सतत कृषि विकास की ओर

मृदा संरक्षण समय की मांग
मृदा संरक्षण समय की मांग
वर्तमान सरकार द्वारा अपने गत चार वर्षों के कार्यकाल में कृषि क्षेत्र को उच्च प्राथमिकता दी गई है। कृषि एवं ग्रामीण विकास से जुड़ी तमाम नई योजनाएँ भी इसी क्रम में अस्तित्व में आई हैं। इन योजनाओं के सफल कार्यान्वयन के सकारात्मक नतीजे भी अब सामने आने लगे हैं और आज देश खाद्यान्न, दूध, फल, सब्जी, मछली, मुर्गीपालन तथा पशुपालन के क्षेत्र में न सिर्फ आत्मनिर्भरता के स्तर से आगे बढ़ चुका है बल्कि विविध प्रकार के कृषि उत्पादों का निर्यात भी कर रहा है। प्रधानमंत्री द्वारा वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का संकल्प भी इन्हीं आशातीत परिणामों को ध्यान में रखकर देश के समक्ष किया गया है।

इसमें कोई दो राय नहीं होनी चाहिए कि कृषि प्रगति और ग्रामीण विकास एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। भारत जैसे कृषि प्रधान देश में कृषि विकास के बिना ग्रामीण उत्थान की कल्पना नहीं की जा सकती है। इसके पीछे एक कारण यह भी है कि देश के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी दो-तिहाई से अधिक आबादी बसती है और अधिकांश लोगों की आजीविका का आधार प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि से जुड़ा हुआ है। सम्भवतः यही कारण है कि सरकारी नीतियों में कृषि विकास के जरिए ग्रामीण आबादी के जीवन-स्तर में सुधार पर लम्बे समय से फोकस किया जा रहा है। इसी सोच के तहत वर्तमान सरकार द्वारा भी कृषि विकास से जुड़ी नीतियाँ अपनाई जा जा रही हैं। देश के बहुसंख्यक कृषक समुदाय के जीवन को बेहतर बनाने और उनकी आमदनी बढ़ाने पर आधारित नवोन्मेषी योजनाएँ इसी सोच का नतीजा है। केन्द्र सरकार के स्तर पर कार्यान्वित की जाने वाली ऐसी योजनाओं और कार्यक्रमों के अलावा विभिन्न प्रादेशिक सरकारों द्वारा भी इस दिशा में निरन्तर प्रयास किये जा रहे हैं।

वर्तमान परिदृश्य

वर्तमान सरकार द्वारा अपने गत चार वर्षों के कार्यकाल में कृषि क्षेत्र को काफी प्राथमिकता दी गई है। कृषि एवं ग्रामीण विकास से जुड़ी तमाम नई योजनाएँ भी इसी क्रम में अस्तित्व में आई हैं। इन योजनाओं के सफल कार्यान्वयन के सकारात्मक नतीजे भी अब सामने आने लगे हैं और आज देश खाद्यान्न, दूध, फल, सब्जी, मछली, मुर्गीपालन तथा पशुपालन के क्षेत्र में न सिर्फ आत्मनिर्भरता के स्तर से आगे बढ़ चुका है बल्कि विविध प्रकार के कृषि उत्पादों का निर्यात भी कर रहा है। बहुत से कृषि उत्पादों का शीर्ष उत्पादक होने के कारण आज देश में अनाज का सरप्लस भण्डार मौजूद है। इन योजनाओं की बदौलत किसानों की आमदनी में भी उल्लेखनीय सुधार के साथ अधिक बहुमूल्य विदेशी मुद्रा की कमाई भी सम्भव हो सकी है। प्रधानमंत्री द्वारा वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का संकल्प भी इन्हीं आशातीत परिणामों को ध्यान में रखकर देश के समक्ष किया गया है।

चार सूत्री रोडमैप

हाल ही में ‘कृषि 2022 दोगुनी कृषक आय’ विषय पर कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा आयोजित संगोष्ठी में इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु तैयार चार सूत्री रोडमैप पर प्रधानमंत्री द्वारा विस्तार से चर्चा की गई। ये चार सूत्र हैं- कृषि लागत में कमी, मुनाफादायक मूल्य की प्राप्ति, कृषि अपशिष्टों का प्रसंस्करण तथा गैर-कृषि आधारित आमदनी के स्रोतों का विकास। इस संगोष्ठी में कृषि नीति-निर्धारकों, कृषकों और अर्थशास्त्रियों द्वारा हिस्सा लिया गया था। इसी क्रम में उन्होंने ‘स्टार्टअप एग्रो इण्डिया’ प्रोजेक्ट की भी शुरुआत करने की घोषणा की जिसके अन्तर्गत कृषि आधारित विभिन्न प्रकार के स्टार्टअप्स को सरकारी तौर पर प्रोत्साहन दिया जाएगा। इसका मूल उद्देश्य कृषि प्रक्रियाओं को अधिक दक्ष और कारगर बनाना तथा युवाओं को कृषि आधारित उद्यमों के प्रति आकर्षित करना है।

मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना

यहाँ यह उल्लेख करना भी प्रासंगिक होगा कि भारत सरकार द्वारा चलाई जा रही मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना के भी सुखद परिणाम अब सामने आने लगे हैं। मृदा जाँच से यह पता चलने पर कि किस पोषक तत्व की कमी है, कृषकों द्वारा अनुमान के आधार पर अब उर्वरकों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है तथा इसकी वजह से उर्वरक पर होने वाले खर्च में भी 8.10 प्रतिशत तक कमी देखने को मिल रही है। इसके अतिरिक्त खेतों में सही उर्वरकों के इस्तेमाल से फसलों की उत्पादकता में भी 5.6 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी देखने में आ रही है। इस योजना के तहत दिसम्बर, 2017 तक 10.58 करोड़ अधिक मृदा कार्ड का वितरण किया जा चुका है। मृदा जाँच प्रोयगशालाओं की माँग में बढ़ोत्तरी होने से अब कृषि विज्ञान की शैक्षिक पृष्ठभूमि वाले युवाओं के लिये हजारों की संख्या में नए जॉब के अवसर भी सृजित हो रहे हैं। ऐसी प्रयोगशालाओं की स्थापना के लिये सरकारी सब्सिडी का प्रावधान है। निस्सन्देह कस्बों और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले युवाओं के लिये स्वरोजगार की दिशा में आगे बढ़ने के अवसर के तौर पर भी इसे देखा जा सकता है।

एग्री उड़ान

इसी क्रम में वर्ष 2017 में भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद को ‘एग्री उड़ान’ नामक एक कृषि उद्यमशीलता विकास आधारित योजना के कार्यान्वयन का दायित्व सौंपा गया था। इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों के युवाओं को बड़ी संख्या में कृषि व्यवसाय के प्रति जागरूक करना, प्रशिक्षण देना और ऐसे उपक्रम स्थापित करने में मदद करना है। इस क्रम में भाकृअनुप के अन्तर्गत कार्यरत नेशनल एकेडेमी अॉफ एग्रीकल्चर रिसर्च, हैदराबाद में विभिन्न प्रकार के कृषि स्टार्टअप के विकास पर काम भी किया जा रहा है। इसमें निजी क्षेत्रों के कृषि से सम्बद्ध उद्यमों से भी बड़ी संख्या में सम्पर्क कर उन्हें इस अभियान से जोड़ने का प्रयत्न किया जा रहा है।

परम्परागत कृषि विकास योजना

केन्द्र सरकार द्वारा कृषि उत्थान के उद्देश्य से प्रारम्भ की गई विभिन्न योजनाओं में इसे महत्त्वपूर्ण कहा जा सकता है। इसके अन्तर्गत देश के विभिन्न हिस्सों में कृषकों को जैविक खेती करने के लिये प्रोत्साहित करने का प्रयास किया जाता है। इसका दोहरा लक्ष्य है, पहला तो है जैविक कृषि उत्पादन को बढ़ाना तथा दूसरा लाभ जैविक खेती से मृदा स्वास्थ्य को बेहतर बनाना है। शहरों में जैविक खाद्य उत्पादों की बढ़ती माँग को देखते हुए ग्रामीण युवाओं के लिये जैविक कृषि उत्पादों की खेती कर आकर्षण आय अर्जन का भी यह बेहतरीन विकल्प कहा जा सकता है। इस योजना के अन्तर्गत वर्ष 2017-18 तक लगभग दो लाख हेक्टेयर भूमि को जैविक खेती के अन्तर्गत लाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। जैविक खेती करने वाले किसानों के लिये केन्द्र और राज्य सरकारों की ओर से कई तरह की रियायतें देने का प्रावधान भी इस कार्यक्रम में रखा गया है।

नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट (ई-नाम)

