सुरक्षित एवं आपदा मुक्त शहर

संवहनीय व्यवस्था तभी सम्भव है, जब वस्तुओं और एजेंसियों के बीच ऐसे भौतिक एवं आभासी जोड़ तैयार किए जाएँ, जो पहले कभी नहीं थे। प्रौद्योगिकी को भूमिका निभानी होगी और वह हमारे पारितन्त्र से मिली समूची सूचना का उपभोग करने का हमारा तरीका ही बदल देगी। इससे पारदर्शिता लाने तथा भ्रष्टाचार की बुराई दूर करने में मदद मिलेगी, जिससे कारोबार तथा आम नागरिक के जीवन की गुणवत्ता भी सुधारेगी। यह चरणबद्ध प्रक्रिया होगी, जो स्मार्ट सिटी अभियान के लिए हाल ही में कोष के आवंटन के साथ आरम्भ हो चुकी है।

स्मार्ट सिटी पर प्रधानमन्त्री का तभी से मुखर जोर रहा है, जब से उन्होंने केन्द्र सरकार की कमान सम्भाली है। उन्होंने घोषणा की है कि उनकी सरकार 100 स्मार्ट सिटी बनाने की प्रक्रिया आरम्भ करेगी, जिसके लिए इस वर्ष के बजट प्रस्ताव में 7060 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। पहले से मौजूद मझोले आकार के कुछ शहरों को चिन्हित करने का कार्य नेशनल सस्टेनेबल एंड स्मार्ट सिटी मिशन (एनएसएचएससीएम) द्वारा होगा, जो इन परियोजनाओं को आगे बढ़ायेगा।

हम जानते हैं कि शहरीकरण जारी रहेगा। प्रत्येक देश के लिए शहर विकास के उत्प्रेरक का काम करते हैं और भारत भी अलग नहीं है। 2011 की जनसंख्या के आँकड़ों के अनुसार लगभग 31 प्रतिशत जनसंख्या शहरी क्षेत्रों में रहती है और इसके 40 प्रतिशत तक जाने की अपेक्षा है तथा अगले 15 वर्ष में राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में इसका योगदान लगभग 75 प्रतिशत रहेगा। यदि वैश्विक अनुभव की बात की जाए तो किसी भी देश में 30 प्रतिशत के बाद शहरीकरण अधिक तेजी से होता है। इस प्रकार भारत उस मोड़ पर खड़ा है, जहाँ शहरों में कमी नहीं आएगी।

इसलिए विकास की सम्भावना को बढ़ाने तथा गिरावट को रोकने के लिए बुनियादी ढाँचे (सभी प्रकार के) में निवेश करना बहुत महत्त्वपूर्ण है। आवश्यकतओं एवं भावी परिदृश्य को देखते हुए प्रधानमन्त्री के नेतृत्व में भारत सरकार ने देश में 100 स्मार्ट शहर विकसित करने का कार्य आरम्भ किया है।

क्या है स्मार्ट सिटी?


स्मार्ट सिटी की परिकल्पना को देखते हुए इसे कई प्रकार से परिभाषित किया गया है। इसकी कोई मानक परिभाषा नहीं है, लेकिन कुछ परिभाषाएँ इस प्रकार हैं:

अमेरिकी वैज्ञानिक एवं तकनीकी सूचना कार्यालय के अनुसार स्मार्ट सिटी वह है, जो अपने नाजुक बुनियादी ढाँचे की स्थिति पर नजर रखे और उसका एकीकरण करे, अपने संसाधनों का सबसे अधिक इस्तेमाल करे, देखरेख की गतिविधियों की योजना बनाए और सुरक्षा के पहलू पर नजर रखे तथा साथ में सेवाओं में अधिक से अधिक वृद्धि करे। ब्रिटेन में कारोबारी नवाचार एवं कौशल विभाग कहता है कि स्मार्ट सिटी “वे प्रक्रिया अथवा कदम हैं, जिनके माध्यम से शहर रहने के अधिक योग्य और लचीले बनते हैं तथा इस प्रकार नई चुनौतियों पर शीघ्र प्रतिक्रिया देने में सक्षम होते हैं। इस प्रकार स्मार्ट सिटी में प्रत्येक नागरिक को सभी सार्वजनिक एवं निजी सेवाओं का प्रयोग अपने लिए सर्वश्रेष्ठ तरीके से करना चाहिए।”

