जल की महिमा हमारे धर्मग्रंथों में बहुत बखानी गई है। उसमें देवताओं का वास बताया गया है। लेकिन आज हम उसी जल को प्रदूषित कर रहे हैं। अगर समय रहते हम नहीं चेते तो जल-संकट जीवन का संकट बन जाएगा।
सुदूर दक्षिण में भारतीय प्रायद्वीप त्रिभुजाकार रूप में कन्याकुमारी तक विस्तृत है। समुद्र से घिरे होने के कारण भारतीय इतिहास में इसकी विशिष्ट स्थिति रही है। समुद्र के रूप में यह जल तत्व ही तो है, जो जीवन को एक अलग आयाम देता है। यह सच है कि हमने जल तत्व का बहुत अधिक दुरुपयोग किया है। इससे हमारी प्रकृति हमसे रूठ गई है। किसी का भी दोहन अन्धाधुन्ध होगा, तो उसका नाराज होना स्वाभाविक है, क्योंकि जैसे हम इंसान ऐसा महसूस कर सकते हैं, तो वैसे ही प्रकृति भी ऐसा सोचती होगी।हम अपनी पुरानी परम्पराओं को दिन-प्रतिदिन भूलते जा रहे हैं। हम सिर्फ तकनीकों पर भरोसा करने लगे हैं, पर ऐसा नहीं होना चाहिए। हमारे यहाँ प्रकृति की उपासना की बात कही गई है। यदि हम उसकी उपासना, यानी उसका दोहन सन्तुलित रूप से करेंगे, तो वह हमारा संरक्षण और विकास दोनों करेगी। यह चक्र है।
मैं दिल से बहुत आध्यात्मिक हूँ और अपने धर्मशास्त्रों में कही बातों को मानती हूँ। श्रीमद्भागवद्गीता में भगवान कहते हैं कि- तुम लोग इस यज्ञ के द्वारा देवताओं को उन्नत करो और वे देवता तुम लोगों को उन्नत करें। इस प्रकार निःस्वार्थ भाव से एक-दूसरे को उन्नत करते हुए तुम लोग परम कल्याण को प्राप्त हो जाओगे। यह बात इस श्लोक में कही गई है-
“देवान्भावयतानेन ते देवा भावयन्तु वः। परस्परं भावयन्तः श्रेयः परमवाप्स्यथः।।”
वैसे भी हमारे भारतीय इतिहास में ही नहीं विश्व इतिहास में नदियों का विशेष महत्त्व रहा है, क्योंकि वे जीवनदायिनी हैं; वे हमें पानी यानी जीवन देती हैं। जल को पवित्रता का प्रतीक मानकर उसको साफ रखने, संरक्षित रखने और मितव्ययिता के साथ प्रयोग में लाने की बात कही गई है। हमारे यहाँ जल की प्रमुख स्रोत नदियाँ गोदावरी, कृष्णा, तुंगभद्रा, कावेरी अपनी जीवनदायिनी महत्ता के कारण धार्मिक दृष्टि से भी काफी पवित्र मानी जाती हैं।
अधिकांश नदियाँ मानसून की वर्षा पर ही निर्भर रहती हैं। इसलिये वर्षा के लिये विशेष पूजन की विधि है- ‘वरुण जप’ क्योंकि अध्यात्म में बहुत शक्ति है, इसलिये नदियों में पानी को बहने दीजिए। पानी के बिना जीवन नहीं है। तभी तो श्रीमद्भागवद्गीता में एक अन्य श्लोक में भगवान कहते हैं कि सम्पूर्ण प्राणी अन्न से उत्पन्न होते हैं, अन्न की उत्पत्ति वृष्टि से होती है, वृष्टि यज्ञ से होती है और यज्ञ विहित कर्मों से उत्पन्न होने वाला है। इसी सन्दर्भ में मैं महसूस करती हूँ कि पानी सिर्फ हम इंसानों की जरूरत नहीं है। यह प्राणिमात्र के जीवन का भी आधार है। पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, कीट-पतंग सभी का जीवन जल से जुड़ा है। हमें बिना जल के अन्न नहीं मिल सकता। बिना अन्न के कौन जीवित रह सकता है?
मैंने अपनी किताब ‘नाट्य शास्त्र एंड नेशनल यूनिटी’ में करीब बीस वर्ष पहले ही लिखा था कि भारत में न सिर्फ राष्ट्रीयकृत बैंक हों, बल्कि नदियों का भी राष्ट्रीयकरण किया जाना चाहिए। ये राष्ट्र की सम्पत्ति हैं। हमारे पास मानव शक्ति की अपार सम्पदा है। अगर हम इसका उपयोग करके नदियों को जोड़ देते, तो हम जल सम्पदा का संरक्षण भी कर लेते और कहीं भी पानी की कमी नहीं रहती। अब भी समय है कि हम चेत जाएँ, वरना आने वाली पीढ़ियाँ हमें कभी माफ नहीं कर पाएँगी। जल ही हमारा जीवन है। पानी के बिना जीवन की कल्पना ही असम्भव है।
(लेखिका प्रसिद्ध भरतनाट्यम नृत्यांगना हैं)
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