इस साल मौसम विभाग का आकलन बिल्कुल सही साबित हुआ है कि अबकी बार सावन पूरी तरह से झूम कर आने वाला है। पंजाब बिजली की कमी से थर्राया हुआ है। सरकार को इस बात की ही बहुत खुशी है कि यदि सचमुच मानसून झमाझम बरसा तो बिजली की कमी वाली कमजोरी को सावन ढंक देगा। पर इसके आगे की भी सोची है सरकार ने कि बरसने वाले पानी का और क्या लाभ लिया जा सकता है?
ज्यादा पानी बरसा तो क्या घटित हो सकता है? इस तरफ की तैयारियां यदि हो भी रही हों तो आज के हालात देख कर उन्हें कागजी करार देने पर सरकार को भी गुस्सा नहीं करना चाहिए। एक घग्गर ने ही पंजाब के किसानों व पानियों की सबसे अधिक हितैषी होने का दावा करने वाली शिरोमणि अकाली दल के नेतृत्व में चल रही सरकार के प्रबंधकीय दीवालियेपन का सबूत दे दिया है। आज मालवा में त्राहि-त्राहि का आलम है। बाकी के दरिया भी लबालब है। आने वाले दिनों में वे भी सिंचाई विभाग के किए कराए के सबूत मिटा कर और ज्यादा कमाई का रास्ता खोल सकते हैं। बारस्ता दरिया किनारे बसे गांवों की तबाही के रास्ते से।
जब पंजाब जमीनी पानी के मामले में सबसे अमीर होता था तब इस प्रदेश का नहरी व सिंचाई विभाग भी पूरी तरह से चाक चौबंद व जिम्मेवार हुआ करता था। जून से ही सभी दरियाओं नदियों से सिल्ट निकालने का काम युद्ध स्तर पर शुरु हो जाया करता था। यहां तक कि ड्रेन व गंदे नालों की भी माकूल सफाई हो जाया करती थी। मजेदार बात है कि उन दिनों मशीनी साधन न के बराबर होते थे पर विभाग की प्रतिबद्धता का ये आलम था कि बरसात का पानी सीधे जमीन में रीचार्ज हो जाए इस मामले में हर कोशिश हुआ करती थी। परन्तु आजकल जहां इस हद तक बेहतर काम करने वाली अत्याधुनिक मशीनरी आ चुकी है जो एक दिन में पांच हजार व्यक्ति जितना काम अकेले ही कर सकती है उस दौर में बरसाती पानी को दोबारा जमीन में समाने के लिए जो प्रबंध आसानी से हो सकते हैं वो बिल्कुल ही नहीं हो पा रहे।
केवल एक ही उदाहरण सारे सिलसिले का असली सच लाने के लिए काफी है कि जहां सारे पंजाब के भू-जल स्तर में गिरावट दर्ज की गई है वहीं पूरे पंजाब में कपूरथला एकमात्र जिला है जहां भू-जल का स्तर 83 सें.मी बढ़ा हुआ दर्ज किया गया है। आखिरकार कपूरथला में ऐसा क्या हुआ जो बाकी के जिलों में न हो सका? वो है काली बेईं की विधिवत सफाई व वाटर रीचार्ज के लिए आवश्यक स्तर तक निकाली गई सिल्ट। इस नदिया के तारणहार का नाम श्रीमान संत बलबीर सिंह सीचेवाल है। क्या ये हैरानी की बात नहीं कि जहां पिछले साल वर्षा भी कम हुई व पूरी काली बेईं की सिल्ट निकालने का काम अभी भी चल रहा है इसके बावजूद जितना भी काम हो पाया उसके चलते जिला कपूरथला का भू-जल स्तर 83 सें.मी. बढ़ गया। क्या इससे ये साबित नहीं होता कि यदि एक नदी की अधूरी निकली सिल्ट के चलते ये करिश्मा हो गया तो यदि पूरे पंजाब की नदियों व दरियाओं की सिल्ट ही निकाल दी जाए तो पंजाब के भूजल में वृद्धि करने के लिए पांच सितारा होटलों में करवाए जाते सेमीनारों या विदेशी विशेषज्ञों की करोंड़ो रुपए खर्च करके ली जाने वाली सलाह की कोई जरूरत ही नहीं पड़ेगी।
इसी सप्ताह मैं गो ग्रीन इंटरनैशनल आर्गेनाईजेशन के ग्लोबल डायरेक्टर अश्विनी कुमार जोशी के साथ सुल्तानुर लोधी स्थित संत बलबीर सिंह सीचेवाल जी का काम देखने गया तो पाया कि भरी दोपहरी में संत सीचेवाल खुद बेर साहिब के पास काली बेईं की सिल्ट निकलवाने के लिए मोर्चे पर तैनात जरनैल की भांति डटे हुए थे। एक बड़ी डिच मशीन मिट्टी की सिल्ट निकाल रही थी व लाईन लगा कर खड़ी हुईं करीब पचास ट्रालियों में वो सिल्ट डाली जा रही थी। संत सीचेवाल खुद निरीक्षण करके कि खुदाई का स्तर रेत तक पहुंचा है कि नहीं, सारी काम कर रही मशीनरी व लगे हुए लोगों को निर्देश दे रहे थे। मैं हैरान था कि यदि एक संत अपने काम के प्रभाव से जनता में इतनी पैठ बना सकता है कि उनके पास अत्याधुनिक मशीनरी भी है व काम भी बिल्कुल सार्थक हो रहा है तो सरकार को पास तो बहुत ज्यादा साधन हैं। यदि दरियाओं व नदियों से सिल्ट निकाल कर उनके बांध बनवा दिये जाए तो वे बांध बेहद मजबूत साबित हो सकते हैं। सरकारी खजाने को बांध बनाने के नाम पर लगता करोड़ों का चूना भी लगने से बच सकता है। संत सीचेवाल ने हमें उस मिट्टी का उपयोग करने की जो विधि बताई उससे सरकार के बिजली संकट का विकल्प भी दिखाई पड़ा।
सरकार चाहे तो सिल्ट की मिट्टी से खोज सकती है बिजली कमी का विकल्प......