क्रियान्वयन के दृष्टिकोण से देखा जाए तो स्मार्ट सिटी को मोटे तौर पर मौजूद पारम्परिक क्षमताओं का लाभ उठाना चाहिए तथा जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लिए आधुनिक क्षमताओं, सतत विकास एवं संसाधनों के बेहतर प्रबंधन पर ध्यान देना चाहिए।

रूपरेखा एवं प्रमुख विशेषताएँ


शहरी विकास मन्त्रालय के व्यापक दिशा-निर्देश के अन्तर्गत तीन प्रमुख क्षमताओं वाले एकीकृत खाके को क्रियान्वयन का माॅडल कहा जा सकता है। इसमें उन प्रमुख घटकों पर प्रकाश डाला गया है, जो बुनियादी ढाँचे को सक्षम बनाने वाले घटक के साथ स्मार्ट सिटी को परिभाषित करते हैं और उसकी आपूर्ति सुनिश्चित करते हैं।

स्मार्ट सिटी का पारितन्त्र सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्रों के बीच व्यापक साझेदारी (पीपीपी) है। नगर योजनाकार एवं विकासकर्ता, गैर सरकारी संगठन, आईटी प्रणाली का एकीकरण करने वाले, साॅफ्टवेयर आपूर्तिकर्ता, ऊर्जा एवं जनोपयोगी सेवा प्रदाता, आॅटोमोटिव उद्योग एवं मोबाइल प्रौद्योगिकी, क्लाउड कम्प्यूटिंग, नेटवर्किंग, मशीन टु मशीन तथा रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन के लिए तकनीकी प्रदाता, सभी को समुदाय के साथ मिलकर भूमिका निभानी होती है।

शहरों को सुरक्षित एवं आपदा मुक्त रखने का बिंदु कुछ हद तक जीवन की निरन्तरता तथा गुणवत्ता में ही आ जाता है। कुछ सम्भावित तरीकों पर नजर डालते हैं, जिनसे शहर (क) आपदा मुक्त एवं (ख) सुरक्षित रहेंगे।

(क) जन संरक्षा एवं सुरक्षा


जनता की संरक्षा एवं सुरक्षा नगर प्रशासकों के लिए सर्वोपरि हो गई है। अपराध, प्राकृतिक आपदा, दुर्घटना अथवा आतंकवाद से सुरक्षा इसके दायरे में आते हैं। संरक्षा केवल सड़क पर हिंसा तक सीमित नहीं रह गई है बल्कि इसमें वित्तीय अपराध, साइबर अपराध, सूचना की चोरी आदि भी शामिल हो गई हैं। टेली सर्विलांस की भूमिका यहीं पर विश्वसनीय हो जाती है और समयोचित संचार क्षमताओं के साथ मिलकर यह आपात स्थिति के समय कार्रवाई करने में सहायता कर सकती है। खुफिया सूचना एकत्र करने और उसका विश्लेषण करने से लेकर एजेंसियों के बीच सूचना साझा करने, किसी आपात स्थिति में प्रतिक्रिया दलों के साथ सम्पर्क सुनिश्चित करने के लिए टेली सर्विलांस प्रणाली को सुचारु रूप से चलाने आदि सभी से नागरिकों एवं बुनियादी ढाँचे की सुरक्षा का वातावरण बनता है।

सुरक्षित एवं संरक्षित शहर के लिए आवश्यक कुछ प्रणालियाँ एवं उपाय इस प्रकार हैं:
i. टेली सर्विलांस
प्रणालियों का चौबीसों घंटे उपलब्ध रहना और इतना विश्वसनीय होना कि आपात स्थिति में वह परिचालन नियन्त्रण केन्द्रों से दिशा निर्देश प्राप्त कर लेंगी, महत्त्वपूर्ण है। सर्विलांस अर्थात निगरानी छोटे-मोटे अपराधों को रोकती है और खुफिया जानकारी का अच्छा स्रोत होती है। इस सूचना अथवा दृश्यों को किसी भी स्थान से किसी भी स्क्रीन पर देख पाना भी महत्त्वपूर्ण है, चाहे स्मार्टफोन के जरिए हो या लैपटाॅप अथवा पुलिस क्रूजर टर्मिनल के जरिए हो।

