भविष्य में जलवायु परिवर्तन से होने वाली भारी नुकसान के सटीक व कारगर समाधान की राह दिखाएगी विनाशकारी बाढ़
नई दिल्ली। इस आपदा को अवसर में बदलना मुमकिन है। सूखे और जल संकट की सालाना बीमारी का मुकम्मल इलाज और भविष्य में जलवायु परिवर्तन से होने वाले भारी नुकसान का सटीक समाधान बन सकती है बाढ़। पपड़ी पड़े, सूखे खेत में सिर पर हाथ धरे किसानों के श्वेतश्याम चित्रों की बाढ़ को गुजरे बस दो महीने हुए हैं, उन घोषणाओं के भी पानी की बूँद-बूँद बचाना जरूरी है। पानी मांगने के लिये दुआ को उठे हाथ अब मुसीबत झेलने से हाथ खड़े कर चुके हैं। भारी बारिश के इमकान पर ना ना की शक्ल में हिलाए जा रहे हैं। पानी न हो तो मुसीबत, पानी ज्यादा आ जाए तो परेशानी। ढेकुनाधे गाँव का रामसमुझ। पंडित नागदंश दूबे को उलाहना देता है, हमने सुखाड़ के दौरान आपसे बारिश के लिये पूजा कराई थी, बाढ़ लाने के लिये नहीं। महाराज, आगे से मंत्र जरा कम पावर वाला पढ़िएगा।
गाँव शहर और कस्बे मिलाकर आधे से ज्यादा देश बारिश और बाढ़ से हलकान हैं। जाम और जलजमाव इसके दूसरे साइड इफेक्ट है। 52 करोड़ रुपये खर्च करके दो करोड़ की पूरी, सब्जी हेलिकॉप्टर से बाढ़ पीड़ितों के बीच गिराने वाले भ्रष्टाचारियों के अलावा सभी बाढ़ को कोसते हुए चाहते हैं, इससे जल्द निजात मिले। फिलहाल दो बातें तय हैं, पहली कि कम या ज्यादा बाढ़ हर साल आती है और हमेशा की तरह सरकार राहत सामग्री बाँटने और कुछ फौरी इंतजामात के अलावा कुछ नहीं करती, बरस दर बरस जानमाल का नुकसान बढ़ता जाता है और बाढ़ की रोकथाम के वादे भी। दूसरी, जलवायु परिवर्तन की वजह से भविष्य में बाढ़ और भी अनियमित, व्यापक और खतरनाक रूप ले सकती है। पर्यावरण और मौसम विज्ञानी कहते हैं भारत जैसे देशों को इसका खामियाजा कुछ ज्यादा ही भुगतना पड़ेगा।
जब हमारा भूत, वर्तमान और भविष्य सभी बाढ़ग्रस्त हैं। बाढ़ को पूरी तरह रोकना असंभव है, फिर इस पानी की हमें जरूरत भी है तो हम इस दिशा में क्यों नहीं सोचते कि यह नीला सोना हमें एकबारगी छप्पर फाड़कर मिल गया है तो उसको, जमा करके अथवा निवेश करके क्यों नहीं रख सकते, जिसको बाद में जरूरत के वक्त इस्तेमाल कर सकें? मनुष्य ने प्रकृति की बहुत सी ताकतों को नियंत्रित कर उनको अपने लाभ की तरफ मोड़ा है तो इसे क्यों नहीं? इसके आने के पहले से ही इसे नियंत्रित करने, थामकर सहेजने इसे अपने लाभ के लिये इस्तेमाल करने की क्यों नहीं सोचते?
