स्टीफेन हॉकिंग की मृत्यु विज्ञान जगत के लिये एक ऐसी अपूरणीय क्षति है, जिसकी पूर्ति मुश्किल है। उनका ब्रह्मांड विज्ञान (कॉस्मोलॉजी) एवं सैद्धान्तिक भौतिकी में योगदान न केवल मार्गदर्शक है बल्कि दूरगामी प्रभाव रखने वाला है। जब हम इस बात का अहसास करते हैं कि किन शारीरिक परिस्थितियों में उन्होंने ये कार्य किए तो उससे उनके कार्यों का महत्त्व कई गुना बढ़ जाता है। विज्ञान के अलावा भी कई अन्य मुद्दों पर अपने विचार व्यक्त करने में वे चूकते नहीं थे। आने वाले दिनों में विज्ञान में उनके योगदान तथा दूसरे विषयों पर उनके विचारों की चर्चा होती रहेगी।
हॉकिंग अपने समय के विश्व के सबसे लोकप्रिय वैज्ञानिक थे। अल्बर्ट आइंस्टाइन के बाद शायद ही कोई वैज्ञानिक हो जिसने आम लोगों की कल्पना को इस तरह से प्रभावित किया है, जैसे कि हॉकिंग ने किया था। उन्होंने दुनिया भर के लाखों-करोड़ों लोगों को आकर्षित किया। उनका व्यक्तित्व ही कुछ ऐसा था कि हर व्यक्ति उनके प्रति आकर्षण महसूस करता था। उनकी छोटी-सी भी टिप्पणी दुनिया भर में ‘हॉकिंग ने ऐसा कहा’ कहकर फैल जाती थी।
उनकी पुस्तक ‘ए ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ टाइम’ (समय का संक्षिप्त इतिहास) सन 1988 में प्रकाशित हुई। इस पुस्तक ने वैज्ञानिक पुस्तक प्रकाशन के इतिहास में एक ऐसा रिकॉर्ड कायम किया जिसे शायद ही कोई दूसरी पुस्तक तोड़ पाएगी। इस पुस्तक की ढाई करोड़ से अधिक प्रतियाँ बिक चुकी हैं एवं 40 भाषाओं में अनुवाद हो चुका है, जिसमें हिंदी भी शामिल है। लंदन से प्रकाशित ‘संडे टाइम्स’ में यह पुस्तक 237 सप्ताह से अधिक समय तक बेस्ट सेलर लिस्ट में बनी रही। इस पुस्तक, जिसका उपशीर्षक है ‘फ्रॉम बिगबैंग टु ब्लैक होल्स’, में हॉकिंग ने ब्रह्मांड की संरचना, उत्पत्ति, विकास एवं इसकी अन्त में क्या स्थिति होगी इसके बारे में ऐसी शैली में लिखा है ताकि आम पाठक भी इसे समझ सकें।
स्टीफेन हॉकिंग ने अपना जीवन ब्रह्मांड के रहस्यों को सुलझाने के लिये पूरी तरह से समर्पित कर दिया था। उन्होंने एक बार कहा था, “मेरे जीवन का लक्ष्य सरल है, यह है, ब्रह्मांड के बारे में सम्पूर्ण समझ हासिल करना, जिस रूप में यह मौजूद है यह ऐसा क्यों है, इसके अस्तित्व में होने के पीछे कारण क्या है।” उनका मानना था कि, “ब्रह्मांड को गहन स्तर पर समझने के लिये हमें यह जानना ही पर्याप्त नहीं है कि ब्रह्मांड कैसे व्यवहार करता है, बल्कि हमें यह भी जानना जरूरी है कि आखिरकार वह ऐसे व्यवहार क्यों करता है।”
उनकी अपनी पुस्तक ‘दि ग्रैंड डिजाइन’ (जो उन्होंने लिओनार्ड म्लोदिनोव के साथ लिखी थी) में लिखा था कि जीवन, ब्रह्मांड एवं अन्य सभी कुछ को जानने के लिये हमें निम्नलिखित बुनियादी प्रश्नों का उत्तर ढूँढना पड़ेगा।
1. कुछ होने के बजाए क्यों कुछ है?