ii. सूचना की गोपनीयता (डेटा इंटेग्रिटी)
उपकरणों में कूटलेखन की सुविधाएँ डिजाइन करने और डालने से यह सुनिश्चित होता है कि वे आवश्यक नियन्त्रण केन्द्र से ही संचार कर सकें और यह सम्पर्क प्रमाणित किया जा सके। किन्तु गोपनीयता का अर्थ होगा कि सूचना को कूट भाषा में तैयार किया जाए ताकि उसे असुरक्षित मार्गों से भी भेजा जा सके। प्रमाणन, हस्ताक्षर एवं कूट लेखन के लिए डिजिटल प्रमाण-पत्रों का उपयोग भी किया जा सकता है। अनुसंधान समुदाय में वर्तमान में अल्गोरिद्म (कलन विधि) उपलब्ध हैं जिनका प्रयोग सूचना को साझा करते समय गोपनीयता बनाए रखने में किया जा सकता है।

iii. सहयोगपूर्ण प्रतिक्रिया के प्रयास
ऐसा बुनियादी ढाँचा रखना आवश्यक है, जो संगठनों को किसी प्रणाली से आ रही सूचना के आधार पर किसी अन्य प्रणाली में कार्य करने की क्षमता दे- उदाहरण के लिए यदि कोई प्रणाली संकेत देती है कि वाहन चुराया गया है तो उसे समीप के कैमरा को स्वतः ही निर्देश देना चाहिए कि वह चालक का वीडियो रिकाॅर्ड कर ले। सर्वश्रेष्ठ प्रणालियों से सामूहिक कार्रवाई होती है- इसी मामले में जब वाहन की पहचान हो जाती है तो समीप के सभी पुलिस अधिकारियों के पास चेतावनी पहुँचनी चाहिए, जिसके बाद वे अपनी साझी सूचना के आधार पर एक साथ कार्य करें। अथवा जब कोई नागरिक एंबुलेंस सेवा चाहता है तो सबसे निकटवर्ती अस्पताल तक के सभी ट्रैफिक सिग्नलों को सूचना मिल जानी चाहिए ताकि वे हरे हो जाएँ।

(ख) आपदा मुक्त


स्मार्ट सिटी केवल आराम पहुँचाने हेतु नहीं हैं बल्कि प्राकृतिक आपदाओं का प्रभाव कम से कम करने के लिए भी हैं। इसके लिए बुद्धिमत्तापूर्ण शहरी नियोजन तथा ऐसी इमारतों के निर्माण की आवश्यकता है, जो प्राकृतिक आपदाओं का मुकाबला कर सकें। इसके अतिरिक्त शहरों को ऊर्जा दक्षता के नए साधन, जल निकासी की बेहतर व्यवस्था एवं हवा, पानी तथा मिट्टी के शोधन की प्रणाली विकसित करनी होंगी ताकि प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव कम हो सके। सबका ध्यान रहने की माॅड्यूलर एवं स्वायत्त इकाईयों की ओर चला जाएगा, जिनमें वे सभी सुविधाएँ होंगी, जिनकी आवश्यकता किसी व्यक्ति को कई हफ्तों तक रहने के दौरान पड़ सकती है। पुनरुद्धार के उपकरण एवं 3डी प्रिंटिंग जैसे नए आविष्कार इस दिशा में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।

स्मार्ट सिटी को आपदा मुक्त बनाने वाले कुछ सरल उपाय इस प्रकार हो सकते हैं:
i. चौबीसों घंटे सम्पर्क सुनिश्चित करना
आपात स्थितियों में प्रौद्योगिकी सभी को जोड़ने का कार्य कर सकती है। आपदा से बचाव हेतु आॅनलाइन समुदाय तैयार किए जा सकते हैं और किसी विशेष आपदा की स्थिति में उनसे सम्पर्क करने की जानकारी दी जा सकती है। उदाहरण के लिए गूगल ने अपना प्रोजेक्ट लून उतारा, जिसमें गुब्बारों को ऊपर भेजकर आपदा के समय सुदूर स्थानों पर अथवा सामान्य समय में गरीब स्थानों पर लोगों को वाई-फाई की सुविधा प्रदान की जाती है। दुनिया के कुछ हिस्सों में गुब्बारों के परीक्षण के बाद अब यह परियोजना दूसरे चरण में प्रवेश करने वाली है।

