वर्तमान में पिथौरागढ़ नगर में मात्र एक किला ऐतिहासिक धरोहर के रूप में मौजूद है जिसमें वर्तमान में नगर तहसील कार्यालय स्थापित है। प्रारंभिक दौर में इसमें आठ कमरे निर्मित किए गए। 6 ½ नाली भूमि अंदर के क्षेत्रफल में फैला यह किला चारों ओर एक अभेध सुरक्षा दीवार से घिरा हुआ है
सोरघाटी पिथौरागढ़, जिसकी सुंदरता के कारण पर्यटक इसे छोटा कश्मीर के नाम से जानते हैं सौभाग्य से मेरी जन्मस्थली है। मैं चाहता हूँ कि इसके बारे में आपको भी कुछ बताऊँ।स्वतंत्रता से पूर्व उत्तरांचल की धरती पर कत्यूरी, चन्द्र, गोरखा एवं अंग्रेजों का शासन रहा, इनमें सर्वशक्तिशाली एवं चर्चित राजवंश कत्यूरियों का था जिन्होंने दीर्घ समय तक राज किया। इस राजवंश की स्थापना बसंतदेव द्वारा मानी जाती है जिनकी राजधानी कार्तिकेयपुर जोशीमठ तथा इसके उपरांत बैजनाथ रही। इसी कत्यूरी राजवंश के पराक्रमी राजाओं में एक थे ‘पिथौरा’ जिन्होंने नेपाल और अन्य सीमावर्ती क्षेत्रों के राजाओं को हराकर अपने साम्राज्य में मिला लिया, अपनी वीरता, साहस एवं पराक्रम के कारण ही इन्हें प्रीतमदेव, पृथ्वीसाही एवं राजाराय पिथौराशाही के नामों से जाना जाता था। इतिहासकार डा. मदन चन्द्र भट्ट के अनुसार लोक प्रसिद्ध पिथौराशाही की पत्नी जियारानी ने रानीखेत व रानीबाग नगर बसाए तथा नैनीताल के नैनादेवी मंदिर की स्थापना भी इनके द्वारा की गई। राजा पिथौरा ने अपने साम्राज्य को शक्तिशाली बनाने के लिये अनेक किले बनवाए, इनमें पृथ्वीगढ़ नामक किला प्रमुख था, जो नगर के उत्तरी छोर में वर्तमान राजकीय बालिका इंटर कॉलेज जी.जी.आई.सी. के स्थान पर था। जमीन की सतह से 20 मीटर की ऊँचाई पर निर्मित इस किले के भीतर तीन मंजिले भवन का भी निर्माण कराया गया था, यही किला कालांतर में पिथौरगढ़ के नाम से प्रसिद्ध हुआ तथा इसी किले के नाम पर पिथौरागढ़ जनपद का सृजन हुआ।
कत्यूरी वंश का अंतिम शक्तिशाली शासक वीरदेव को माना जाता है जिन्होंने अपने शासन काल में जनता को कई करों से लाद कर जनता पर अत्याचार किए, जिस कारण इनके सेवकों ने ही उनकी हत्या कर दी। वीरदेव के पश्चात कत्यूरी राजवंश बिखर गया तदुपरांत छोटे-छोटे राज्यों ने अपने राज्य को बढ़ाने का प्रयत्न किया, इस छिन्न भिन्न छोटे राज्यों को चन्दवंशी राजाओं ने एक छत्र राज्य में सम्मिलित कर स्थाई शासन की नींव डाली। बद्रीदत्त पाण्डे के अनुसार चन्द राजाओं के काशीपुर पुश्तनामें से मिलान करने पर ज्ञात होता है कि चन्द वंश के प्रथम राजा सोमचन्द के गद्दी पर बैठने की तिथि 700-721 ई. जान पड़ती है कुछ इतिहासकार शासन का प्रारम्भ 953 ई. से तो कुछ 1261 ई. से मानते हैं, चंद वंश के लम्बे शासन करने के उपरांत अनेक उतार चढ़ावों के पश्चात 30 जनवरी 1790 ई. को राजा महेन्द्र चंद गोरखाओं से पराजित हो गए तथा चंद्रवंशी राजाओं का आधिपत्य जाता रहा इसके उपरांत गोरखों ने इसी वर्ष संपूर्ण उत्तराखण्ड में अपना अधिकार कर लिया। पिथौरागढ़ के ऐतिहासिक किले पिठौरगढ़ में 1790 से 1815 ई. तक नेपाल की गोरखा फौजें रही, गोरखा सेना के किले में रहने के कारण इसे गोरख्याक किला भी कहा जाने लगा।
