सरकार के साथ-साथ समाज भी समझे अपनी जिम्मेदारी


वर्षों पहले प्रदूषणकारी उद्योगों को दिल्ली से हटाकर गुड़गाँव, सोनीपत, पानीपत, फरीदाबाद, नोएडा आदि शहरों में स्थापित कर दिया गया। आज इन शहरों में वायु और जल प्रदूषण बहुत खतरनाक हालत में पहुँच चुका है। यह चिन्ता सिर्फ दिल्ली की ही नहीं है। चेन्नई, केदारनाथ, कश्मीर में आई आपदाओं से हमें सीखने की जरूरत है। यूरोप में सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देने के लिये मुफ्त सेवाएँ मुहैया कराई जा रही हैं। भारत को भी इस पर ध्यान देने की जरूरत है। सवाल उठता है कि दिल्ली में वायु प्रदूषण क्यों बढ़ता जा रहा है और इसको रोकने के लिये सरकार की तरफ से क्या कदम उठाए जा रहे हैं? दशकों से यह बात सरकार और समाज सबको मालूम है, लेकिन इसको लेकर दोनों उदासीन बने हुए हैं। न तो सरकार इस समस्या को लेकर गम्भीर दिखती है और न ही समाज। यह सच है कि यदि दिल्ली में सिर्फ वाहनों की अन्धाधुन्ध वृद्धि पर काबू पा लिया जाय तो काफी हद तक इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है।

अपने स्तर पर समाज को भी यह सोचना होगा कि हम वायु प्रदूषण रोकने के लिये क्या कर सकते हैं, क्योंकि अन्ततः इसके परिणाम समाज को ही भुगतने पड़ते हैं। हालांकि दिल्ली हाईकोर्ट की ओर से केन्द्र और दिल्ली सरकार को कई बार फटकार लगाई गई है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) भी समय-समय पर वायु प्रदूषण की हालत को लेकर चिन्ता प्रकट करता रहता है, लेकिन इसके नियंत्रण को लेकर एनजीटी के आदेश को दिल्ली और देश के दूसरे राज्य टाल-मटोल रवैया अपनाते रहे हैं।

असल में केन्द्र से लेकर राज्य सरकारें गाड़ी बनाने वाली कम्पनियों की लॉबी के आगे बहुत दबाव महसूस करती हैं। असल में शहरी विकास की हमारी नीतियाँ यूरोप और पश्चिमी देशों की कॉपी पेस्ट हैं। इससे इतर हमारे राजनेता नहीं सोच पा रहे हैं, जिसके गम्भीर दुष्परिणाम हमें भुगतने पड़ रहे हैं। एनजीटी की भी अपनी सीमाएँ हैं। ट्रिब्युनल का कहना है कि दिल्ली में रोज 80 हजार ट्रकों का प्रवेश होता है, इस पर प्रतिबन्ध लगा देना चाहिए।

दिल्ली में रजिस्टर्ड गाड़ियों की संख्या 80 लाख से ज्यादा है। यदि ट्रकों के गुजरने पर प्रतिबन्ध लगाएँगे तो उन्हें हरियाणा, राजस्थान या उत्तर प्रदेश से निकालना होगा, क्योंकि उन ट्रकों से मांस, अनाज, सब्जियाँ आदि की आपूर्ति दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्रों को कराई जाती है। यह तो समस्या को अपने कन्धों से उतारकर दूसरों के कन्धों पर रख देना हुआ।

ऐसा ही वर्षों पहले प्रदूषणकारी उद्योगों को दिल्ली से हटाकर गुड़गाँव, सोनीपत, पानीपत, फरीदाबाद, नोएडा आदि शहरों में स्थापित कर दिया गया। आज इन शहरों में वायु और जल प्रदूषण बहुत खतरनाक हालत में पहुँच चुका है। यह चिन्ता सिर्फ दिल्ली की ही नहीं है। चेन्नई, केदारनाथ, कश्मीर में आई आपदाओं से हमें सीखने की जरूरत है।

यूरोप में सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देने के लिये मुफ्त सेवाएँ मुहैया कराई जा रही हैं। भारत को भी इस पर ध्यान देने की जरूरत है। हैरत की बात यह है कि जब सरकार के पास सारे तथ्य हैं तब भी बीते कुछ सालों में ऐसा कोई कदम नहीं उठाया गया जिससे दिल्ली की हवा में फैले इस जहर को कम किया जा सके।

कॉमनवेल्थ गेम्स से पहले दिल्ली की हवा में घुले जहर को कम करने के लिये गाड़ियों में सीएनजी किट लाई गई थी, लेकिन बाद में डीजल की गाड़ियों को इतना बढ़ावा दिया गया कि प्रदूषण की आज सबसे बड़ी वजह डीजल की गाड़ियाँ ही बन गई हैं। हालांकि यह भी सत्य है कि देश के किसी भी शहर में अकेले सरकार के भरोसे बढ़ते प्रदूषण पर काबू पाना कठिन है। इसके लिये सरकार के साथ-साथ लोगों को भी जागरुकता का परिचय देना होगा।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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