2. हमारे अस्तित्व का कारण क्या है?
3. (प्रकृति के) नियमों के इस विशेष समूह (सेट) के बदले क्यों दूसरा नहीं है?
हॉकिंग का मानना था कि उपरोक्त प्रश्नों के उत्तर देने के लिये कोई दैवी शक्ति का आह्वान करना जरूरी नहीं है। उन्होंने लिखा थाः “हम दावा करते हैं कि इन प्रश्नों के उत्तर देने के लिये किसी दैवी शक्ति के आह्वान करने की जरूरत नहीं है बल्कि विज्ञान के क्षेत्र के अन्दर रहकर ही उत्तर दिया जा सकता है।”
ब्रह्मांड की उत्पत्ति की व्याख्या करने तथा इसे समझने के लिये हॉकिंग का कार्य मुख्यतः आपेक्षिकता सिद्धान्त (जिससे हम ‘स्पेस’ और ‘टाइम’ की प्रकृति को समझने का प्रयास करते हैं) एवं क्वांटम सिद्धान्त (जो हमें ब्रह्मांड में क्षुद्रतम कण किस तरह से व्यवहार करते हैं, के बारे में बताता है) को एकत्रित करने पर केन्द्रित था।
हॉकिंग, ज्यादातर उनके ब्लैक होल सम्बन्धी कार्यों के लिये जाने जाते हैं। हॉकिंग की ब्लैक होल सम्बन्धी खोज के पहले आमतौर पर यह माना जाता था कि ब्लैक होल एक ऐसी वस्तु है जिसके अन्दर पदार्थ जा तो सकता है मगर कोई भी पदार्थ (चाहे प्रकाश ही क्यों न हो) बाहर नहीं आ सकेगा। हॉकिंग ने यह प्रस्तावित किया कि वास्तव में ब्लैक होल से विकिरण निकल सकता है। इस बारे में उन्होंने अपनी पुस्तक ‘माई ब्रीफ हिस्ट्री’ में लिखा: “ब्लैक होल से निकलने वाला विकिरण वहाँ से ऊर्जा बाहर ले आएगा और परिणामस्वरूप ब्लैक होल द्रव्यमान खोने के साथ सिकुड़ता जाएगा। इस प्रकार से अन्त में ब्लैक होल पूरी तरह से लुप्त हो जाएगा। इसने एक समस्या को उठाया, जिसने भौतिक विज्ञान के सामने एक बड़ी चुनौती खड़ी की। मेरी गणितीय गणना ने सुझाया कि विकिरण वास्तव में तापीय एवं अनियमित होगा और ऐसा होना भी चाहिए यदि ब्लैक होल की एंट्रॉपी उसके घटना क्षितिज (इवेंट होराइजन) का क्षेत्रफल हो। मगर तब ब्लैक होल कैसे बना उसकी पूरी सूचना कैसे बाहर आएगी।? यह भी सच है कि यदि सूचना लुप्त हो जाती हो तो इस प्रक्रिया को क्वांटम यांत्रिकी के साथ असंगत माना जाएगा। इस विरोधाभास पर तीस वर्ष तक बहस चलती रही जब तक मैंने इसका समाधान नहीं ढूँढ लिया। आखिरकार, मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि सूचना लुप्त नहीं होती है मगर यह एक उपयोगी तरीके से वापस नहीं लौटती। यह एक विश्वकोश को जलाने जैसी स्थिति है, ऐसा करने से विश्वकोश में मौजूद सूचना लुप्त हो गई ऐसा तकनीकी रूप से नहीं कहा जा सकता यदि कोई समूचे धुएँ और राख को संचित कर रख लेता है, मगर उसे दोबारा प्राप्त करना असम्भव होगा।” यहाँ उल्लेखनीय है कि इस विषय पर हॉकिंग ने किप थार्न के साथ मिलकर जॉन प्रेसकिल के साथ एक बाजी लगाई थी, शर्त थी कि जो जीतेगा हारने वाला उपहार में उसको उसकी पसन्द का विश्वकोश देगा। बाजी हार जाने के बाद हॉकिंग ने प्रेसकिल को एक बेसबॉल विश्वकोश दिया था। बाद में हॉकिंग ने टिप्पणी की थी कि ‘शायद उन्हें विश्वकोश के बदले विश्वकोश की राख ही देनी चाहिए थी।’
