आज जिसे हम अलग-अलग महाद्वीप और महासागर के नाम से जानते हैं वह 200 करोड़ वर्ष पहले एक ही महाद्वीप था, जिसे पेन्जिया के नाम से जाना जाता था। पेन्जिया चारों ओर से जल भाग से घिरा हुआ था, उस जल भाग को पेन्थालासा के नाम से पुकारते थे। उत्तरी अमेरिका, यूरोप तथा एशिया, पेन्जिया के उत्तरी भाग में स्थित थे, जिसे लोरेशिया कहते हैं तथा इसका दक्षिणी भाग आस्ट्रेलिया, अंटार्कटिका, प्रायद्वीपीय भारत, अफ्रीका तथा दक्षिणी अमेरिका मिलकर दक्षिणी भाग बनाते थे, जिसे गोन्डवानालैंड कहते थे।
समुद्र तथा मानव का संबंध बहुत ही पुराना है। मानव सभ्यता सबसे पहले दजला (टिगरिस, इराक में), फर्रात (यूफ्रीटीस, इराक में), नील (मिस्र में) और सिंधु नदी (पाकिस्तान) के तटों पर विकसित हुई थी। नदी तटों के किनारे रहने वाले मानव का फैलाव समुद्र के किनारे तक हो गया क्योंकि लगभग सभी नदियों का अंत सागरों व महासागरों में ही होता है। आज जितने भी बड़े शहर हैं, अधिकांशतः समुद्र के किनारे स्थित हैं, जैसे मुंबई, न्यूयार्क, लंदन, सिडनी आदि। आज भी दुनिया का अधिकांश व्यापार समुद्री मार्गों से ही होता है।प्राचीन सभ्यताओं की हिंदू पौराणिक कथाओं में समुद्र का वर्णन कई बार सुनने को मिलता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवताओं और दानवों द्वारा समुद्र मंथन की कहानियां बताई जाती हैं जिससे नवरत्नों की प्राप्ति हुई थी। विज्ञान के अनुसार, यह सर्वविदित है कि जीवन की उत्पत्ति सर्वप्रथम समुद्र के पानी में हुई थी। अतः यह कहना यथार्थ होगा कि समुद्र तथा समुद्र के बारे में जानना व समझना मनुष्य की जिज्ञासु प्रवृत्ति का द्योतक है।
प्राचीन समय में ग्रीकवासी अपने पास के समुद्र में जिब्राल्टर की तेज बहती हुई जलधारा को देखकर कहते थे कि यह एक बहुत ही बड़ी नदी है जिसे वहां के लोगों ने ओसेनस कहा तथा यह कल्पना की कि पूरी दुनिया ओसेनस से घिरी हुई है। ओसन शब्द की उत्पत्ति ग्रीक शब्द ओसेनस से हुई है। हिंदू पौराणिक ग्रंथों में समुद्र शब्द का उपयोग मिलता है। उस समय के समुद्र का अर्थ आज के सभी महासागरों के संयुक्त नाम से रहा होगा। आज पाठ्य पुस्तकों में उन्हीं समुद्रों को महासागर, सागर, खाड़ी के रूप में पढ़ने को मिलता है जो लोग समुद्र से भली-भांति परिचित हैं उन्हें तो पता होता ही है कि समुद्र क्या बला है। लेकिन जो समुद्र से दूर रहते हैं उनके लिए समुद्र की कल्पना करना बड़ा कठिन हो जाता है। यदि पूरी पृथ्वी के जल व थल भाग की बात करें तो पृथ्वी का एक बहुत बड़ा भाग जल से घिरा हुआ है जिसके अंतर्गत समुद्र, झील, नदी, तालाब सभी सम्मिलित हैं। झील, तालाब आदि को छोड़ भी दें तो पृथ्वी की पूरी जल राशि आपस में जुड़ी हुई है जिसे हम विश्व महासागर कहते हैं।
यदि ग्लोब का अवलोकन करें तो पता चलता है कि ये विश्व महासागर पृथ्वी पर असमान रूप से फैले हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में जल का भाग 60 प्रतिशत है जबकि दक्षिणी गोलार्द्ध में 81 प्रतिशत। इसके दो अर्थ हो सकते हैं, पहला कि दोनों गोलार्द्धों में जल भाग, स्थल भाग से अधिक है। दूसरा दक्षिणी गोलार्द्ध में जल राशि, उत्तरी गोलार्द्ध से भी अधिक है।
महासागरों का नामकरण
