सरदार सरोवर बाँध की ऊँचाई 17 किलोमीटर बढ़ाने से लोगों में काफी गुस्सा है। इसका मुख्य कारण है कि 214 किलोमीटर तक का क्षेत्र डूब में आने की सम्भावना है। इसके विरोध में संघर्ष के तहत जीवन अधिकार यात्रा आरम्भ की गई है। यह यात्रा खलघाट से लेकर बड़वानी राजघाट तक 85 किलोमीटर की है। 6 अगस्त से आरम्भ यात्रा 12 अगस्त को बड़वानर राजघाट पहुँचेगी और वहाँ जीवन अधिकार सत्याग्रह के रूप में परिणत हो जाएगी।
नर्मदा घाटी के 248 गाँवों में बसे 2 लाख पहाड़ी आदिवासी और पश्चिमी निमाड़ के किसान मजदूर, मछुआरे, छोटे व्यापारी हैं। इनकी आजीविका यहाँ के प्राकृतिक संसाधनों और हरे-भरे खेतों पर निर्भर हैं। बाँध की ऊँचाई बढ़ाकर इन्हें डुबोने की तैयारी हो गई है। जबकि पर्यावरण मन्त्रालय द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ समिति की रिर्पोट सरकार के इस फैसले के प्रतिकूल है। सरदार सरोवर 122 मी. की ऊँचाई पर ही हजारों हेक्टर जमीन, सैकड़ों मकान डूब-प्रभावित हो चुके हैं। अभी 138.68 मी. तक काफी बाँध का काम पूरा कर दिया गया है। सर्वोच्च अदालत द्वारा दिए गए सभी फैसलों को, हर कानून और हर नीति-न्याय को अनदेखा करते हुए, पहाड़ी और निमाड़ में बसे हजारों-हजार परिवारों, आबादी से भरपूर गाँवों को जल समाधि देने के इस फैसले को पूरे देश के संघर्षशील समुदाय से चुनौती दी जानी जरूरी है।
पदयात्रा से पूर्व पदयात्रियों ने नर्मदा के जल को लेकर संकल्प लिया कि किसानों को वैकल्पिक जमीन, भूमिहीन मजदूरों को वैकल्पिक व्यवसाय, मछुआरों को मछली मारने का हक और बसावटों में समस्त सुविधा के बिना गाँव नहीं छोड़ेंगे और अंतिम दम तक लड़ेंगे।
यात्रा का आरम्भ वरिष्ठ पत्रकार और सर्वोदय प्रेस सर्विस के सम्पादक चिन्मय मिश्र और सरोज वहन ने किया। अपने सम्बोधन में चिन्मय मिश्र ने आन्दोलन के 30 सालों के संघर्षपूर्ण सफर को रेखांकित करते हुए लगातार लोग अपने हक पर हमले के खिलाफ संघर्ष करते आए हैं और अपनी एकता की ताकत से जीत हासिल की। उन्होंने जनविरोधी भू-अधिग्रहण विधेयक का उदाहरण देते हुए कहा कि संगठित ताकत के संघर्ष का ही नतीजा है कि केन्द्र सरकार को आखिर में झुकना पड़ रहा है, अगर लोग संगठित ताकत से लड़ते रहेंगे तो सरदार सरोवर क्षेत्र के सवालों का जवाब भी शासन को देना ही पड़ेगा।
राजस्थान से आए वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता कैलाश मीणा ने संघर्ष को समर्थन देते हुए कहा कि कम्पनियों के हितों को प्राथामिकता दे रही है केन्द्र सरकार। उन्होंने कहा कि नर्मदा घाटी के आन्दोलन को जिस ढँग से आंदोलनकारियों का समर्थन मिल रहा है, सरकार इसको ज़्यादा दिनों तक अनदेखा नहीं कर पाएगी। उन्होंने राजस्थान में अवैध रेत खनन के खिलाफ लड़ने वाले लोगों की तरफ से समर्थन घोषित किया।