ब्लैक होल से निकलने वाले विकिरण को ‘हॉकिंग विकिरण’ कहते हैं। यह जानना दिलचस्प होगा कि हॉकिंग द्वारा सुझाई गई प्रक्रिया से ब्लैक होल को लुप्त होने में कितना समय लगेगा। एक अनुमान के अनुसार सूर्य के द्रव्यमान के बराबर ब्लैक होल को इस प्रक्रिया से लुप्त होने में 1067 वर्ष लगेंगे एवं ब्रह्मांड के सबसे बड़े ब्लैक होल को 10100 वर्ष लगेंगे। आप अनुमान लगा सकते हैं कि यह समय अवधि कितनी दीर्घ है, इसकी तुलना में हमारे ब्रह्मांड की उम्र कुछ भी नहीं है।
स्टीफेन हॉकिंग जब 21 वर्ष के थे तब उन्हें पता चला कि उनको मोटर न्यूरॉन डिजीज नामक बीमारी है, जिसका ठीक होना असम्भव था। चिकित्सकों ने उन्हें कह दिया था कि वे ज्यादा से ज्यादा दो वर्ष और जीवित रहेंगे। जब उन्हें इस लाइलाज बीमारी के बारे में पता चला तो उन्हें मानसिक धक्का तो जरूर लगा होगा लेकिन उन्होंने तय किया कि इस बीमारी से लड़ते रहेंगे एवं काम भी करते रहेंगे। चिकित्सकों की भविष्यवाणी को गलत साबित करके हॉकिंग 76 वर्ष की आयु तक जीवित रहे तथा अपने को विश्व के महानतम वैज्ञानिकों में से एक के रूप में स्थापित कर गए। इस सन्दर्भ में हॉकिंग का कहना था, “जब मुझे 21 वर्ष की उम्र में मोटर न्यूरॉन डिजीज से ग्रसित होने का पता चला तो मुझे लगा कि यह बेहद अनुचित था। मेरे साथ ही ऐसा क्यों होना चाहिए था? उस समय मैंने सोचा कि वास्तव में मेरे जीवन में कुछ नहीं बचा है और मैं कभी भी उन सम्भावनाओं को साकार नहीं कर पाऊँगा जो मैं सोचता था कि मुझमें विद्यमान हैं। मगर आज पचास वर्ष के बाद मैं अपने जीवन से काफी सन्तुष्ट महसूस कर रहा हूँ। मैंने दो बार शादी की है एवं मेरे तीन सुन्दर एवं कुशल बच्चे हैं। मैं अपने वैज्ञानिक जीवन में सफल रहा हूँ। मुझे लगता है कि अधिकांश भौतिकीविद इस बात पर सहमत होंगे कि ब्लैक होल से क्वांटम उत्सर्जन के बारे में मेरी भविष्यवाणी सही है; हालांकि मेरा यह कार्य अभी तक मुझे नोबेल पुरस्कार नहीं दिला पाया क्योंकि इसका प्रयोगात्मक सत्यापन कर पाना बहुत मुश्किल है। दूसरी तरफ मुझे इससे भी मूल्यवान पुरस्कार ‘फंडामेंटल फिजिक्स प्राइज’ से नवाजा गया, यह पुरस्कार मुझे मेरी खोज के सैद्धान्तिक महत्त्व के कारण दिया गया, बावजूद इसके कि इसे प्रायोगिक रूप से प्रमाणित नहीं किया गया है।”
जैसे कि पहले चर्चा की गई है कि हॉकिंग ने अपनी शारीरिक विकलांगता को अपने वैज्ञानिक काम में आड़े नहीं आने दिया। हॉकिंग ने यहाँ तक भी कहा था कि उनकी शारीरिक अक्षमता उनके काम के सन्दर्भ में उपयोगी ही साबित हुई है। उन्होंने इस सम्बन्ध में लिखा है: “मेरी विकलांगता मेरे वैज्ञानिक काम के लिये गम्भीर बाधा नहीं है। वास्तव में कई मायनों में मुझे लगता है कि यह उपयोगी ही साबित हुई है। मुझे स्नातक छात्रों को पढ़ाना या व्याख्यान देना नहीं पड़ता और न ही उबाऊ और समय नष्ट करने वाली समितियों में बैठना पड़ता है। इसलिये मैं वैज्ञानिक अनुसन्धान के प्रति अपने को पूरी तरह समर्पित कर पाया।”