किसानों को उनके उत्पादों का वाजिब मूल्य दिलवाने तथा बिचौलियों की भूमिका को समाप्त करने के उद्देश्य से इलेक्टॉनिक कृषि बाजार की शुरुआत की गई है। इसके माध्यम से देश की प्रमुख 585 कृषि मंडियों को नेट से जोड़कर उन्हें इस पोर्टल पर लाने की योजना बनाई गई है ताकि देश के किसी भी हिस्से में रहने वाले किसानों के लिये अपने उत्पादों की बिक्री सही मूल्य पर करने मे किसी प्रकार की परेशानी न हो। प्राप्त जानकारी के अनुसार देश के 13 प्रदेशों में स्थित 455 मंडियों को अब तक ई-नाम पोर्टल से जोड़ा जा चुका है। यही नहीं 55 लाख से अधिक किसान तथा 1 लाख से अधिक व्यापारियों का भी इसमें पंजीकरण किया जा चुका है। कृषि उत्पादों की ट्रेडिंग में रुचि रखने वाले ग्रामीण परिवेश के युवाओं के लिये स्वरोजगार के रूप में इस कारोबार को अपनाने का यह अच्छा अवसर हो सकता है। इस तरह के कार्य को शुरू करने के लिये न तो अधिक निवेश की आवश्यकता है और न ही लम्बे समय तक किसी तकनीकी प्रशिक्षण की जरूरत है।

प्रधानमंत्री किसान सम्पदा योजना

इस योजना के अन्तर्गत खेत से लेकर खुदरा दुकानों तक निर्बाध आपूर्ति शृंखला प्रबन्धन के साथ आधुनिक संरचनाएँ सृजित की जाएँगी। इससे न सिर्फ देश में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के विकास का मार्ग प्रशस्त होगा बल्कि इससे किसानों के लिये बेहतर कल्याण की राहें भी खुलेंगी। इससे किसानों की आय दोगुनी करने, ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी संख्या में रोजगार सृजन तथा कृषि अपशिष्टों के प्रसंस्करण को भी बढ़ावा मिलेगा। इससे प्रसंस्करित खाद्यान्नों के निर्यात को भी बल मिलने की सम्भावना जताई गई है।

राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना

इस योजना का लक्ष्य किसानों तक कृषि सम्बन्धी जानकारियाँ समय पर पहुँचाने के लिये सूचना एवं संचार तकनीकी का उपयोग दक्ष तरीके से करना है। कृषि क्षेत्र में उपयुक्त समय पर सही जानकारियों और सूचनाओं का किसानों को न मिलना अक्सर बड़े नुकसान का कारण बन जाता है। इस कमी को दूर करने को ध्यान में रखते हुए इस योजना को प्राथमिककता के आधार पर कार्यान्वित किया जा रहा है।

राष्ट्रीय टिकाऊ कृषि मिशन

इस मिशन का उद्देश्य कृषि को अधिक उत्पादक, टिकाऊ, मुनाफादायक तथा जलवायु परिवर्तन के प्रति सहिष्णु बनाना है। इसके अन्तर्गत स्थान विशिष्ट कृषि प्रणालियों के प्रयोग को प्रोत्साहन देना, उपयुक्त मृदा और जल संचयन तकनीकों के जरिए प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण, मृदा स्वास्थ्य को बनाए रखने हेतु प्रासंगिक कृषि प्रणालियों का प्रयोग, प्रति बूँद अधिक उपज की संकल्पना के अनुरूप दक्ष जल उपयोग प्रबन्धन के साथ कृषकों की क्षमता निर्माण पर ध्यान देना है। टिकाऊ खेती का उद्देश्य कृषकों की आमदनी में बढ़ोत्तरी करने के साथ इसे लाभदायक व्यवसाय में रूपान्तरित करना भी है।

