सृजनात्मकता की बूँदाबाँदी

सृजनात्मकता की बूँदाबाँदी
सृजनात्मकता की बूँदाबाँदी


सोलह सौ वर्ष पहले लिखित ‘यक्ष’ बताता है कि मानसून इस उपमहादेश की सृजनात्मक अभिव्यक्ति को कितना प्रभावित करता है।

मानसून - सृजनात्मकता की बूँदाबाँदीमानसून - सृजनात्मकता की बूँदाबाँदीमानसून के बारे में यह लेख उप-उष्णकटिबन्धीय वायु प्रवाह के उत्तर दिशा में स्थानान्तरण की मनोरम परिघटना जो मानसून को प्रारम्भ करता है या मानसून के आर्थिक महत्त्व के बारे में नहीं है। यह इस तथ्य के बारे में भी नहीं है कि लगभग 40 वर्ष पहले तक भारत के 75 प्रतिशत लोग आजीविका के लिये कृषि पर निर्भर थे और आज भी भारत की 50 प्रतिशत से अधिक आबादी जीवित रहने के लिये प्रत्यक्ष तौर पर कृषि पर निर्भर करती हैं कि देश में खेती लायक भूमि का 56 प्रतिशत वर्षा से सिंचित होती है और भारत में होने वाली वर्षा का 80 प्रतिशत मानसून में आता है।

बल्कि इन आँकड़ों के सहारे दक्षिण एशिया निवासियों के जीवन में मानसून के केन्द्रीय महत्त्व को प्रकट करना है। यह ऐसी चीज है जिसने इस बड़ी आबादी के जीवन की परिस्थितियों और अस्तित्व को इतनी गहराई से प्रभावित किया है कि सृजनात्मक अभिव्यक्ति में इसे स्थान नहीं मिलना सम्भव नहीं है।

मानसून के सन्दर्भ में एक सर्वाधिक प्रसिद्ध प्रसंग कालिदास कृत मेघदूत में है। एक यक्ष (उपदेवता) को उसके मालिक कूबेर जो धन के देवता हैं, ने सजा के तौर पर निर्वासित कर दिया। यक्ष अपनी प्रेमिका के वियोग में था, उससे मिल नहीं सकता था क्योंकि उसे पूरे साल भर निर्वासन में रहना था। एक दिन उसने देखा कि विशालकाय बादल पहाड़ी पर चढ़ रहा है, यक्ष ने बादल से पूछा कि क्या तुम मेरी प्रेमिका के पास मेरा सन्देश पहुँचा दोगे। प्रेमिका उत्तर दिशा में रहती थी, बादल भी उसी दिशा में जा रहा था। यक्ष चाहता था कि बादल उससे (प्रेमिका) कहें कि वह सकुशल है, पर हर समय उसकी (प्रेमिका) की कमी खलती है। यक्ष ने मेघ को जाने का रास्ता बताया और जैसे-जैसे आगे बढ़ता जाता है, स्थानीय भौगोलिक परिदृश्य और वहाँ के निवासी जीव-जन्तु, पक्षी, जानवर, फूल, कीड़े-मकोड़े और उन सबके लिये मानसून अर्थात मेघ के महत्त्व को बताता चलता है। यक्ष उन असंख्य तरीकों को बताता है जिनसे मानसून जीवन को उत्पन्न करता है, यह कैसे वृक्षों और पौधों को विकसित होने के लिये प्रोत्साहित करता है और फूलों और पक्षियों, जानवरों और मनुष्यों को वर्षा के आगमन का आनन्द मनाने का ढंग बताता है।

लगभग 1600 वर्ष पहले लिखी गई मेघदूत की कथा विश्व साहित्य की क्लासिक रचना है और महज एक उदाहरण है कि मानसून ने इस उपमहादेश की सृजनात्मक अभिव्यक्ति को किस तरह प्रभावित किया है। मेघदूत के दो श्लोकों के अनुवाद से हमें इसे समझने में मदद मिलेगीः-