स्टीफेन हॉकिंग का जन्म 8 जनवरी, 1942 में इंग्लैंड के ऑक्सफोर्ड शहर में हुआ था। अपनी जन्म तिथि के बारे में हॉकिंग ने लिखा हैः “मैं 8 जनवरी, 1942 को जन्मा था, गैलिलियों की मृत्यु के ठीक तीन सौ वर्ष बाद, मगर मेरा अनुमान है कि उस दिन दो लाख बच्चे पैदा हुए होंगे। मैं नहीं जानता कि उनमें से किसी ने खगोल विज्ञान में रुचि ली होगी।” गैलिलियो, जिन्हें आधुनिक विज्ञान का जनक कहा जाता है, कि मृत्यु 8 जनवरी 1642 को हुई थी। यहाँ उल्लेखनीय है कि महान भौतिकीविद अल्बर्ट आइंस्टाइन का जन्म 14 मार्च को हुआ था, जिस तिथि को हॉकिंग की मृत्यु हुई। हॉकिंग ने भी अपने माता-पिता की तरह ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से स्नातक डिग्री हासिल की थी। इसके बाद उन्होंने अक्टूबर 1962 में पीएच.डी. की डिग्री हासिल करने के लिये कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया। वे वहाँ फ्रेड हॉयल के साथ काम करना चाहते थे। इस सम्बन्ध में उनका कहना थाः “मैंने फ्रेड हॉयल के साथ काम करने के लिये आवेदन किया था जो उस समय सबसे विख्यात ब्रिटिश खगोल विज्ञानी तथा स्थाई अवस्था सिद्धान्त (स्टेडी स्टेट थीअरी) के मुख्य बचावकर्ता थे। मैं हॉयल के शोध छात्र जयंत नार्लिकर के साथ एक समर कोर्स (ग्रीष्कालीन पाठ्यक्रम) करने के पश्चात हॉयल के साथ काम करने के लिये प्रेरित हुआ था। मगर उस समय हॉयल के पास काफी छात्र थे इसलिये मुझे डेनिश शियामा के साथ काम करने के लिये कहा गया, जिनके बारे में मैंने कभी नहीं सुना था। यह मेरे लिये बड़ी निराशा की बात थी।” बाद में हॉकिंग को महसूस हुआ कि शायद शियामा के साथ काम करना उनके लिये अच्छा ही था।
सन 1974 में 32 वर्ष की उम्र में हॉकिंग को रॉयल सोसाइटी ऑफ लंदन का सदस्य (फेलो) चुना गया, वे उस समय इस प्रतिष्ठित सोसाइटी के सबसे युवा सदस्यों में से एक थे। सन 1979 में हॉकिंग को कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में लुकासियन प्रोफेसर ऑफ मैथमेटिक्स के रूप में नियुक्त किया गया। यहाँ उल्लेखनीय है कि इस पद को न्यूटन तथा पॉल डिराक जैसे प्रतिष्ठित भौतिकीविद सुशोभित कर चुके हैं।
हॉकिंग को वेटिकन सिटी स्थित पांटिफिकल एकेडमी ऑफ साइंसेस का ‘पोप पियास XI मेडल’ दिया गया था। इस मेडल के मिलने की खबर उन्हें उस समय मिली थी जब वे परिवार के साथ ‘दि ऐसेंट ऑफ मैन’ नामक टीवी सीरियल की उस कड़ी को देख रहे थे, जिसमें दिखाया गया था कि किस तरह रोमन चर्च द्वारा गैलिलियो को घर में आजीवन नजरबंद रखने की सजा दी गई थी। हॉकिंग उस दौरान अमेरिका में थे। हॉकिंग ने इस सम्बन्ध में लिखा हैः “मेरी पहली प्रतिक्रिया थी कि इस मेडल को लेने से मनाकर दूँ, मगर तब मुझे महसूस हुआ कि आखिरकार वेटिकन ने गैलिलियो के बारे में अपने विचार बदल लिये थे। इसके बाद अपने माता-पिता से मिलने के लिये मैंने इंग्लैंड के लिये उड़ान भरी, जो आगे मेरे साथ रोम गए। मैंने वेटिकन भ्रमण के दौरान इस बात का भी ख्याल रखा था कि मुझे वेटिकन लाइब्रेरी में मौजूद गैलिलियो के विचारों का विवरण दिखाया जाए।