वर्तमान में पिथौरागढ़ नगर में मात्र एक किला ऐतिहासिक धरोहर के रूप में मौजूद है जिसमें वर्तमान में नगर तहसील कार्यालय स्थापित है। प्रारंभिक दौर में इसमें आठ कमरे निर्मित किए गए। 6 ½ नाली भूमि अंदर के क्षेत्रफल में फैला यह किला चारों ओर एक अभेध सुरक्षा दीवार से घिरा हुआ है किले की सुरक्षा हेतु किले के चारों ओर लंबी बंदूकें चलाने के लिये 152 छिद्र (मचान) बनाए गए, पूरे किले की दीवार की लंबाई 88.5 मीटर एवं चौड़ाई 40 मीटर तथा तल से ऊँचाई 8 फीट, 9 इंच है किले की दीवार की मोटाई 5 फीट 4 इंच है, किले की दीवार मोटे कटवा पत्थर तथा चिनाई चूने और गारे से की गई है किले में प्रवेश के लिये मात्र दो दरवाजे हैं। किले के अंदर सारी सुविधाएं मौजूद थी, कुल छोटे-बड़े 15 कमरे थे, जिसमें मुख्य भवन दो मंजिला है, दो बंदीगृह एवं न्याय भवन भी निर्मित है, मुख्य भवन के आगे जो भवन प्रारंभिक काल में बने थे, उनकी बनावट नेपाल में बने भवनों से मिलती जुलती है इस किले में गोरखा सैनिक एवं सांमत ठहरते थे, किले में एक तहखाना भी बनाया गया था जिसमें माल व असलहें रखे जाते थे। नगर के लगभग बीच व ऊँचाई वाले स्थान में होने के कारण इसमें बने पाँच बुर्जो से पिथौरागढ़ के चारों ओर का अप्रमित प्राकृतिक सौंदर्य देखते ही बनता है, किले के अंदर ही पानी के लिये एक कुआँ बनाया गया था जिसे कालांतर में पाट कर पीपल का पौधा रोप दिया गया इस किले के ठीक नीचे एक पानी का पोखर (तालाब) था, जो धीरे-धीरे सूखता चला गया, आज उसके स्थान पर नगरपालिका हाल एवं कार्यालय स्थापित है।
सिंगौली की संधि के उपरांत अप्रैल-मई 1815 में कुमाऊँ में औपनिवेशिक शासन की स्थापना हो गई। अंग्रेजों ने उपरोक्त किले का नाम बाउलकीगढ़ से बदलकर लंदन फोर्ट कर दिया।
संपूर्ण जनपद पर्वत और घाटियों में विभक्त है ये पर्वत श्रृंखलाएं दक्षिण में कहीं कम और कहीं अधिक ऊँचाई की है इन्हीं सुंदर घाटियों में पिथौरागढ़ की सोर घाटी अपने अप्रतिम प्राकृतिक सौंदर्य के लिये प्रसिद्ध है, सोर का अर्थ सरोवर से माना जाता है ऐसा कहा जाता है कि हिमालय की तलहटी में होने के कारण यहाँ सात सरोवर थे, जिनका पानी शनै: शनै: सूखता चला गया। पिथौरागढ़ जनपद के अधिकांश गाँवों में मल्ल, पाल, बम, मणिकोटि, चंद राजवंशी के ताम्रपत्र से यह संभावना व्यक्त की जाती है कि यहाँ गणराज्य की परंपरा थी, बारह राजाओं की सभा के सदस्य को रजबार कहा जाता था, इस तरह के राजवंशीय ताम्रपत्र जनपद पिथौरागढ़ के वास्ते गाँव में मिला है जिसमें 1373 ई. के आस-पास आसलदेव के सम्मिलित शासन का उल्लेख मिलता है, ताम्रपत्रों के माध्यम से ही तत्कालीन छोटे-छोटे शासकों की शासन व्यवस्था की जानकारियाँ मिलती हैं।
