सं रा. संघ ने स्वीकारी अपनी गलती


शान्ति सैनिकों को हैती भेजने के पूर्व सं.रा. संघ ने इस बात की पड़ताल नहीं की कि शान्ति सैनिकों में से किसी को हैजा तो नहीं है और उसने शान्ति सैनिक शिविरों के शौचालयों में पर्याप्त सुविधा मुहैया नहीं करवाई। इसके परिणामस्वरूप वहाँ से निकला गन्दा पानी एक सहायक नदी के माध्यम से हैती की मुख्य नदी में प्रविष्ठ हो गया। चूँकि हैती की बड़ी जनसंख्या कपड़े धोने, भोजन पकाने, साफ-सफाई और पीने के पानी के लिये इसी आर्टिबोनिट नदी पर निर्भर है अतएव देश के बड़े हिस्से में हैजा फैल गया। अन्ततः संयुक्त राष्ट्र संघ ने स्वीकार किया है कि सन 2010 से हैती में फैली हैजा महामारी में उसकी भी कुछ जिम्मेदारी बनती है। गौरतलब इस घटना में अब तक वहाँ कम-से-कम 9200 व्यक्तियों की मृत्यु हो चुकी है एवं करीब 10 लाख संक्रमित हुए हैं। यह पहली बार है जबकि सं. रा. संघ ने स्वीकार किया है कि पीड़ितों के प्रति उसका कर्तव्य है। यह जवाबदेही और न्याय की राह में उठा एक महत्त्वपूर्ण कदम है। हैती दुनिया के निर्धनतम देशों में से एक है। इसे बार-बार प्राकृतिक एवं मानवनिर्मित विध्वंसों का सामना करना पड़ता रहता है।

इस देश में हैजा सन 2010 के पूर्व कोई समस्या नहीं था। उस दौरान सं. रा. शान्ति सैनिकों को भूकम्प के बाद मदद पहुँचाने के लिये वहाँ भेजा गया था। शान्ति सैनिकों को हैती भेजने के पूर्व सं.रा. संघ ने इस बात की पड़ताल नहीं की कि शान्ति सैनिकों में से किसी को हैजा तो नहीं है और उसने शान्ति सैनिक शिविरों के शौचालयों में पर्याप्त सुविधा मुहैया नहीं करवाई। इसके परिणामस्वरूप वहाँ से निकला गन्दा पानी एक सहायक नदी के माध्यम से हैती की मुख्य नदी में प्रविष्ठ हो गया। चूँकि हैती की बड़ी जनसंख्या कपड़े धोने, भोजन पकाने, साफ-सफाई और पीने के पानी के लिये इसी आर्टिबोनिट नदी पर निर्भर है अतएव देश के बड़े हिस्से में हैजा फैल गया।

यह बीमारी अब इस देश में महामारी का रूप ले चुकी है। इस निरोधक एवं उपचार योग्य बीमारी से वहाँ बड़ी संख्या में लोग मर रहे हैं। सं. रा. संघ ने ऐसा कोई समाधान उपलब्ध करवाने से भी इनकार कर दिया जिससे कि पीड़ितों को तुरन्त उपचार मिल सके। शान्ति स्थापित करने वाले मिशनों पर कानूनी बाध्यता है कि यदि स्थानीय नागरिकों के साथ कुछ गलत होता है तो वे इसकी भरपाई करें, लेकिन हैती में ऐसा नहीं हुआ।

न्यूयार्क डिस्ट्रिक्ट एवं अपीलीय न्यायालय में इस सम्बन्ध में मुकदमा लगाया गया परन्तु सं. रा. संघ ने न्यायालय के समक्ष यह कहते हुए प्रस्तुत होने से इनकार कर दिया कि उसे राष्ट्रीय न्यायालयों से अभयदान मिला हुआ है। पैरवी करने वाले समूहों ने सं. रा. संघ एवं इसके सदस्य देशों से अनुरोध किया कि कोई राजनीतिक समाधान उपलब्ध कराया जाये, परन्तु ऐसा कुछ भी होता दिखाई नहीं दे रहा है।