पुरस्कार समारोह के बाद पोप पॉल VI अपने सिंहासन से उतरकर मेरे पास आकर घुटनों के बल बैठ गए। समारोह के बाद मैं पॉल डिराक से मिला, जो क्वांटम सिद्धान्त के संस्थापकों में से एक थे। जब वे कैम्ब्रिज में प्रोफेसर थे तब उनके साथ मैंने कभी बात नहीं की थी क्योंकि उस समय क्वांटम सम्बन्धी विषयों में मेरी कोई रुचि नहीं थी। डिराक ने मुझे बताया कि पहले तो इस मेडल के लिये उन्होंने एक-दूसरे उम्मीदवार का नाम प्रस्तावित किया था मगर अन्त में उन्होंने मुझे बेहतर उम्मीदवार माना एवं एकेडमी को मुझे मेडल देने को कहा।”
हॉकिंग का मानना था कि यदि एलियंस (दूसरी दुनिया के जीव) पृथ्वी पर आते हैं तो वह मानव जाति के लिये अच्छी बात नहीं होगी बल्कि खतरे की बात होगी। उन्होंने एक बार कहा था : “यदि एलियंस पृथ्वी पर उतरेंगे तो उसका नतीजा ऐसा ही होगा जैसा कि कोलम्बस के अमेरिका में उतरने के बाद हुआ था। वह अमेरिका के मूल निवासियों के लिये अच्छा नहीं था।”
हॉकिंग का मानना था कि एलियंस को ढूँढना एवं उनके साथ संवाद स्थापित करने के बजाए हमें हर सम्भव प्रयास करना चाहिए कि उनसे सम्पर्क न हो। हॉकिंग सोचते थे कि पृथ्वी पर स्वतः स्फूर्त जीवन का विकास हमें यह बताता है कि इस असीम ब्रह्मांड में दूसरे ग्रहों में भी जीवन पनपा होगा और इस बारे में हमें जरूर जानना चाहिए भले ही हमें उससे सम्पर्क स्थापित करने में सावधानी बरतनी होगी। हॉकिंग ने रूसी उद्यमी यूरी मिल्नर के साथ मिलकर 20 जुलाई, 2015 में ‘ब्रेकथ्रू लिसन’ नामक परियोजना की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य है ब्रह्मांड में दूसरी दुनिया में विद्यमान जीवों के अस्तित्व का पता लगाना।
हॉकिंग के अनुसार समय-यात्रा (टाइम ट्रैवेल) सम्भव नहीं है। उन्होंने इस सम्बन्ध में लिखा है: “सन 1990 में किप थार्न ने सुझाया था कि वर्म होल के जरिए अतीत में भ्रमण करना सम्भव हो सकता है। इसलिये मैंने सोचा कि इस पर गौर करना सार्थक होगा कि क्या भौतिक विज्ञान के नियम समय-यात्रा की अनुमति देते हैं।” वे इस विषय पर अध्ययन करने के पश्चात इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि वर्म होल सम्बन्धी वर्तमान सिद्धान्त के आधार पर समय-यात्रा सम्भव नहीं होगी और भविष्य में इस सम्बन्ध में कोई दूसरा सिद्धान्त खोजा भी जाए तो भी सम्भव नहीं होगा। उनका कहना था यदि ऐसा होने की सम्भावना रहती तो अभी तक भविष्य से आने वाले पर्यटकों द्वारा हमें कुचल दिया जाता।
हॉकिंग मानते थे कि “धर्म, जो सत्ता पर आधारित है एवं विज्ञान, जो अवलोकन एवं तर्क पर आधारित है, के बीच में मौलिक अन्तर है।” हॉकिंग ने ईश्वर के अस्तित्व को महत्त्व नहीं दिया। उनका कहना था कि “ब्रह्मांड को किसी ने भी सृजित नहीं किया एवं न ही कोई हमारे भाग्य को नियंत्रित करता है। यह सोच मुझे एक गहरे एहसास की ओर ले जाती है, न ही कोई स्वर्ग है और न ही कोई पुनर्जन्म है। हमारे पास इस ब्रह्मांड के भव्य डिजाइन की सराहना करने के लिये यही एक जीवन है एवं उसके लिये मैं बेहद आभारी हूँ।
