लुधियाना. जहां डाइंग यूनिटों से जुड़े उद्यमी बुड्ढा नाले में जीरो डिस्चार्ज छोड़े जाने संबंधी पीराम कमेटी के फैसले का विरोध कर रहे हैं। वहीं, संत बाबा बलबीर सिंह सीचेवाल ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से मांग की है कि पंजाब की नदियों विशेषत: सतलुज नदी के पानी को विषैला होने से बचाया जाए।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. डीडी बासु को ज्ञापन देकर उन्होंने बताया कि बुड्ढा नाला, सतलुज, काली बेई, काला संघिया, ब्यास इत्यादि में लुधियाना, फगवाड़ा व जालंधर के उद्योगों द्वारा विषैला रसायनयुक्त पानी डाला जा रहा है।
इस पानी के डाले जाने से सतलुज नदी का पानी इस कद्र विषैला हो गया है कि कई बार मछलियां भी पानी में मरी हुई पाई गईं, यानी कि यह पानी इतना ज्यादा विषैला हो गया है कि इंसान तो इंसान, जानवरों के पीने लायक भी नहीं रह गया है। अपने पत्र में उन्होंने बुड्ढा नाला लुधियाना में छोड़े जा रहे औद्योगिक विषैले पानी से जमीने के नीचे के पानी के ख्रराब होने का जिक्र भी किया है।
उन्होंने वैज्ञानिक को बताया कि इस प्रकार से फगवाड़ा शहर में औद्योगिक पानी छीन बेई में गिरकर विषैला कर रहा है। इसी प्रकार काला संघिया ड्रेन और छीन बेई का पानी सतलुज दरिया में और बुड्ढा नाला का पानी सतलुज दरिया में गिर रहा है। उद्योगों के इस विषैले पानी को सतलुज में गिरने से तुरंत रोका जाना चाहिए। बाबा सीचेवाल ने बासु को काली बेई, ब्यास, बुड्ढा नाला और काला संघिया का पानी भी दिखाया।
ये सैंपल उन्होंने कुछ दिन पहले इन चारों नदियों से भरे थे। उन्होंने वैज्ञानिक को बताया कि काली बेई तथा ब्यास का पानी अभी बचा हुआ है, जबकि सतलुज का पानी इस कद्र काला हो गया है कि देखते ही पता चलता है कि इस पानी को न तो पिया जा सकता है और न ही किसी काम में लाया जा सकता है। बाद में बाबा ने दैनिक भास्कर से बातचीत में कहा कि वे उद्योगों के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन उनका मकसद पंजाब के पानी को बचाना है।
उन्होंने कहा कि पंजाब में पानी नहीं बचा, तो जीवन भी नहीं बचेगा। उन्होंने कहा कि राजस्थान तक के लोग पानी बचाने के लिए संगठित हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि वे पी राम कमेटी की सिफारिशों को लागू किए जाने के हक में हैं। बाबा सीचेवाल ने यह भी कहा कि घरेलू वेसटेज का पानी इतना विषैला नहीं होता, जितना कि उद्योगों से निकलने वाला पानी होता है।
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