ii. आपदा निवारक केन्द्र
ऐसे लचीले एवं संवहनीय समुदाय तैयार करना, जो प्राकृतिक आपदाओं के समय वैकल्पिक ऊर्जा भी उपलब्ध करा सकें। इन सहयोगी केन्द्रों का उपयोग सौर ऊर्जा, वर्षा का जल संग्रह करने और कचरे से खाद बनाने में किया जाएगा।

iii. माॅड्यूलर आवासीय सुविधाएँ, जिनका प्रयोग आवश्यकता के समय राहत शिविर लगाने में किया जा सके
इनमें खाना पकाने, नहाने और सोने के स्थान जैसी बुनियादी सुविधाएँ होंगी।

iv. स्मार्ट फोन और बुनियादी ढाँचे में सेंसरों द्वारा तैयार की गई सूचना प्राकृतिक आपदाओं के मामले में बेहतर प्रतिक्रिया दे सकती है। उदाहरण के लिए भूकम्प आने पर बचाव दलों को इम्प्लांट किए गए चिकित्सा उपकरणों अथवा सेंसरों से आ रहे सिग्नल पकड़कर प्रभावितों की सूचना दी जा सकती है। स्मार्टफोन सेंसरों से आ रहे सिग्नलों को कई गुना बढ़ा देंगे और बचाव दल उन सिग्नलों को पकड़ सकेंगे। एक अन्य उदाहरण सबवे प्लेटफाॅर्म है, जिसमें अधिक भीड़ होने पर निगरानी करने और चेतावनी देने के लिए सेंसर लगाए गए हैं। जब उन्हें लगता है कि प्लेटफाॅर्म की क्षमता भर की भीड़ आ गई है तो सेंसर पुलिस तथा यातायात अधिकारियों को स्वतः ही सूचित कर देते हैं, जो परिवहन के अतिरिक्त साधन के तौर पर बसों को स्टेशन पर भेज देते हैं।

वक्त का तकाजा है कि अलग थलग काम करने वालों से सूचना साझा कराई जाए तथा सभी मन्त्रालयों में एक समन्वित प्रकोष्ठ की स्थापना की जाए, जो इस समन्वित प्रयास की देखरेख कर सके।

संवहनीय व्यवस्था तभी सम्भव है, जब वस्तुओं और एजेंसियों के बीच ऐसे भौतिक एवं आभासी जोड़ तैयार किए जाएँ, जो पहले कभी नहीं थे। प्रौद्योगिकी को भूमिका निभानी होगी और वह हमारे पारितन्त्र से मिली समूची सूचना का उपभोग करने का हमारा तरीका ही बदल देगी। इससे पारदर्शिता लाने तथा भ्रष्टाचार की बुराई दूर करने में मदद मिलेगी, जिससे कारोबार तथा आम नागरिक के जीवन की गुणवत्ता भी सुधारेगी। यह चरणबद्ध प्रक्रिया होगी, जो स्मार्ट सिटी अभियान के लिए हाल ही में कोष के आवंटन के साथ आरम्भ हो चुकी है। इस कार्यक्रम की सम्भावना का दोहन करने के लिए निवेश के साथ प्रभावी क्रियान्वयन भी करना होगा।

लेखक मूल रूप से बैंकर हैं, जिन्हें विभिन्न क्षेत्रों का अनुभव है। मार्च 1985 में कार्मिक अधिकारी के रूप में बैंक में आने से पहले उन्होंने लगभग 15 वर्ष तक विनिर्माण एवं प्रकाशन उद्योगों में वरिष्ठ पदों पर कार्य किया था। उन्होंने एक राष्ट्रीयकृत बैंक में प्रमुख (मानव संसाधन विकास) के पद पर कार्य किया और 2009 में सेवानिवृत्त हुए। उसके बाद उन्होंने प्रख्यात राष्ट्रीय संगठनों के साथ संयुक्त निदेशक (परियोजनाए) के रूप में कार्य किया, जहाँ वह साइबर सुरक्षा समेत आन्तरिक सुरक्षा, बौद्धिक सम्पदा, विधि, भण्डारण, बैंकिंग और वित्त एवं बीमा विषयक परिषदों में रहे। फिलहाल वह उद्योग, व्यापार एवं सेवा महासंघ में महासचिव का पद सम्भाल रहे हैं। ईमेल: sg@federationits.in

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