सुरक्षित पेयजल तक पहुंच का संकेत उचित स्वच्छता स्रोतों का उपयोग करने वाले लोगों की संख्या से मिलता है. इन संशोधित जल स्रोतों में घरेलू कनेक्शन, सार्वजनिक स्टैंडपाइप, बोरहोल की स्थिति, संरक्षित कुएं, सरंक्षित झरने और वर्षा जल संग्रह शामिल हैं. पूर्व उल्लिखित सीमा तक संशोधित पेय जल को प्रोत्साहन नहीं देने वाले स्रोतों में शामिल हैं: असंरक्षित कुएं, असंरक्षित झरने, नदियां या तालाब, विक्रेता प्रदत्त पानी, बोतलबंद पानी (पाने की गुणवता के नहीं, बल्कि सीमित मात्रा के परिणाम स्वरूप), टैंकर ट्रक का पानी. स्वच्छता संबंधी पानी तक पहुंच मलोत्सर्ग के लिए संशोधित स्वच्छता सुविधाओं तक पहुंच के साथ हाथों-हाथ होता है. इन सुविधाओं में सार्वजनिक सीवर तक संपर्क, सेप्टिक प्रणाली तक कनेक्शन, पोर-फ्लश शौचालय और हवादार संशोधित गड्ढे वाले शौचालय शामिल हैं. असंशोधित स्वच्छता सुविधाएं हैं: सार्वजनिक या साझा शौचालय, खुले गड्ढे वाले शौचालय या बकेट शौचालय.
विकासशील दुनिया में दस्त संबंधी बीमारियों से होने वाली 90% से अधिक मौतें आज 5 साल से कम उम्र के बच्चों में होती हैं. कुपोषण, विशेष रूप से प्रोटीन-ऊर्जा कुपोषण जल-संबंधी दस्त वाली बीमारियों के साथ-साथ संक्रमण के प्रति बच्चों की प्रतिरोध क्षमता को कम कर सकती हैं. 2000-2003 में उप-सहाराई अफ्रीका में प्रति वर्ष पांच वर्ष से कम उम्र के 769,000 बच्चों की मौत अतिसारीय रोगों से हुई थी. उप-सहाराई क्षेत्र में जनसंख्या के केवल छत्तीस प्रतिशत लोगों तक स्वच्छता के समुचित साधनों की पहुंच के परिणाम स्वरूप प्रति दिन 2000 से अधिक बच्चों की जिंदगी छिन जाती है. दक्षिण एशिया में 2000-2003 में हर साल पाँच वर्ष से कम उम्र के 683,000 बच्चों की मौत दस्त (अतिसार संबंधी) रोगों से हो गयी थी. इसी अवधि के दौरान विकसित देशों में पांच साल से कम उम्र के 700 बच्चों की मौत दस्त (अतिसार संबंधी) रोगों से हुई थी. बेहतर जल आपूर्ति दस्त संबंधी रोगों को पच्चीस-प्रतिशत तक कम कर देती है और घरों में समुचित भंडारण एवं क्लोरीनीकरण के जरिये पीने के पानी में सुधार से दस्त (डायरिया) के दौरे उनतालीस प्रतिशत तक कम हो जाते हैं.
