जी हां, भारत के मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) को अपनी नीति बदलनी होगी। खास बात यह है कि यह कमाल है ‘‘सूचना के अधिकार’’ का। जो मौसम विभाग अब तक देश भर के विभिन्न इलाकों में वर्षा के आंकड़ों को बेचकर पैसे कमाता रहा है अब वे आम लोगों को सार्वजनिक रूप से बगैर कीमत के उपलब्ध हो सकेंगे। इस संबंध में यह आदेश अभी हाल ही में केन्द्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने एक याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया।
मामला काफी दिलचस्प है, हुआ यूं कि दिल्ली स्थित संस्था ‘‘सैण्ड्रप’’ की ओर से बिपिन चन्द्र ने मार्च 2008 में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के समक्ष सूचना के अधिकार के तहत एक याचिका दाखिल की। याचिका में मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके के 6 जिलों के 5 साल के लिए वर्षा के मासिक आंकड़ों सहित अन्य आंकड़ों की मांग की गई। लेकिन याचिका के जवाब में विभाग के मुख्य सूचना अधिकारी टी. ए. खान ने कहा कि, ‘‘मौसम के आंकड़ों की आपूर्ति करना सूचना के अधिकार अधिनियम-2005 के दायरे में नहीं आता है।’’ सैण्ड्रप को यह जानकर काफी अचम्भा हुआ, लेकिन मामले में दिलचस्पी बढ़ गई। इसके बाद विभाग के अपील प्राधिकारी के पास अपील करने पर भी नतीजा शून्य रहा। मामला आगे बढ़ते हुए सीआईसी के पास पहुंचा, जहां, सुनवाई की तारीख 6 जनवरी 2009 तय हुई।
सीआईसी के समक्ष सैण्ड्रप की ओर से हिमांशु ठक्कर मामले की सुनवाई के लिए उपस्थित हुए, जबकि आईएमडी की ओर से एडीजीएम ए. के. भटनागर एवं डीडीजीएम टी. ए. खान उपस्थित हुए। सूचना आयुक्त श्री ए. एन. तिवारी के सामने हिमांशु ठक्कर ने दलील दी कि आईएमडी को भारत के सभी जिलों के वर्षा के मासिक और सालाना आंकड़े सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराने चाहिए, और इसके लिए कीमत अदा करने जैसी कोई शर्त नहीं होनी चाहिए। सवाल यह है कि जनता के पैसे से चलने वाली एक संस्था वर्षा जैसे प्राथमिक और आवश्यक आंकड़े देने से कैसे मना कर सकती है? इतना ही नहीं, जहां कई राज्य सरकारें अपने वेबसाइट पर तहसील वार दैनिक आंकड़े उपलब्ध कराती हैं वहीं आईएमडी अब तक किसी भी स्तर पर इन प्राथामिक आंकड़ों को सार्वजनिक रूप से नहीं उपलब्ध कराती थी।
मामले की सुनवाई के 10 दिन बाद सूचना आयुक्त ने अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता का आवेदन सुनवाई योग्य है....। निःसंदेह इन आंकड़ों के प्रसार से सार्वजनिक हित जुड़ा हुआ है, और इन्हें सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि एक सार्वजनिक प्राधिकरण होने के नाते मौसम विभाग को ये आंकड़े नियमित रूप से वेबसाइट पर उपलब्ध कराना चाहिए ताकि जिन्हें आवश्यकता हो वे उसे हासिल कर सके। दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं हो सका है और विभाग ने अपने जवाब से मामले को और भी जटिल बना दिया है। आयुक्त ने मौसम विभाग को तीन सप्ताह में बगैर किसी कीमत के सैण्ड्रप को आंकड़े उपलब्ध कराने का आदेश दिया। साथ ही आईएमडी के महानिदेशक को आदेश दिया कि वे इस संदर्भ में अपनी नीति की समीक्षा करके एक माह में जवाब प्रस्तुत करें। सैण्ड्रप ने इस आदेश पर खुशी जताते हुए उम्मीद जतायी कि भविष्य में मौसम विभाग के ये आवश्यक आंकड़े आम लोगों को उपलब्ध हो पाएंगे! पूरी प्रक्रिया में लगभग एक साल लग गए लेकिन नतीजा सकारात्मक रहा। मांगे गए सभी आंकड़े सैण्ड्रप को उपलब्ध हो चुके हैं और अब ये सैण्ड्रप की वेबसाइट (www.sandrp.in/news) पर उपलब्ध हैं।
/articles/sauucanaa-kae-adhaikaara-kaa-kamaala