सतत कृषि विकास के लिए प्रौद्योगिकी

सतत कृषि विकास के लिए प्रौद्योगिकी, फोटो क्रेडिट:विकिपीडिया
सतत कृषि विकास के लिए प्रौद्योगिकी, फोटो क्रेडिट:विकिपीडिया

किसान ऐसी सतत कृषि प्रणालियां विकसित कर सकते हैं जो उन्नत तकनीकों को अपना कर पर्यावरण, सामाजिक और आर्थिक स्थिरता को बढ़ावा देती हैं। हालांकि यह ध्यान रखना आवश्यक है कि प्रौद्योगिकी कोई जादुई समाधान नहीं है और सतत कृषि के लिए इसे अन्य सतत कृषि पद्धतियों जैसे मृदा संरक्षण, फसल चक्रण और एकीकृत कीट प्रबंधन के साथ लागू किया जाना चाहिए।

कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है और देश की आधी  से अधिक आबादी इस पर रोजगार के लिए निर्भर है। दूसरी ओर, भारत में पारंपरिक कृषि पद्धतियाँ बहुधा स्थायी नहीं होती हैं और पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती हैं। भारत में कृषि की दीर्घकालिक लाभप्रदता सुनिश्चित करने के लिए सतत कृषि पद्धतियों की आवश्यकता है।

विश्व बैंक के अनुसार, 2020 तक भारतीय आबादी का 42.1% भाग कृषि में कार्यरत था उद्योग और सेवा क्षेत्र देश में सकल मूल्यवर्धन (जीवीए) में 80% से अधिक का योगदान करते हैं और 54.4% कार्यबल को रोजगार देते हैं दूसरी ओर, कृषि में, जिसका 2019-20 में सकल मूल्यवर्धन में 18.29% का योगदान था, 45.6% कार्यबल को रोजगार देना यह दर्शाता है कि भारतीय आबादी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है। हालांकि पिछले कुछ वर्षों में कृषि में कार्यरत आबादी का प्रतिशत धीरे-धीरे कम हुआ है क्योंकि देश की अर्थव्यवस्था में विविधता आई है और अन्य क्षेत्रों जैसे सेवाओं और विनिर्माण में विकास हुआ है। 2000 में कृषि में कार्यरत आबादी का प्रतिशत 60.5% था जो दर्शाता है कि हाल के वर्षों में कृषि क्षेत्र में रोजगार में काफी कमी आई है।

भारत में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) विकास दर प्रति व्यक्ति जीडीपी किसी देश या क्षेत्र में प्रति व्यक्ति औसत आर्थिक उत्पादन का आकलन करता है। भारत में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र के योगदान में पिछले कुछ वर्षों में गिरावट आई है क्योंकि देश की अर्थव्यवस्था में विविधता आई है और अन्य क्षेत्रों जैसे सेवाओं और विनिर्माण में विकास हुआ है। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय का अनुमान है कि कृषि और संबंधित क्षेत्रों का जीवीए 2020-21 में 20.2% था जो 2021-22 में घटकर 19.8% हुआ और 2022-23 में फिर से घटकर 18.3% हो गया।

हाल के वर्षों में आर्थिक शक्ति के समीकरणों में बदलाव आया है और 'ब्रिक' देशों ब्राजील, रूस भारत और चीन की बढ़ती अर्थव्यवस्थाएं केंद्र में आ गई हैं। 'ब्रिक' देशों की जीडीपी विकास दर संयुक्त राज्य अमेरिका और जर्मनी जैसी पारंपरिक रूप से मजबूत अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में कहीं अधिक है। संयुक्त राज्य अमेरिका की अर्थव्यवस्था किसी भी मापदंड से दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में चीन की दूसरी सबसे बड़ी हिस्सेदारी है। तीसरे स्थान के लिए भारत जापान से होड़ में है। 2008 और 2009 में वैश्विक मंदी के बावजूद भारत सकल घरेलू उत्पाद की प्रभावशाली विकास दर को बनाए रखने में कामयाब रहा विशेष रूप से यह देखते हुए कि दुनिया के अधिकांश देश कम से कम एक वर्ष नकारात्मक वृद्धि के दौर से गुजरे।