पिथौरागढ़ नगर की लंबाई लगभग 10 किमी चौड़ाई 8 किमी है इसके पूर्व में विण, पश्चिम में हुड़ेत्ती, उत्तर में चण्डाक तथा दक्षिण में एंचोली नामक गाँव स्थित है नगर छ: प्राकृतिक नालों से सिंचित तथा सुंदर सीढ़ीनुमा खेतों वाला रमणीक क्षेत्र है, इसके चारों ओर पहाड़ियों में बसे छोटे-छोटे गाँव सोर घाटी की सुंदरता में चार चाँद लगाते हैं नगर से हिमालय की हिम श्रृंखलाओं के स्पष्ट दर्शन होते हैं। इसके सौंदर्य से अभिभूत होकर भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्व. श्री राजीव गांधी जी ने इन नगर की तुलना स्विटजरलैंड से की थी। जनपद के उत्तरी क्षेत्र में धारचूला और मुनस्यारी विकास खण्ड आते हैं सर्दियों में इनके शिखरों में छ: माह तक बर्फ जमी रहती है क्षेत्र में पंचाचूली पर्वत शिखर अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिये विश्वविख्यात है इसी शिखर के निकट स्थित मिलम ग्लेशियर अपनी उपस्थिति दर्ज करता है पर्वतरोहियों के लिये ये पर्वत शिखर विशेष रूप से आकर्षण का केंद्र है।
प्रमुख पर्यटन स्थलों में छोटा कैलाश, नारायण आश्रम, कैलाश मानसरोवर के यात्रा पथ, हिमाच्छादित पर्वत श्रृंखलाएं हैं। इन पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य कुंगरी, विगरी, लिपुलेख, सिनाल, ऊंटाधूरा, टेलदर्रा आदि प्रमुख दर्रे हैं। क्षेत्र में रालम, नामिक, कालाबलन्द, पॉछू सांलग, नंदाकोट, पोटिंग, हीरामणि, विलानलरी, इकलुआलरी, सुरजकुण्ड आदि ग्लेशियर तथा इनकी सुरम्य घाटियाँ पर्यटक प्रेमियों को अपनी ओर आर्कषित करती हैं। जनपद के मध्य क्षेत्र में कनालीछीना, डीडीहाट, तथा बेरीनाग विकासखण्ड आते हैं जो अपेक्षाकृत कम ऊँची पर्वत श्रृंखलाओं, सुरम्य घाटियों में स्थित हैं जनपद के पूर्वी क्षेत्र की सीमा पर काली नदी, पश्चिमी सीमा पर सरयू तथा मध्य क्षेत्र में राम गंगा नदी बहती है सोर घाटी के पूर्वी तथा पश्चिमी क्षेत्रों में क्रमश: विण तथा गंगोलीहाट विकासखण्ड आते हैं, गंगोलीहाट क्षेत्र में ‘कीलित मां’ महाकाली का ऐतिहासिक मंदिर प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है यहाँ स्थित पाताल भूवनेश्वर की गुफा में महाभारत के समय की गाथा का ऐतिहासिक वर्णन पत्थरों की आकृतियों में देखने को मिलता है सितम्बर 1997 को चंपावत क्षेत्र को पिथौरागढ़ जनपद से अलग कर नया जिला बना दिया गया इसके बावजूद पिथौरागढ़ की असीम सुंदरता में कोई कमी नहीं आई है।
सम्पर्क
भुवन जोशी
वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान, देहरादून
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