संभली नहीं तो प्यासी रह जाएगी दिल्ली!

दिल्ली अगर नहीं संभली तो भविष्य में पानी के लिए तरसना होगा। अभी दिल्ली में पानी की सप्लाई और डिमांड में 315 एमजीडी का गैप है। दिल्ली के पास पानी का अपना कोई सोर्स नहीं है। हमें या तो नेचर पर या दूसरे राज्यों पर पानी के लिए निर्भर रहना पड़ता है। अगर नेचर से मिले पानी को संरक्षित नहीं किया गया तो डिमांड और सप्लाई का गैप और बढ़ता जाएगा और जिसे पाटना नामुमकिन हो जाएगा। दिल्ली में हर रोज 1140 एमजीडी पानी की जरूरत है। यह देश के किसी भी शहर में सबसे ज्यादा डिमांड है।

दिल्ली को जितना पानी उपलब्ध है उसका करीब 40 फीसदी बर्बाद चला जाता है। इस पानी के बदलने जल बोर्ड को न तो रेवेन्यू ही मिलता है और न ही बर्बाद हो रहे इस पानी पर कंट्रोल हो पा रहा है। दिल्ली में हर रोज 1140 एमजीडी ( मिलियन गैलन दैनिक ) से अधिक की डिमांड है लेकिन पानी सिर्फ 825 एमजीडी ही मौजूद है। यह पानी यमुना नदी , भाखड़ा स्टोरेज , अपर गंगा कनाल और ग्राउंड वॉटर से मिलता है। साल 2021 में दिल्ली की आबादी करीब 230 लाख हो जाएगी और तब पानी की डिमांड बढ़कर 1380 एमजीडी हो जाएगी। दिल्ली में पानी की खपत बढ़ती जा रही है। साथ ही , सप्लाई और डिमांड के बीच का अंतर भी बढ़ रहा है। जल बोर्ड के मुताबिक , दिल्ली के 27 पर्सेंट घरों में दिन में तीन घंटे से कम वक्त तक सप्लाई का पानी मिलता है। 55 पर्सेंट घरों में तीन - छह घंटे तक पानी उपलब्ध रहता है। स्लम एरिया के करीब 6,90,000 घरों में से 16 पर्सेंट में हर दिन एक शख्स के लिए 25 लीटर से कम पानी मिल पाता है।

सिटिजंस फ्रंट फॉर वॉटर डिमॉक्रेसी के कनवीनर एस . ए . नकवी कहते हैं कि जिस तरह दिल्ली की डिमांड बढ़ती जा रही है उसी तरह दूसरे राज्यों की जरूरतें भी बढ़ रही हैं। ऐसे में वे राज्य पानी को लेकर अपना वादा कब तक पूरा करेंगे यह कहना मुश्किल है। प्रकृति ने हमें बहुत पानी दिया है लेकिन हम उसे मेंटेन नहीं कर पाते। अच्छी बारिश होने से ग्राउंड वॉटर रिचार्ज हो गया लेकिन हम उस पानी को संरक्षित करने में असफल हैं। प्रकृति अपना काम करती है लेकिन सरकारें काम नहीं कर रही हैं।

हमारे पास अपने रिजरवॉयर नहीं हैं जिनमें हम पानी संरक्षित कर सकें। जितने भी तालाब हैं उनमें से 95 फीसदी सूख चुके हैं। इन्हें पुनर्जीवित करने की कोई पहल होती दिखाई नहीं देती। उन्होंने कहा कि पानी को संरक्षित करने के साथ ही पानी का सही इस्तेमाल भी बेहद जरूरी है। 90 फीसदी से ज्यादा आबादी जानती ही नहीं कि पानी के लिए कितनी मशक्कत करनी पड़ती है और पानी कितना कीमती है। सरकार ने भी लोगों को जागरूक करने के लिए कोई गंभीर अभियान नहीं चलाया। नकवी कहते हैं कि लोगों में यह समझ विकसित करना भी बेहद जरूरी है कि कौन से पानी को कहां इस्तेमाल किया जाए। पीने लायक पानी को खेती या गार्डनिंग में वेस्ट नहीं कर सकते।
 

Path Alias

/articles/sanbhalai-nahain-tao-payaasai-raha-jaaegai-dailalai

Post By: Hindi
Topic
×