हालांकि भारत के प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र का योगदान समय के साथ कम हुआ है, यह फिर भी अर्थव्यवस्था का एक अनिवार्य क्षेत्र बना हुआ है विशेष रूप से रोजगार और आजीविका को मद्देनजर रखते हुए कृषि क्षेत्र के विकास को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना और राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई- एनएएम) प्लेटफॉर्म सहित कई पहले शुरू की गई है। इन पहलों का उद्देश्य भारत में किसान की उत्पादकता में वृद्धि लाना जोखिम को कम करना और आय में वृद्धि करना। सर्वेक्षण के अनुसार प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई ) एक ऐतिहासिक पहल है जो किसानों को देश भर में न्यूनतम एक समान किस्त पर व्यापक जोखिम समाधान प्रदान करती है। साल दर साल पीएमएफबीवाई में किसानों से लगभग 5.5 करोड़ आवेदन प्राप्त होते हैं।

एक विकासशील देश के रूप में वैश्विक स्तर पर सतत कृषि के लिए भारत महत्वपूर्ण है कृषि भारत की 58% से अधिक आबादी के लिए जीवनयापन का जरिया प्रदान करती है। देश ने कृषि उत्पादन बढ़ाने में महत्वपूर्ण प्रगति की है लेकिन सतत कृषि पद्धतियों को अमल में लाने के लिए और अधिक प्रयत्न करना बाकी है। रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और गहन कृषि पद्धतियों के अत्यधिक उपयोग के कारण मिट्टी की उर्वरता में गिरावट भारतीय किसानों के सामने सबसे महत्वपूर्ण चुनौतियों में से एक है। भारत में सतत कृषि पद्धतियों को अपनाना कृषि क्षेत्र की दीर्घकालिक स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण है। भारत सरकार और विभिन्न संगठनों ने सतत कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देने के लिए ने कई पहले शुरू की हैं। उदाहरण के लिए सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना और मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना को कृषि पद्धतियों में सुधार करने और किसानों को वित्तीय सहायता देने के लिए शुरू किया।

क्या है सतत कृषि

सतत कृषि से तात्पर्य एक ऐसी कृषि पद्धति से है जिसमें मिट्टी, पर्यावरण और समुदाय के दीर्घकालिक स्वास्थ्य को ध्यान में रखा जाता है। भावी पीढ़ियों के लिए प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करते हुए बढ़ती हुई खाद्य मांग को पूरा करना महत्वपूर्ण है। दुनिया के पर्यावरण संरक्षण के महत्व के बारे में अधिक जागरूक होने के कारण हाल के वर्षों में सतत कृषि पर विशेष ध्यान दिया गया है। सतत कृषि पर्यावरण, सार्वजनिक स्वास्थ्य, मानव समुदायों और पशु कल्याण को संरक्षित करते हुए भोजन, फाइवर या अन्य वनस्पति या पशु उत्पादों का उत्पादन करती है। इन पद्धतियों के माध्यम से प्राकृतिक संसाधनों जैसे मिट्टी, जल और हवा को भावी पीढ़ियों के लिए संरक्षित और पुनर्जीवित किया जाता है।

सतत कृषि विकास में मददगार कृषि पद्धतियां

पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक स्थिरता को बढ़ावा देने वाली सतत कृषि प्रणालियों को विकसित करने में प्रौद्योगिकियों को अपनाना महत्वपूर्ण हो सकता है। यहां कुछ ऐसी कृषि पद्धतियां दी गई हैं जिनसे सतत कृषि विकास में प्रौद्योगिकी की मदद मिल सकती है:

सटीक या परिशुद्ध खेती (प्रिसिशन फार्मिंग)

