पहाड़ों में बदलते जलवायु परिवर्तन ने वैज्ञानिकों की चिन्ता बढ़ा दी है। समुद्रतल से आठ से नौ हजार फीट की ऊँचाई पर पाया जाने वाला काफल फल तय समय से पहले ही पेड़ों पर लकदक कर पकने को तैयार हो गया है। साथ ही दिसम्बर के महीने में बुरांश के फूल भी जंगल में खिले हुए दिख रहे हैं, जो एक चिन्ता का विषय बना हुआ है।
रुद्रप्रयाग जिले के विकासखण्ड अगस्त्यमुनि के बच्छणस्यूं के बंगोली गाँव के जंगलों में इन दिनों काफल और बुरांश के पेड़ों पर फूल खिले नजर आ रहे हैं। ग्रामीणों की माने तो पेड़ों पर तीन महीने पहले ही काफल लग चुके हैं। जबकि पिछले वषों में काफल का फल मार्च के आखिरी सप्ताह में गिने चुने पेड़ों पर ही दिखाई देता था और आबादी वाले क्षेत्रों में अप्रैल और मई माह में काफल पकते थे।
ठंडे क्षेत्र में तो मई से जून के आखिरी सप्ताह तक काफल पकते रहते थे, लेकिन इस समय तीन महीने पहले ही इस तरह की स्थिति पैदा हो गई है, जो कि चिन्ता का विषय बनी हुई है। प्रसिद्ध पर्यावरणविद जगत सिंह चौधरी जंगली का कहना है कि विकास की दौड़ में लोगों ने जलवायु की ओर ध्यान देना ही छोड़ दिया है, जिसका परिणाम दिसम्बर के महीने में देखने को मिल रहा है। हिमालयी क्षेत्रों में बर्फबारी नहीं हो रही तो काफल और बुरांश समय से पहले ही पेड़ों पर आ रहे हैं जोकि हमारे पर्यावरण के लिये बहुत बुरा है। जलवायु परिवर्तन से यह स्थिति पैदा हो रही है। केदारनाथ से लेकर हिमालय रेंज में जहाँ भी बर्फ गिर रही हैं वहाँ बर्फ टिक नहीं पा रही है। विकास के युग में थोड़ा बदलाव लाना होगा और गाँवों के जीवन की तकनीकी को अपनाना होगा।
1- बंगोली गाँव में बुरांश के फूलों से पेड़ लकदक
2- जलवायु में आ रहे परिवर्तन से जनता चिन्तित
3- काफल और बुरांश के फूल आने में अभी बाकी हैं तीन माह
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