भूल स्वीकारना


चूँकि अब बान की मून का कार्यकाल कमोबेश समाप्ति पर है और हैती की स्थिति सं. रा. संघ की छवि पर लगा दाग है, तो प्रतीत हो रहा है कि पाँच साल से चल रहा गतिरोध अब समाप्त हो सकता है। न्यूयार्क टाइम्स ने खबर दी है कि बान की मून के प्रवक्ता ने लिखा है, ‘पिछले वर्ष संयुक्त राष्ट्र संघ इस बात को लेकर सहमत हुआ है कि इस स्थिति की निर्मिति में उसकी भागीदारी रही है, अतएव उसे हैजा प्रभावित लोगों के लिये कुछ अतिरिक्त करना चाहिए।’ उन्होंने कहा कि हैती के अधिकारियों से सहमति बनने के बाद ही किये जाने वाले उपायों को सार्वजनिक किया जा सकेगा।

इस प्रस्ताव को प्रोत्साहन देने वालों में संयुक्त राष्ट्र संघ के मानवाधिकार से सम्बन्धित स्वतंत्र विशेषज्ञ, पूर्व सं. रा. संघ अधिकारी और कुछ सदस्य देश भी शामिल हैं। सं. रा. संघ महासचिव की दौड़ में शामिल कई उम्मीदवारों ने भी वायदा किया है कि चुने जाने की स्थिति में वह इस दिशा में कार्य करेंगे। बान की मून से सार्वजनिक अपील भी की जा रही है कि वह अपने दृष्टिकोण को बदल लें। परन्तु इस बात के ठोस प्रयास किये जाने चाहिए कि हैती में राजनीतिक अस्थिरता के बावजूद हैजा पीड़ितों की आवश्यकताओं की पूर्ति हो।

संशोधन करना


तमाम विशेषज्ञों, बुद्धिजीवियों, सं. रा. संघ के राजदूतों एवं पूर्व सं. रा. संघ अधिकारियों ने इस बात पर विमर्श किया है कि इस परिस्थिति में किस प्रकार का राजनीतिक प्रस्ताव तैयार किया जाये। इस प्रस्ताव में वित्तीय क्षतिपूर्ति, बीमारी पर काबू पाने के प्रयास एवं सार्वजनिक क्षमायाचना समाहित होने चाहिए। व्यापक जनहानि की स्थितियों में आमतौर पर एकमुश्त भुगतान के आधार पर मुआवजा प्रदान कर दिया जाता है।

इस स्थिति में हैजा पीड़ितों को इसी तरह से मुआवजा देना चाहिए। हैती में न तो राष्ट्रीय कानून है एवं न ही मुआवजे को लेकर कोई मानक। परन्तु कम-से-कम जो लोग हैजे से मरे हैं उनके निकट सम्बन्धियों को वित्तीय क्षतिपूर्ति तो मिलनी ही चाहिए और जो भी इस बीमारी से संक्रमित हुए हैं उन्हें उपचार भी उपलब्ध हो।

वैसे हैती में एक सशक्त हैजा उन्मूलन योजना चालू कर दी गई है। यह मूलतः पानी, सेनिटेशन एवं संक्रमण के फैलाव को रोकने पर केन्द्रित है। लेकिन इसमें धन की जबरदस्त कमी महसूस हो रही है। इसका अर्थ है कि जो भी जल उपचार संयंत्र (वाटर ट्रीटमेंट प्लांट) निर्मित किये गए हैं, उन्हें चलाने के लिये पर्याप्त बिजली नहीं है। किसी भी समझौता प्रस्ताव में इस तरह के कार्य को मदद पहुँचाने का प्रावधान होना ही चाहिए।

इसका सबसे भयानक दुष्परिणाम यह हुआ है कि सं. रा. संघ एवं स्थानीय समुदाय के सम्बन्धों में काफी तल्खी आई है। सं. रा. संघ एवं हैती के मध्य विश्वसनीयता के पुनर्निर्माण में क्षमायाचना महत्त्वपूर्ण सिद्ध हो सकती है। रवांडा, स्रेब्रेनिका और श्रीलंका में सं.रा. संघ द्वारा अपनी गलती के लिये क्षमायाचना ने प्रभावित लोेगों की भावनाओं पर मलहम का काम किया है।

हैती में फैली हैजा महामारी सं. रा. संघ एवं इसके शान्ति मिशन की प्रतिष्ठा पर एक धब्बा है केवल सहायता पैकेज ही स्थितियाँ बदल सकता है। किसी भी तरह का पैकेज हो लेकिन इसे पारदर्शी तरीके से तय किया जाना चाहिए। सं. रा. संघ का दस्तावेज दर्शा रहा है कि सुगबुगाहट जारी है। सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण यह है कि समझौता पारदर्शी, स्पष्ट एवं न्यायपूर्ण हो।

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Post By: RuralWater
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