सटीक या परिशुद्ध खेती (प्रिसिशन फार्मिंग) में फसल की उत्पादन अवस्था की निगरानी और अनुकूलन करने के लिए सेंसर, जीपीएस मैपिंग और डेटा एनालिटिक्स शामिल हैं।सटीक कृषि तकनीकों का उपयोग करके किसान उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग को कम कर सकते हैं, जल प्रबंधन में सुधार ला सकते हैं और पैदावार बढ़ा सकते हैं। सटीक खेती भारत में एक अपेक्षाकृत नई। अवधारणा है और विभिन्न कारकों जैसे प्रौद्योगिकी की उपलब्धता, कृषि पद्धतियों और सरकारी नीतियों के आधार पर हर राज्य द्वारा इसे अपनाये जाने में भिन्नता होना संभव है।

कृषिवानिकी  

कृषिवानिकी (एग्रोफोरेस्ट्री) भूमि उपयोग की ऐसी एकीकृत प्रबंधन प्रणाली है जिसके अंतर्गत पेड़ों और झाड़ियों को फसलों और पशुधन के साथ अधिक स्थायी और उत्पादक कृषि तंत्र बनाने के लिए जोड़ा जाता है। इस पद्धति से मृदा संरक्षण, जैव विविधता संरक्षण और कार्बन प्रच्छादन सहित विभिन्न लाभ हासिल किए जा सकते हैं।

वर्टिकल फार्मिंग  

में आमतौर पर नियंत्रित परिस्थितियों में लंबवत परतों में कसलों की खेती की जाती है। लंबवत खेती में जल की खपत को कम करते हुए और संसाधन उपयोग को इष्टतम करते हुए स्थानीय खाद्य उत्पादन को बढ़ाने की क्षमता है जिससे यह भारतीय शहरी कृषि के लिए एक आकर्षक विकल्प है। यह विधि फसल की पैदावार बढ़ाने और परिवहन लागत को कम करते हुए कीटनाशकों और शाकनाशियों की आवश्यकता को कम कर सकती है।

हाइड्रोपोनिक्स 

हाइड्रोपोनिक्स विभिन्न भारतीय राज्यों में एक सतत कृषि पद्धति के रूप में लोकप्रिय हो रही है। जो जल और पोषक तत्वों के कुशल उपयोग, साल भर खेती और पारंपरिक कृषि पद्धतियों पर निर्भरता कम करती है। हाइड्रोपोनिक्स में मिट्टी के बिना पोषक तत्वों से भरपूर जल में पौधे उगाये जाते हैं। इस प्रणाली से जल के उपयोग को कम किया जा सकता है, पैदावार को बढ़ाया जा सकता है और साल भर फसल की पैदावार ली जा सकती है। विशेष रूप से सीमित स्थान और संसाधनों वाले शहरी क्षेत्रों में यह प्रणाली क्रांति ला सकती है

नवीकरणीय ऊर्जा 

कृषि क्षेत्र में सौर और पवन ऊर्जा जैसी नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों का उपयोग कृषि कार्यों को बेहतर बनाने के लिए किया जा सकता है। यह पद्धति ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम कर सकती है।

रोबोटिक्स और ऑटोमेशन पर आधारित 

रोबोटिक्स और ऑटोमेशन प्रौद्योगिकियां श्रम लागत को कम करने, फसल की पैदावार में सुधार करने और उर्वरकों तथा कीटनाशकों के उपयोग को कम करने में मदद कर सकती हैं।

सतत कृषि विकास को अपनाने में आने वाली बाधाएं

भारत में कृषि क्षेत्र की दीर्घकालिक लाभप्रदता के लिए सतत कृषि विकास पद्धतियों को अपनाना महत्वपूर्ण है। देश में सतत कृषि पद्धतियों को अपनाने में आने वाली कई कमियों को चिह्नित किया गया है। कुछ अहम बाधाएं निम्नलिखित है:

1. जागरूकता और जानकारी का अभाव :

सतत कृषि पद्धतियों को अपनाने में आने वाली मुख्य बाधाओं में से एक है किसानों में जागरूकता और जानकारी का अभाव किसानों को सतत कृषि पद्धतियों के लाभों या उन्हें प्रभावी ढंग से लागू करने के तरीके की जानकारी होनी चाहिए।

2. वित्त तक सीमित पहुँच

 सतत कृषि पद्धतियों के लिए अक्सर महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे और प्रौद्योगिकी निवेश की आवश्यकता होती है लेकिन कई छोटे और सीमांत किसानों को इन निवेशों के लिए वित्त तक अधिक पहुँच की आवश्यकता है।