इसमें या तो बार बार मल त्याग करना पड़ता है या मल बहुत पतले होते हैं या दोनों ही स्थितियां हो सकती हैं।
यह अंतड़ियों में अधिक द्रव के जमा होने, अंतड़ियों द्वारा तरल पदार्थ को कम मात्रा में अवशोषित करने या अंतड़ियों में मल के तेजी से गुजरने की वजह से होता है।
डायरिया की दो स्थितियां होती हैं- एक, जिसमें दिन में पांच बार से अधिक मल त्याग करना पड़ता है या पतला मल आता है। इसे डायरिया की गंभीर स्थिति कहा जा सकता है। आनुपातिक डायरिया में व्यक्ति सामान्यतः जितनी बार मल त्यागता है उससे कुछ ज्यादा बार और कुछ पतला मल त्यागता है।
डायरिया गंभीर व दीर्घावधि की हो सकती है और प्रत्येक प्रकार के डायरिया के भिन्न-भिन्न कारण और इलाज होते हैं।डायरिया की जटिलताओं में निर्जलीकरण (डी-हाइड्रेशन), इलेक्ट्रोलाइट (खनिज) असामान्यता और मलद्वार में जलन, शामिल हैं।निर्जलीकरण (डी-हाइड्रेशन) को पीनेवाले रिहाइड्रेशन घोल की सहायता से कम किया जा सकता है और आवश्यक हो तो अंतःशिरा द्रव्य की मदद भी ली जा सकती है।
सुरक्षित पेय जल की उपलब्धता बढ़ाने के प्रयासों में से कुछ विनाशकारी साबित हुए हैं. संयुक्त राष्ट्र द्वारा जब 1980 के दशक को 'अंतरराष्ट्रीय जल दशक (इंटरनेशनल डिकेड ऑफ वाटर)' घोषित किया गया, यह धारणा बनायी गयी थी कि भूजल स्वाभाविक रूप से नदियों, तालाबों और नहरों के पानी से कहीं अधिक सुरक्षित है. हालांकि हैजा, टाइफाइड और दस्त की घटनाएं कम हुई लेकिन अन्य समस्याएं पैदा हो गयीं. उदाहरण के लिए, भारत में ग्रेनाईट चट्टानों से निकलकर पानी में मिल जाने वाले अत्यधिक फ्लोराइड से संदूषित कुएं के पानी से 60 लाख लोगों को विषाक्त बनाए जाने का अनुमान है. इस तरह के प्रभाव बच्चों की हड्डी के विरूपणों में विशेष रूप से स्पष्ट होते हैं. इसी तरह की या इससे बड़ी समस्याएं चीन, उजबेकिस्तान और इथोपिया सहित अन्य देशों में प्रत्याशित हैं. हालांकि न्यूनतम मात्रा में फ्लोराइड दंत स्वास्थ्य के लिए उपयोगी है, बड़ी मात्राओं में इसकी खुराक हड्डी की संरचना को प्रभावित करती है.
एक संबंधित समस्या में बांग्लादेश के 12 मिलियन ट्यूब वेलों में से आधे में आर्सेनिक की अस्वीकार्य मात्रा मौजूद होने का अनुमान लगाया गया है क्योंकि इन कुओं की खुदाई अधिक गहरी (100 मीटर से अधिक) नहीं की गयी है. बांग्लादेशी सरकार इस समस्या के समाधान के लिए विश्व बैंक द्वारा 1998 में आवंटित 34 मिलियन डॉलर धनराशि में से 7 मिलियन डॉलर से भी कम खर्च कर पाई थी.[36] [37] प्राकृतिक आर्सेनिक की विषाक्तता एक वैश्विक खतरा है, सभी महाद्वीपों के 70 देशों में 140 मिलियन लोग इससे प्रभावित हैं.[38] इन उदाहरणों से प्रत्येक स्थान को अलग-अलग मामले के रूप में जांच करने की आवश्यकता स्पष्ट नजर आती है और ऐसा नहीं माना जा सकता है कि एक क्षेत्र में किया गया काम दूसरे क्षेत्र में प्रभावी होगा.
बच्चों में एक प्रमुख स्वास्थ्य संबंधी प्रभाव के रूप में दस्त (डायरिया)
विकासशील दुनिया में दस्त संबंधी बीमारियों से होने वाली 90% से अधिक मौतें आज 5 साल से कम उम्र के बच्चों में होती हैं. कुपोषण, विशेष रूप से प्रोटीन-ऊर्जा कुपोषण जल-संबंधी दस्त वाली बीमारियों के साथ-साथ संक्रमण के प्रति बच्चों की प्रतिरोध क्षमता को कम कर सकती हैं. 2000-2003 में उप-सहाराई अफ्रीका में प्रति वर्ष पांच वर्ष से कम उम्र के 769,000 बच्चों की मौत अतिसारीय रोगों से हुई थी. उप-सहाराई क्षेत्र में जनसंख्या के केवल छत्तीस प्रतिशत लोगों तक स्वच्छता के समुचित साधनों की पहुंच के परिणाम स्वरूप प्रति दिन 2000 से अधिक बच्चों की जिंदगी छिन जाती है. दक्षिण एशिया में 2000-2003 में हर साल पाँच वर्ष से कम उम्र के 683,000 बच्चों की मौत दस्त (अतिसार संबंधी) रोगों से हो गयी थी. इसी अवधि के दौरान विकसित देशों में पांच साल से कम उम्र के 700 बच्चों की मौत दस्त (अतिसार संबंधी) रोगों से हुई थी. बेहतर जल आपूर्ति दस्त संबंधी रोगों को पच्चीस-प्रतिशत तक कम कर देती है और घरों में समुचित भंडारण एवं क्लोरीनीकरण के जरिये पीने के पानी में सुधार से दस्त (डायरिया) के दौरे उनतालीस प्रतिशत तक कम हो जाते हैं.
