नर्मदा घाटी के सरदार सरोवर परियोजना के सन्दर्भ में मध्य प्रदेश, गुजरात और केन्द्रीय सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में दावा किया है कि विस्थापितों का पूर्ण पुनर्वास हो चुका है। इसके अतिरिक्त बेक वाटर लेवल के आधार पर सरकार ने लोगों का विस्थापन तय किया और दावा किया है कि बाँध की ऊँचाई बढ़ने से कोई अतिरिक्त डूब नहीं आएगी। दूसरी ओर नर्मदा घाटी में हजारों लोग पुनर्वास से वंचित हैं। यह सरकारी दावे पर सवाल खड़े करती है। इसकी जमीनी हकीक़त को जानने के लिये एक फैक्ट फाइडिंग टीम गठित की गई। छह सदस्यीय टीम में भारतीय किसान सभा के महामन्त्री और आठ बार सांसद रह चुके हन्नान मोल्लाह, राष्ट्रीय भारतीय महिला महासंघ की महासचिव एनी राजा, केरल के भूतपूर्व वनमन्त्री विनाय विस्वम, अन्तरराष्ट्रीय जल विशेषज्ञ राज कचरू, भूतपूर्व विधायक डॉ सुनील, ऊर्जा एवं प्रसिद्ध पर्यावरण विशेषज्ञ सौम्य दत्ता शामिल थे। इस समिति में राजबब्बर और केसी त्यागी को रखा गया था। वे लोग समय पर इस टीम में शरीक नहीं हो पाए। इस टीम में विधायक रमेश पटेल और पूर्व विधायक पंछीलाल ने हिस्सा लिया। टीम ने मध्य प्रदेश के ग्रामीण और शहरी इलाकों के साथ-साथ महाराष्ट्र के पहाड़ी इलाके तथा गुजरात का दौरा किया।
जाँच समिति ने पाया कि सरकारें इनकी समस्या के प्रति उदासीन हैं। हजारों परिवार सही मुआवजा और पुनर्वास से वंचित हैं। सैकड़ों परिवार और उनका घर जो डूब क्षेत्र में आने वाले हैं और प्रभावितों के सरकारी आँकड़े अभी भी बाहर हैं। इसके तुरन्त आकलन की आवश्यकता है। अन्तरराष्ट्रीय जल विशेषज्ञ राज कचरू के मुताबिक सरदार सरोवर बाँध की 122 मीटर के वर्तमान ऊँचाई पर भी ऐसे बहुत से परिवार और उनकी ज़मीन प्रभावित हो रही है जो सरकारी आंकलन से बाहर है और बाँध को 17 मीटर ऊँचाई बढ़ाने के केन्द्र सरकार के फैसले से निमाड़ का समतल क्षेत्र डूब क्षेत्र में आ जाएगा जिससे एक बड़ी तबाही की शुरुआत हो सकती है। इसके चलते हजारों एकड़ उपजाऊ जमीन डूब में जाएगी और खाद्य सुरक्षा के स्थानीय प्रबंधन को हानि पहुँचायेगी।
जाँच दल ने पाया कि पुनर्वास की नीति और पुनर्वास पर उच्च्तम न्यायालय, नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण के आदेश का उल्लंघन बड़े पैमाने पर हो रहा है, जिससे आगे चलकर स्थिति और विस्फोटक हो सकती है।
दल ने यह भी पाया कि बसाहट स्थलों की स्थिति दयनीय है। वहाँ पर मूलभूत सुविधाएँ जैसे सड़क, पानी की सुविधा, बिजली इत्यादि उपलब्ध नहीं है। साथ ही विद्यालय इत्यादि का भी सही प्रबंध नहीं है। इसके कारण विस्थापित लोग इन बसाहट स्थल में रहने से इंकार कर रहे हैं।
पुुुनर्वास की अनिवार्य माँग जमीन के बदले जमीन जिसको पूरा करने के लिए पर्याप्त मात्रा में जमीन को चिन्हित अौर उपलब्ध करवाना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है, उसमें राज्य सरकारों की ओर से कोई प्रयास नहीं दिख रहा है। इससे पुनर्वास में सबसे बड़ी बाधा उत्पन्न हो रही है।
दल के समक्ष लोगों ने यह भी कहा कि फर्जी तरीके से जमीन अयोग्य व्यक्तियों को दी गई। इसमें हुई बड़े पैमाने पर घपलेबाजी न्यायमूर्ति झा आयोग के समक्ष विचाराधीन है। इसके अतिरिक्त बहुत सारे विस्थापितों के मुआवजे की राशि का एक हिस्सा सरकारी अधिकारियों और दलालों की साँठ-गाँठ से गबन कर लिया गया। जाँच दल के समक्ष गम्भीर विषय उजागर हुआ है कि भारतीय संविधान द्वारा बनाये गए आदिवासियों के लिए विशेष प्रावधानों का पूरा उल्लंघन हुआ है। यह भी पाया गया कि पुनर्वास के लिए गुजरात में डबोही नगर पंचायत के पास दी गई बसाहट की जमीन अब विस्थापितों से वापस ली जा रही है। आजीविका आधारित पुनर्वास के उच्च्तम न्यायालय के आदेश का उल्लंघन हो रहा है और महाराष्ट्र की तर्ज पर मछुआरों को मछली मारने का अधिकार देने के प्रति मध्यप्रदेश सरकार उदासीन है।
जाँच दल के सदस्या तथा अंतरराष्ट्रीय जल विशेषज्ञ राज कचरू ने बताया कि वेक-वाटर से प्रभावित क्षेत्र सरकारी आँकलन से काफी ज्यादा है और बाँध की ऊँचाई पूरी होने के बाद मानसून से घाटी में बाढ़ के कारण अप्रत्याशित क्षति होगी जिसे सरकार मानने को तैयार नहीं है। गौरतलब है कि 2012 व 2013 में बाढ़ का पानी कई गाँवों में सरकारी आँकड़ों को लाँघ चुका है। बावजूद इसके सरकार सही आंकलन के लिए तैयार नहीं है। जाँच दल अपनी विस्तृत केन्द्रीय सरकार, सम्बन्धित सरकारी प्राधिकरणों को पेश करेगा और देश की जनता के समक्ष सच्चाई सामने लाई जाएगी।
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