सफलता की कहानी, अरुण पंडित, गाँव: अझौला, जिला: बेगुसराय

हर किसी का झुकाव नौकरी कि ओर होता है नौकरी से थक हार कर खेती का विचार पनपता है। इसी राह पर चल रहे हैं बेगुसराय जिले के अझौर गाँव के अरुण पंडित। खेती प्रारंभ करने से पूर्व अरुण पंडित कई शहरो की खाक छान मजदूरी करते-करते थक गए। कही परिश्रम से कम पैसा तो कहीं समय पर मजदूरी नहीं चारो ओर समस्याए ही समस्याए, समाधान कोसों दूर। खैर, करते ही क्या? जीवित रहने के लिए और परिवार को पलने पोषने के लिए कोई विकल्प तो चाहिए ही था। वर्ष 1989 की बात है अरुण पंडित त्योहारों के समय घर पर थे यानी अझौर अपने गाँव अपने शुभ चिंतको से राय मशविरा किये कि क्यों न गाँव में रह कर खेती कि जाये कम से कम दो जून की रोटी तो मिल ही जाएगी। लेकिन जमीन केवल एक बीघा, यह भी चिंता का विषय। सोचते -विचारते खेती करने का विचार बन गया बटाई पर कुछ जमीन ली और सब्जी की खेती शुरू कर दी। पहले ही वर्ष उम्मीद से अधिक आमदनी हुई। उन्हीं दिनों कृषि विज्ञान केंद्र में प्रशिक्षण कार्यक्रम चल रहा था, अरुण पंडित कृषि विज्ञान केंद्र में जा कर खेती करने के नए तरीके सीखे। कृषि विज्ञान केंद्र में डा. रविन्द्र कुमार सोहाने से मुलाकात हुई जिन्होंने खेती के साथ पशुपालन करने की सलाह दी जिससे वेर्मीकम्पोस्ट का उत्पादन शुरू हो सके और खेती में लगने वाले खाद-उर्वरक एवं दवाओं की लागत में थोड़ी कमी भी हो सके।

अरुण पंडित प्रशिक्षण, परिभ्रमण से खेती की तकनीकों को समझते और उन तकनीकों का अपने खेत पर प्रयोग करते धीरे- धीरे खेती का रकबा बधता गया और आमदनी भी। खेती की आमदनी से घर बन गया कुछ जमीन खरीद ली और एक मोटर साइकिल भी। इतना जरुर रहा कि अरुण पंडित खेती के साथ राज मिस्त्री का काम भी करते रहे आज भी जब खेती से समय मिलता है तब राजमिस्त्री का काम करने के साथ ही अनाज भंडारण के लिए कोठिला का निर्माण घर पर करते है, इनके द्वारा बनाये कोठिला को स्थानीय स्टार पर किसान खरीद कर अनाज भंडारण का काम करते है।

अरुण पंडित आज दो हेक्टेयर में सब्जी कि खेती सघनीकरण पद्वति पर करते है साथ ही 6000 घन फीट क्षेत्रफल में वेर्मीकम्पोस्ट का उत्पादन करने के साथ वर्मिवास तथा गोमूत्र से खेती के लिए दवाओं का निर्माण भी करते हैं। अच्छी नस्ल कि तीन गाये हैं। एक तालाब में भी मछलीपालन कर अच्छी आय प्राप्त कर रहे है। अरुण पंडित के परिश्रम और लगन को देखते हुए अझौर को इफको ने बीज ग्राम बना दिया। अरुण बीज उत्पादन कर खुशहाल है। वर्ष २007-२008 में अरुण पंडित ने एक एकड़ खेत में भिन्डी का बीज उत्पादन किया जिसमे तीन क्विंटल 36 किलोग्राम बीज प्राप्त हुआ। अरुण पंडित बताते है कि खेती में करेला से अधिक फायदा होता है। करेला सब्जी के तौर पर बेचते है और उसके पौधों को सुखा कर उससे डाईबिटिज़ तथा पेट में कब्ज आदि के लिए दवा बनाते है। करेले के पौधों को सुखा कर बनाये गए पावडर लगभग 300 रुपये प्रति किलो की दर से वाराणसी में बिक जाता है।

साथ ही साथ चवनप्राश और आचार भी बनाते है, इनका कहना है की सब्जियों का जब भाव गिर जाता है तब ये अचार बनाने का कार्य करते है। लगभग 500 खरगोश पाल रहे है उनसे भी इनको अच्छी आय है। प्रति वर्ष सिर्फ खेती से इनकी आमदनी 5 लाख रुपये हो गयी है और अरुण दुसरो के लिए भी मिशाल साबित हुए है, और गाँव के बाकी लोगो को खेती के प्रति जागरूक करते है। बिहार डेज़ ऐसे सभी युवायो को बिहार और अपने गाँव की ओर आने की सलाह देता है, जो अरुण पंडित की तरह बहार जाके इधर उधर भटक रहे हैं।