डायरिया
इसमें या तो बार बार मल त्याग करना पड़ता है या मल बहुत पतले होते हैं या दोनों ही स्थितियां हो सकती हैं।
यह अंतड़ियों में अधिक द्रव के जमा होने, अंतड़ियों द्वारा तरल पदार्थ को कम मात्रा में अवशोषित करने या अंतड़ियों में मल के तेजी से गुजरने की वजह से होता है।
डायरिया की दो स्थितियां होती हैं- एक, जिसमें दिन में पांच बार से अधिक मल त्याग करना पड़ता है या पतला मल आता है। इसे डायरिया की गंभीर स्थिति कहा जा सकता है। आनुपातिक डायरिया में व्यक्ति सामान्यतः जितनी बार मल त्यागता है उससे कुछ ज्यादा बार और कुछ पतला मल त्यागता है।
डायरिया गंभीर व दीर्घावधि की हो सकती है और प्रत्येक प्रकार के डायरिया के भिन्न-भिन्न कारण और इलाज होते हैं।डायरिया की जटिलताओं में निर्जलीकरण (डी-हाइड्रेशन), इलेक्ट्रोलाइट (खनिज) असामान्यता और मलद्वार में जलन, शामिल हैं।निर्जलीकरण (डी-हाइड्रेशन) को पीनेवाले रिहाइड्रेशन घोल की सहायता से कम किया जा सकता है और आवश्यक हो तो अंतःशिरा द्रव्य की मदद भी ली जा सकती है।
कुओं का संदूषण
सुरक्षित पेय जल की उपलब्धता बढ़ाने के प्रयासों में से कुछ विनाशकारी साबित हुए हैं. संयुक्त राष्ट्र द्वारा जब 1980 के दशक को 'अंतरराष्ट्रीय जल दशक (इंटरनेशनल डिकेड ऑफ वाटर)' घोषित किया गया, यह धारणा बनायी गयी थी कि भूजल स्वाभाविक रूप से नदियों, तालाबों और नहरों के पानी से कहीं अधिक सुरक्षित है. हालांकि हैजा, टाइफाइड और दस्त की घटनाएं कम हुई लेकिन अन्य समस्याएं पैदा हो गयीं. उदाहरण के लिए, भारत में ग्रेनाईट चट्टानों से निकलकर पानी में मिल जाने वाले अत्यधिक फ्लोराइड से संदूषित कुएं के पानी से 60 लाख लोगों को विषाक्त बनाए जाने का अनुमान है. इस तरह के प्रभाव बच्चों की हड्डी के विरूपणों में विशेष रूप से स्पष्ट होते हैं. इसी तरह की या इससे बड़ी समस्याएं चीन, उजबेकिस्तान और इथोपिया सहित अन्य देशों में प्रत्याशित हैं. हालांकि न्यूनतम मात्रा में फ्लोराइड दंत स्वास्थ्य के लिए उपयोगी है, बड़ी मात्राओं में इसकी खुराक हड्डी की संरचना को प्रभावित करती है.
एक संबंधित समस्या में बांग्लादेश के 12 मिलियन ट्यूब वेलों में से आधे में आर्सेनिक की अस्वीकार्य मात्रा मौजूद होने का अनुमान लगाया गया है क्योंकि इन कुओं की खुदाई अधिक गहरी (100 मीटर से अधिक) नहीं की गयी है. बांग्लादेशी सरकार इस समस्या के समाधान के लिए विश्व बैंक द्वारा 1998 में आवंटित 34 मिलियन डॉलर धनराशि में से 7 मिलियन डॉलर से भी कम खर्च कर पाई थी.[36] [37] प्राकृतिक आर्सेनिक की विषाक्तता एक वैश्विक खतरा है, सभी महाद्वीपों के 70 देशों में 140 मिलियन लोग इससे प्रभावित हैं.[38] इन उदाहरणों से प्रत्येक स्थान को अलग-अलग मामले के रूप में जांच करने की आवश्यकता स्पष्ट नजर आती है और ऐसा नहीं माना जा सकता है कि एक क्षेत्र में किया गया काम दूसरे क्षेत्र में प्रभावी होगा.
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