जब संत बलबीर सिंह सीचेवाल जी से पूछा गया कि ये लोग ट्रालियों में भर कर सिल्ट की मिट्टी कहां ले जा रहे हैं व इसका क्या करेंगे? तो उन्होंने नदियों से पानी को भूमि में जाने से रोकने वाली इस मिट्टी के संदर्भ में बेहद रोचक जानकारियां दीं। पहली बात, ये मिट्टी मकान की भर्ती के लिए बहुत उपयोगी है क्योंकि पानी इसको बेध नहीं सकता। जहां नदियों के लिए ये मिट्टी घातक है वहां मकान की भर्ती में बहुत काम की चीज है। दूसरा, इस मिट्टी को यदि नदियों-नहरों-दरियाओं से निकाल कर उनके बांध बी बना दिये जाएं तो ये पानी के बहाव से टूट नहीं सकती। इसकी मदद से बांध टूट कर आने वाली बाढ़ से बचाव किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि जब काली बेईं को जीवित करने की मुहिम शुरु की गई थी तब नदी की निशानदेही लेनी पड़ी थी क्योंकि वो समतल भूमि में बदल चुकी थी व उस पर आसपास की जमीनों वाले किसान खेती कर रहे थे। तब नही की खुदाई के दौरान निकलने वाली सारी की सारी सिल्ट से करीब 116 किलोगीटर लंबे बांध का निर्माण इसी मिट्टी से किया गया था जिस पर ट्रक चलने जितना चौड़ा रास्ता बनाया गया था। वो बांध आज भी सुरक्षित है व सरकार को उसे पक्का करने के लिए एक पैसा भी खर्च नहीं करना पड़ा। इस सिल्ट का सबसे बड़ा उपयोग ये है कि यदि सीमेंट व रेत की चिनाई के बजाए इस मिट्टी से चिनाई की जाए तो घर की मजबूती तो उतनी ही रहती है जितनी सीमेंट रेत की चिनाई से होती है,इसके अलावा इसकी चिनाई के चार फायदे हैं। पहला, यदि दस बीस साल बाद मकान को दोबारा बनाने की जरूरत पड़े तो इंटें पूरी की पूरी सलामत रह जाती हैं।
दूसरा सीमेंट की चिनाई से पहले इंटों को बेहद तक किया जाता है जिसमें बेशकीमती पानी का इस्तेमाल होता है जबकि सिल्ट की मिट्टी की चिनाई में इंटों को पानी नहीं लगाना पड़ता। मिट्टी के साथ मिला पानी ही दीवार की मजबूती के लिए काम करता है। तीसरा, ये मिट्टी सीमेंट व रेत की कीमत के मुकाबले में मुफ्त की है। महंगाई के जमाने में भवन निर्माण की लागत में काफी कमी आ सकती है। चौथी व सबसे महत्वपूर्ण बात सिल्ट की मिट्टी की चिनाई से बनी दीवारें गर्मी के मौसम में तपती नहीं हैं। इन्हें भीतर से ठंडा करने के लिए रुटीन में खपत होने वाली बिजली की आधी ऊर्जा से ही काम चल जाएगा। यदि पंजाब सरकार केवल दो बिंदुओं पर ही काम करे कि नदी नालों व दरियाओं में जमी सिल्ट को विधिवत तरीके से निकाल कर भविष्य में सरकारी नियंत्रण में निर्मित होने वाले भवनों में इसकी चिनाई करवाई जाए तो उसके तीन लाभ होंगे। पहला, निर्माण पर आने वाली लागत में काफी कमी आएगी। दूसरा नदी नहरें व दरिया बरसात के पानी को तो कम से कम जमीन में जाने देंगे जिससे पंजाब मरुस्थल बनने से बच जाएगा। तीसरा बिजली की बचत होगी। उस बचत का कहीं और इस्तेमाल होगा व बिजली संकट में कमी आएगी। इसके अलावा पंजाब की भूमि पर विकास की आरी घनी छाया देने वाले वृक्षों पर चलती जा रही है। वन विभाग पौधे कटने का हिसाब तो जानका होगा पर उनके स्थान पर पौधे लगाने की फिक्र किसी को नहीं है। पर नवांशहर जैसे अचर्चित जिले से उठी एक आवाज को यू.एन(संयुक्त राष्ट्र) तक से मान्यता मिली है और वो संस्था इस बार माई फादर डे, माई मदर डे या वैलेन्टाईन डे की तर्ज पर माई ट्री डे मनाने को कमर कसे हुए है जिसका प्रोत्साहन विदेशों से भी मिल रहा है। ये मेरा वृक्ष दिवस 25 जुलाई को मनाया जा रहा है।
माई ट्री डे, यानि मेरा वृक्ष दिवस!