3. अपर्याप्त नीति और नियामक ढांचा 

सतत कृषि पद्धतियों को अपनाने में भारत की नीति हमेशा मददगार नहीं होती है। और नियामक व्यवस्था हमेशा सतत कृषि पद्धतियों को अपनाने की पक्षधर नहीं होती है। उदाहरण के लिए किसानों को सतत पद्धतियों को अपनाने के लिए अधिक प्रोत्साहन की आवश्यकता हो सकती है या विनियम कुछ सतत पद्धतियों को प्रतिबंधित कर सकते हैं। सतत कृषि के लिए राष्ट्रीय मिशन को कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के बजट का केवल 0.8% प्राप्त होता है जो सतत कृषि को और अधिक प्रोत्साहन देने के महत्वपूर्ण मिशन में लगा हुआ है।

4. सीमित अनुसंधान और विकास 

सतत कृषि पद्धतियों में और अधिक अनुसंधान एवं विकास की आवश्यकता है जो भारतीय परिवेश के लिए उपयुक्त हो किसानों को इन पद्धतियों को अपनाने में मदद करने के लिए अनुसंधान परिणामों के प्रसार और विस्तार सेवाओं को विकसित करने में अधिक निवेश की भी आवश्यकता है।

5. बुनियादी ढांचे और तकनीकी सहायता का अभाव 

 सतत कृषि पद्धतियों को अपनाने के लिए अक्सर विशेष बुनियादी ढांचे और तकनीकी सहायता की आवश्यकता होती है खासकर दूरदराज के ग्रामीण इलाकों में अनेक किसानों को इन संसाधनों तक पहुँच की जरूरत है।

6. कम उत्पादकता 

भारत में कृषि कम उत्पादकता से जानी जाती है जो इसकी वृद्धि और विकास में एक बड़ी बाधा है। भारत में अधिकांश फसलों के लिए प्रति हेक्टेयर उपज वैश्विक औसत से काफी कम है और इसके कई कारण हैं जैसे मशीनीकरण का निम्न स्तर, अपर्याप्त सिंचाई सुविधाएं और मिट्टी की खराब स्थिति ।

7. खंडित भूमि जोत 

भारत में औसत जोत का आकार छोटा है जिसके कारण किसानों के लिए आधुनिक कृषि तकनीकों और प्रौद्योगिकियों को अपनाना मुश्किल हो जाता है। खंडित भूमि जोत भी किसानों के लिए ऋण और अन्य सहायता सेवाओं तक पहुँच को कठिन बनाते हैं।

8. बाजार तक पहुँच की कमी 

भारत में छोटे और सीमांत किसानों के लिए बाजारों तक पहुँच की कमी एक महत्वपूर्ण चुनौती है। कई किसानों को अपनी उपज बिचौलियों को कम कीमत पर बेचने के लिए मजबूर किया जाता है क्योंकि वे सीधे बाजारों तक नहीं पहुँच पाते हैं। परिणामस्वरूप किसानों की आय कम होती है है और उपभोक्ताओं को खाद्य पदार्थों की  अधिक  कीमत चुकानी पड़ती है।

9. अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा 

अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा जैसे कि ग्रामीण सड़कें, भंडारण सुविधाएं और कोल्डचेन भारत में कृषि क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती हैं। इनमें कमियों के कारण किसानों के लिए अपनी उपज को बाजारों तक ले जाना, सुरक्षित ढंग से भंडारण करना और बाद में बेचना मुश्किल हो जाता है।