हर किसी का झुकाव नौकरी कि ओर होता है नौकरी से थक हार कर खेती का विचार पनपता है। इसी राह पर चल रहे हैं बेगुसराय जिले के अझौर गाँव के अरुण पंडित। खेती प्रारंभ करने से पूर्व अरुण पंडित कई शहरो की खाक छान मजदूरी करते-करते थक गए। कहीं परिश्रम से कम पैसा तो कहीं समय पर मजदूरी नहीं चारो ओर समस्याए ही समस्याए, समाधान कोसों दूर .खैर, करते ही क्या? जीवित रहने के लिए और परिवार को पलने पोसने के लिए कोई विकल्प तो चाहिए ही था। वर्ष 1989 की बात है अरुण पंडित त्योहारों के समय घर पर थे यानी अझौर अपने गाँव अपने शुभ चिंतको से राय मशविरा किये कि क्यों न गाँव में रह कर खेती कि जाये कम से कम दो जून की रोटी तो मिल ही जाएगी। लेकिन जमीन केवल एक बीघा, यह भी चिंता का विषय। सोचते -विचारते खेती करने का विचार बन गया बटाई पर कुछ जमीन ली और सब्जी की खेती शुरू कर दी। पहले ही वर्ष उम्मीद से अधिक आमदनी हुई। उन्ही दिनों कृषि विज्ञान केंद्र में प्रशिक्षण कार्यक्रम चल रहा था, अरुण पंडित कृषि विज्ञान केंद्र में जा कर खेती करने के नए तरीके सीखे। कृषि विज्ञान केंद्र में डा. रविन्द्र कुमार सोहाने से मुलाकात हुई जिन्होंने खेती के साथ पशुपालन करने की सलाह दी जिससे वेर्मीकम्पोस्ट का उत्पादन शुरू हो सके और खेती में लगने वाले खाद-उर्वरक एवं दवाओं की लागत में थोड़ी कमी भी हो सके। अरुण पंडित प्रशिक्षण, परिभ्रमण से खेती की तकनीकों को समझते और उन तकनीकों का अपने खेत पर प्रयोग करते धीरे- धीरे खेती का रकबा बधता गया और आमदनी भी। खेती की आमदनी से घर बन गया कुछ जमीन खरीद ली और एक मोटर साइकिल भी। इतना जरुर रहा कि अरुण पंडित खेती के साथ राज मिस्त्री का काम भी करते रहे आज भी जब खेती से समय मिलता है तब राजमिस्त्री का काम करने के साथ ही अनाज भंडारण के लिए कोठिला का निर्माण घर पर करते है, इनके द्वारा बनाये कोठिला को स्थानीय स्टार पर किसान खरीद कर अनाज भंडारण का काम करते है। अरुण पंडित आज दो हेक्टेयर में सब्जी कि खेती सघनीकरण पद्वति पर करते है साथ ही 6000 घन फीट क्षेत्रफल में वेर्मीकम्पोस्ट का उत्पादन करने के साथ वर्मिवास तथा गोमूत्र से खेती के लिए दवाओं का निर्माण भी करते हैं। अच्छी नस्ल कि तीन गाये हैं। एक तालाब में भी मछलीपालन कर अच्छी आय प्राप्त कर रहे है।

अरुण पंडित के परिश्रम और लगन को देखते हुए अझौर को इफको ने बीज ग्राम बना दिया। अरुण बीज उत्पादन कर खुशहाल है। वर्ष २007-२008 में अरुण पंडित ने एक एकड़ खेत में भिन्डी का बीज उत्पादन किया जिसमे तीन क्विंटल 36 किलोग्राम बीज प्राप्त हुआ। अरुण पंडित बताते है कि खेती में करेला से अधिक फायदा होता है। करेला सब्जी के तौर पर बेचते है और उसके पौधों को सुखा कर उससे डाईबिटिज़ तथा पेट में कब्ज आदि के लिए दवा बनाते है। करेले के पौधों को सुखा कर बनाये गए पाउडर लगभग 300 रुपये प्रति किलो की दर से वाराणसी में बिक जाता है। साथ ही साथ चवनप्राश और आचार भी बनाते है, इनका कहना है की सब्जियों का जब भाव गिर जाता है तब ये अचार बनाने का कार्य करते है। लगभग 500 खरगोश पाल रहे है उनसे भी इनको अच्छी आय है। प्रति वर्ष सिर्फ खेती से इनकी आमदनी 5 लाख रुपये हो गयी है। और अरुण दुसरो के लिए भी मिशाल साबित हुए है, और गाँव के बाकी लोगो को खेती के प्रति जागरूक करते है। बिहार डेज़ ऐसे सभी युवायो को बिहार और अपने गाँव की ओर आने की सलाह देता है, जो अरुण पंडित की तरह बहार जाके इधर उधर भटक रहे हैं।

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