नवांशहर दोआबा से जन्म लेकर इंडियन नेवी में बतौर इंजीनियर कैरियर शुरु करने वाले अश्विनी कुमार जोशी दिखने में गोरे चिट्टे अंग्रेज लगते हैं। आजकल भी समुंद्री जहां जो की विभिन्न कंपनियों के साथ काम करते हुए कई कई महीने समुद्र में बिताते हैं। दुनियां के बहुत सारे मुल्कों को देख चुके हैं। दुनिया को हरियाली के प्रति सजग देख कर इन्होंने अपने कुछ विदेशी मित्रों के साथ योजना बनाई कि वृक्षारोपन के क्षेत्र में काम किया जाए। जिद थी तो केवल इतनी कि इस काम को अंजाम देने वाली संस्था की जड़ नवांशहर में लगाई जाएगी। उन्हें ये मलाल था कि नवांशहर दुनिया के नक्शे पर कोई अहमियत नहीं रखता सो यहां से अंतरराष्ट्रीय अभियान शुरु किया जाए। उनके नेतृत्व में केवल एक साल पहले बनी गो ग्रीन इंटरनैशनल आर्गेनाईजेशन जहां कई मुल्कों में काम करना शुरु कर चुकी है वहीं उनके काम का नोटिस यू.एन(संयुक्त राष्ट्र) की पर्यावरण से जुड़ी समिति ने भी लिया तथा अपनी शुभकामनाएं भेजीं। गो ग्रीन इंटरनैशनल आर्गेनाईजेशन (जीजीआईओ) के ग्लोबल डायरेक्टर अश्विनी जोशी ने अपने सभी साथियों से मश्विरा करने के बाद सावन के महीने में पौधों के सबसे अधिक अंकुरित होने व फलने फूलने की संभावना को देखते हुए 25 जुलाई को मेरा वृक्ष दिवस मनाने की घोषणा की है।
कुछ दिन पहले जब वे मेरे साथ संत बलबीर सिंह सीचेवाल जी के निमंत्रण पर उन्हें मिलने गए तो संत सीचेवाल ने भी उनके इस प्रयास की प्रशंसा की तथा इसमें शामिल होने की तस्दीक भी की। असल में ये प्रयास जैसा भी हो पर सोच बहुत बड़ी है। जब नवांशहर की डिप्टी कमिश्नर श्रीमित श्रुति सिंह को ये पता चला कि इस जिले से शुरु होने वाले अभियान को संयुक्त राष्ट्र से शुभकामनाएं आई हैं तो उन्होंने विधिवत सरकारी बैठक बुला कर 25 जुलाई को सरकारी तौर पर मेरा वृक्ष दिवस मनाने की घोषणा की। नवांशहर के ही बहुत बड़े व्यापारिक समूह के.सी ग्रुप आफ कंपनीज के प्रबंध निदेशक प्रेम पाल गांधी व निदेशक हितेष गांधी ने नवांशहर में चल रहे अपने समस्त स्कूलों में 25 जुलाई को पौधारोपन करवाने का विश्वास दिलाया। इसी प्रकार होशियारपुर, जालंधर व मोगा में जीजीआईओ के युनिट काम करने लगे हैं। श्री जोशी चाहते हैं कि इस दिवस को पंजाब सरकार भी अपने स्तर पर मनाने की बात माने क्योंकि पंजाब को इस समय वृक्षों की बेहद जरूरत है। इस सावन में यदि मेरा वृक्ष दिवस ही बहाना बन जाए व खूब सारे पौधे लगाए जाएं तो पंजाब की हरियाली में बेहद बढ़ौतरी होगी। गुरुबाणी में कहा गया है पवन गुरु पानी पिता माता धरत महत्त। इन पावन पक्तियों को ही आत्मसात कर लिया जाए। याद रखें बठिंडा छावनी में सैनिकों ने दस लाख के करीब पौधे लगा कर उन्हें पाला पोसा जिसके चलते बठिंडा शहर व छावनी में चार से पांच डिग्री तक तापमान में अंतर है। आमीन।
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