नक्शे में या ग्लोब पर जिन महासागरों व समुद्रों को दिखाया जाता है वास्तव में उन सभी महासागरों का पानी एक दूसरे से मिला हुआ है तथा ये एक ही महासागर कहलाते हैं। अब जरा सोचें कि विश्व के एक महासागर को अलग-अलग नाम देने की क्या जरूरत पड़ी होगी तथा किसके द्वारा नामकरण हुआ होगा? इस प्रश्न का उत्तर इतिहास के गर्भ में छुपा है लेकिन ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है कि जब नाविकों को समुद्री मार्गों से यात्रा के दौरान एक स्थान से दूसरे स्थान जाते समय एक महासागर से दूसरे महासागर के जल की प्रकृति में अंतर मिला होगा, उस समय अलग-अलग पहचान बनाने की जरूरत पड़ी होगी। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार व्यक्तियों के अलग-अलग नाम व पहचान होती है। दूसरी बात विभिन्न देशों द्वारा अपने पास के समुद्र पर अपनी प्रभुसत्ता बनाए रखने हेतु भी समुद्र का नाम उस देश के नाम पर पड़ा होगा? जिस व्यक्ति द्वारा समुद्रों के बारे में पहली बार जानकारी प्राप्त की जाती होगी उसके नाम पर भी उसका नाम रखा जाता होगा। ऐसे कई और भी अन्य कारण हो सकते हैं।
जिसे हम विश्व महासागर कहते हैं उसके मुख्यतः तीन भाग किए जाते हैं और कहा जाता है कि ये तीन महासागर हैं- उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका के पश्चिमी तट से लेकर पूर्वी एशिया और आस्ट्रेलिया के पूर्वी तट की जलराशि को प्रशांत महासागर; यूरोप व अफ्रीका के पश्चिमी तट से लेकर उत्तर व दक्षिण अमेरिका के पूर्वी तट की जलराशि को अटलांटिक महासागर; भारत व पाकिस्तान के दक्षिण भाग, अफ्रीका के पूर्वी तट इंडोनेशिया के पश्चिमी तट एवं आस्ट्रेलिया के उत्तर पूर्वी व दक्षिणी तट की जलराशि को हिंद महासागर कहा जाता है।
हजारों साल पहले दुनिया के बारे में जब लोगों को जानकारी कम थी, उस समय समुद्र के माध्यम से लोग एक देश से दूसरे देशों की यात्रा करते थे। इन यात्राओं का उद्देश्य दूसरे देशों की खोज करना या व्यापार करना हो सकता था। यूरोप के नाविकों की इस तरह के साहसिक कार्यों में काफी रुचि व लगन थी। यूरोपीय नाविक शुरुआत में तो अपने आसपास के देशों तक समुद्र के किनारे-किनारे ही यात्रा करते थे, क्योंकि बीच समुद्र में जाना काफी जोखिम भरा भी था। दूसरा, उन देशों के शासकों द्वारा भी मनाही थी। अतः यूरोप के पश्चिमी किनारे से नाविक अफ्रीका के तटों के सहारे भूमध्यरेखा की ओर बढ़ते गए। ज्यों-ज्यों वे भूमध्यरेखा की ओर बढ़ते जाते, पानी का तापमान भी बढ़ता जाता था जिससे नाविकों के मन में डर बना रहता था कि वे भूमध्यरेखा तक नहीं पहुंच सकते क्योंकि वहां समुद्र का पानी उबलता मिलेगा। लेकिन कोलम्बस ने उस कोरी कल्पना को झुठला दिया था। उसके बाद मैगलन ने भी अपनी समुद्र यात्रा के अंतर्गत अटलांटिक महासागर को पार कर प्रशांत महासागर की खोजी यात्रा पूरी की।
सर्वप्रथम अटलांटिक महासागर के बारे में लोगों ने जानकारी प्राप्त की। अटलांटिक महासागर के बारे में कहा जाता है कि इसका नाम यूनानी देवता ‘एटलस’ के नाम पर अटलांटिक महासागर पड़ा। इसे हिंदी में आंध्र महासागर कहा जाता है। प्रशांत महासागर का नाम प्रशांत इसलिए पड़ा कि यह महासागर अटलांटिक महासागर की तुलना में काफी शांत दिखने वाला (प्रशांत-शांत रहने वाला) है। इसका यह नाम पुर्तगाली अन्वेषक मैगलन ने रखा था। मैगलन एक ऐसा साहसिक अन्वेषक था जिसने पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले पहले अभियान दल का नेतृत्व किया था। मैगलन जब तूफानी अटलांटिक महासागर को पार कर प्रशांत महासागर में आया तो इस महासागर का जल उसे अटलांटिक की तुलना में काफी शांत दिखा, अतः इसका नाम प्रशांत महासागर पड़ा। भारत के दक्षिण में स्थित महासागर का नाम हिंद महासागर भारत के प्राचीन नाम पर पड़ा। इसी तरह अरब सागर का नाम अरब लोगों के व्यापारिक प्रभुत्व का फल है।
महासागर कैसे बने?
