पटना। संगठन की ताकत में ही सरकार को झुकाने की क्षमता है। संगठन के विस्तार के साथ-साथ लोकशक्ति को मजबूत करें, तभी हम अपने लक्ष्य को हासिल कर पाने में सफल हो पाएँगे। यह बात पटना स्थित गाँधी संग्रहालय में आयोजित जल श्रमिक संघ के प्रांतीय सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए प्रख्यात सर्वोदयी रामशरण ने कही। यह सम्मेलन गंगा मुक्ति आन्दोलन और जल श्रमिक संघ भागलपुर की ओर से आयोजित किया गया था। सम्मेलन जल श्रमिकों की समस्याओं पर विस्तार से चर्चा की गयी। सम्मेलन का संचालन ललन ने किया।
इस सम्मेलन में खासकर परम्परागत मछुआरों की समस्याओं पर विस्तार से चर्चा से की गयी। वक्ताओं ने कहा कि सरकार की गलत नीतियों और अपराधियों के चंगुल में फँसकर मछुआरे अपने परम्परागत रोजगार को छोड़कर मजदूरी करने, रिक्शा खींचने को विवश हैं। जल संसाधनों यथा नदियों तथा तालाबों से बेदखल कर दूसरे लोग मालामाल हो रहे हैं। इस बात पर खासा आक्रोश दिखा कि मत्सय पालन विभाग, सोंस सेंचुरी और कॉपरेटिव भी सामान्य जल श्रमिको के खिलाफ है।
गौरतलब है कि गंगा मुक्ति आन्दोलन और जल श्रमिक संघ के लम्बे संघर्ष के बाद बिहार के तमाम नदियों को परम्परागत शिकारमाही के लिए करमुक्त करा लिया और प्राकृतिक जल सम्पदा पर मछुआरों को सामूदायिक हक मिला। वक्ताओं का कहना था कि नियमों और नीतियों में उलझाकर उन्हें बर्बाद किया जा रहा है। फरक्का बराज, प्रदूषण, गलत जलकर नीति, अभ्यारण नीति, पहचानपत्र, कॉपरेटिव माफियागिरि, अपराधीकरण, जहर विस्फोट, अवैध जाल का प्रयोग, कोलढाव की बंदोबस्ती, घेराबाड़ी के सवालों पर इस समुदाय के तथाकथित नेताओं की चुप्पी ने तिल-तिल मरने का इन्तजाम कर दिया है। इस परिप्रेक्ष्य में स्वयं सोचना होगा और पहल करना होगा। नीतियों, नियमों पर चर्चा बहस संघर्ष कर अपने हित में बदलाव लाना होगा। सम्मेलन को रामपूजन, योगेन्द्र साहिनी, रणजीव सहित राज्य के विभिन्न हिस्सों से आए प्रतिनिधियों ने अपने विचार रखे।
सम्मेलन में गंगा और उससे जुड़ी सभी नदियों का प्रदूषण समाप्त करने, मछलियों का उत्पादन बढ़ाने और मुसहरी जाल पर रोक लगाने की माँग की गयी है। भागलपुर में सुलतानगंज से कहलगाँव तक डॉल्फिन अभ्यारण क्षेत्र में मछली मारने के पूर्ण अधिकार की वकालत की गयी। यह प्रस्ताव पारित कर कहा गया कि गंगा और उससे जुड़ी सभी नदियों के अलावा कोल, ढाव, नाले को सरकार के गजट के अनुसार मुक्त घोषित करते हुए उसे मुक्त घोषित किया जाए। गंगा और नदी क्षेत्र में बढ़ते अपराध और उसकी चुनौतियों से निपटने के लिए नदी पुलिस गठित की जाए और इन क्षेत्रों में मोटरवोट और घुड़सवारों के माध्यम से पेट्रोलिंग करायी जाय। गैरमछुआरों और अपराधियों को मछली मारने से रोकने के लिए जिला स्तर पर मछुआरों को पहचान पत्र देने की माँग की गयी। सम्मेलन में गंगा के फरक्का बराज की तरह जगह-जगह बराज बनाने की योजना को रद्द करने और विदेशी स्टीमरों के बदले देशी नौकाओं द्वारा माल परिवहन कराने की माँग की गयी।
सम्मेलन में मछुआरों को मत्स्य पालन, नदी पुलिस, गोताखोरी, नौवहन, तैराकी आदि के उच्चस्तरीय प्रशिक्षण तथा रोजगार के लिए ऋण आदि की सुविधा मुहैया कराने के प्रस्ताव पारित किए गए। सम्मेलन में यह प्रस्ताव भी पारित किया गया कि जिन मछुआरों की अपराधियों द्वारा हत्या की गई है उन मछुआरों के परिवारों को एक लाख रुपये मुआवजा, नौकरी, आवास और रोजगार उपलब्ध कराने और शिकारमाही हेतु प्रतिबंधित तीन माह का मुआवजा दस हजार रुपया प्रतिमाह प्रतिव्यक्ति के दर से मछुआरों को दिया जाए। सम्मेलन में भावी संघर्ष की रणनीति पर भी विचार किया गया।
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