“धरती की महक से युक्त शीतल मंद हवा तुम्हारी फुहारों से तरोताजा हैं, इस आनन्दप्रद समीर में हाथी जोर से साँस लेते हैं, यह समीर जंगलों में अंजीर को परिपक्व करता है और तुम्हें शीतल करता है, तुम जो देवगिरि की ओर प्रस्थान करना चाहते हो।’’

इस पाठ में ‘तुम’ मेघ है और तथ्य है कि अपनी उत्तरमुखी यात्रा में मेघ को देवगिरि (वर्तमान में महाराष्ट्र में स्थिति) को पार करना पड़ता है। इसका अर्थ होता है कि यक्ष वर्तमान महाराष्ट्र या उससे दक्षिण था। इस प्रकार दक्षिण-पश्चिम मानसून के उत्तर दिशा में हिमालय की ओर समूची यात्रा के विवरण इसमें मिलते हैं। इस श्लोक में पृथ्वी के गन्ध का उल्लेख हमें मानसून के बारे में एक अन्य सन्दर्भ प्रदान करता है और लोकस्मृति में मानसून की दृढ़ उपस्थिति को बताता है। मैदानी क्षेत्र के सूखी धरती की कल्पना करें जो कई महीनों से सूर्य से तपती रही। यह सूखी धरती फटती है, घास के मैदान भूरे हो जाते हैं, पेड़ कुम्हला जाते हैं, गाँव की गलियाँ विरान हो जाती हैं और बच्चे भी घरों के भीतर रहते हैं। हर कोई दम साधे इन्तजार करता है, जीवन और आजीविका देने वाले के आगमन का इन्तजार करते हैं और तब अचानक क्षितिज पर काले मेघ छाते हैं और गिड़गड़ाते हैं, बिजली चमकती है और स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं।

फसल की कटाई हो गई है और कृषिगत गतिविधियाँ मानसून के आगमन के पहले मामूली या एकदम नहीं होती हैं। यह ग्रामीण इलाकों में विवाहों का मौसम होता है, इसका पहला कारण यही होता है कि लोगों के पास पर्याप्त खाली समय होता है। अगर किसी विवाह समारोह में शामिल नहीं होना रहा तो लोग स्वयं को टोकरी बुनने, कृषि-औजारों की मरम्मत करने और फूस की छत को दुरुस्त करने में व्यस्त करते हैं। धरती जब पहली बरसात को सोखती है तो यह मादक सुगन्ध छोड़ती है, सूखी धरती के तर होने की गन्ध। यह मादक होती है और साथ ही तरोताजा करने वाली होती है। सुगन्ध के कारोबारी लोगों ने इस सुगन्ध को संजोने की तकनीक निकाल ली है। फारसी में धरती की इस सुगन्ध को इत्र ए गिल कहते हैं।

अगर आप इस इत्र को खरीदना चाहते हैं तो आपको पुरानी दिल्ली के दरीबा कलां इलाके में गुलाब सिंह जौहरी माल में जाना होगा। यह इत्रफरोश 1816 से इस कारोबार में है। यह इत्र महंगा है, एक मिलीलीटर की कीमत 216 रुपए होती है, पर यह वाजिब है। कन्नौज और लखनऊ और कुछ दूसरी जगहों के इत्रफरोश भी इस इत्र को बनाते हैं।

मानसून की उपस्थिति केवल प्राचीन संस्कृत साहित्य या इत्रफरोशों की कलाओं में ही नहीं है, वास्तव में मानसून से प्रेरित सृजनात्मक अभिव्यक्तियाँ दूसरे अनेक कलाकारों और संगीतकारों के बीच होली या बसन्त के सन्दर्भ में है।