आज जिसे हम अलग-अलग महाद्वीप और महासागर के नाम से जानते हैं वह 200 करोड़ वर्ष पहले एक ही महाद्वीप था, जिसे पेन्जिया के नाम से जाना जाता था। पेन्जिया चारों ओर से जल भाग से घिरा हुआ था, उस जल भाग को पेन्थालासा के नाम से पुकारते थे। उत्तरी अमेरिका, यूरोप तथा एशिया, पेन्जिया के उत्तरी भाग में स्थित थे, जिसे लोरेशिया कहते हैं तथा इसका दक्षिणी भाग आस्ट्रेलिया, अंटार्कटिका, प्रायद्वीपीय भारत, अफ्रीका तथा दक्षिणी अमेरिका मिलकर दक्षिणी भाग बनाते थे, जिसे गोन्डवानालैंड कहते थे। लोरेशिया तथा गोन्डवानालैंड के बीच टेथिस सागर स्थित था। उत्तरी अमेरिका, यूरोप से तथा दक्षिणी अमेरिका अफ्रीका से अलग हुए जिससे अटलांटिक महासागर का जन्म हुआ। अंटार्कटिका एवं आस्ट्रेलिया, प्रायद्वीपीय भारत तथा अफ्रीका से दूर होते गए जिससे पेन्थालासा का कुछ भाग हिंद महासागर में बदल गया। इस प्रकार आज ये महासागर धरती पर विद्यमान हैं। महासागरों के निर्माण में अरबों वर्ष लग जाते हैं। महासागर और महाद्वीपों के सरकने की प्रक्रिया इतनी धीमी गति से होती है कि आप केवल इसकी कल्पना ही कर सकते हैं, न कि अपने जीवन में इसे देख सकते हैं।
सात समुद्र
पहले के एक समुद्र से अब तीन महासागर बने। इसके बाद अटलांटिक महासागर के उत्तरी भाग, जो यूरोप व एशिया तथा उत्तरी अमेरिका महाद्वीप से घिरा हुआ है, को एक चौथे महासागर ‘आर्कटिक महासागर’ या ध्रुवीय सागर का दर्जा प्राप्त हुआ जिसे आर्कटिक महासागर कहा जाता है। वास्तव में यह तीन ओर से थल भाग से घिरा हुआ है। अतः इसे गल्फ कहना ज्यादा न्यायसंगत होगा। लेकिन जीवों की विभिन्नता, जलवायु का अलग होना आदि कई कारणों से उसे महासागर के रूप में सम्मिलित किया गया है। जब केवल तीन महासागर ही माने जाते थे उस समय उत्तरी ध्रुवीय महासागर को, अटलांटिक महासागर का ही हिस्सा माना जाता था।
सन् 2000 ई. में अंतरराष्ट्रीय समुद्र विज्ञान ब्यूरो की बैठक में एक नए महासागर का नाम जुड़ गया जिसे दक्षिणी महासागर या अंटार्कटिक महासागर के नाम से पहचाना जाने लगा। अब इसे पांचवा महासागर बनने का गौरव प्राप्त है।
यह महासागर उत्तरी ध्रुवीय महासागर से बड़ा है तथा दक्षिणी गोलार्द्ध के 60 डिग्री दक्षिणी अक्षांश रेखा से अंटार्कटिक महाद्वीप तक फैला है। इसमें हिंद महासागर, प्रशांत तथा अटलांटिक तीनों महासागरों का भाग जुड़ गया।
हमने जाना कि पृथ्वी पर स्थित महासागर की जलराशि आपस में जुड़ी हुई है तथा उसे एक महासागर के रूप में जाना जाता है। उसे तीन भागों में बांटा गया है, प्रशांत हिंद तथा अटलांटिक। उसमें दो नाम और जुड़े, ध्रुवीय सागर तथा दक्षिणी महासागर। अब प्रश्न यह उठता है कि पुराने समय में सात समुद्रों के बारे में कहा गया है, वह सातों समुद्र कौन-कौन हैं?यह वास्तविकता थी या सातों समुद्र की कपोल कल्पना थी?
