत मिलने पर कार्रवाई की जायेगी। गड़बड़ी पकड़ी जाने पर कार्रवाई भी होगी।

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