मिनिएचर पेंटिग्स में मानसून को चित्रित करने की अनेक धाराएँ मिलती हैं। अक्सर दुहराए गए विषयों में रागमाला शृंखला के चित्र आते हैं जिन्हें हिन्दुस्तानी संगीत के अनेक रागों के केन्द्रीय विषय को अभिव्यक्त करते हुए बनाया जाता है। उदाहरण के लिये राग मेघ मल्हार या राग मियाँ मल्हार को अभिव्यक्त करते चित्र। रागों के इन चित्रात्मक अभिव्यक्ति में सर्वदा एक युवती को दिखाया जाता है जो काले बादलों से भयभीत लगती है और आकाश में बिजली चमकने से चौंक पड़ती है। इस विषय पर एक बेहतरीन अभिव्यक्ति एक मिनिएचर पेंटिंग्स में हुई है। मैं इसकी उद्गम को लेकर पूरा आश्वस्त नहीं हूँ, शायद पहाड़ी या राजपूत है लेकिन निश्चित रूप से 18वीं सदी के बाद का है। इसमें एक संगमरमर की इमारत है, संगमरमर की खुली छत और संगमरमर की ही बाड़ है, उसमें सफेद परिधान में एक युवती आगे की ओर झूकी है मानो तेज हवा में उड़ रही हो, उसे खुले दरवाजे की ओर जाते हुए नारंगी चुन्नी से सिर ढँकते दिखाया गया है, उसके ऊपर इमारत पर एक मयूर शान्त भाव से बैठा वर्षा का इन्तजार कर रहा है, जबकि दाहिनी ओर पेंटिंग्स के फ्रेम के ऊपरी कोने में काले बादल नीचे उतर रहे हैं, साथ-साथ बिजली चमक रही है। मिनिएचर पेंटिंग्स में इस तरह के अनेक दूसरे विषय भी हैं-लौकिक, अलौकिक दोनों लेकिन सभी मानसून के बारे में हैं। वहाँ घनघोर वर्षा के बीच कृष्ण को एक टोकरी में रखकर नदी पार करते वासुदेव का चित्र है। वर्षा से सम्बन्धित दूसरे पेंटिंग्स भी हैं जैसे वर्षा के देवता इन्द्र को चुनौती देते हुए कृष्ण का गोवर्धन पर्वत उठा लेना। इन्द्र किसी कारण से वृंदावन के निवासियों को सजा देना चाहता था और उसने वृंदावन को विंध्वस्त करने के लिये काले बादलों, वज्रपात एवं चमकती बिजली को भेजा। लेकिन कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कानी ऊँगली पर उठा लिया और समूचा वृंदावन उस पहाड़ी के नीचे छिप गया जिससे इन्द्र को पराजित होना पड़ा

मानसून कई जानवरों के मैथून का समय भी होता है जो सम्भवतः घास और कीट-पतंगों की अधिक उपलब्धता की वजह से है। शाकाहारी जानवर और पक्षियों में मानसून के दौरान मैथून और वंशवृद्धि करने की प्रवृत्ति इसी कारण होती है। मांसाहारी जानवरों की बढ़ी आवश्यकता को पूरा करने के लिये बड़ी संख्या में असहाय शिकार उपलब्ध होते हैं।

मानसून के दौरान अपने प्रेमपात्र के साथ रहने की अभिलाषा तीव्रतर होती है और अगर प्रेमपात्र दूर हो तो वियोग की भावना तीव्रतर होती है और इसलिये बारहमासा गीतों एवं पेंटिंग्स मे बरसात के चार महीने या चैमासे में विरह या अलगाव की भावना अभिव्यक्त होती है।

