स्प्रिंग में ही कम हो गया है रिस्पना का पानी

Rispana River
Rispana River

रिस्पना नदी के जलस्रोत यानी कि स्प्रिंग में अभी से पानी कम हो गया है और उसके आगे की नदी की धारा में भी पानी कम हो गया है। सामान्य तौर पर मई मध्य से लेकर जून तक में पानी कम होता था लेकिन इस साल अप्रैल के बीच ही रिस्पना में गिरने वाले जलस्रोतों यानी स्प्रिंग का पानी घट गया है।

रिस्पना और बिंदाल देहरादून के दो जीवन-रेखा नदियां है, जो कभी सदानीरा हुआ करती थीं। लेकिन अब उनमें स्थिति यह हो गई है कि केवल बारिश के दिनों में ही थोड़ा बहुत पानी दिखता है। इन दोनों नदियों को भरने में काफी अहम भूमिका इनकी छोटी सहायक नदियों (फर्स्ट ऑर्डर स्ट्रीम) यानी कि नाले-खाले-गधेरे हुआ करते थे, जो रिस्पना और बिंदाल को खूब ढेर सारा पानी दिया करते थे। लेकिन अब यह स्थिति नहीं बची है। क्योंकि इन दोनों शहर की नदियों के नालों-खालों और गधेरों पर मनमाना, बेढंगा और बेतहासा कब्जा हुआ है। रिस्पना के जल-स्रोत यानी स्प्रिंग के केचमेंट में भी लगातार शिकायतें रही हैं, कि मनमाना निर्माण किए जा रहे हैं, लेकिन कभी इन शिकायतों पर प्रभावी कदम नहीं उठाया गया है, जिसका परिणाम है कि नदी और स्प्रिंग सूखने के कगार पर पहुंच गए हैं।

रिस्पना के दर्द की बात माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी ने भी की है। 26 मार्च 2017 को प्रसारित प्रधानमंत्री जी के कार्यक्रम ‘मन की बात’ के एक अंश में उन्होंने उत्तराखंड की राजधानी देहरादून का जिक्र किया और मन की बात कार्यक्रम के इस एपिसोड में देहरादून की एक बहन गायत्री का जिक्र किया था। गायत्री ने रिस्पना में गंदगी की पीड़ा को माननीय प्रधानमंत्री से साझा किया था। इस कार्यक्रम के बाद स्थानीय सरकार की खूब किरकिरी हुई थी। 

‘डाउन टू अर्थ’ हिंदी में छपी वर्षा सिंह की एक रिपोर्ट बताती है कि 1989 में ही वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने दून घाटी को इको सेंसेटिव जोन घोषित किया था, लेकिन अब इस बात का ख्याल लगभग नहीं रखा जा रहा है। नैनीताल हाईकोर्ट में दाखिल एक याचिका में याचिकाकर्ता ने 10 साल पहले की और अब के समय की सेटेलाइट तस्वीरें दिखाईं और कहा कि पहले जो नाले काफी चौड़े-बड़े हुआ करते थे, उन्हें पाटा जा रहा है। नदी किनारे के जंगलों पर भूमाफिया कब्जा कर रहे हैं। प्रशासन सड़कों के अतिक्रमण हटाने का कार्य करता है, पर नदियों से अतिक्रमण क्यों नहीं हटाया जाता। राजपुर के ऊपर गांव में रिस्पना नदी का जल-स्रोत है, यह जल-स्रोत यानी स्प्रिंग खूब पानी रिस्पना नदी को देता था। लेकिन इस स्प्रिंग का डिस्चार्ज बहुत कम रह गया है, जबकि अप्रैल ही नहीं बल्कि जून के मध्य तक में यह नदी कल-कल कर बहती थी।

पंजाब केसरी की रिपोर्ट टिप्पणी करती है कि रिस्पना को पुनर्जीवन करने की ज्यादातर बातें हवा-हवाई साबित हुई हैं। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने रिस्पना को पुनर्जीवित करने की भारी-भरकम योजना शुरू की थी, लेकिन इससे संबंधित जो भी विभाग व एजेंसियां हैं, उनका जमीनी आउटपुट कम ही दिख रहा है। कहाँ तो योजनाओं के लागू होने के बाद तो रिस्पना का पानी बढ़ना था। लेकिन यह कम ही हो गया है।

पंजाब केसरी की रिपोर्ट बताती है कि स्थानीय निवासी इससे बहुत ही दुखी और निराश हैं, उनका कहना है कि इसको पुनर्जीवित करने की योजना थी। लेकिन इसकी दशा तो पहले से भी और ज्यादा खराब हो गई है। कैरवान और आमासारी के ग्रामीणों ने इस बात को लेकर आक्रोश है कि इस इसके पानी को डायवर्ट किया जा रहा है। वन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी अनाम रहने की शर्त पर बताया कि स्रोत से ही जल को डायवर्ट किया जा रहा है, व्यावसायिक संस्थानों, बड़े अधिकारियों, बड़े धनिकों की कालोनियों में पानी की सप्लाई किया जा रहा है, इससे नदी में पानी का बहाव कम हो गया है।

पीपुल्स साइंस इंस्टीट्यूट से जुड़े पर्यावरणविद् एके गौतम का कहना है कि पानी को डायवर्ट किया जाना गलत है। एक तरफ रिस्पना को नवजीवन देने जैसी बात हो रही है, दूसरी तरफ इसके जलस्रोतों से ही जल को डायवर्ट करना हैरानी करने वाली बात है। लोक विज्ञानी डॉ रवि चोपड़ा का कहना है कि यह बेहद दुखद है और स्रोत पर ही जल्द रिस्पना नदी का जल का इतना कम होना यह बेहद चिंता की बात है। इस बारे में शीघ्र हस्तक्षेप किया जाना चाहिए और मुख्यमंत्री को इसका संज्ञान लेना चाहिए।

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