10. जलवायु परिवर्तन

जलवायु परिवर्तन भारत में कृषि क्षेत्र के लिए विशेष रूप से जल की उपलब्धता, कीट और रोग प्रबंधन और फसल की पैदावार के परिप्रेक्ष्य में महत्वपूर्ण चुनौतियां उत्पन्न करता है। मौसम के बदलते स्वरूप जैसे अनियमित वर्षा और बढ़ता तापमान फसल की उत्पादकता को प्रभावित करते हैं और किसानों में असुरक्षा का भाव पैदा करते हैं।
महिलाएं विशेष रूप से संवेदनशील होती हैं। स्थिरता और अनुकूलन के लिए वैश्विक खाद्य सुरक्षा सूचकांक (जीएफएसआई) की गणना लैंगिक असमानता बढ़ने पर घटती है। जीएफएसआई दर्शाता है कि ताजा, स्वच्छ जल और भूमि संसाधनों तक पहुँच की कमी और अनुकूलन और सतत कृषि पद्धतियों के प्रति राजनीतिक प्रतिबद्धता की कमी आदि सभी लैंगिक असमानता से संबद्ध कारक हैं। भारत के कृषि क्षेत्र में अन्य अनेक कमियां सक्षम और स्थिर कृषि क्षेत्र विकसित करने के मार्ग में गम्भीर बाधाएं हैं। इन कमियों के निवारण के लिए एक बहुमुखी दृष्टिकोण आवश्यक है जिसके अंतर्गत अनुसंधान एवं विकास, विनियामक और नीतिगत सुधारों में निवेश की आवश्यकता होगी और सतत कृषि पद्धतियों को अपनाने को बढ़ावा देने के लिए बुनियादी ढांचे और विस्तार सेवाओं का सृजन करना होगा। भारत सरकार ने परम्परागत कृषि विकास योजना, मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना और राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई- एनएएम) प्लेटफॉर्म सहित कई कार्यक्रम सतत कृषि पद्धतियों को प्रोत्साहन देने के लिए शुरू किए हैं।

किसानों को प्रौद्योगिकी संबंधी सूचना के प्रसार में सुधार

भारत में आधुनिक कृषि तकनीकों और पद्धतियों को अपनाने के लिए किसानों को प्रौद्योगिकी संबंधी जानकारी के प्रसार में सुधार लाना महत्वपूर्ण है। राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत में केवल 6% किसानों को आधुनिक कृषि पद्धतियों की जानकारी है। इस मुद्दे के निराकरण के लिए भारत सरकार ने किसान कॉल सेंटर और एम किसान पोर्टल जैसी कई पहले शुरू की जो किसानों को मौसम की भविष्यवाणी, बाजार मूल्य और कीट और रोग प्रबंधन सहित कृषि विषयों की एक विस्तृत श्रृंखला की जानकारी प्रदान करती हैं। किसान कॉल सेंटर की मुफ्त हेल्पलाइन सेवा 21 जनवरी 2004 को कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा शुरू की गई जहां करीब 22 भाषाओं में जानकारी उपलब्ध करायी जाती है। किसान कॉल सेंटर पर भारत भर के किसानों से औसतन प्रतिदिन एक हजार से अधिक कॉल आते हैं जो किसानोंको प्रौद्योगिकी संबंधी जानकारी के प्रसार में सुधार के लिए के इस तरह की पहल के महत्व को दर्शाता है।
भारत में सतत कृषि को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (एनएमएसए) 2014-15 से मौजूद है। यह कृषि वानिकी, वर्षा आधारित क्षेत्रों, जल और मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन, जलवायु प्रभावों और अनुकूलन पर ध्यान केंद्रित करने वाले कई कार्यक्रमों में विभाजित है। एनएमएसए के अलावा प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना सूक्ष्म सिंचाई जैसी सटीक कृषि तकनीकों को प्रोत्साहित करती है और एकीकृत वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम वर्षा जल संचयन को प्रोत्साहित करता है।