बाढ़ महज विनाश नहीं फैलातीः मानसून जलचक्र का और बाढ़ प्रकृति का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। इस पानी से हमारा जीवन चलता है। बाढ़ महज विनाश नहीं फैलाती, मनुष्यों और जीव-जंतुओं को जीवन भी देती हैं, पालती है, लाभ भी पहुँचाती है। बाढ़ अच्छी गाद लाकर पोषक तत्वों से जमीन उपजाऊ बनाती है। मछलियों के अंडे और अंगुलिकाएं इसके साथ आती हैं, इनके बढ़ने के लिये यह पानी माकूल होता है। जमीन में नमी बनाए रखती है, मृदा और भूजल को रिचार्ज करती है। पहले गाँवों में हर बरस बाढ़ आती थी तब लोग घबराते नहीं बल्कि उसके साथ जीते थे। सटीक पूर्वानुमान और समुचित तैयारियों की बदौलत। भयानक बाढ़ग्रस्त इलाके के हर तीसरे घर में छोटी बड़ी नाव, कड़ाह या ऐसे उपाय होते, सबको तैरना आता था, समय रहते रसद, ईंधन, चारा, पानी सबकी तैयारी कर रखते। दुखद है कि फौरी नियंत्रण के बाद हमने बाढ़ के साथ सहजीविता का पाठ भुला दिया। अब जबकि जलवायु परिवर्तन के चलते बाढ़ की विभीषिका और बढ़ने वाली है तब भी क्या समाज और सरकार इस आगत की आशंका के लिये तैयार है? या इसकी तैयारी के बारे में सोच रही है, शायद नहीं। सबसे जरूरी है बाढ़ के प्रति नकारात्मक नजरिया बदलना। फिर आवश्यक है बाढ़ की रोकथाम की परंपरागत और प्राकृतिक तौर तरीके को एक बार फिर याद करना और पारंपरिक तरीकों को नए शोध और आविष्कारों से जोड़ना।
तबाही के खिलाफ खड़ी तकनीक
बाढ़ को नियंत्रित करने में तकनीक का सहारा लेकर कई देशों ने प्रभावी सफलता पाई है। हालैंड में बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों की अलग संरचना है। वहाँ ऊँची सड़कें, वाटरप्रूफ, घर, निकासी नहरें, जल संग्रह क्षेत्र का अत्याधुनिक इंतजाम है। हालैंड के साथ जापान, ब्रिटेन इत्यादि में विशालकाय वाटर बैरियर का इस्तेमाल हो रहा है। ये खोखले स्टील से बने मजबूत और चलते फिरते बैरियर हैं, जिन्हें जरूरत के बाद हटा लिया जाता है। अपने देश में भी इन्हें समस्या का स्थायी उपाय बनाया जा सकता है। जापान में बिना बिजली के चलने वाले कम्प्यूटर नियंत्रित वाटरगेट का इस्तेमाल होता है। ये तकनीक बाढ़ आने पर जल स्तर को काबू रखने में बहुत मददगार हैं। लाइट डिक्टेशन एंड रेजिंग मैप यानी लिडार या लेसर रडार। यह लेसर या प्रकाश के परावर्तन के आधार पर स्थान का थ्रीडी दृश्य उत्पन्न करता है। लिडार से पानी की बढ़त उसके चढ़ते स्तर पर नजदीकी नजर रख सकते हैं। थाइलैंड में यह खूब सफल रहा है। हर डूब क्षेत्र यथा खेत, बाजार, घर, सड़क, फुटपाथ, कंस्ट्रक्शन साइट, नहर, 20 सेंटीमीटर से ज्यादा गहरे गड्ढे सबके बारे में साफ तस्वीर मिल सकना लिडार से ही संभव है।
बैंकाक में इसे बचाव नौकाओं में लगाया गया था। खास तौर पर वहाँ जहाँ तालाब और नहरें थीं। जापान ने हर बाढ़ग्रस्त क्षेत्र में कम से कम पाँच-पाँच भूमिगत शैफ्ट बनाए हैं। जियो इंफार्मेटिक्स, अंतरिक्ष तकनीक के जरिये मिले चित्र बाढ़ में कहाँ कितनी विभीषिका है, देखने, राहत पहुँचाने में, तत्काल जल निकासी का प्रबंध करने में सहायक हैं।
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