एनजीटी ने 9 जून, 2020 को सुबरनरेखा नदी, तहसील जलेश्वर, जिला बालासोर, ओडिशा में अवैध रेत खनन के मामले की जांच के लिए एक संयुक्त समिति गठित करने का निर्देश दिया। रेत खनन के प्रभाव से पंचुघंटा के ग्रामीण प्रभावित हो रहे हैं - क्योंकि वहां वायु प्रदूषण, जल स्तर में कमी, नदी के प्रवाह में परिवर्तन से लकड़ी के पुल और नदी को पार करने वाले मार्ग पर रुकावट आ रही है।
इसके अलावा, अंधाधुंध रेत खनन से पर्यावरण को गंभीर खतरा पैदा हो रहा है और पर्यावरणीय क्षरण और पर्यावरणीय प्रभाव पड़ रहा है। क्योंकि रेत खनन से पहले इसका पर्यावरणीय प्रभाव का कोई आकलन नहीं किया गया था। इसके अलावा, रेत खनन में लगे ट्रकों और ट्रैक्टरों की भारी आवाजाही देखी जा रही है। खदान के लिए रोड के साथ कोई ग्रीन बेल्ट विकसित नहीं किया गया। शोर और धूल को रोकने के लिए भी कोई अवरोधक नहीं बनाया गया है।
कृत्रिम रेत तट बनाए गए, जिससे नदी का जल बहाव रुक गया है। वाहनों के लिए नदी पार करने के लिए लकड़ी के पुलों का निर्माण किया गया है। मशीनों के द्वारा खनन का भी सहारा लिया जा रहा है जबकि यहां केवल मैनुअल खनन की अनुमति है। अनुमति से अधिक मात्रा में खनन भी किया जा रहा है।
इस प्रकार जो खनन गतिविधि की जा रही है, वह न केवल अवैज्ञानिक है, बल्कि शिकायतकर्ता के अनुसार, एहतियाती नियमों और ईआईए अधिसूचना, 2006 के खिलाफ भी है।
दूसरी तरफ, न्यायमूर्ति सोनम फिंटसो वांग्दी की पीठ ने 10 जून को झारखंड के दुमका, पाकुड़ और देवगढ़ जिलों में नदी में खनन के मामले की जांच के लिए एक संयुक्त समिति के गठन करने निर्देश दिया।
एमडी रिजवान द्वारा अदालत में दायर एक आवेदन में आरोप लगाया गया था कि उपरोक्त जिलों में नदी के किनारे खनन हो रहा, यहां तक कि बरसात के मौसम में भी यह जारी है। जो कि सस्टेनेबल सैंड माइनिंग मैनेजमेंट गाइडलाइन्स, 2016 का उल्लंघन है। जबकि 2017 से ही झारखंड राज्य ने बरसात के मौसम में नदी के किनारे रेत खनन पर प्रतिबंध लगाया है, लेकिन फिर भी इन जिलों में ऐसी गतिविधिया लगातार चल रही थी।
अदालत ने पाया कि इतने साल बीतने के बाद भी, अवैध गतिविधियों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई।
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