फेस ऑथेंटिकेशन फीचर वाला पीएम किसान मोबाइल ऐप

केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी व किसानों को आय सहायता के लिए लोकप्रिय योजना "प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि" के अंतर्गत फेस ऑथेंटिकेशन फीचर का पीएम- किसान मोबाइल ऐप लांच किया गया है । आधुनिक टेक्नोलॉजी के बेहतरीन उदाहरण इस ऐप से फेस ऑथेंटिकेशन फीचर का उपयोग कर किसान दूरदराज, घर बैठे भी आसानी से बिना ओटीपी या फिगरप्रिंट के ही फेस स्कैन कर ई-केवाईसी पूरा कर सकता है और 100 अन्य किसानों को भी उनके घर पर ई-केवाईसी करने में मदद कर सकता हैं। भारत सरकार ने ई-केवाईसी को अनिवार्य रूप से पूरा करने की आवश्यकता समझते हुए, किसानों का ई-केवाईसी करने की क्षमता को राज्य सरकारों के अधिकारियों तक भी बढ़ाया है, जिससे हरेक अधिकारी 500 किसानों हेतु ई-केवाईसी प्रक्रिया को पूर्ण कर सकता है। पीएम किसान एक अभिनव योजना है जिसका लाभ बिना किसी बिचौलियों के केंद्र सरकार किसानों को दे पा रही है आज करोड़ों किसानों को टेक्नोलॉजी की मदद से ही लाभ देना संभव हो पाया है। नया ऐप उपयोग में बहुत सरल है, गूगल प्ले स्टोर पर आसानी से डाउनलोड हेतु उपलब्ध है। ऐप किसानों को योजना व पीएम किसान खातों से संबंधित बहुत सी महत्वपूर्ण जानकारी भी प्रदान करेगा। इसमें नो यूजर स्टेटस माड्यूल उपयोग कर किसान लैंडसीडिंग, आधार को बैंक खातों से जोड़ने व ई-केवाईसी का स्टेटस जान सकते है। पीएम किसान दुनिया की सबसे बड़ी डीबीटी योजनाओं में एक है जिसमें किसानों को आधारकार्ड से जुड़े बैंक खातों में 6 हजार रु. सालाना राशि, तीन किस्तों में सीधे हस्तांतरित की जाती है। 2.42 लाख करोड़ रु 11 करोड़ से ज़्यादा किसानों के खातों में शिफ्ट किए जा चुके हैं जिनमें 3 करोड़ से अधिक महिलाएं हैं। 

एग्रीटेक स्टार्टअप कुछ केस स्टडीज

भारत में कृषि की दीर्घकालिक लाभप्रदता के लिए सतत कृषि महत्वपूर्ण है। हालांकि देश ने सतत कृषि पद्धतियों को अपनाने की दिशा में तरक्की की है फिर भी इस दिशा में प्रगति की गुंजाइश है। देश में सतत कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देने और लागू करने के लिए सरकार किसानों और अन्य हितधारकों को मिलकर काम करना चाहिए। कृषि क्षेत्र और पर्यावरण की दीर्घकालिक लाभप्रदता के लिए सतत कृषि महत्वपूर्ण है। हालांकि भारत ने सतत कृषि पद्धतियों को अपनाने की दिशा में कुछ प्रगति की है पर अभी इस दिशा में बहुत काम किए जाने की आवश्यकता है। सरकार और विभिन्न संगठनों को देश में सतत कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देने और लागू करने के लिए परस्पर सहयोग करने की दरकार है। भारत किसानों की आजीविका में सुधार करते हुए और सतत कृषि पद्धतियों को लागू करके चिरस्थायी भविष्य निर्माण के वैश्विक प्रयासों में योगदान देकर खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है।

एग्री एप टेक्नोलोजिस प्रा. लि  एक आईटी,  आईसीटी और आइओटी सक्षम प्रौद्योगिकी कंपनी जो कृषि और खाद्य क्षेत्र में प्रौद्योगिकी के उपयोग की मंशा रखती है। इसके तहत किसानों, अर्थव्यवस्था और पारिस्थितिकी को लाभा एक लिए एक मजबूत कृषि पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करते हुए सटीक और संभाव्य कृषि पर काम किया जाता है एग्री एप किसानों और सही प्रकार की युक्तिपूर्ण जानकारी के बीच की खाई को भरने के लिए काम करता है और इस प्रकार किसानों को उच्च दक्षता वाले प्रौद्योगिकी सक्षम कृषि उत्पादन और विपणन के लिए तैयार करता है।

