सनमुख छींक लड़ाई भाखै


सनमुख छींक लड़ाई भाखै। पीठि पाछिली सुख अभिलाखै।।
छींक दाहिनी धन को नासै। बाम छींक सुख सदा अकासै।

ऊँची छींक महा सुभकारी। नीची छींक महा भयकारी।।
अपनी छींक महा दुखदाई। कह भड्डर जोसी समझाई।।

अपनी छींक राम बन गयऊ।
सीता हरन तुरंतै भयऊ।।


भावार्थ- ज्योतिषी भड्डरी का कथन है कि यदि छींक सामने होती है तो लड़ाई होगी, पीठ पीछे हो तो सुख देगी, दाहिने तरफ की छींक धन का नाश करती है और बाईं ओर की छींक सदैव सुख प्रदान करती है। यदि छींक जोर से होती है तो शुभ होती है, हलकी होती है तो भय उत्पन्न करती है। अपनी छींक अत्यधिक दुःख प्रदान करती है यह भड्डरी ज्योतिषी समझा कर कहते हैं। राम का वनगमन उनकी अपनी ही छींक पर हुआ था और इसी के कारण वहाँ सीता का भी तुरन्त हरण हो गया।

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Post By: tridmin
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