भारतीय संगीत, चाहे शास्त्रीय हो, लोक संगीत या दूसरे लोकप्रिय संगीत में मानसून ने जिस तरह के पदचिन्ह छोड़े है उसे किसी तरह की अतिरिक्त व्याख्या की जरूरत नहीं है। फिल्मी संगीत पर एक सरसरी निगाह डालने पर यह स्पष्ट हो जाता है, ‘ओ सजना बरखा बहार आई, से लेकर ‘घनन घनन घिर आए बदरा,’ तक। फिल्म-संगीत वर्षा गीतों से भरी पड़ी है। केवल इस कारण नहीं कि यह निदेशक को देहदर्शी परिधानों में नायिका को प्रस्तुत करने का अवसर देता है बल्कि इसलिये भी कि मानसून के गीत समूचे दक्षिण एशिया के लोगों को सम्मोहित करते हैं।

बेगम अख्तर की ‘अब के सावन घर आ जा संवरिया’ से लेकर पंडित भीमसेन जोशी के ‘सावन की बूँदनिया’ या 13वीं शताब्दी के सूफी कवि अमीर खुसरों के ‘अम्मा मेरे भैया को भेजो री के सावन आया,’ से लेकर सुगम संगीत और लोक संगीत के कजरी, झूला और चैमासा तक भारतीय संगीत के विस्तार को मानसून के बगैर नहीं बताया जा सकता। प्रसिद्ध गायिका शुभा मुदगल कहती हैं कि मानसून का प्रभाव परम्परागत भक्ति संगीत पर भी दिखता है, विशेषकर वल्लभ समुदाय, नाथ द्वारा मन्दिर और काक्रोली कीर्तनियाँ में जहाँ सावन और वर्षा के गीत मानसून के चार महीनों में नियमित प्रस्तुत किये जाते हैं।

मानसून का समय उत्सव का समय भी होता है। महिलाओं और युवतियों में तीज पर्व अधिक लोकप्रिय है जिसमें महिलाएँ बगीचों में एकत्र होती हैं, पेड़ों पर झूला लगाया जाता है, झूलते हुए गीत गाए जाते हैं और सखियों के साथ पूरा दिन बिताया जाता है। इसके अलावा रक्षाबन्धन का पर्व होता है जो बुनियादी तौर पर महिलाओं का पर्व है। वे अपने भाइयों से मिलने जाती है और उनकी कलाई पर धागा बाँधकर बहन के प्रति जिम्मेवारियों को याद रखने की हिदायत देती हैं। रक्षाबन्धन सावन पूर्णिमा को पड़ता है।

जब लेखक, चित्रकार, संगीतकार और उत्सव सभी मानसून से प्रभावित होते हैं तो स्वादलोलुप लोग कैसे पीछे रहते। मानसून के आगमन के साथ मिठाइयाँ और नमकीन हर अच्छे हलवाई की दुकान पर सज जाती हैं। स्वादिष्ट पकवानों की सूची बहुत लम्बी है। चावल के आटे से बनी मिठाई अंदरसे की गोली जिसे खमीर में तैयार किया जाता है, चीनी मिलाई जाती है और सफेद तिल में लपेटकर पकाया जाता है। खमीर उठती सफेद आँटे से बने घेवर, लपसी, रबड़ी और बेसनी रोटी या बेसनी तंदूरी पराठा जिसे कद्दू के गर्म झोल या मिर्च के झोल के साथ खाते हैं। अनेक तरह के सूखे फल, फलों का राजा आम- दशहरी, लंगड़ा, चौसा, केसरी, हिम सागर और न जाने कितने प्रकार के।

मानसून का आनन्द अन्तहीन है। हर क्षेत्र इसे अपने तरीके से मनाता है। मैंने केवल कुछ हिस्सों के बारे में लिखा है। अगली बार जब आप वर्षा में फँस जाएँ तो उसे कोसें मत। पूरी तरह से भीगें। दूसरे भाग्य से मिली सुविधाओं जैसे हवा और सूर्य की रोशनी की तरह यह भी मुफ्त मिलता है। कोई मानव निर्मित झरना सम्पूर्ण शरीर को भिगोने वाली वर्षा का मुकाबला नहीं कर सकता।
 

Path Alias

/articles/sarjanaatamakataa-kai-bauundaabaandai

×