एग्रीकल्चर स्किल काउंसिल अॉफ इण्डिया

यह संस्था केन्द्र सरकार के कौशल एवं उद्यमशीलता विकास मंत्रालय के अधीन कार्यरत है। इसका दायित्व कृषि एवं सम्बद्ध क्षेत्रों में कार्यरत कृषकों, कृषि श्रमिकों तथा कृषि प्रसार कर्मियों को अधिक हुनरमंद बनाना और उनकी क्षमता विकास करने में हरसम्भव सहायता प्रदान करना है। कृषि क्षेत्र में आये ठहराव, गुणवत्ता से युक्त मानव संसाधनों का कृषि को छोड़ते हुए अन्य क्षेत्रों की ओर तेज पलायन, जलवायु परिवर्तन की बढ़ती चुनौतियाँ, अन्तरराष्ट्रीय कृषि बाजार में बदलाव की स्थितियाँ आदि को देखते हुए इस संस्था की भूमिका काफी महत्त्वपूर्ण कही जा सकती है। वर्तमान समय में इस काउंसिल द्वारा 157 से अधिक प्रकार की ट्रेनिंग कृषि से सम्बद्ध विभिन्न क्षेत्रों में प्रदान की जा रही है। इनमें खासतौर पर कृषि यंत्रीकरण एवं प्रेसिजन फार्मिंग, एग्रो इन्फार्मेशन मैनेजमेंट, डेयरी फार्म मैनेजमेंट, पोस्ट हार्वेस्ट सप्लाई चेन मैनेजमेंट, हॉर्टीकल्चर प्रोडक्शन, एग्री एंट्रिप्रिन्योरशिप एंड रुरल इंटरप्राइज आदि का उल्लेख किया जा सकता है। इस बारे में अधिक जानकारी के लिये वेबसाइट http://asci-india.com से सम्पर्क किया जा सकता है।

आर्या-अट्रेक्टिंग एंड रिटेनिंग यूथ इन एग्रीकल्चर

युवाओं की कृषि क्षेत्र में बढ़ती आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए इस योजना का विकास किया गया। भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद द्वारा संचालित इस योजना के माध्यम से ग्रामीण युवाओं के गाँव से शहरों की ओर बढ़ते पलायन को रोकने का प्रयास भी इस कार्यक्रम का अभिन्न हिस्सा है। उन्हें कृषि में बनाए रखने हेतु उपयोगी कौशल और हुनर सिखाने का इसके अन्तर्गत प्रावधान है। देश के प्रत्येक जिले में 300-500 ग्रामीण युवाओं को इस तरह की ट्रेनिंग के लिये चुना जाता है। प्रशिक्षण के दौरान कृषि और उससे सम्बद्ध क्षेत्रों से जुड़े कार्यकलापों के प्रति युवाओं को आकर्षित करते हुए उनके लिये आमदनी का स्थायी जरिया विकसित करने में इस क्रम से सहायता प्रदान की जाती है। इनमें खासतौर पर कृषि उत्पादों का प्रसंस्करण, मूल्यवर्धन और मार्केटिंग से जुड़े कार्यों को प्राथमिकता दी जाती है। इस कार्यक्रम का आयोजन भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद के अन्तर्गत संचालित चुनिंदा कृषि विज्ञान केन्द्रों के माध्यम से देश के 25 से अधिक राज्यों में किया जा रहा है। इस क्रम में परिषद के कृषि अनुसन्धान संस्थानों और कृषि विश्वविद्यालयों के अतिरिक्त निजी उद्यमियों को भी जोड़ने का प्रयास किया जाता है।

पशु हाट पोर्टल

केन्द्र सरकार के पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन विभाग ने हाल ही में ई-पशु हाट नामक पोर्टल की शुरुआत की है। इस पोर्टल के जरिए लोग पशुधन, फ्रोजन सीमन, और भ्रूणों की खरीद-फरोख्त अॉनलाइन कर सकते हैं। इस पर किसी प्रकार का कमीशन देना का झंझट नहीं है। इस पोर्टल पर अॉनलाइन विक्रय के लिये उपलब्ध सभी प्रकार के पशुओं की जानकारी जैसे नस्ल, प्रतिदिन दूध उत्पादन क्षमता, पशु आयु आदि देखी जा सकती है। इस पोर्टल का उद्देश्य बिचौलियों की भूमिका को समाप्त करना और पारदर्शी तरीके से पशु व्यापार को बढ़ावा देते हुए पशुपालकों को वाजिब मूल्य दिलवाना है। इस बारे में विस्तृत विवरण www.pashuhat.gov.in से मिल सकता है।

हरित क्रान्ति-कृषोन्नति योजना

केन्द्रीय मंत्रिमण्डल की आर्थिक मामलों की समिति ने कृषि क्षेत्र में छतरी योजना के रूप में हरित क्रान्ति-कृषोन्नति योजना को बारहवीं पंचवर्षीय योजना से आगे यानी कि 2019-20 तक जारी रखने की स्वीकृति प्रदान की है। इस छतरी योजना के अन्तर्गत कृषि एवं सम्बद्ध क्षेत्र से जुड़ी 11 योजनाएँ शामिल हैं। इन सभी योजनाओं का उद्देश्य समग्र और वैज्ञानिक तरीकों से कृषि उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ाना और किसानों को बेहतर दाम दिलवाने में सहायता करना है। केन्द्र सरकार द्वारा इन योजनाओं पर 33.269 करोड़ रुपए का खर्च किया जाएगा। इनमें निम्न योजनाएँ शामिल हैं।