सामाजिक कार्यकर्ता व नर्मदा बचाओ आन्दोलन की नेत्री मेधा पाटकर ने कहा कि निमाड़ और पहाड़ के लिए अब यह जीने-मरने का सवाल के साथ-साथ तीस वर्षों के संघर्ष की परीक्षा की घड़ी भी है। उन्होंने कहा कि मौजूदा समय से संघर्ष के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है। नर्मदा ट्रिब्युनल के उल्लंघन में बाँध की बैक वाटर लेवल को कम करके 16 हजार परिवारों को एक नियोजित साजिश के तहत डूब से अप्रभावित घोषित करना और बाँध का काम पूरा करना गैरकानूनी हैै।
उन्होंने कहा कि सरदार सरोवर परियोजना में विस्थापितों की पूरी तरह अनदेखी की गई है। गुजरात सरकार ने अभी तक नहरों का काम ही पूरा नहीं किया है, फिर उसे और केन्द्र सरकार को सरदार सरोवर बाँध की ऊँचाई बढ़ाने की जल्दी क्यों है। यह समझ नहीं आता। पिछले 30 सालों में नहरों का काम 30 फीसदी भी पूरा नहीं हो पाया है। बाँध की ऊँचाई बढ़ने से गुजरात के कच्छ और सौराष्ट्र को इसका तत्काल कोई लाभ नहीं मिलेगा। इन इलाकों में सिंचाई के लिए पानी तब ही मिल पाएगा, जब नहरों का काम पूरा होगा। सबसे गौर करने वाली बात यह भी है कि किसान गुजरात सरकार को अपनी जमीन तक नहीं देना चाहते, तो फिर नहरें बनेंगी कहाँ पर। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि जहाँ तक पुर्नवास हुआ हो, वहीं तक काम को आगे बढ़ाया जाना है, लेकिन किसी भी प्रभावित प्रदेश में पुनर्वास हुआ ही नहीं है तो फिर बाँध की ऊँचाई बढ़ाए जाना न्यायालय की अवमानना के तहत आता है। यह लाखों लोगों के जीवन का प्रश्न है। इस पर सरकार को जवाब देना ही होगा।
आंदोलन की कार्यकर्ता मीरा ने कहा कि वर्तमान में गुजरात सरकार की ही वेबसाइट पर खलघाट में 2015 मे 149.84 मीटर बैक वाटर बताया गया है, जबकि बाँध की ऊँचाई बढ़ाने का पूरा गैरकानूनी निर्णय इस आधार पर लिया गया कि खलघाट पर बाँध बनने के बाद भी 144.92 तक ही बैक वाटर का असर जायेगा। उन्होंने कहा कि 5 मीटर के फर्क से हज़ारों परिवारो के अधिकारों और भविष्य के साथ जो खिलवाड़ हो रहा है उसे चिन्हित किया और कार्रवाई की आड़ में लाया जाना चाहिए।
‘घर बचाओ-घर बनाओ आन्दोलन’ के युवा कार्यकर्ताओ और शक्कर कारखानों के घोटालो का पर्दाफ़ाश करने वाले यशवंत बापू ने भी घाटी के संघर्ष को समर्थन दिया। पदयात्रा में एकल्वारा, सेमल्दा, बोध्वाड़ा, पिछोड़ी, पेन्ड्रा, पिप्लुद, भादल, कुण्डिया, भवरिया, खापरखेड़ा, कडमाल, कोठड़ा, सहित डूब क्षेत्र के लगभग तीन सौ से अधिक प्रतिनिधि शिरकत कर रहे हैं। गीत, अभिनय और नारे पदयात्रियों का उत्साह बढ़ा रहे हैं। यात्रा में यह नारा गूँज रहा है कि- 'नर्मदा घाटी करे सवाल, जीने का हक या मौत का जाल।'
/articles/saradaara-saraovara-baandha-kai-uncaai-badhaanae-kae-vairaodha-maen-jaivana-adhaikaara