संकटमोचक को संकट न बनाएँ

पुराणों में भी मिट्टी की महिमा दर्शाते हुए मिट्टी से बनी प्रतिमाओं के पूजने का समर्थन किया गया है। मिट्टी को पवित्र माना गया है एवं इसीलिये पार्थिव शिवलिंग व प्रतिमाएँ मिट्टी से बनाई जाती हैं। मिट्टी के साथ-साथ तांबा, पीतल, रजत एवं स्वर्ण प्रतिमाओं के पूजन को भी उचित बताया गया है। इस धातुओं से बनी प्रतिमाओं का प्रतिवर्ष पूजन भी समस्या का काफी हद तक निदान कर सकता है। सार्वजनिक तौर पर गणेश उत्सव मनाने की लोकमान्य बालगंगाधर तिलक द्वारा प्रारम्भ की गई परम्परा एक शताब्दी से भी ज्यादा की यात्रा कर चुकी हैं। दस दिवसीय गणेशोत्सव को पर्यावरण हितैषी बनाने हेतु तीन बिन्दुओं पर ध्यान देना होगा। प्रथम है प्रतिमाओं का निर्माण, द्वितीय स्थापना स्थलों (पंडाल) के कार्यक्रम एवं तृतीय प्रतिमा व पूजन सामग्री का विसर्जन।

प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) से बनी एवं रासायनिक रंगों से सजाई गई प्रतिमाओं के विसर्जन से जलस्रोतों में गाद भरने की समस्या के साथ-साथ जल प्रदूषण भी होता है। रंगों में पारा, सीसा, केडमियम, क्रोमियम, जिंक, मैगनीज व आर्सेनिक आदि रसायनों के यौगिक पाये जाते हैं। देश भर में किये गए कई अध्ययन गाद भरने तथा जल के विषाक्त होने की पुष्टि करते हैं।

सन् 1990 में कोलकता वि.वि. के जैव रसायन विभाग के प्रो. जे.जे. घोष ने हुगली नदी के पानी का अध्ययन कर सल्फाइड, सीसा, क्रोमियम एवं पारा की मात्रा प्रति लीटर सामान्य से 20 गुना तक अधिक पाई थी। कुछ वर्षों बाद केन्द्रीय प्रदूषण मंडल के वैज्ञानिकों ने भी हुगली पर अध्ययन कर बताया था कि लगभग 20 हजार बड़ी प्रतिमाओं के विसर्जन से छः टन वार्निश तेल व तीन टन रंगीन पदार्थ जमा हो गये थे।

अहमदाबाद, बड़ौदा, ठाणे, भोपाल एवं हैदराबाद स्थित झील या तालाबों में प्रतिमा विसर्जन के बाद मछलियों के मरने के समाचार चित्रों सहित समाचार पत्रों में समय-समय पर प्रकाशित हुए हैं।

इस प्रमुख समस्या से निजात पाने हेतु मिट्टी एवं कागज की लुगदी (पेपर मेश) से प्रतिमा निर्माण व इन्हें प्राकृतिक रंगों से सजाना सबसे बेहतर विकल्प है। धर्मशास्त्र एवं पुराणों में भी मिट्टी की महिमा दर्शाते हुए मिट्टी से बनी प्रतिमाओं के पूजने का समर्थन किया गया है। मिट्टी को पवित्र माना गया है एवं इसीलिये पार्थिव शिवलिंग व प्रतिमाएँ मिट्टी से बनाई जाती हैं।

मिट्टी के साथ-साथ तांबा, पीतल, रजत एवं स्वर्ण प्रतिमाओं के पूजन को भी उचित बताया गया है। इस धातुओं से बनी प्रतिमाओं का प्रतिवर्ष पूजन भी समस्या का काफी हद तक निदान कर सकता है। प्रतिमा स्थापना के दिन जूलूस बनाकर गाजे-बाजे, डीजे एवं पटाखे जलाकर प्रदर्शन करने के स्थान पर सादगी अपनाई जानी चाहिये।

गाजे-बाजे, डीजे तथा पटाखों से 100 डेसीबल के आसपास का शोर पैदा होता है। इस शोर से अध्ययन कर रहे विद्यार्थी तथा मरीज परेशान हो जाते हैं। जूलूस से बाधित यातायात एवं पटाखे वायु प्रदूषण भी बढ़ाते हैं।

इस समारोह में यातायात नियमों का पालन सख्ती से करना चाहिये। प्रतिमा स्थापना के स्थान (पंडाल) मुख्य सड़कों से दूर इस प्रकार बनाना चाहिये कि किसी भी हालत में आवागमन प्रभावित न हो। प्रतिदिन होने वाली आरती, भजन, सांस्कृतिक कार्यक्रम एवं प्रसाद वितरण में पर्यावरण सुरक्षा का ध्यान रखा जाना चाहिये।

ये कार्य शोर प्रदूषण पैदा करने के बजाय मधुर एवं कर्णप्रिय हो तो लोेेगों की आस्था इस धार्मिक आयोजन में ज्यादा बढ़ेगी। प्रसाद का वितरण प्लास्टिक से बनी वस्तुओं में न हो तो ज्यादा बेहतर है। पंडालों में सजावट हेतु भी प्लास्टिक सामग्री को न काटा जाये। पंडालों में सीएफएल एवं लीड लाईट का उपयोग आश्यकतानुसार करके काफी बिजली भी बचाई जा सकती है।

स्थानीय प्रशासन द्वारा निर्धारित समय पर सारे कार्यक्रम समाप्त किये जाए। पंडालों में प्रतिदिन होने वाला कूड़ा कचरा भी निर्धारित स्थानों पर डाला जाये। गणेशोत्सव के अन्तिम दिन प्रतिमा विसर्जन समारोह भी सादगी व शालीनता से हो।ध्यान रखें कि पेयजल के जीवन स्रोतों में किसी भी हालत में प्रतिमाएँ विसर्जित न की जाएँ।

स्थानीय प्रशासन ने यदि कृत्रिम जलाशय बनाए हों तो वहाँ विसर्जन को प्राथमिकता प्रदान करें। जल व अक्षत के छींटे देकर खेत एवं बगीचे की मिट्टी में विसर्जन को भी शास्त्र सम्मत बताया गया है। श्रद्धा एवं परम्परा को निभाते हुए प्रतिमाओं को पानी में कुछ देर डुबोकर फिर पुर्नउपयोग के लिये दिया जा सकता है।

कोल्हापुर में ऐसे कुछ प्रयास किये गए हैं एवं प्रतिमा पानी में डुबोकर फिर निर्माताओं को वापस दे दी गईं। मुम्बई में कुछ संगठनों ने प्रतिमाएँ टाइल्स निर्माण कारखानों में प्रदान की। घर पर बाल्टी में पानी भरकर प्रतिमा विसर्जन कर वह पानी बगीचों या खेतों में डाला जा सकता है। फूल पत्तियों वाली पूजन सामग्री को जल स्रोतों में विसर्जित न कर जैविक खाद बनाने वाली संस्थाओं को पहुँचाई जा सकती है। भगवान गणेश को हमारे यहाँ विघ्नहर्ता माना गया है। फिर उनके आयोजन से पर्यावरण में विघ्न कम-से-कम हो, यह प्रयास किया जाना चाहिए।

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Post By: RuralWater
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