'खेती' कृषिवानिकी मॉडल के माध्यम से कृषि पारिस्थितिकीय (एग्रोइकोलॉजिकल) खेती को बढ़ावा देता है जो सर्वप्रथम किसान की समृद्धि और पर्यावरण को निर्धारित करता है। 'खेती' ने किसानों और आकांक्षी किसानों के लिए कृषि पारिस्थितिकीय मॉडल फार्म बनाने में मदद करने के लिए एक तरह का फेलोशिप कार्यक्रम तैयार किया है। 'खेती' लखीसराय के दुरडीह गाँव में मॉडल फार्म बना रहा है राज्य भर से किसान अनुभव और ज्ञान हासिल करने के लिए इस फार्म पर आते हैं। 'खेती' नियमित रूप से किसानों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करता है जिससे वे पुनर्योजी कृषि में अपनी क्षमता का विकास कर सकें। खेती का लक्ष्य कृषि के तरीके, बाजार के साथ इसके संबंध और इससे जुड़ी नीतियों में प्रणालीगत बदलाव लाना है।

इंस्टिंक्ट अर्थ एक्वा स्केपिंग प्राइवेट लिमिटेड एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी आधारित फर्म है जो क्ले बॉल, इंडोर वर्टिकल प्लांट, आर्टिफिशियल पॉटेड प्लांट, आर्टिफिशियल वर्टिकल गार्डन बॉल, वर्मीकम्पोस्ट फर्टिलाइजर्स, हाइड्रोपोनिक मशीन आदि की अग्रणी निर्माता है वे ग्रीन वॉल इंस्टालेशन सर्विसेज, गार्डनिंग सर्विसेज और वर्टिकल गार्डन लैंडस्केपिंग सर्विसेज के सेवा प्रदाता भी हैं।

ओमसेट भूजल संसाधनों को खोजने और पूर्वानुमान लगाने के लिए सटीक संचालित, उपग्रह आधारित एआई सक्षम जल- विज्ञान संबंधी विश्लेषण प्रदान करता है। भूजल अन्वेषण में उपयोग किए जाने वाले पारंपरिक महंगे और अधिक समय लेने वाले तरीकों के बनिस्बत इस स्टार्टअप से क्षेत्र में, भौतिक रूप से मौजूद हुए बिना बेहद सटीक तरीके से भूजल क्षेत्रों का पता लगाया जा सकता है जिससे आर्थिक और संभार तंत्र संबंधी व्यय में 75% की बचत होती है।

पुधुवई ग्रीन गैस केमिकल्स टिलाइजर्स प्राइवेट लिमिटेड जैविक अपशिष्ट कृषि - कच्चे माल का उत्पादन करने वाला एक  स्वच्छ नवीकरणीय एवं  बायोएनर्जी स्टार्टअप है। प्रक्रिया के उपोत्पाद  (बाय प्रोडक्ट) के रूप में मीथेन और हाइड्रोजन का उत्पादन होता है जिसका व्यावसायिक रूप से हरित ईंधन प्रदान करने के लिए उपयोग किया जाता है कई अन्य उपोत्पादों का भी उत्पादन होता है जैसे ठोस और तरल जैव उर्वरक, कार्बन-डाई- ऑक्साइड, सोडियम सिलिकेट, अवक्षेपित सिलिका, कैल्शियम कार्बोनेट और मोनोसल्फर जिनका व्यावसायिक उपयोग किया जाता है।

'सिंस इट आउट' एक गहन प्रौद्योगिकी वाला स्टार्टअप है जो कृषि में जलवायु परिवर्तन की विशेष समस्याओं का प्रौद्योगिकी आधारित समाधान प्रदान करता है उनका उत्पाद एसआईसीसीए ( सेंसर आधारित इंटेलिजेंट क्रॉप सेंट्रिक ऑटोमेशन) स्वदेशी रूप से विकसित सेंसर तकनीक का उपयोग करता है जो सिंचाई प्रबंधन को अधिक सक्षम, विश्वसनीय और कुशल बनाता है। यह एक आईओटी आधारित समाधान है जो अभिनव मृदा सेंसर प्रौद्योगिकी और मापनीय (स्केलेबल) लोरा (लांग रेंज) प्रौद्योगिकी का उपयोग करके जल के उपयोग को अनुकूलतम बनाता है। जिससे यह छोटे और बड़े खेतों के लिए उपयुक्त हो जाता है।