अंतरराष्ट्रीय समुद्र विज्ञान ब्यूरो क्या है?
पुराने सात समुद्रों के नामों को लेकर भूगोलविदों में काफी मतभेद रहे हैं। वे अपने-अपने तर्कों के आधार पर अलग-अलग नाम से सात समुद्रों को गिनवाते हैं। 15वीं शताब्दी के पहले तक जो सात समुद्र थे यथा भूमध्यसागर, लाल सागर, काला सागर, एड्रीयाटिक सागर, कैस्पियन सागर, परसियन गल्फ और हिंद महासागर। सन् 1450 से 1650 के बीच (खोजों का युग) कुछ भूगोलविदों ने अनौपचारिक सूची बनाई थी (जो नौकायन लायक थे) : अटलांटिक महासागर, प्रशांत महासागर, हिंद महासागर, आर्कटिक महासागर तथा भूमध्य सागर, कैरिबियन सागर व मैक्सिकों की खाड़ी। कुछ अन्य भूगोलवेत्ताओं का मानना है कि जो सात समुद्र थे, वे इस प्रकार हैं- भूमध्य सागर, लाल सागर, हिंद महासागर, परसियन गल्फ, चीन सागर और पश्चिमी व पूर्वी अफ्रीका सागर। इस प्रकार प्राचीन हिंदू, चीन, परसियन, रोमन लोग सातों समुद्रों के बारे में जो बताते हैं वे बिल्कुल ही अलग-अलग नाम हैं।
सातों समुद्रों के नामों में महासागर व सागर दोनों का नाम सम्मिलित है। यदि इस प्रकार आज के सागर व महासागर को देखें तो कई सागर एवं महासागर धरती पर स्थित हैं। इनमें से किसी भी सागर का नाम उन सातों समुद्र के अंतर्गत लिया जा सकता है। हमें यहां महासागर, सागर व खाड़ी में फर्क समझना चाहिए।
1. महासागर : पृथ्वी का वह भाग जो विशाल जलराशि (लवणीय जल) से घिरे हुए हैं, महासागर कहलाता है। पृथ्वी का 70 प्रतिशत भाग महासागरों से घिरा है।
2. महाद्वीप : पृथ्वी का वह बड़ा भू-भाग जो चारों तरफ से समुद्रों से घिरा है।
3. सागर : लवणीय जल का वह बड़ा क्षेत्र जो महासागर से जुड़ा हुआ हो, सागर कहलाता है।
4. गल्फ : जल का वह भाग जो तीन तरफ स्थल भाग से घिरा हुआ हो, उसे गल्फ कहते हैं। गल्फ व खाड़ी लगभग समानार्थी शब्द हैं। गल्फ व खाड़ी किसी भी सागर या महासागर के एक भाग होते हैं। वास्तव में यदि आज सात समुद्र की बात करें तो कह सकते हैं कि प्रशांत महासागर, अटलांटिक महासागर, हिंद महासागर, आर्कटिक महासागर तथा दक्षिणी महासागर कुल पांच महासागर है, जो पाठ्य-पुस्तकों में वर्णित है। प्रशांत महासागर तथा अटलांटिक महासागर का विस्तार उत्तरी गोलार्द्ध तथा दक्षिणी गोलार्द्ध दोनों जगह है इसलिए भूमध्यरेखा के उत्तर में स्थित उत्तरी प्रशांत महासागर तथा दक्षिण में स्थित दक्षिणी प्रशांत महासागर स्थित हैं। इस प्रकार कुल मिलाकर सात महासागरों या सात समुंदर का आंकड़ा पूरा हो जाता है।
क्या वही सात महासागर आज भी पृथ्वी पर स्थित हैं जिन्हें प्राचीन काल में सात समुद्र कहा जाता था। यह अभी भी खोज का विषय है।
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श्री संजय कुमार तिवारी
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