हॉकिंग, जो खुद संवाद करने के लिये कृत्रिम बुद्धि (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) का इस्तेमाल करते थे, का मानना था कि कृत्रिम बुद्धि के पूर्ण विकास से मानव जाति का अन्त हो जाएगा। उनका कहना था कि अभी तक कृत्रिम बुद्धि का जो प्राथमिक रूप विकसित हुआ है वो काफी उपयोगी साबित हुआ है मगर जब ऐसा कुछ सृजित होगा जो मानव बुद्धि के बराबर या उससे अधिक होगा तब उसके परिणाम के बारे में सोचकर उन्हें डर लगता है।” उस स्थिति में उनका सोचना था कि कृत्रिम बुद्धि अपने को स्वतंत्र कर लेगी एवं खुद को तेजी से नया स्वरूप देगी। मानव जो धीमी गति से चलने वाले जैविक विकास से सीमित है, उससे प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाएगा और पीछे रह जाएगा।
हॉकिंग इच्छा शक्ति के प्रतीक थे। अप्रैल 2007 में उनके 65वें जन्मदिवस के कुछ महीने बाद उन्होंने एक विशेष रूप से सुसज्जित बोइंग 727 पर सवार होकर शून्य गुरुत्वाकर्षण उड़ान (जीरो ग्रेविटी फ्लाइट) में भाग लिया था। जब उन्हें पूछा गया था कि उन्होंने इस तरह का जोखिम क्यों उठाया तो उनका उत्तर था “मैं यह दिखाना चाहता था कि लोगों को शारीरिक विकलांगता के आधार पर सीमित होने की जरूरत नहीं है जब तक वे इच्छाशक्ति में अक्षम नहीं हों।”
हॉकिंग की भारत यात्राएँ
हॉकिंग सन 2001 में भारत आए थे एवं यहाँ 16 दिन रहे। पहले वे मुम्बई गए, जहाँ उन्हें टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (टीआईएफआर) द्वारा आयोजित पाँच-दिवसीय अन्तरराष्ट्रीय भौतिकी संगोष्ठी में भाग लेना था। मुम्बई में रहने के दौरान हॉकिंग ने महिंद्रा एंड महिंद्रा कम्पनी द्वारा उनके लिये विशेष रूप से डिजाइन किए गए एक वाहन, जिसमें उनकी ह्वीलचेयर रखी जा सके, में सवार होकर शहर का दौरा किया था। फिर हॉकिंग मुम्बई से दिल्ली आए जहाँ उन्होंने सिरी फोर्ट ऑडिटोरियम में सार्वजनिक व्याख्यान दिया। उस व्याख्यान को सुनने के लिये आम लोगों का उत्साह देखने लायक था। इस लेख के लेखक भी उनमें एक थे। दिल्ली में हॉकिंग ने भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री के.आर. नारायणन के साथ मुलाकात की थी तथा जन्तर-मन्तर एवं कुतुब मीनार का दौरा भी किया था। हॉकिंग की यह भारत यात्रा तो बहुत से लोगों को याद होगी पर शायद बहुत कम लोगों को पता हो कि हॉकिंग सन 1959 में भी कुछ दिनों के लिये भारत आए थे। उनके पिता, जो उस समय इंग्लैंड के नेशनल मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट के प्रमुख थे, एक वर्ष के लिये भारत आए थे एवं लखनऊ में स्थित सीएसआईआर-केन्द्रीय औषधि अनुसन्धान संस्थान से जुड़े थे। हॉकिंग तब इंग्लैंड में ही थे। वे ग्रीष्कालीन-अवकाश के दौरान कुछ दिनों के लिये अपने परिवार के पास लखनऊ आए थे। उन्होंने उस समय कश्मीर का भी भ्रमण किया था। हॉकिंग ने सन 1959 में भारत भ्रमण के बारे में अपने संस्मरण, ‘माई ब्रीफ हिस्ट्री’ (बेंथम प्रेस द्वारा सन 2013 में प्रकाशित) में भी सम्मिलित किए थे। -सु.म.