निष्कर्ष 

किसान ऐसी सतत कृषि प्रणालियां विकसित कर सकते हैं जो उन्नत तकनीकों को अपना कर पर्यावरण, सामाजिक और आर्थिक स्थिरता को बढ़ावा देती हैं। हालांकि यह ध्यान रखना आवश्यक है कि प्रौद्योगिकी कोई जादुई समाधान नहीं है और सतत कृषि के लिए इसे अन्य सतत कृषि पद्धतियों जैसे मृदा संरक्षण, फसल चक्रण और एकीकृत कीट प्रबंधन के साथ लागू किया जाना चाहिए भारत में किसानों ने कृषि की दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न सतत कृषि पद्धतियों को अपनाया है। फसल चक्रण में एक निश्चित अवधि में एक ही क्षेत्र में विभिन्न फसलें बोना शामिल होता है। यह पद्धति कीट संक्रमण और बीमारियों की संभावना को कम करते हुए मिट्टी के स्वास्थ्य और उर्वरता को बढ़ाती है।

जैविक खेती के तरीके एक अन्य सतत कृषि पद्धति है। कृत्रिम रसायनों के बिना फसलों का उत्पादन करने के लिए जैविक खेती प्राकृतिक प्रक्रियाओं और तकनीकों जैसे कि फसल चक्रण, अंतवर्तीय खेती (इंटरक्रॉपिंग) और प्राकृतिक उर्वरक पर निर्भर करती है। जैविक खेती के कई लाभ हैं जिनमें स्वस्थ और पौष्टिक खाद्य पदार्थों का उत्पादन मिट्टी के कटाव को कम करना और जल संसाधन संरक्षण शामिल हैं। स्थायी कृषि के संदर्भ में अगर भारत की तुलना वैश्विक आंकड़ों से की जाए तो हमारे देश में सतत कृषि को बहुत अधिक बढ़ावा मिला है। खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) की एक रिपोर्ट के अनुसार ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका और कई यूरोपीय देशों जैसे विकसित देशों में सतत कृषि पद्धतियों में वृद्धि हुई है। इसके अलावा, यह रिपोर्ट चीन, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका जैसे विकासशील देशों में सतत कृषि पद्धतियों की बढ़ती लोकप्रियता पर प्रकाश डालती है।

भारत में उन्नत फसल किस्में वर्षा जल संचयन और ड्रिप (टपक) सिंचाई प्रणाली भी सतत कृषि पद्धतियों के उदाहरण हैं। इन पद्धतियों से न केवल फसल की पैदावार में वृद्धि होती है बल्कि प्राकृतिक संसाधनों का कुशल उपयोग भी सुनिश्चित होता है भारत में सतत कृषि पद्धतियों को अपनाने के बावजूद देश को दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। उदाहरण के लिए देश के कई भागों में कीटनाशक और उर्वरक का बेरोकटोक उपयोग जारी है परिणामस्वरूप मिट्टी का क्षरण और जल प्रदूषण होता है। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन भारत की कृषि स्थिरता के लिए एक बड़ा जोखिम बन गया है। देश में कई जलवायु संबंधी आपदाओं जैसे बाढ़ और सूखे के परिणामस्वरूप फसलें खराब हुई हैं और कई किसानों की आजीविका को नुकसान पहुँचा है।

किसान पर्यावरण के संरक्षण द्वारा, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करके और अपनी आजीविका में सुधार लाकर सतत कृषि से लाभान्वित होते हैं। सतत कृषि पद्धतियों में कृषि उत्पादकता को बढ़ावा देने, उत्पादन लागत कम करने और फसलों की गुणवत्ता बढ़ाने की क्षमता है। यह स्वस्थ और सुरक्षित खाद्य पदार्थों के उत्पादन को भी बढ़ावा देती है जो सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी हैं।

  
सोर्स- कुरुक्षेत्र 
 लेखक नीति आयोग में वरिष्ठ सलाहकार, विशेषज्ञ और अटल इनोवेशन मिशन में यंग प्रोफेशनल हैं। ई-मेल: naman.agarwal@nic.in mrrjvkmr.aim@nic.in
 

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Post By: Shivendra
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