रिस्पना नदी को कायाकल्प करने की योजना मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत पिछले साल ही लाये थे। तब उन्होंने रिस्पना नदी को पुनर्जीवित करना अपना ड्रीम प्रोजेक्ट बताया था। विशेषज्ञ मानते हैं कि रिस्पना नदी को पुनर्जीवित करना एक कठिन काम है जिसे पूरा करने की इच्छा करने की इच्छा सरकार में नहीं दिखती है।
रिस्पना नदी का उद्गम स्थान शिखर फाॅल है जो देहरादून की सरहद पर पड़ता है। वहां से रिस्पना नदी बहती हुई मोथरावाला-दौरवाला से होकर गंगा में मिलने से पहले शहर में आती है। इस समय ये नदी एक छोटा-सा नाला बनकर रह गई है। कई वजहों से रिस्पना नदी में इस समय बहुत कम पानी है। रिस्पना को पुनर्जीवित करने के लिए मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह ने एक काम किया था। पिछले साल के मई और जून के महीनों में उन्होंने नदी के किनारे 2.50 लाख छोटे पौधों का प्लांटशेन करवाया था। राज्य सरकार हमेशा बताती है कि रिस्पना रिवरफ्रंट का विकास गुजरात के साबरमती रिवरफ्रंट के समान ही है।
जल संरक्षण और पर्यावरण एक्टिविस्ट सच्चिदानंद भारती कहते हैं, ‘हाल के दृश्यों को देखकर लगता है कि इस नदी का पुनर्जीवित होना असंभव है। इसकी एक ही वजह है राज्य सरकार का लापारवाह रवैया। सच्चिदानंद भारती आगे कहते हैं, मुख्यमंत्री ने एक अच्छी पहल की थी और अगर उसको अच्छी तरह से जमीन पर उतारा जाता तो ये साबित हो जाता कि ये प्रोजेक्ट इस शहर का जीवन अच्छा कर देगा।
जब मुख्यमंत्री ने इस कार्यक्रम को लांच किया था तो ये इसको पूरा करने का जिम्मेदारी पूरी तरह से नौकरशाहों को दे दी। जिसका नतीजा ये हुआ कि वे इस महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट पर विचार कर रहे हैं, चर्चा कर रहे हैं और सरकार के दूसरे प्रोजेक्ट के लिए बजट पास करा रहे हैं। सच्चिदानंद भारती बताते हैं नौकरशाहों ने इस प्रोजेक्ट पर काम करने के नाम पर नदी किनारे कुछ जगहों पर दीवार बना दी है। सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि सरकार का नदी को पुनर्जीवित करने का प्रोजेक्ट ठप्प हो गया है और उसकी जगह नदी पर अतिक्रमण किया जा रहा है।
करन कपूर जो शहर के एक युवा संगठन ‘मेकिंग ए डिफरेंस’ के अध्यक्ष है। ये संगठन कई संरक्षण मुद्दों पर काम करते हैं जिसमें रिस्पना नदी को पुनर्जीवित करने भी शामिल है। करन कपूर कहते हैं कि अधिकारी इस प्रोजेक्ट को पूरा करना ही नहीं चाहते हैं। करन आगे कहते हैं कि न केवल नदी को पुनर्जीवित करने के लिए सही प्रयास का अभाव है बल्कि जो किया जा रहा है वो बहुत गलत है। जैसे कि सौंग नदी का पानी रिस्पना नदी में डालना और फिर साबरमती रिवरफ्रंट की तर्ज पर यहां भी रिवरफ्रंट बनाना। दोनों ही योजनाओं पर काम करना भारी गलती है। पहला रिस्पना को सौंग नदी से भरने का मतलब है हम सौंग नदी को सूखा करने जा रहे हैं। दूसरी योजना को भी लागू करना सही नहीं है क्योंकि साबरमती और रिस्पना नदी की स्थिति अलग-अलग है। वो आगे कहते हैं सरकार को सबसे पहला काम ये करना चाहिए कि नदी के आस-पास के क्षेत्र से अतिक्रमण हटाया जाए।
2013 में आई केदारनाथ की तबाही की तरह यहां भी विनाशकारी आपदा का इंतजार है। बारिश के दिनों में जब नदी का बहाव तेज होगा तो ये अतिक्रमण एक तबाही बन सकता है। नदी के पास की झुग्गी-झोपड़ी को नदी बहा ले जायेगी, जिसमें कई लोंगों की जान भी जा सकती है। उत्तराखंड सरकार के शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक विशेषज्ञों के इन दावों का खण्डन करते हुए कहते हैं, रिस्पना को पुनर्जीवित करने के लिए पूरा नाप ले लिया गया है। उसी के अनुरूप काम किया जायेगा। रिस्पना नदी का कायाकल्प करने के लिए ये काम अच्छा नतीजे लाएगी।
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