स्टीफेन हॉकिंग की प्रमुख कृतियाँ
1. लार्ज-स्केल स्ट्रक्चर्स ऑफ स्पेस-टाइम (जी.एफ.आर. एलिस के साथ, 1973)
2. ए ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ टाइमः फ्रॉम बिगबैंग टू ब्लैक होल्स (1988)
3. ब्लैक होल्स एंड दि बेबी यूनिवर्स एंड अदर एसेज (1993)
4. दि नेचर ऑफ स्पेस एंड टाइम (रोजर पेनरोज के साथ, 1996)
5. दि इलस्ट्रेटेड एंड ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ टाइम (1996)
6. दि लार्ज, दि स्मॉल एंड दि ह्यूमन माइंड (रोजर पेनरोस, अब्नेर शिमोनी एवं नैन्सी कोर्टराइट के साथ, 1997)
7. दि यूनिवर्सः इन ए नटशेल (2001)
8. ऑन दि शोल्डर्स ऑफ जायन्ट्सः दि ग्रेट वर्क्स ऑफ फिजिक्स एंड एस्ट्रोनॉमी (2002)
9. दि फ्यूचर ऑफ स्पेस-टाइम (के.पी. थार्न एवं टिमोथी-फेरिम के साथ, 2002)
10. गॉड क्रिएटेड दि इंटेजर्सः दि मैथेमेटिकल ब्रेकथ्रू दैट चेंज्ड दि हिस्ट्री (2005)
11. ए ब्रीफर हिस्ट्री ऑफ टाइम (लिओनार्ड म्लोदिनोव के साथ, 2005)
12. दि थीअरी ऑफ एवरीथिंग (2007)
13. दि ग्रैंड डिजाइन (लिओनार्ड म्लोदिनोव के साथ, 2010)
14. दि ड्रीम्स दैट स्टफ इज मेड ऑफः दि मोस्ट एस्टाउडिंग पेपर्स ऑफ क्वांटम फिजिक्स एंड हाउ दे शूक दि साइंटिफिक वर्ल्ड (2011)
15. माइ ब्रीफ हिस्ट्री (2013)
16. ब्लैक होल्सः दि रीथ लेक्चर्स (2016)
बच्चों के लिये हॉकिंग एवं उनकी बेटी लुसी हॉकिंग द्वारा सह-लेखक के रूप में लिखी पुस्तकें
1. जॉर्जस सीक्रेट की टू दि यूनिवर्स (2007)
2. जॉर्जस कॉस्मिक ट्रेजर हंट (2009)
3. जॉर्ज एंड दि बिग बैंग (2011)
4. जॉर्ज एंड दि अनब्रेकेबल कोड (2014)
5. जॉर्ज एंड दि ब्लू मून (2016)
-सु.म.
लेखक
डॉ. सुबोध महंती
(पूर्व वैज्ञानिक ‘जी’ और मानद निदेशक, विज्ञान प्रसार, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार), डी-410, क्रिसेंट अपार्टमेंट, प्लाट नं. 2, सेक्टर-18, द्वारका, नई दिल्ली-110078
ईमेल: subodhmahanti@gmail.com
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