बागवानी के एकीकृत विकास के लिये मिशन

इसका उद्देश्य बागवानी उत्पादन में बढ़ोत्तरी कर आहार सुरक्षा में सुधार करना तथा कृषि परिवारों को आय समर्थन देते हुए बागवानी क्षेत्र के समग्र विकास को प्रोत्साहित करना है।

तिलहन और तेल पाम पर राष्ट्रीय मिशन

इस मिशन का उद्देश्य देश के चुनिन्दा जिलों में उचित और उपयुक्त प्रणालियों से कृषि क्षेत्र का विस्तार करते हुए वाणिज्यिक फसलों का उत्पादन बढ़ाना है। इसके अतिरिक्त खाद्य तेलों की उपलब्धता को सुदृढ़ बनाना और खाद्य तेलों के आयात को घटाना है।

बीज तथा पौधरोपण सामग्री पर उपमिशन

इसका उद्देश्य प्रमाणित एवं गुणवत्तापूर्ण बीजों का उत्पादन करना, बीज प्रजनन प्रणाली को मजबूत बनाना, बीज उत्पादन में नई तकनीकियों और तौर-तरीकों को बढ़ावा देना, प्रसंस्करण एवं परीक्षण आदि को प्रोत्साहित करना है।

कृषि मशीनीकरण पर उपमिशन

इस मिशन का लक्ष्य छोटे और मझोले किसानों तक कृषि मशीनीकरण पहुँचाना, बिजली की कम उपलब्धता वाले क्षेत्रों में कृषि मशीनीकरण को बढ़ावा देना उच्च तकनीकी वाले कृषि उपकरणों के विकास में सहायता प्रदान करना आदि है।

इनके अलावा भी छतरी योजना के अन्तर्गत शामिल सतत कृषि के लिये मिशन, कृषि विपणन पर एकीकृत योजना आदि का खासतौर पर नाम लिया जा सकता है।

समर्थन मूल्य में वृद्धि

कृषकों को उनके उत्पादों की लगात से कम-से-कम 50 प्रतिशत अधिक मूल्य मिले, यह सुनिश्चित करने के लिये सरकार द्वारा सरकार खरीद हेतु न्यूनतम समर्थन मूल्यों की घोषणा की गई है। इसका लाभ निश्चित तौर पर ऐसे किसानों को मिलेगा जिन्हें बम्पर फसल होने पर औने-पौने दामों पर अपने उत्पादों को बेचने पर मजबूर होना पड़ता था।

सहयोगी कृषि

राष्ट्रव्यापी स्तर पर कार्यान्वित की जा रही इन बड़ी-बड़ी योनजाओं के अतिरिक्त सीमान्त कृषकों की आय बढ़ाने पर भी विशेष ध्यान दिया जा रहा है। इन्हें सहयोगी कृषि के बारे में जागरूक किया जा रहा है तथा इस दिशा में कदम बढ़ाने हेतु हर सम्भव सहायता और मार्गदर्शन भी केन्द्र और राज्य सरकारों की ओर से दिया जा रहा है। सहयोगी कृषि के अन्तर्गत मधुमक्खी पालन, मशरूम उत्पादन, कृषि वानिकी, बाँस उत्पादन, लाख उत्पादन, रेशम कीट पालन, सूअर पालन, मत्स्य पालन आदि का विशेष तौर पर जिक्र किया जा सकता है। यहाँ यह बताना भी प्रासंगिक होगा कि लघु कृषकों की आय बढ़ाने के लिये 45 एकीकृत कृषि प्रणाली मॉडल विकसित किये गए हैं जिनसे मृदा स्वास्थ्य और जल उपयोग की दक्षता में वृद्धि की जा सकती है।

