संतुष्ट करना चुनौती, हरीश रावत को सौंपी कमान

यमुना मुक्ति यात्रा के दौरान अभियान के प्रबंधन व संयोजन से जुड़े लोग यात्रियों को खबरदार भी करते चल रहे हैं। उनसे साफ कहा जा रहा है कि सरकार पर भरोसा नहीं किया जा सकता। यात्री सरकारी छल से बचें, क्योंकि हजारों पदयात्रियों की धमक से परेशान सरकार उन्हें थका कर भगाने की कोशिश कर सकती है। जल, जंगल और ज़मीन के लिए 2007 में ग्वालियर से दिल्ली तक जनादेश यात्रा का संयोजन करने वाले राजगोपाल यमुना पदयात्रियों को सरकारी लॉलीपॉप से खबरदार करते हुए कहते हैं, ‘यमुना सत्याग्रहियों को केवल आंदोलन ही नहीं, बल्कि संवाद भी करना है। यमुना मुक्ति यात्रियों के दिल्ली पहुंचने के बाद भ़ी उन्हें संतुष्ट करना सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। अब केंद्रीय जल संसाधन मंत्री हरीश रावत को इस मसले का सर्वमान्य समाधान खोजने की कमान सौंपी गयी है। उन्होंने इसके लिए उत्तर प्रदेश, हरियाणा व दिल्ली के जल मंत्रियों की बैठक बुलाई है। साफ-सुथरी यमुना की मांग लेकर हजारों लोगों के दिल्ली कूच से केंद्र सरकार ख़ासी परेशान है। सूत्रों के मुताबिक इस मसले पर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने भी काफी तेजी दिखाई है और वह चाहते हैं यमुना सफाई की मांग लेकर दिल्ली आ रहे लोग संतुष्ट होकर लौटें। उधर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस मुद्दे पर जल संसाधन मंत्री हरीश रावत से विचार-विमर्श किया है। इसके बाद केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों के बीच सक्रियता बढ़ी है। हरीश रावत इसके बाबत प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से दिशा-निर्देश ले रहे हैं। जल संसाधन विकास मंत्रालय के एडिशनल सेक्रेटरी जी मोहन कुमार भी मानते हैं कि समस्या गंभीर है। दिल्ली में आते ही यमुना बहुत गंदी हो जाती है। उनके अनुसार ‘पिछले साल यमुना में पानी छोड़े जाने को लेकर पीडब्ल्यूडी के चीफ़ इंजीनियरों की टीम यह देखने हरियाणा भेजी गई थी कि हथिनीकुंड बैराज से जितना पानी छोड़ना चाहिए, राज्य छोड़ता है या नहीं। इसमें पाया गया कि हरियाणा पानी छोड़ रहा है। ऐसे में समस्या पानी छोड़ने की नहीं है।’ मंत्रालय के एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार ‘यमुना की गंदगी, जल संसाधन विकास मंत्रालय का मामला नहीं है। इसे पर्यावरण मंत्रालय देख रहा है। उसके साथ-साथ इसकी ज़िम्मेदारी दिल्ली जल बोर्ड, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, दिल्ली प्रशासन तथा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की है। उक्त अधिकारी का कहना है कि दिल्ली की जल शोधन प्रणाली ठीक नहीं है। इसके कारण यमुना में मल-मूत्र समेत अन्य गंदगी जा रही है। जब तक यह ठीक नहीं होगा, पानी चाहे जितना छोड़ दें, समस्या बनी रहेगी। पर्यावरण मंत्रालय इसकी ज़िम्मेदारी दिल्ली जलबोर्ड और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड पर थोप रहा है। जल बोर्ड की सीईओ देवाश्री मुखर्जी का कहना है कि सोमवार को बैठक है। इसमें कोई समाधान निकलेगा। जबकि प्रदूषण विभाग से जुड़े अधिकारी इसके लिए जल संसाधन मंत्रालय पर ज़िम्मा तोप रहे है। विभाग के दिल्ली सरकार के सेक्रेटरी संजीव कुमार ने कुछ भी कहने से मना कर दिया है।

सरकारी छल से बचें, थका कर भगाने की हो सकती कोशिश


यमुना मुक्ति यात्रा के दौरान अभियान के प्रबंधन व संयोजन से जुड़े लोग यात्रियों को खबरदार भी करते चल रहे हैं। उनसे साफ कहा जा रहा है कि सरकार पर भरोसा नहीं किया जा सकता। यात्री सरकारी छल से बचें, क्योंकि हजारों पदयात्रियों की धमक से परेशान सरकार उन्हें थका कर भगाने की कोशिश कर सकती है। जल, जंगल और ज़मीन के लिए 2007 में ग्वालियर से दिल्ली तक जनादेश यात्रा का संयोजन करने वाले राजगोपाल यमुना पदयात्रियों को सरकारी लॉलीपॉप से खबरदार करते हुए कहते हैं, ‘यमुना सत्याग्रहियों को केवल आंदोलन ही नहीं, बल्कि संवाद भी करना है। बातचीत से ही बात बनेगी। सरकार का कोई मौखिक आश्वासन नहीं मानना है। फैसले के क्रियान्वयन के लिए उच्चाधिकार समिति की घोषणा की जाए और उस समिति में आंदोलनकारियों को अपनी भागीदारी भी सुनिश्चित करनी होगी। यात्रा के संयोजक रमेश बाबा का कहना है कि अभी तक कोई विशेष वार्ता नहीं हुई है। लगता है कि अब दिल्ली में ही असली वार्ता होगी।

नदियों को बचाने के लिए सरकार के पास नहीं है नीति


मैगसेसे पुरस्कार विजेता जल पुरुष राजेंद्र सिंह का मानना है कि देश की नदियों को बचाने, प्रदूषण मुक्त रखने तथा किसानों, खेतिहरों के लायक, बनाने की सरकार के पास कोई स्पष्ट नीति नहीं है। गंगा नदी के अस्तित्व के लिए बनी समिति के सदस्य के रूप में आठ साल में चार बार प्रधानमंत्री को चिंताओं से अवगत करा चुका लेकिन समाधान की चाल बड़ी धीमी है। केवल महानगर बन रहे हैं और कंकरीट के जंगल खड़े हो रहे हैं। कोई यह भी नहीं सोच रहा है कि इन लोगों के लिए पीने का पानी कहां से आएगा। इतना ही नहीं इन लोगों का मलमूत्र, कचरा कहां जाकर गिरेगा। यमुना भी इसी त्रासदी की शिकार है। मथुरा से लोग यही मांग लेकर आगे बढ़ रहे हैं कि उन्हें दिल्ली वालों का कचरा, मल-मूत्र नहीं पीना है। अच्छी बात यह है कि इस यात्रा में किसान ने खुद को जोड़ा है। उसे महसूस हुआ है कि नदी के बगैर उसका काम नहीं चल सकता। वह केवल नहर के भरोसे नहीं जी सकता।

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