संक्षेप में, देश के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली बहुसंख्यक आबादी की आमदनी बढ़ाने में कृषि के महत्त्व को नजरअन्दाज करना शायद ही सही सोच नहीं होगी। कृषि का रूप रोजाना बदल रहा है। परम्परागत खेती का स्थान अब आधुनिक और वैज्ञानिक खेती के नए तौर-तरीकों ने ले लिया है। कृषि वैज्ञानिकों द्वारा किये जा रहे अनुसन्धानों और कृषि से सम्बद्ध अन्य उत्पादन कार्यों की मदद से आज छोटी जोत पर भी भरपूर कमाई सम्भव हो गई है। वर्ष में एक या दो फसलें ही नहीं बल्कि चार से पाँच फसलें भी प्रगतिशील किसानों द्वारा ली जा रही हैं। सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं और प्रशिक्षण कार्यक्रमों का लाभ उठाकर ग्रामीण परिवेश में रहने वाले लोगों का भी जीवन बदल रहा है। जरूरत तो बस इस बात की है कि कृषि में आ रहे परिवर्तन को समय रहते आत्मसात किया जाये और पुरानी रुढ़िवादी मानसिकता के दायरे से निकलकर कुछ अलग करने की ठानकर नए भविष्य का स्वागत किया जाये।

मशरूम उत्पादक गाँव की सफलता गाथा

उत्तरप्रदेश के बरेली से 25 किलोमीटर दूर स्थित लगभग 600-700 लोगों की आबादी वाला मोहम्मदपुर गाँव आज मशरूम उत्पादक गाँव के नाम से दूर-दूर तक पहचान बना चुका है। इसके पीछे कारण है यहाँ के किसानों द्वारा परम्परागत फसलों के साथ सहयोगी कृषि के रूप में बड़े पैमाने पर मशरूम का उत्पादन करना। यहाँ पर वर्तमान में 2700 से 300 क्विंटल मशरूम का उत्पादन प्रतिवर्ष किया जा रहा है। मशरूम की औसतन कीमत 100 से 150 रुपए प्रति किलो रहती है। इस प्रकार देखा जाये तो इस गाँव के मशरूम उत्पादकों को 27 लाख से 45 लाख रुपए तक की वार्षिक आमदनी सिर्फ मशरूम बिक्री करने से हो जाती है। अगर प्रति परिवार औसत आय की बात करें तो यह आँकड़ा ऐसे गाँव के लोगों के लिये कम आकर्षक प्रतीत नहीं होता है, जहाँ पर मात्र 3 वर्ष पहले तक बिजली भी नहीं थी। भाकृअनुप-भारतीय पशु चिकित्सा अनुसन्धान संस्थान, इज्जत नगर स्थित कृषि विज्ञान केन्द्र के विशेषज्ञों द्वारा इस क्रान्तिकारी परिवर्तन में प्रभावी भूमिका निभाई गई है।

प्रेसिजन फार्मिंग से बढ़ी आमदनी

भाकृअनुप केन्द्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान, भोपाल के प्रेसिजन फार्मिंग डेवलपमेंट सेंटर द्वारा ड्रिप सिंचाई, प्लास्टिक पलवार प्रौद्योगिकी तथा प्रेसिजन फार्मिंग पर प्रशिक्षण कार्यक्रमों का समय-समय पर आयोजन किया जाता है। देवास जिले के सोंकाचा ब्लॉक के युवा कृषकों विजेन्द्र सिंह, राजेन्द्र सिंह, कृष्ण कवाड़, नारायण सिंह तथा राधेश्याम ने यहाँ से प्रशिक्षण प्राप्त कर इन सभी तकनीकों की मदद से खेती करनी शुरू की। इस क्रम में इन्होंने राज्य बागवानी मिशन से भी आर्थिक मदद ली। इन कृषकों ने अपने-अपने खेतों पर 80 हजार से लेकर ढाई लाख रुपए की लागत से ड्रिप प्रणाली की स्थापन कर प्याज, लहसुन, आलू, मिर्च आदि की खेती 1.2 से 6 हेक्टेयर क्षेत्र पर की। दो वर्षों की मेहनत से इन्हें 5 लाख प्रति हेक्टेयर तक का लाभ मिला है। इसी प्रकार इंदौर के राधेश्याम द्वारा भी संस्थान से प्रशिक्षण हासिल करने के बाद 200 वर्गमीटर क्षेत्र पर पॉलीहाउस की स्थापना की गई तथा 3.5 हेक्टेयर भूमि पर इन्होंने ड्रिप सिंचाई प्रणाली लगाई। यहाँ पर अब डच रोज, बैंगन, लहसुन, पपीता, नींबू वर्गीय फलों आदि का सफल उत्पादन कर रहे हैं। उनकी वार्षिक आमदनी 15 लाख रुपए हो चुकी है और वे अपने गाँव के छह युवाओं को रोजगार भी दे रहे हैं।

(लेखक खेती एवं फल-फूल पत्रिका, भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय में बतौर सम्पादक कार्यरत हैं।)

ई-मेलःashok.singh.32@gmail.com


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